नमस्कार , लीजिए मंगलवार आ गया और मैं ले आई हूँ आपके लिए अपने पसंद की कुछ रचनाएँ … मातृत्व दिवस के उपलक्ष में काफी रचनाएँ माँ से सम्बंधित पढ़ीं …कुछ यहाँ भी आपको मिलेंगी …माँ के प्यार से सराबोर रचनाएँ … आज इंसान के पास वक्त नहीं है …हर कोई अपने में गुम है ..फिर भी निकाल लेता है वक्त नफरत के लिए … आज ऐसी ही रचना से चर्चा मंच का प्रारम्भ करते हैं … |
![]() आ कर हम बेहद पछताए बस्ती में कितने हो गए लोग पराए बस्ती में पानी तक के लिए नहीं पूछा सब ने पता नहीं क्या सोच के आए बस्ती में |
![]() समय अपने चाक पर मुझे घुमाता गया तेज तेज बहुत तेज गडमड गडमड चेहरे खुद से परेशान खुद में लीन इधर उधर जिधर देखा यही नज़र आया |
कल रात किवाड़ के पीछे लगी खूंटी पर टंगी तेरी उस कमीज पर नजर पड़ी जिसे तूने ना जाने कब यह कह कर टांग दिया था कि अब यह पुरानी हो गई है. |
सच तो ये है कुसूर अपना है ... चाँद को छूने की तमन्ना की आसमा को जमीन पर माँगा |
कौन करे दिये-बत्तियां
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![]() गम को कम करने की शायद मुफीद जगह है चाय खाना, जहाँ लेन-देन के मामले तय होते हैं, बनती चाय महज बहाना. चाय की चुस्की लेकर अटका कार्य , पुन: सरकने लगता है |
जब भी पहने देखता हूँ तुम्हे सीधे पल्ले की साड़ी लगता है मानो कोई आम का पेड़ लकदक है पीले और रसीले आमों से और गढ़ रहा हैं नया सूत्र |
कोई एहसान नहीं किया हमने तुम पर ! यह तो तुम्हारा अधिकार था और हमारा कर्तव्य ! पीढियों का ऋण चढा था जो हम पर , उतार, दिया तुमने आनन्द और सुख ! आभार तुम्हारा ! आत्मज मेरे ! |
![]() टुकड़ों में टूट कर बिखर जायेंगे, मां तुझसे दूर हम अगर जायेंगे... |
मेरे छोटे से घर से ही मेरी दुनियां अयाँ होती हैं मैं इक कमरे मैं होता हूँ पूरे घर मैं माँ होती हैं मेरी दुश्वारियां भी उसकी दुआओं से डरती हैं मेरा हर दर्द सो जाता हैं तब जा के माँ सोती हैं |
बहुत बात हुयी एक अजनबी से मुलाकात हुई बहुत बात हुई . देश दुनिया की घर द्वार की ख़बर अखब़ार की बूढ़े लाचार की अपंग की लाठी की पहलवान की काठी की |
है बेचैन असुरक्षित अपनी राह तलाश रही जीवन की शाम के लिए आशियाना खोज रही | अपनों ने किनारा किया बोझ उसे समझा बेगानों में अपने पन का अहसास तलाश रही | |
![]() बोली बदली, भाषा बदली, बदले आँचल और परिवार. / पगडंडी ने सड़क पकड़ ली, गावों ने खोये आकार |
![]() किसी को फूट्पाथ में भी गहरी नींद सोते देखा, किसी को नरम गद्दों पर करवट बदलते देखा । किसी को पेट में भूख लगती है किसी की आँखों में भूख दिखती है। |
नदी की तरह पर्वतों से समंदर तक एक तयशुदा रास्ता हर कोई बह लेता है |
तुम्हारी सोच के सांचे में ढल भी सकता था, वो आदमी ही था इक दिन बदल भी सकता था. हमारा एक ही रस्ता था एक ही मंजिल, वो चाहता तो मेरे साथ चल भी सकता था. |
![]() अब क्या मतलब है रूठ जाने का, वक़्त मिलता नहीं मनाने का. ए हवा सुन मेरा इरादा है, चाँद को रात भर जगाने का. |
![]() एस० डी० एम० सिंह जी की बेहतरीन - सिर्फ ज़रा सी जिद की खातिर अपनी जाँ से गुज़र गए, एक शिकस्ता किश्ती लेकर हम दरिया में उतर गए !! तन्हाई में बैठे बैठे यूँ ही तुमको सोचा तो, भूले बिसरे कितने मंज़र इन आँखों से गुज़र गए !! |
