फ़ॉलोअर



यह ब्लॉग खोजें

गुरुवार, जून 30, 2011

चर्चा मंच - 561

आज की चर्चा में आप सबका हार्दिक स्वागत है 

चलते हैं सीधे चर्चा की और 


सबसे पहले गद्य रचनाएं 

अब बात करते हैं पद्य रचनाओं की 

आज के लिए बस इतना ही , आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा .
                   धन्यवाद 
                                             दिलबाग विर्क 

                                           * * * * *

बुधवार, जून 29, 2011

"उफ़ ! सारा सिस्टम कंटीला है" (चर्चा मंच-560)

नमस्कार मित्रों!
बुधवासरीय चर्चा में आपका स्वागत है । आइए अब मैं आपको चिठ्ठा जगत की यात्रा पर ले चलता हूँ ।
सबसे पहले बात गंभीर विषयों पर असली कांग्रेसी तो कट्टर हिंदुत्व का नारा लगाने वाले लोग हैं    मे देखिये कैसे भ्रष्टाचार के खिलाफ़ आंदोलन को हिंदुत्व की ओर मोड़ कांग्रेस को लाभ पहुँच रहा है। इसके बाद लो क सं घ र्ष मे एक और गंभीर विषय  जैतापुर परमाणु ऊर्जा संयंत्र: फुकुशिमा के सबक सीखने से इन्कार से बात शुरू हो गई जहाँ सारे विश्व में इन संयंत्रों से तौबा की जा रही है वहीं हमारे मन्नू भाई  को इसका शौक चढ़ा हुआ है दूसरी ओर श्याम स्मृति..The world of my thoughts...डा श्याम गुप्त का चिट्ठा..  में भाई साहब अखबारों की खबर ले रहे हैं कितने सामाजिक सरोकार युक्त हैं आपके समाचार-पत्र .......  अखबार शब्द से आजकल मिथ्या और प्रचार का ही ध्यान पड़ता है । जैसे अजय कुमार झा जी को ट्रस्ट से भ्रष्ट की याद आती है  वही अनिल पुसदकर जी अमीर धरती गरीब लोग में इस सादगी पर कौन ना मर जाये प्रणबदा,दाम बढाता है केन्द्र और कम करने को कहते हो राज्य सरकारों से! - प्रणब मुखर्जी की बारह बजा रहे हैं । माहौल को हल्का करते हुये विवेक भाई जयशंकर प्रसाद की कामायनी  गुनगुना रहे हैं ।  अब शेखावत जी पास कोई पहुँचे और वे प्रेरणादायक कहानी न सुनायें ये संभव ही नही सो उनकीज्ञान दर्पण : विविध विषयों की हिंदी वेब साईट  में प्रणय और कर्तव्य -   देखना लाजिमी है । राजस्थान निश्चित ही अद्भुत कहानियो का घर है ।
उधर उच्चारण  मे पहुँचे तो "फिर से बहार आ गई" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक") - पानी गिरे न गिरे कवि ह्रुदय तरबतर कर ही देता है । इधर ललितडॉटकॉम   मे ललित भाई महिलाओं की सास-बहु गैस-चुल्हा विमर्श -- ललित शर्मा -  चटखारे ले लेकर सुना रहे हैं साथ ही चूल्हे की रोटी की याद भी दिला रहे है । उनका दावा है की चूल्हे की रोटी खाने से गैस नही होती । उसके बाद खोजी पत्रकार आशुतोष की कलम से....  से नयी सनसनी प्रणव वार रूम लीक- कांग्रेस में होता शक्ति विकेंद्रीकरण ???  बाहर निकली है । इधर निवेदिता जी परिवार के फ़िर से एक होने पर झरोख़ा में "एक मुलाकात खुद से" - खूबसूरती से बयां कर रही है । जिज्ञासा 
में प्रमोद जोशी जी बदलाव के दो दशक   बता रहे हैं जिन्हे राजनीति में रूचि है उन्हें यह लेख अवश्य पढ़ना चाहिये । ज़ख्म…जो फूलों ने दिये    में वन्दना जी क्या ऐसा होगा   पूछ रही हैं । और घुमक्कड़ जाट देवता आपको मुफ़्त ही में   संगम (प्रयाग) से काशी(बनारस) तक पद यात्रा भाग 1  करवा देंगे । जनोक्ति मे आप आज की अमीर युवा वर्ग का हाल  रेव पार्टी :अब तो शर्म भी शर्माने लगी है !  मे बता देंगी । यदि आपको संगीत का शौक हो तो बिना देर किये "भर भर आईं अँखियाँ..." - जब महफ़िलों की शान बनी ठुमरी  मे पधारे आपका मन प्रसन्न हो जायेगा । श्याम कोरी हरदम की तरह कडुवा सच  मे ... उफ़ ! सारा सिस्टम कंटीला है !!  ले कर हाजिर है तो गगन शर्मा जी भी इसी तर्ज पर  लोभ का फल तो बुरा ही होता है.
लेकर प्रस्तुत हैं  बाबा रामदेव व्यस्त है आज कल इसलिये कुमार राधारमण ने योग की जिम्मेदारी मधुमेह में व्यायाम की सावधानियाँ संभाली हुयी है । आर्यावर्त   में  नीतीश बाबू का नीतीश जी ये कैसा विकाश है !     का खबर लिया जा रहा है  । वही संजय दानी की ग़ज़ल - मुहब्बत विरह के धूप में तपती जवानी के सिवा क्या है.. की बात ही निराली है । देशनामा हमेशा की तरह चटपटे 50 लाख के लालच में कुत्ते को पिता बनाया...खुशदीप    मसाले से तरबतर है । उधर मेरे धान के देश में नयी खबर है जनता की याददाश्त और हिन्दी ब्लोग पोस्ट - दोनों ही की उम्र मात्र 24 घंटे  होती है और हमारे पड़ोस मे आज़ाद पुलिस  आपको अंदर की बात बता रही हैं । जाते जाते बात बहादुर नारियों की हो जाये सबसे पहले नारी , NAARI   मे बात एक ऐसी महिला की जो दस साल से अनशन में है दूसरों की खातिर शहीद होने की राह पर : शर्मीला इरोम   यहा सात दिन में टें बोलने वाले बाबा के जयकारे मच रहे हैं वहीं इस महिला के त्याग से देश अनजान है  । इसी क्रम मे आगे अनवरत   मे सब कह रहे हैं   "शाबास बेटी, तुमने ठीक किया"  

