ये अपने बारे में लिखतीं हैं!
आपनी सभ्यता और संस्कृती से जुड़े रहना मुझे बहुत पसंद है .इसी प्रयास में सतत रहती हूँ .सच्चाई और अथक प्रयास से जो मिले वही ईश्वर काप्रसाद समझ ग्रहण करती हूँ.इस छोटे से जीवन में कुछ छाप छोड़ सकूँ यही अभिलाषा है .
इनका मुख्य ब्लॉग है-
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धरा को स्वर्ग बनाएं ....!!!
Labels: हिंदी कविता
जाग गया था मन ...
सुन रही थी ..
ढेरों वृहगों का कलरव ....!!
उड़ते हुए नीलगगन में ....
निश्चिन्त निर्द्वंद्व ...
सम्मिश्रित थे ढेरों नाद ....!!
पर पाखी थे समन्वित ..!!
कहीं ये ही तो नहीं
हमारे पूर्वज ...!
दे रहे हैं आशीर्वाद ..
अद्भुत नाद ...
कैसे धीरे धीरे हर ले रही थी ....
मन की पीड़ा ..
हृद के अवसाद ....!!
और नयन पट को .......
देती थी एक मरीचि ...
जागे सुरुचि..
मिले शुभ ऊर्जा ..
हाँ है ..जीवन ही तो पूजा ..!!
अब विचार
आये ना कोई दूजा ..
जमुना से जल भर लायें .....
सुरा गऊअन के गुबर सों अंगनवा लीप ... गज-मुतियन चौक पुरायें ...!!
चलो सखी..
अपनी ही धरा को स्वर्ग बनाएं ...
धरा को स्वर्ग बनाएं ......!!!!!
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05 April, 2010मन की सरिता
Labels: मन की सरिता, हिंदी कविता
कुछ कंकर ..
कुछ पत्थर-
कुछ सीप कुछ रेत,कुछ पल शांत स्थिर-निर्वेग .... कुछ पल .. कल कल कल अति तेज , मन की सरिता है , कभी ठहरी ठहरी रुकी रुकी- निर्मल दिशाहीन सी....! कभी लहर -लहर लहराती- चपल -चपल चपला सी.....!! बलखाती इठलाती ....!! मौजों की राग सुनाती .... मन की सरिता है. फिर आवेग जो आ जाये , गतिशील मन हो जाये -धारा सी जो बह जाए , चल पड़ी -बह चली - अपनी ही धुन में - कल -कल सा गीत गाती , मस्ती में गुनगुनाती ... राहें नई बनाती ...., मन की सरिता है - लहर -लहर घूम घूम-- नगर- नगर झूम झूम अपनी ही राह बनाती- मस्ती में गुनगुनाती- जीवन संगीत सुनाती -----
मन की सरिता है !!!
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अलबेला खत्री जी से
ये अपने बारे में लिखते हैं!
हिन्दी, हिन्दी साहित्य एवं विश्वस्तरीय काव्य-यात्राओं के लिए विभिन्न राजकीय तथा सार्वजनिक संस्थानों द्बारा लगभग 30 पुरुस्कारों के अलावा सुविख्यात वागेश्वरी सम्मान और टेपा पुरस्कार से सम्मानित हिन्दी हास्य कवि, फ़िल्म गीतकार, कथाकार, अभिनेता व दी ग्रेट इण्डियन लाफ़्टर चैम्पियन फेम हास्य कलाकार अलबेला खत्री । अब तक सात पुस्तकें प्रकाशित , 16 ऑडियो,वीडियो अल्बम रिलीज़ तथा पिछले 28 वर्षों में सम्पूर्ण भारत व अमेरिका , कनाडा तथा वेस्ट इंडीज़ समेत अनेक देशों में लगभग 5000 प्रस्तुतियां।ब्लोगिंग के माध्यम से हिन्दी साहित्य को और समृध्द व लोकप्रिय बनाने का प्रयास ।
इनके ब्लॉग हैं!
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तुम्हारी याद आती है, तो लाखों दीप जलते हैं
पवन जब गुनगुनाती है, तुम्हारी याद आती है
घटा घनघोर छाती है, तुम्हारी याद आती है बर्क़ जब कड़कडाती हैं, तुम्हारी याद आती है कि जब बरसात आती है, तुम्हारी याद आती है तुम्हारी याद आती है, तो लाखों दीप जलते हैं मेरी चाहत के मधुबन में हज़ारों फूल खिलते हैं इन आंखों में कई सपने, कई अरमां मचलते हैं तुम्हारी याद आती है तो तन के तार हिलते हैं |
बृहस्पतिवार, ५ नवम्बर २००९कौन ओस ? कौन कादा ?
