नमस्कार , हाज़िर हूँ एक बार फिर मंगलवार की चर्चा ले कर ..दिन -प्रतिदिन मंहगाई की मार से आम आदमी परेशान हो गया है …लगता है ज़िंदगी में बस संघर्ष ही संघर्ष है …यहाँ तक कि मन के भाव भी लोगों को त्रस्त कर रहे हैं …आज चर्चा का आरम्भ करते हैं डा० रूपचन्द्र शास्त्री जी की रचना से-- |
![]() बातें उल जलूल हो गयीं जाने कैसे भूल हो गई अन्तर्मन को पढ़ने में। कल्पनाएँ निर्मूल हो गईं, पाषाणों को गढ़ने में। हार नहीं मानी मैंने, संघर्षों के तूफानों से, राहें ही प्रतिकूल हो गईं, सोपानों को चढ़ने में |
![]() धीरे धीरे बर्फ पिघलना ठीक नही दरिया का सैलाब में ढलना ठीक नही पत्ते भी रो उठते है छू जाने से पतझड़ के मौसम में चलना ठीक नही |
![]() ज़िन्दगी जब भी करवट लेती है सब कुछ नेस्तनाबूद कर देती है कभी जीने का पता नही देती है कभी मरने का ठिकाना नही देती है कभी आईने मे अक्स दिखा देती है कभी अक्स को आईने मे छुपा देती है |
मैं ; जब पियानो में ; 'सी शार्प' लगाती हूँ न - तब ; नहीं लगाती वो सुर - दरअसल ; मैं खुद ही सुरों में ढल के 'सी शार्प' हो जाती हूँ ! |
![]() इन दिनों अच्छी नहीं लगतीं मुझे अच्छी लगने वाली चीजें बिलकुल नहीं भातीं मीठी बातें दोस्तियों में नहीं आती है अपनेपन की खुशबू सुंदर चेहरों पर सजी मुस्कुराहटों से झांकती है ऊब |
हित रक्षक भक्षक बन जाए क्या कर लोगे, सुख ही दुखदायक बन जाए क्या कर लोगे। बहिरंतर में भिन्न-भिन्न व्यक्तित्व सजाए मित्र कभी निंदक बन जाए क्या कर लोगे। |
नील कुवलय -से तुम्हारे ये अधमुँदे नयन कितने पावन बुनते सपन । |
![]() मेरी किस्मत में है तेरा प्यार नहीं तेरी नफ़रत किंतु मुझे स्वीकार नहीं दिल में बनकर चोट बसी जो तू मेरे निकली फिर क्यूँ बन आँसू की धार नहीं |
ये क्या ...... ऐसे क्यों मांग लिया ! अनछुए से सपनों की सौगात ...... ये कैसे रिश्ते, ये कैसे ज़ज्बात ! |
वाटिका ब्लॉग पर सुभाष नीरव लाये हैं रंजना श्रीवास्तव के कुछ गीत और गज़लें ![]() एक चेहरा मुझे आप जैसा लगा चांदनी रात में चांद जैसा लगा हमने सरहद बनायी अलग हो गये आइने में दिखीं सूरतें इक जगह फूल की बस्तियां चुप सी रहने लगीं तितलियों का सफ़र आग जैसा लगा |
मेरी खामोशियो को समझ तुम भी नही पाये मेरे ख्याल जब शब्दों में ढलते है उन शब्दों में जिक्र तुम्हारा ही होता है मेरी कवितायों को पढ़ तुम भी नही पाये मेरी खामोशियो को समझ तुम भी नही पाये...!!! |
![]() एक खालीपन पसर गया है मन के भीतर बाहर भी तुम जो नहीं हो पास |
आओ बच्चों तुम्हें सिखाएं हम ऐसी एक पतंग बनाएं सपनों का कागज हो जिसमें अरमानों की डोर लगाएं देख हवा का रूख चुपके से बैठ पतंग पर खुद उड़ जाएं |
