नमस्कार मित्रों!
मैं मनोज कुमार एक बार फिर से हाज़िर हूं रविवासरीय चर्चा के साथ।
आज आई.पी.एल. का फाइनल बस शुरु होने ही जा रहा है। आप सब उसका आनंद ले रहे होंगे। … और हम बैठे हैं अपना साप्ताहिक कमिटमेंट पूरा करने। टॉस हो चुका है, और मैच बस शुरु होने ही वाला है। हमारी चर्चा भी बस शुरु ही होने वाली है। जब मैच खत्म हो चुका होगा तब हम अपनी चर्चा शेड्यूल कर रहे होंगे। शास्त्री जी को हमने वचन दे रखा है कि रविवार की सुबह की चर्चा हम करेंगे। तो वचन तो निभाना ही पड़ेगा, चाहे आई.पी.एल. का फाइनल मिस हो जाए। आई.पी.एल. की धूम से बात की शुरुआत करें तो यह देखें
कहा गया है, “हमारे वचन चाहे कितने भी श्रेष्ठ क्यों न हों परन्तु दुनिया हमें हमारे कर्मों के द्वारा पहचानती है।” तो अब हम अपना कर्म करें। पर एक
आई.पी.एल. की चर्चा चली तो एक बात जो उभर कर सामने आई वो यह कि जबसे क्रिस गेल सामने आया तब से इस टूर्नामेंट का सारा समीकरण ही बिगड़ गया। जो टीम सबसे आगे थी, धीरे-धीरे खिसकते-खिसकते नीचे आती गई और आरसीबी चोटी पर पहुंचता गया। उसने सिंगल हैंडेडली इस टीम को फाइनल में पहुंचा दिया। अपनी टीम (वेस्ट इंडीज़) में उसे जगह नहीं क्या मिली लगता है उसके अंदर एक आग सी जल उठी और उसकी धधकन लिए वह आई.पी.एल. में टूट पड़ा और फानल में जिस अंदाज़ से सेमीफाइनल के रास्ते आया है लगता है कि उसमें आग बहुत-सी बाकी है … और क्या पता वह फाइनल भी ….:)!
आग कैसी भी पर सफलता तो मेहनत से ही मिलती है। “जिस प्रकार थोड़ी सी वायु से आग भड़क उठती है, उसी प्रकार थोड़ी सी मेहनत से किस्मत चमक उठती है।” और प्रेम की आग तो सबसे कम जलाती है, यदि उसमें वासना न हो। इसके लिए हमें एक अलग देस में जाना होगा। वहां जहाँ मनुष्य के मन में प्रेम इतना प्रबल हो कि अपने अंदर ही नित्य उपजतीं अन्य नकारात्मक प्रवृत्तियां स्वतः ही दुर्बल पड़ने लगें ..!! इसलिए
किसी ने सच ही कहा कि “यदि मैं यह समझ लूँ कि मेरा असली गुण प्रेम करना है तो मन में द्वेष आ ही नहीं सकता।” आखिर हम इस छोटी सी ज़िन्दगी में द्वेष-ईर्ष्या क्यों पालते हैं। हर कोई यहां सफ़र में है, और जैसे एक-दूसरे से हम प्रतीक्षालय में प्रतीक्षालय में मिले हों, बस गाड़ी के आने की घोषणा होते ही हमें इस वेटिंग रूम से....
चला जाना होगा।
इस छोटी सी ज़िन्दगी के भी कई रूप होते हैं। अब देखिए न “बीस वर्ष की आयु में व्यक्ति का जो चेहरा रहता है, वह प्रकृति की देन है, तीस वर्ष की आयु का चेहरा जिंदगी के उतार-चढ़ाव की देन है लेकिन पचास वर्ष की आयु का चेहरा व्यक्ति की अपनी कमाई है। ” इस उम्र के लोग कहते मिल जाएंगे
मिले भी क्यों न? आखिर अनुभव की भी तो क़ीमत होती है।
अनुभव बड़े काम की चीज़ होती है। अनुभव की पाठशाला में जो पाठ सीखे जाते हैं, वे पुस्तकों और विश्वविद्यालयों में नहीं मिलते। अब देखिए न मिट्टी से कुल्हड़ बनाना कोई आपको सिखा दे, आप सीख लेंगे। उसमें चाय पीकर उसे फेंक देंगे। पर इस कुल्हड़ का कोई उपयोग भी हो सकता है वह तो अनुभवी लोग ही बता सकते हैं। तो इसी बात पर देखिए आप भी
कोई भी चीज़ तब अनुपयोगी नहीं होती जब तक वह पूर्णतया अनुपयोगी न हो जाए। उपयोग करने की इच्छा और आदत होनी चाहिए। “हमें क्षण-क्षण का उपयोग करके विद्या का और कण-कण का उपयोग करके धन का अर्जन करना चाहिये!” इसलिए ज़रूरी है
निर्धनों को बाँटकर तालीम कहलाओ धनी, क्यों सबल को भेंट दे, उपहार की बातें करें।
लेकिन आज ग़रीबों की कौन सुनता है। जो धनी हैं और भी धनी होना चाहते हैं। और जो ग़रीब हैं और भी ग़रीब होते जा रहे हैं। “अपनी जरुरत के लिए धन कमाना अच्छी बात है, किन्तु धन-दौलत जमा करने की भूख होना बुरी बात है।” इस भूख से भ्रष्टाचार जनमती है। और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में सरकार भी विवश दिखती है। कभी-कभी मन में यह प्रश्न आता है कि
सरकार को क्या दोष दें, चुनते तो उन्हें हम ही है, जो हम पर शासन करते हैं। हमने जिन्हें चुना है वो राजनीति का ऐसा खेल खेल रहे हैं जिसमें आप जनता घुन की तरह पिसती जा रही है।