आंगन की
तुलसी के मुलायम-मुलायम पातों पर शयनित शीतल-सौम्य ओस कणिकाओं को सड़क किनारे गलीज़ गड्ढे में सड़ रही कळकळे कादे की कसैली और कुरंगी जल-बून्दों पर व्यंग्यात्मक हँसी हँसते देख जब मेघ का वाष्पोत्सर्जित मन भर आया तो सखा सूरज ने उसे समझाया भाया, धीरज रख, बिफर मत क्योंकि इन ओस कणिकाओं को अभी भान नहीं है इस सचाई का ज्ञान नहीं है कि कादा स्वभाव से कादा नहीं था और कादा होने का उसका इरादा नहीं था प्रारब्ध की ब्रह्मलिपि यदि कादे में छिपा जल पढ़ गया होता तो वह भी किसी तुलसी के पातों पर चढ़ गया होताख़ैर.. इस दृश्य को भी बदलना है, सृष्टि का चक्र अभी चलना है मेरी लावा सी लपलपाती कलाओं से झरती आग शोष लेगी शीघ्र ही - तुलसी को भी, कादे को भी चूंकि दोनों में से किसी के पास नहीं है अमरपट्टा इसलिए दोनों को ही त्याजनी होगी धरती और मेरे ताप के परों पर बैठ कर जब दोनों ही निर्वसन होकर पहुंचेंगे तेरे पास तो तू स्वयं देख लेना- कोई फ़र्क नहीं होगा दोनों में बल्कि तू पहचान भी न पाएगा
कौन ओस ?
कौन कादा ?
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Tuesday, May 3, 2011जनसंख्या बढ़ती गई
कुँवर कुसुमेश
जनसंख्या बढ़ती गई,यूँ ही बेतरतीब.
तो मानव को अन्न-जल,होगा नहीं नसीब.
जनसंख्या की वृद्धि के,निकले ये परिणाम.
जीवन के हर मोड़ पर, कलह और कुहराम.
पैदा होते प्रति मिनट,नित बच्चे तैतीस.
विषम परिस्थति हो गई,क्या होगा हे ईश.
फुटपाथों पर सो रहे,लाखों भूखे पेट.
क़िस्मत करने पर तुली,इनका मटिया-मेट.
जनसंख्या ने कर दिया,पैदा अहम् सवाल.
कैसे भावी पीढियां,झेलें भूख-अकाल.
बढ़ते जाते आदमी,सीमित मगर ज़मीन.
अन्न बढ़ायें किस तरह,बेचारे ग्रामीण ?
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Thursday, July 22, 2010Kunwar Kusumesh
नाम : कुँवर 'कुसुमेश', ( कवि)
शिक्षा : एम. एससी.(गणित)पता : 4/738 विकास नगर , लखनऊ -226022 जन्म-तिथि : 03.02.1950 सम्प्रति : मण्डल प्रबंधक (सेवानिवृत्त) संपर्क : 9415518546(मो) ई-मेल : kunwar.kusumesh@gmail.com प्रकाशन /प्रसारण : लखनऊ आकाशवाणी से प्रसारित अँधेरे भी , उजाले भी(ग़ज़ल संग्रह) प्रकाशित, रु 75/- पर्यावरणीय दोहे (दोहा संग्रह) प्रकाशित, रु 40/- कुछ न हासिल हुआ(ग़ज़ल संग्रह) प्रकाशित, रु 100/- महत्वपूर्ण संकलनों तथा पत्र-पत्रिकओं में रचनाएं प्रकाशित स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं एक बरस में बढ़ती जाती है मंहगाई सौ सौ बार,
मंहगाई ने जी भर भर के ली अंगड़ाई सौ सौ बार |
जैसा भी है देश हमारा है , हम सब को प्यारा है , आज़ादी की वर्षगांठ पर तुम्हें बधाई सौ सौ बार || कुँवर कुसुमेश 09415518546
आजकल किसको क्या कहा जाए.......
कुँवर कुसुमेश
दौरे- मुश्किल से जो बचा जाये,
मुश्किलों में वही फँसा जाये .
ये उलट - फेर का ज़माना है,
आजकल किसको क्या कहा जाये.
वक़्त आँखे तरेर लेता है ,
कोई हल्का-सा मुस्कुरा जाये.
खुद को निर्दोष प्रूफ कर देगा,
बस इलेक्शन का दौर आ जाये.
तब तलक काम है निपट जाता,
जब तलक कोई सूचना जाये.