मंगलवार, जून 28, 2011

मिलता है इनाम आजकल गुर्ग आशनाई में …..साप्ताहिक काव्य मंच –52 ..चर्चा मंच --559

नमस्कार , आपके समक्ष हाज़िर हूँ एक बार फिर साप्ताहिक काव्य मंच ले कर ..दिल्ली में मानसून ने दस्तक दे दी है ..मौसम खुशगवार है उस पर रचनाकारों की खूबसूरत रचनाएँ बारिश का आनंद दुगना कर रही हैं ..आप भी हर तरह के रस का आनंद उठाइए .. लेकिन ठहरिये ….. ऐसा न कीजियेगा कि रस का आनंद तो उठा लिया और फिर चल दिए … ज़रा गौर फरमाइयेगा … इसी लिए आज की चर्चा का प्रारम्भ कर रही हूँ डा० रूपचन्द्र शास्त्री जी की रचना से …
मेरा परिचय डा० रूप चन्द्र शास्त्री जी अपनी गज़ल में स्वार्थी ज़माने की बात ले कर आए हैं --चूस मकरंद भंवरे किनारे हुए

सारी कलियों को खिलना मयस्सर नहीं
सूख जातीं बहुत मन को मारे हुए
कितने खुदगर्ज़ आये-मिले चल दिये
मतलबी यार सारे के सारे हुए
My Photo शिखा वार्ष्णेय इस बार अनेक नए बिम्बों से सजा कर लायी हैं कुछ क्षणिकाएँ --

कभी कोई लिखने बैठे
कहानी तेरी मेरी
तो वो दुनिया की
सबसे छोटी कहानी होगी
जिसमें सिर्फ एक ही शब्द होगा
"परफेक्ट ".
मेरा फोटो मनोज कुमार जी  की एक बहुत भाव प्रधान रचना पढ़िए --मेरा जीवन एकाकी