मदर्स डे के अवसर पर माँ की ओर से बेटी को धन्यवाद ! मेरे घर में मेरे दिल में मेरी आँखों के ख़्वाबों में मेरे खुशबू मेरी सांसों बहारों में चराग़ों में // |
![]() जुगनू दिन के उजाले में जो जुगनू तेरी आँखों से निकल भागे थे रात के अंधेरों में मेरा पीछा किया करते हैं मुझे सोने नहीं देते |
![]() तू मेरे ज़हन-ओ-दिल पर, कुछ इस तरहां तारी है, ख़ुश्बू लगाऊं कोई, लगती वो तुम्हारी है, |
![]() तोड़ दो सारे बंधनों को, रस्मो को रिवाजों को, बदल दो दिशा अपनी, बदल दो पहचान अपनी, अवधारणा को बदलो..... |
![]() आदत हो चुकी हैं गम को पी जाने की आती नहीं अदा... खुशियाँ छिपाने की हंस जो देती हूँ.......... जरा खुश होकर नज़र लग ही जाती है....... ज़माने की |
सूरज की परिक्रमा करती ... साथ-साथ घूमती ... अपनी धुरी पर भी ..... मैं धरा हूँ ....... |
![]() इन दरिन्दों से सदा दामन बचाना चाहिए। अब न नंगे जिस्म को ज्यादा नचाना चाहिए। हुस्न की परवाज़ तो थम ही नहीं सकतीं कभी, पंख ज्यादा जोश से ना फड़फड़ाना चाहिए। |
आशा है आपको यह संकलन पसंद आया होगा … आपकी प्रतिक्रिया और सुझावों का सदैव स्वागत है … फिर मिलते हैं अगले मंगलवार को नयी चर्चा के साथ … नमस्कार --- संगीता स्वरुप |
संगीता जी, बहुत अच्छा संकलन है. बहुत अच्छे अच्छे ब्लॉग और अच्छे अच्छे पोस्ट पढ़ने का मौका मिला.
जवाब देंहटाएंsidhahast hanthon ka supachya sakalan
जवाब देंहटाएंmadhur aur manohari hai .bahut sunder rachana sansar ,bha gaya man ko ji .
sadaiv swagat.....
बहुत मेहनत से बुनी हुई पोस्ट.
जवाब देंहटाएंसभी लिंक बहुत बढ़िया हैं.
मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार.
सुन्दर लिंकों से हुआ, प्रातराश भी लंच।
जवाब देंहटाएं"संगीता" की महक से, महका चर्चा मंच।।
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बहुत सुन्दर मन लगा कर की गई श्रमसाध्य चर्चा!
आभार!
सगीता जी नमस्कार ....!!
जवाब देंहटाएंप्रभु कृपा...!! चर्चा - मंच पर आज बहुत सुंदर संकलन हैं -आपका आभार.....!!! इस अपार सौंदर्य का मैं एक छोटा सा हिस्सा बनी ....!!!!!
बहुत सुंदर लिनक्स .
सगीता जी नमस्कार ....!!
जवाब देंहटाएंप्रभु कृपा...!! चर्चा - मंच पर आज बहुत सुंदर संकलन हैं -आपका आभार.....!!! इस अपार सौंदर्य का मैं एक छोटा सा हिस्सा बनी ....!!!!!
बहुत सुंदर लिनक्स .
बहुत खुबसुरत चर्चा -मंच आपने सजाई हे --मन प्रसनं हो गया ---बधाई !
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा।
जवाब देंहटाएंaapki charcha kai taaron ko jodti hai
जवाब देंहटाएंसंगीता जी , मेरी रचना नियमित पढने के लिए धन्यवाद . नाम में त्रिवेदी की जगह द्विवेदी हो गया है . समय मिलने पर सुधार लेवें - आग्रह है . प्रस्तुति के लिए बहुत बधाई और आभार .
जवाब देंहटाएंअतुल जी नाम ठीक कर दिया है ...त्रुटि सुधरवाने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंखूबसूरत और उम्दा कविताओ के लिंक्स मिले . मंगलवार का विशेष इंतजार हमेशा पुरसुकून देता है . हमेशा की तरह सराहनीय चर्चा .