जब शाम को मैंने उनका मुंह देखा, लगा, अभी तक नाराज़ है मुझसे, कल रात की तू-तू-मैं-मैं की, धधक कर जलती आग है ये. |
![]() इक लम्हे में उन्होंने जिन्दगी संवार दी मेरी ? इक लम्हे में उन्होंने जिन्दगी उजाड़ दी मेरी ? |
![]() हमारी विरासत जिंदगी के दस्तावेज़ रख दो सम्हाल के कि आने वाली जिंदगियाँ आसान हो जाये. |
![]() अन्तः उर में छाई उदासी हार सिंगार क्यूं हो गया बासी सुर्ख परिधान लगे स्याह सरीखा मेहंदी का रंग पड़ गया फीका ! |
आपका प्रतिबिंब पानी पर पड़ा
खिलखिलाकर हंस दिए जो आप
चपल चितवन ने दिया संदेश
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![]() पर क्या ? यह आप खुद पढ़ कर जाने .. हाय क्या मासूमियत, क्या क़त्ल करने का हुनर आपका तो नाम ही , तलवार होना चाहिए ! आँख भी जब बंद हो और वो तसव्वुर में न हो ऐसे लम्हों पे तो बस, धिक्कार होना चाहिए |
![]() मन के सूने गलियारों में किसीकी जानी पहचानी परछाइयाँ टहलती हैं , दिल की सख्त पथरीली ज़मीन पर दबे पाँव बहुत धीरे-धीरे चलती हैं |
![]() गीत लिखना छोड़ दूँ गीत लिखना छोड़ दूँ,ग़ज़लें सुनाना छोड़ दूँ? चाहते है आप कि मैं मुस्कुराना छोड़ दूँ? भीड़ है चारो तरफ पर हर कोई तन्हा यहाँ, ऐसी सूरत में उन्हें मैं,गुदगुदाना छोड़ दूँ? |
दीप जला श्रद्धा का मन में जिस क्षण हमने तुम्हें निहारा, भाव उठा समर्पण का तब जब से तुमने हमें पुकारा ! |
स्त्री - पुरूष समान रूप से एक दूसरे के पूरक सुनते आ रहे हैं न जाने कब से लेकिन क्या सच में ही दोनों में कोई समानता है? |
मेरे मौन की अज्ञात लिपि में पिरो दिये हैं तुमने कुछ भीगे अक्षर बोलो ! मैं इनका क्या करूँ जबकि ;मैं घर पर नहीं थी और डाकिया डाल गया एक बन्द लिफाफा |
ख़बरे कहती हैं हमसे की ? युवावर्ग बिगड़ रहा है | कितना आसां है ... यह कहना कि युवापीढ़ी बिगड़ रही है | हाथ पकड़ कर चलना तो , उसने हमसे ही सीखा है | |
अँधेरे में इक दिया जलाता हूँ | मैं रौशनी के लिए खुद को मिटाता हूँ || जहां सारी उम्मीदें हताश हो आयी | वहां मैं, दुआ बन के काम आता हूँ || |
![]() चाँद माना धरा से बहुत दूर है .. चाँद माना धरा से बहुत दूर है ! चांदनी ये मगर कब कहाँ दूर है !! भटकता फिरूं में यहाँ से वहां ! ऱब इन्सान से कब कहाँ दूर है !! |
ज़िन्दगी टिक टिक घड़ी सी चलती , क्या जागा , क्या सोया ? एक एक कर दिन ख़त्म हो रहे , क्या पाया , क्या खोया ? |
आसमान में धुआं क्यों है, कहाँ लगी है आग परिंदे? देर न हो जाये घटना को, ले ऊंची परवाज़ परिंदे. देख कहीं से रावणजी तो, इस धरती पर लौट न आये? लक्षमण रेखा खींच दोबारा, जा बन जा तू राम परिंदे. |