ये     मेरा       जीवन     एकाकी।
कट      जाए    जीवन    एकाकी।
नित - नित नूतन रूप तुम्हारा, देखूं      मैं       तो    हारा - हारा।
कभी   उर्वशी,    कभी    मेनका,   लगो परी तुम इन्द्र सभा की।
कट      जाए    जीवन    एकाकी।
clip_image001 मनोज ब्लॉग पर पढ़िए श्याम नारायण मिश्र जी का यह नवगीत
तुमने की होगी बयार
        आंचल से पोंछकर पसीना,
                आ गया आषाढ़ का महीना।
My Photo पारुल जी बस कर रही हैं एक गुज़ारिश ---कर दो .........
ख़ामोशी भी दो पल जी ले
बात कोई आहिस्ता कर दो !
कोई रहे न मुझ सा तन्हा
तन्हाई को शीशा कर दो !
My Photo  सह जीविता   कैसे हो ..इसके बारे में बता रहे हैं अर्यमन चेतस पांडे -
स्वकीयता और परकीयता -
पारस्परिक वैलोम्य में अवगुण्ठित दो भाव,
एक-दूसरे की वैयक्तिकता की गरिमा का
सम्मान करते हुए,
अपनी शुचिता की मर्यादा में रहते हुए
My Photo अपर्णा मनोज भटनागर जी एक गहन विषय ले कर आई हैं --
अपनी मुक्ति के लिए 
मुझे नहीं देखना था आकाश का विस्तार 
नहीं गिनने थे तारे 
नहीं देखनी थी अबाध नदी की धाराएं 
या पर्वत की ऊंची होती चोटी.
न ही देखना था सागर का ज्वार  .
My Photo रंजू भाटिया जी सुहावने मौसम में कर रही हैं --इंतज़ार
रिमझिम बरसी
बारिश की बूंदे
खिले चाहत के फूल
और नयी खिलती
कोपलों सी पातें
और न जाने
कितनी स्वप्निल शामें
मेरा फोटो निवेदिता जी लायी हैं नारी की पीड़ा को उकेरती एक सशक्त रचना --
ये कैसी विडम्बना है ,
ये कैसा उद्वेलन है .......
अपने प्रश्नों के ही घेरे में ,
क्षत-विक्षत अंतर्मन है !
कैसे परिचय दूँ ? नहीं-नहीं
ये कैसी आप्त पुकार है ,
क्या दूँ अपना परिचय !
मेरा फोटो राजीव भरोल जी ले आए हैं एक खूबसूरत गज़ल -हमारे ज़ख्म तो भरते दिखाई देते हैं
जहाँ कहीं हमें दाने दिखाई देते हैं,
वहीँ पे जाल भी फैले दिखाई देते हैं.
मैं कैसे मान लूं बादल यहाँ भी बरसा है,
यहाँ तो सब मुझे प्यासे दिखाई देते हैं.
My Photo  सिद्धार्थ जी अपनी रचना में एक भिखारिन की धनाढ्यता का वर्णन कर रहे हैं -
मृदुल  मुस्कान ओढ़े
हाथ फैलाती है
खोटे सिक्के
खुश होकर झनझनाती है
...मय्सर नहीं जिसे
किरण की एक बूंद
ओस मल-मलकर
वो रोज नहाती है
मेरा फोटो अजय कुमार झा  लाये हैं --
कुछ टूटे फूटे बिखरे आखर .. इन बिखरे आखरों में कितनी गहनता है यह पढने के बाद ही पता चलेगा -
उदासियों को लपेट के , इन पनियाली आंखों से ,
अक्सर कई शामें गुज़ारा करते हैं .....हमें यकीं है उनकी मौत का , फ़िर भी,
वहीं जाकर , उन्हें रोज़ पुकारा करते हैं ....
My Photo माहेश्वरी कनेरी जी ज़िंदगी की जद्दोजहद को कुछ इस प्रकार लिख रही हैं --
क्यों कभी इतनी हैरान परेशान सी लगती है जिन्दगी   ?
कभी तो गहन अनुभूति लिए तृप्त सी लगती है जिन्दगी
क्यों कभी मुट्ठी में रेत सी फिसलती ,दिखती है जिन्दगी   ?
कभी ढलती संध्या भी, भोर की किरन सी दिखती है जिन्दगी
My Photo नीलेश जी क्या लिख रहे हैं ज़रा देखिये ---खत लिख रहा हूँ
उनके  दिए कुछ  वक़्त लिख रहा हूँ 
दो   पल    में ही  जन्नत लिख रहा हूँ  !!
ये किसको फिकर है कि कल हो न हो