गुंडों के बल पर चला , राजनीति का खेल ।भले आदमी रो रहे, ऐसी पड़ी नकेल ।।
राज बदले, या पाट बदले, राजनीति का मौसम एक सा ही रहता है। मौसम तो बदलता ही रहता है। अब तो प्रचंड गर्मी की मौसम आ गया है। हम आपको चेता दे रहे हैं। आप हो जाइए
सावधान! हाजमा बिगाड़ सकता है बदलता मौसम।
वैसे कोई भी मौसम हमें कैसा लगता है वह हमारे मन पर निर्भर करता है। मन में नकारात्मक भाव हों तो “कभी कोयल की कूक भी नहीं भाती और कभी (वर्षा ऋतु में) मेंढक की टर्र टर्र भी भली प्रतीत होती है | ” जो कभी कसूरवार लगते थे वे बेकसूर लगने लगते हैं, जो अच्छी बातें बताता लगता था वो बकवास करता प्रतीत होता है।
बेकसूर प्रिंसिपल, नकारात्मक मीडिया - फालोअप पोस्टसे तो ऐसा ही लगता है।
क्या-क्या देखना पड़ता है, क्या-क्या सुनना पड़ता है। क्या-क्या देखना बाक़ी है, क्या-क्या सुनना बाक़ी है। जैसी है वैसी ही है दुनिया न जाने
जो है सो है। यहां तो आंख के अंधे को दुनिया नहीं दिखती, काम के अंधे को विवेक नहीं दिखता, मद के अंधे को अपने से श्रेष्ठ नहीं दिखता और स्वार्थी को कहीं भी दोष नहीं दिखता। इसलिए चलिए चल कर रहें तारों के पीछे।
जहां जाकर कुछ शान्ति मिले, सुकून मिले और मन को मिले विश्राम। इसीलिए
चाहे जो हो, जैसा भी हो, हमें आशा है कि अच्छे दिन फिर से आयेंगे
ये थी आज की हमारी
हमने अपना कर्म कर लिया। आब आपकी आप जानें …!
अगले हफ़्ते फिर मिलेंगे। कुछ नए विचार और नई पोस्टों के साथ। तब तक के लिए हैप्पी ब्लॉगिंग।
सार्थक चर्चा!
ReplyDeleteइतने लिंक तो आसानी से देखे जा सकते हैं!
आभार!
आलेखनुमा अच्छी चर्चा !
ReplyDeletesarthak sakalan sunder hai ,prayas ki aavsyakta hai . aabhar
ReplyDeleteनए अंदाज़ में चर्चा अच्छी लगी.मुझे स्थान दिया,कृतज्ञ हूँ.
ReplyDeleteलिंक्स जोड़ने का सुंदर प्रयास |मुझे स्थान दिया ह्रदय से आभार आपका ...!!
ReplyDeletebahut vicharpoorn charcha.aabhar.
ReplyDeleteबढ़िया अंदाज़ चर्चा का. बहुत अच्छा है ये फॉर्मेट. बधाई.
ReplyDeleteanokha pryaas.
ReplyDeleteati sundar.
aabhaar manoj ji.
वाह्……………बहुत सुन्दर चर्चा-ए-अन्दाज़ है………शानदार लिंक संयोजन्।
ReplyDeletesarthak charcha -gyanvardhak links .aabhar
ReplyDeleteबहुत अच्छी चर्चा ...हर विषय को जोडने का अद्भुत उदाहरण ...
ReplyDeleteसुन्दर लिंक सयोजन से सजी शानदार चर्चा के लिए आभार
ReplyDeleteबहुत बढ़िया चर्चा मनोज जी ! आपको बहुत बहुत बधाई !
ReplyDeleteबढ़िया चर्चा लगाईं है .
ReplyDeleteबहुत सुंदर चर्चा....सुव्यवस्थित।
ReplyDeleteAlag tarah ki charcha hai aaj Manoj ji ... bahut lajawaab ...
ReplyDeletebadiyaa charcha.achche link prastut karane ke liye badhaai aapko.
ReplyDeleteplease visit my blog and feel free to comment.thanks.
गागर में सागर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और सार्थक चर्चा रहा! बेहतरीन प्रस्तुती!
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभार आप सबों का। एक प्रयोग किया था। शायद पसंद आया हो आपको।
ReplyDeleteएक ही तरह की चर्चा, लिंक के संयोजन से अलग हट कर कुछ सुंदर लिंक के साथ मन की बात शेयर करने का मन बन गया।
पर लगता नहीं आपको कि संवाद एकतरफ़ा ही रहा?!
bhut bhut dhanyawaad main jab bhi charchamanch pe aati hu kuch na kuch naya padne ko milta hai... jiske liye sirf dhanyawaad kahna sayad kam hi ho... phir bhi kahti h... bhut abhar...
ReplyDeleteआदरणीय मनोज जी-बहुत ही सार्थक चर्चा प्रस्तुति -अनोखे विचार लगाकर और अन्य कई ज्ञानदायक लिंक लगाकर आप ने इस चर्चा में जान डाल दी -निम्न बहुत ही यथार्थ अनुभव आप का -कर्मंयेवाधिकारास्ते माँ फलेषु कदाचन सा -बधाई हो -
ReplyDelete“हमारे वचन चाहे कितने भी श्रेष्ठ क्यों न हों परन्तु दुनिया हमें हमारे कर्मों के द्वारा पहचानती है।”
आशा है आप अपने सुझाव , समर्थन , स्नेह देते रहेंगे
साभार -
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
बढ़िया चर्चा...
ReplyDeleteबात अच्छी कही तो
ReplyDeleteहमें तुम भा गये