है 'कुँवर' इस उम्मीद पर मौला,
ध्यान तुझको मेरा भी आ जाये.
मिला है आपसे भी सिर्फ धोखा.......
कुँवर कुसुमेश
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डोमेन नेम विजेता की घोषणा और ब्लॉग की
अन्य सभीगतिविधियाँ अपरिहार्य कारणों से कुछ दिनों तक स्थगितरहेंगी । |
विन्डोज़ ७ दस जैसा पेंट रिबन XP और विस्टा मेंये पोर्टेबल वर्सन है तो इंस्टाल करने से भी आज़ादी है । आज़मा के देखिये । डाउनलोड |
सोमवार, २ मई २०११सर्प – दंश
सच्चाई की झलक भी न हो जिसमें
मुझपे ऐसी तोहमत तो लगाया न करो।
सामने आती है सच्चाई थोड़ी देर से ही
पर सच को झूठ का आईना तो दिखाया न करो।
मैंने चाहा है सराहा है भरोसा भी किया तुम्हीं पर
मेरी चाहत पे यूं इल्जाम तो लगाया न करो।
शक वो मर्म है जिसकी तो कोई दवा ही नहीं
गैर की बातों में आकर यूं तो बहका न करो।
हक है तुम्हें दिल की बात मुझसे तो कहो
पर सर्प सा दंश दे देकर मुझे यूं घायल तो न करो।
जलती हूं मोम की लौ की तरह गल गल कर
यूं शब्दों के तीर हर पल तो चलाया न करो।
वफ़ा तो वफ़ा से ही होती है बेवफ़ाई से नहीं
फ़िर मेरी मुहब्बत को यूं रुसवा तो सरे आम न करो।
मेरा दर्पण मेरा शृंगार मेरा जीवन हो तुम्हीं तुम
यूं मुझे ना समझ पाने की तो नासमझी न करो।
वो भी वक्त आएगा जब हकीकत से रूबरू होगे तुम
पर वक्त निकल जाये तो फ़िर पछताया न करो।
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रविवार, २३ नवम्बर २००८कविता
कविता ने ख़ुद कविता से कहा,
क्यों नहीं रचते हो तुम मुझे, क्यों फेंक दिया है मुझे, मन के एक कोने में कसमसाने के लिए, मैं तो करती हूँ इंतजार तुम्हारा, कब आयेगी याद मेरी, कब तुम मुझे इन अंधेरों से खींच कर, अपनी अनकही अव्यक्त भावनाओं को, मेरे ही द्वारा अभिव्यक्त कर, कागज पर उतारोगे, ओर मैं भी इठलाती इतराती, तुम्हारे साथ मन की गहराइयों से, उतरती चली जाऊंगी , अपनी नई रचना के साथ. |
सार्थक ! ' बुधवासरीय चर्चा '!
जवाब देंहटाएंआपने चर्चामंच पर स्थान दिया,कृतज्ञ हूँ.
जवाब देंहटाएंसुझाव पढ़ा.शीर्षक देता तो हूँ, फिर भी आपने शीर्षक देने की बात क्यों लिखी,पता नहीं.
सभी लिंक्स अच्छे लगे.
पुनः आभार.
hamesha ki tarah badhiya charcha ...abhaar
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा।
जवाब देंहटाएंआपको ढ़ेरों बधाई।
मार्कण्ड दवे।
http://mktvfilms.blogspot.com
बहुत सुन्दर संयत और शानदार चर्चा कर रहे हैं……………आभार्।
जवाब देंहटाएंwaah !
जवाब देंहटाएंsundar sanyojan.........achha laga
शास्त्री जी -नमस्कार ...!!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आपको ..मुझे चर्चा मंच पर इतना बड़ा स्थान और सम्मान देने के लिए ....!!मैं ह्रदय से आभारी हूँ |
आज की चर्चा बहुत बढ़िया है ...!!
बहुत सुंदर चर्चा।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा ...
जवाब देंहटाएंAdarniya Sir,
जवाब देंहटाएंBahut behatreen dhang se mujhe tatha anya sabhi blogers ko prastut karne ke liye ap sabse pahale hardik abhar sveekar karen.Bahut sarthka hai apka yah manch.Iske madhyam se ham anya blogs lekhakon evam unke blogs se bhi parichit hote hain.
Hardik shubhkamnayen.
Poonam
बहुत अच्छी चर्चा ...
जवाब देंहटाएंbahut sundar charcha kal der se aayee hai shayad is karan kal ham is par upasthit nahi ho paye is karan kshmaprarthi hain .sabhi links achchhe lage .aabhar.
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