कुछ लोग आज कर रहे घृणा गरीब से गरीब बस गरीब है अपने नसीब से |
![]() उषा से संध्या तक कुमकुम-सा बिखरा हुआ था श्यामल नील गगन पर मानो बहारों ने अपना सौंदर्य लुटाया था चमन पर वात्सल्य से परिपूर्ण जलधर आ रहे थे सुबह की सरगम पर हलधर गा रहे थे |
![]() यदि रोटी खाना चाहते हो , वो भी सिर्फ रूखी तो कमाओ व्हाइट मनी यदि खाना चाहते हो , बटर और हनी ,तो जमकर कमाओ ब्लैक मनी |
![]() चौड़ी सड़कें लम्बे-चौड़े वाहन अतिरेक उपाधियाँ ऊँचे पद पांच अंकीय आय बड़ा कूड़ादान |
वह उनके बच्चों को बस स्टाप तक पहुंचाती सजा सवांर के नाश्ता करा के स्वयं भूखे पेट किताबों का थैला ढोती स्वयं किताबों से दूर बचपन से दूर परिवार की रोटी हो गयी |
![]() (1) बहता पानी सुनाता है सबको एक कहानी। (2) सखी री सुन दुख यूँ खाए जैसे गेहूँ को घुन। |
आज सत्तर से ऊपर के हैं बाबूजी, पहले जैसा नहीं रहा है शरीर, उन्हें होने लगी है जरूरत सहारे की दिल का क्या है ... न जाने किसके पहलूँ में जाके ठहर जाये | किसी पहचान की उसे ... जरूरत ही कहाँ होती है | ये सच है बोल बड़े अनमोल हैं भाई, फिर ये भी सच है अनमोल वही होते हैं जिन्हें हम बोलने से पहले तौल लें भाई. एक व्यक्ति के रूप अनेक ! किसी का व्यक्तित्व एक सांचे में नहीं होता सामाजिक पारिवारिक राजनैतिक आर्थिक हर सांचे का अपना एक सच होता है छले जा रही है ग़ज़ल धीरे-धीरे। कठिन धीरे-धीरे, सरल धीरे-धीरे। जज़ीरों पे बैठा हुआ सोचता हूँ, होगा कभी तो फ़ज़ल धीरे धीरे। |
आज बस इतना ही … आशा है पाठकों के लिए चर्चा अपनी सार्थकता सिद्ध करेगी … जब मंगलवार को मैं फिर से दिवस के अंत में सारे लिंक्स पर जाती हूँ और वहाँ पाठकों की टिप्पणियाँ देखती हूँ तो लगता है कि मेहनत सार्थक हो गयी …आशा है ऐसा ही स्नेह हमेशा मिलता रहेगा … आपके सुझाव और प्रतिक्रियायों का सदैव स्वागत है …. आभार … फिर मिलते हैं नयी चर्चा के साथ अगले मंगलवार को – नमस्कार -- संगीता स्वरुप |
आज की चर्चा और कई लिंक्स के लिए आभार |
जवाब देंहटाएंआशा
बढ़िया और स्तरीय चर्चा!
जवाब देंहटाएंआपका श्रम इसमें साफ झलक रहा है!
जैसा की शास्त्री जी ने कहा , आपके श्रम और गुणवत्ता
जवाब देंहटाएंके आगे नतमस्तक हैं हम ..
हमेशा की तरह लाजवाब !
Sangeeta ji aaj ki charcha me meri kavita ko jagah dene ke liye hardya se aabhari hoon.bahut achcha hai yeh munch janhaa achche achche link milte hain.aapki charcha ka tareeka bhi anokha hai.aapka bahut bahut abhaar.