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को अपनी चर्चा मे शामिल किया इसके के लिये बहुत –बहुत धन्यवाद । चर्चामंच हम जैसे नवीन लेखकों के लिए उर्जा का काम कर रही है, येसा मेरा विश्वास है । आज की चर्चामंच ्की खुशबू को हृदय में भर लिया आभार सहित धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंkitane hi sarthka blogaro ke link mile. ab in tak pahunchana hai. aapke kaam ko pranaam itana samay nikalana hi yah batata hai ki aap pavitra hriday valee hain..
जवाब देंहटाएंअच्छा संकलन ... अच्छे ब्लॉग ....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर संकलन है…………काफ़ी अच्छे लिंक्स संजोये हैं…………सार्थक चर्चा।
जवाब देंहटाएंहिंदी में लिखी जा रही खूबसूरत ग़ज़लों को सामने लाने के लिए बहुत शुक्रिया .
जवाब देंहटाएंअच्छी लिंक्स से सजाया है आज का चर्चा मंच |बहुत अच्छा लगा पढ़ कर |कुछ पढ़ना बाकी है |
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ कि आपने मेरी कविता को आज चर्चा मंच के लिए चुना |आज की चर्चा के लिए बधाई |
आशा
बहुत ही अच्छी चर्चा ... ।
जवाब देंहटाएंDi , is bar bhi aapne, pehle kitarha hi sixer mara he!, bahut bahut hi bejod sanklan kiay he aapne!
जवाब देंहटाएंaapke is mehnat ko salaam!
bahut accha sangita G
जवाब देंहटाएंbadiya prayash hai
आपकी खोजी नजर और मेहनत की दाद देती हूँ. कुछ भी अच्छा नही छिपता आपसे.
जवाब देंहटाएंबहुत आभार सुन्दर चर्चा का.
आपकी मेहनत को नमन अच्छे पोस्ट पढवाने और मेरी रचना को भी इन मोतियों में स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंachi rachnaon ko sammilit karke rachnakaaron ko protsaahan dene ke liye aaapka bahut aabhaar sangeeta ji...
जवाब देंहटाएंgood wishes ...
बहुत खूब , धन्यवाद जी मैं ब्लॉग जगत में नया हूँ
जवाब देंहटाएंhttp./anjaan45.blogspot.com
बहुत खूब , धन्यवाद जी मैं ब्लॉग जगत में नया हूँ
जवाब देंहटाएंhttp./anjaan45.blogspot.com
चर्चा - मंच पर आज बहुत सुंदर संकलन हैं - खासतौर पर अरुण रॉय जी की एक माँ को समर्पित कविता "सीधे पल्ले की साड़ी में " बहुत पसंद आई. स्तरीय रचनाओं को पढवाने के लिए आभार .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जी, मैं ब्लॉग जगत में नया हूँ तो मेरा मार्गदर्सन करे..
जवाब देंहटाएंwww.anjaan45.blogspot.com
बहुत सुन्दर संकलन है...
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए आभार...
Bahut sundar lagi aaj ki charcha kuchh bahut pyare se posts bhi mile yahaan se padhne ko wakai maza aa gaya aaj :)
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर बिभिन रचनाओं से सजा गुलदस्ता आपने चर्चा -मंच में पेश किया है .पढकर बहुत अच्छा लगा /बहुत बहुत बधाई आपको /
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर संकलन ...अच्छे ब्लॉग लिंक्स के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंbahut achhi charcha
जवाब देंहटाएंसंगीता जी, सभी रचनाएँ एक से बढ़ कर एक हैं.... एक जगह पर इतना कुछ पढवाने के लिए धन्यवाद. मुझे आपके चर्चामंच के संग्रह में स्थान देने के लिए आपका आभार
जवाब देंहटाएंसब को मदर्स दे के शुभकामनायें
चर्चामंच से जुड़े सभी लोगों का मेरे ब्लॉग www.pradip13m.blogspot.com में सादर आमंत्रण है ।
जवाब देंहटाएंकविता के क्षेत्र में मैं बहुत मंजा हुआ तो नही हूँ पर आप सबका प्रोत्साहन, शुभकामनाएँ और मार्गदर्शन चाहता हूँ ।