दिल-ओ-जान से आज ख़त लिख रहा हूँ !!
My Photoनवनीत पांडे जी इस बार लाये हैं
दो कविताएँ-- संवाद   और तुम्हारा मौन
तुम!
और तुम्हारा मौन..
मैं!
और मेरा मैं..
दोनों के बीच
एक अर्थहीन अर्थ
My Photo दीपाली “ आब “ की एक खूबसूरत गज़ल पढ़िए ..
वो न आए पर उनकी याद आए
वो न आये तो उनकी याद आए
जी न जाए, तो क्या जिया जाए..
हसरतें आँसुओं में घुलने लगीं,
ख्वाब मेरे सभी जो मुरझाए..
नींद में कितने खौफ शामिल हैं,
हम भी देखेंगे, नींद आ जाए..
My Photo अनुपमा जी लायी हैं आध्यात्मिक भावनाओं को अपनी इस रचना में ---
या ठान लूँ मन ही मन में  ..
खिलना कमल को है कीचड़ में ..
तब तो सहेजना  होगी ...
कंपकपाती वो ज्योत मन की ..
कभी  कभी  बुझने  सी  लगाती  है  जो -
My Photo देवेन्द्र पांडे जी बनारस के बारे में कुछ बता रहे हैं … बहुत अच्छा शहर है क्या ?
बड़ी तारीफ करते हो
बहुत अच्छा शहर है क्या !
ये गंगा घाट की नगरी
ये भोले नाथ की नगरी
यहां आते ही धुल जाते
सभी के पाप की गठरी
जहां हो स्वर्ग की सीढ़ी
कहीं ऐसा शहर है क्या !
ज्ञानवती सक्सेना जी की कविता ले कर आई हैं साधना वैद जी ..कृष्ण से अनुनय
एक बार बस एक बार
इस भारत में प्रभु आ जाओ !
सोते से इसे जगा जाओ ,
भूलों को राह दिखा जाओ ,
बिछडों को गले लगा जाओ ,
गीता का ज्ञान सिखा जाओ !
हे नाथ यहाँ आकर के फिर
अर्जुन से वीर बना जाओ !
Sri Prakash Dimri श्री प्रकाश डिमरी जी की रचनाएँ पढ़िए ---सुनो शिशिर  और सुनो बसंत
हिम कँवर ...
जब तुम बरसाते
कम्पित विहग ..
कहाँ चले जाते ..!!!???
सुख की डोली में मगन
My Photo दिनेश जी “रविकर “ की एक सशक्त रचना पढ़िए --
मन में अतीत की याद लिए फिरते हैं
निज अंतर में उन्माद लिए फिरते हैं
उन्मादों में अवसाद लिए फिरते हैं
अंदर ही अन्दर झुलस रही है चाहें

मनमे अतीत की याद लिए फिरते है
My Photo सत्यम शिवम भावनाओं के सागर में गोते खाते हुए एक रचना लाये हैं --
कब से तुझे बचाता रहा ऐ जिंदगी मेरी,
क्या था पता इक दिन मुझे ही छोड़ देगी तू कही!
बरसात से,धूप-छाँव से,
नफरत के घिनौने भाव से!
हरदम तुम्हे दूर रखता था,
सुख के सिवा तू कुछ ना चखता था!
My Photo मृदुला हर्षवर्धन जी प्रेम की अद्वितीय व्याख्या कर रही हैं --प्रणय
जब धरती पर पहला फूल खिला था
उस क्षण से ही प्रणय जन्मा था
प्रेम ने जब जन्म लिया
तब नहीं थी कहीं भी समता
पहला नाम दिया भावों को
कहा उसे 'माँ की ममता'

मेरा फोटो डा० वर्षा सिंह कर रही हैं
प्यार की गुजारिशें
बूँद बूँद बारिशें
                  जाग रही ख्वाहिशें

                  घुल रहीं हवाओं में
                  प्यार की गुजारिशें
वाणी शर्मा जी आज कल गज़ल की पाठशाला जाती हैं  और वहीं से लायीं हैं एक खूबसूरत गज़ल ---
मिलता है इनाम आजकल गुर्ग आशनाई में
पशोपेश में थमी थी साँसें उसकी गली से गुजरते
मुश्किल था बच निकलना पासबाने नजर से