जवाब देंहटाएंसंगीता जी चर्चा मंच में स्थान देने के लिये बहुत-बहुत शुक्रिया । आप हमारा उत्साह दुगुना कर देतीं हैं ।
जवाब देंहटाएंसंगीता दीदी सबसे पहले मेरा आपको प्रणाम बहुत पहले जब मैंने लिखना शुरू किया था तब भी आपने मेरा मार्ग - दर्शन किया था पर बीच में हमारा साथ छुट गया था आज फिर आपने हमारा हाथ थामा है और हमें बहुत ख़ुशी है आज फिर आप हमें इतनी खूबसूरती से सबके समक्ष लेकर आई हैं मैं आपकी बहुत शुक्रगुजार हूँ | चर्चामंच में मुझे प्रस्तुत करने का बहुत - बहुत शुक्रिया | बहुत खुबसूरत मंच सजाया है आपने , आपकी मेहनत के हम कायल हैं |
जवाब देंहटाएंबहुत लोगों से मिलने का फिर मिका मिला बहुत - बहुत शुक्रिया |
आपकी मेहनत जायज नही जाएगी संगीता दी --कुछ जानने का मोका यु ही किसी के नसीब में नही होता--आज के लिंक माशा अल्लाह बड़े ही खूब सुरती से सजाए है --अपनी अदना -सी कविता को स्थान देकर मुझे लिखने को प्रोत्साहित किया है --धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंसुँदर लिंक्स से सजी विस्तृत चर्चा . आपकी मेहनत झलकती है चर्चा में .
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा रहा! बढ़िया प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंबढ़िया और स्तरीय चर्चा!
जवाब देंहटाएंbadhiya charcha..abhaar
जवाब देंहटाएंSangeeta ji,
जवाब देंहटाएंaapke is khubsurat charcha manch ki jitani tarif karun kam hai..bahut dino ke baad is manch par aaya hoon..
aapne charcha manch ko ek nai unchai di hai jo tarife kabil hai...bahut khubsurat link aur achche blog ka sanklan..badhiya laga..bahut bahut abdhai
वाह जी बल्ले बल्ले
जवाब देंहटाएंसंगीता दी ,
जवाब देंहटाएंआपने मेरे लिये आज दिन भर की अच्छी खुराक दे दी है ) साथ में मुझे भी अपना स्नेह दे दिया बहुत अच्छा लगा ....सादर!
बहुत ही अच्छे लिंक मिले, बहुत बहुत धन्यवाद। मेरी रचना का लिंक देने के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच को जो ऊंचाई आपने अपनी मेहनत और लगन से दी है उसके लिए ब्लॉगजगत सदा आपका आभारी रहेगा।
जवाब देंहटाएंसंगीता जी,
जवाब देंहटाएंनमस्कार
चर्चामंच को सजाने-संवारने के निए आप बहुत परिश्रम करती हैं इसीलिए यह इतना सुंदर बन पाता है।
मुझे भी स्नेह प्रदान करने के लिए आभार।
सुँदर लिंक्स से सजी विस्तृत चर्चा . आपकी मेहनत झलकती है चर्चा में .
जवाब देंहटाएंसच ये है कि एक भी नहीं पढ़ पायी अभी तक ! :-(
जवाब देंहटाएंबस..पढ़ने बैठ ही रही हूँ !
और हाँ माँ , 'कुछ पन्ने' के पागलपन को मंच देने के लिए आभार !
सादर
हमेशा की तरह बहुत सुन्दर लिंक्स से सजी बहुत खूबसूरत चर्चा ! मेरी रचना को आपने इसमें स्थान दिया आपकी आभारी हूँ ! कई लिंक्स पर जा चुकी हूँ शेष पर जाना अभी बाकी है ! जिन्हें भी पढ़ा पढ़ कर बेहद प्रसन्नता हुई ! इतनी अच्छी चर्चा के लिये आपको बहुत बहुत बधाई !
जवाब देंहटाएंवि्स्तृत और शानदार लिंक्स से सुसज्जित चर्चा के लिये आभार्।
जवाब देंहटाएंबहुत मेहनत कर रही हो, उसका फायदा हम उठा रहे हैं , नए नए लिंक मिल जाते हैं और फिर भी हम सबको नहीं पढ़ पाते हैं. थाली परोस कर ही तो दे डौगी खाना खुद ही पड़ेगा. अभी भूख मिति नहीं है. वक्त खाने के लिए इजाजत नहीं देता है.
जवाब देंहटाएंइतने खूबसूरत लिंक्स.आज तो सुबह बन गई.
जवाब देंहटाएंsundar charchaa , aabhaar
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा .... हमेशा की तरह लाजवाब ...
जवाब देंहटाएंसारे के सारे पठनीय लिंक्स।
जवाब देंहटाएंबहुत विस्तृत चर्चा..शानदार लिंक्स..आभार
जवाब देंहटाएंसंगीता जी, आप इतनी विशाल बगिया से चुन-चुन के हमारे लिए फूल लती हैं, रजनीगन्धा, मोगरा, रातरानी, चमेली सी मह-मह महकती ये खुबसूरत रचनाये अपनी सुगंध से हमारा मन मोह लेती हैं.....आपका बहुत-बहुत धन्यवाद...कुछ लिंक्स तो वाकई बेहद खुबसूरत हैं.....
जवाब देंहटाएंसंगीताजी, आज की चर्चा भी बहुत मनभावनी है कई नए लिंक्स मिले, आभार !
जवाब देंहटाएंरोचक चर्चा ... बढिया है
जवाब देंहटाएंआदरणीय संगीता जी ! आपने चर्चा मंच पर लाकर मुझे सचमुच चर्चित कर दिया ...! हृदय से आभार आपका । चर्चा मंच पर आना ... अपने कई ब्लॉग मित्रों से भेट होना और भी सुखद है , बहुत बहुत आभार !!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही शानदार चर्चा
जवाब देंहटाएंअच्छे लिंक प्राप्त हुए!! आभार
बहुत बढ़िया लिंक्स से सुसज्जित चर्चा ...आभार !
जवाब देंहटाएंachchci charcha.... buddha poornima key din..... aapko dhanyavaad...
जवाब देंहटाएंमैं अपने सभी पाठकों की आभारी हूँ ... कुछ पाठक दिए गए अधिकाँश लिंक्स तक पहुंचे ... आप सबका हृदय से धन्यवाद
जवाब देंहटाएंनमस्कार संगीता जी...बहुत ही विस्तृत और मनमोहक चर्चा...अच्छे लिंक्सों से सुसज्जित...इक्जाम की व्यस्तता के कारण सभी लिंक्सों पर जा नहीं पाउँगा..पर कुछ पर तो हो ही आऊँगा....शुभ रात्रि।
जवाब देंहटाएंसंगीता जी,
जवाब देंहटाएंचर्चामंच पर जब भी आना होता है, कुछ नए ब्लॉगर दोस्तों से साइबर जान-पहचान होने के साथ-साथ काफी अच्छी रचनाओं को पढ़ने का मौका मिलता है. आप लोगों की मेहनत वाकई काबिले-तारीफ है.
आदरणीय संगीता जी.... माफी चाहता हूँ अपने ब्लॉग में प्रत्युत्तर एवं आपके साप्ताहिक काव्य मंच में टिप्पणी देने में देरी हो गई... दरअसल मेरे तंत्रजाल में कुछ तकनीकी खराबी आ गई थी... आपने इतने विशाल मंच पर मेरी रचना की पंक्तियाँ एवं उसका लिंक देकर मुझे जो सम्मान दिया है उसके लिए आपका हार्दिक आभार.... आपका आशीर्वाद यूँ ही मिलता रहे और मैं आपके इस मंच द्वारा इतने महान रचनाकारों की कृतियों से अवगत होकर उनसे कुछ सीखता रहूँ, यही कामना करता हूँ...आपको सादर चरण स्पर्श..
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