क्या बुरा था जो लिया इलज़ाम बदशलूकी का
हासिल कब क्या हुआ था उसे तोहफगी से
..क्षमा जी द्वारा बनाये गए इस भित्ति चित्र  के साथ ही एक कोमल भावों को समेटे  एक खूबसूरत रचना पढ़िए --
वो राह,वो सहेली...
पीछे छूट चली,
दूर  अकेली  चली  
गुफ्तगू, वो ठिठोली,
पीछे छूट चली...
मेरा फोटो चर्चा के समापन पर असीमा जी गहन भावों को समेटे ले आई हैं कुछ क्षणिकाएँ

रात सो रही है...
मैं जाग रही हूं...
गोया बे-ख्वाब मेरी आंखें
और मदहोश है जमाना...
आज बस इतना ही , फिर मिलते हैं अगले मंगलवार को इसी मंच पर एक नयी चर्चा के साथ … नमस्कार …संगीता स्वरुप

सोमवार, जून 27, 2011

मौसम सुहाना हो गया……………चर्चा मंच


दोस्तों !
सोमवार की चर्चा में स्वागत है 
आज चर्चा लगा रही हूँ और 
मौसम की खुमारी छायी है
अरे मौसम जो खुशगवार हो गया है
आज बारिश ने भिगो दिया है तो सोचा
हम भी आज आपको भिगो दें 
मानसून के आगमन का 
स्वागत हम भी कर लें
कुछ भीगे भीगे लिंक्स मे 
कुछ नये और कुछ पुराने
मगर है सब अपने
वो ही है सच्चा फकीर 

कौन?

कैसा?

ये हुई न बात 

 खुद पढ़िए 

 इसमें क्या शक है

ओये होए क्या बात है इस अंदाज़ के 

 जरूर पढेंगे जी 

 जानिए कैसे 

 अरे वह ये हुई न बात 

क्यों?

 क्या हुआ था ?

जो खुद तो दहकते हैं
दिल भी दहकाते हैं  

मुबारक हो 

जान लो क्या है ये  .......नया है 

स्वागत है जी 

सुन लो अब तो दर्द भरी पुकार 
क्यूँ क्या हुआ क्यों नहीं  

उफ़ ........दर्द ही दर्द  

उफ़ ........ क्या कर गयी
कभी तो बरसेंगे 

 शायद कोई समझ सके 

तो भिगोयेगी जरूर
आप ही बता दीजिये
 जानना जरूरी है 
जरूर पढेंगे 
ये तो मौसम का तकाजा है 
जीने का बहाना सीख लिया



कतरने ख़्वाबों की 
बताओ कैसे सीयूँ 
 सच कहा 
मगर मठ वो ही रहा 
अब आज्ञा दीजिये 
अगले सोमवार फिर मिलेंगे
 बताइये भीगे या नहीं

रविवार, जून 26, 2011

रविवासरीय (26.06.2011) चर्चा





 

नमस्कार मित्रों!

मैं मनोज कुमार एक बार फिर हाज़िर हूं रविवासरीय चर्चा में अपने पसंद की बीस लिंक्स के साथ।

                                  20

My Photoअस्पतालों के वेटिंग एरिया का वातावरण

अस्पतालों के वेटिंग एरिया की तरफ़ शायद इतना ध्यान दिया नहीं जाता। मैंने अपने एक लेख में लिखा था कि अकसर अस्पतालों में आप्रेशन के द्वारा निकाली गई रसौलीयां या ट्यूमर आदि का प्रदर्शन वेटिंग एरिया में किया जाता है।

                                   19

My Photoकोलेस्ट्रोल कम करने के लिए किसके लिए ज़रूरी हैं स्तेतिंस ?
शोध की खिड़की से छनकर नित नै जानकारी आ रही है .हमारी बुद्धि मत्ता इसमें ही है हम उसमें से सार तत्व निकालें .फोक को छोड़ दें .एक रिसर्च रिपोर्ट का शीर्षक है :हाई -डोज़ स्टे -टीन्स मे रेज़ दी रिस्क ऑफ़ डाय बिटीज़.जब हमने इसे खंगाला तो निष्कर्ष यह निकला :दिल के जिन मरीजों को यह तजवीज़ की गई है उन्हें लेते रहना चाहिए क्योंकि इसके फायदे के बरक्स नुक्सानात बहुत कम हैं ।

                                     18

clip_image002[4]

दि 39 स्टेप्स

अल्फ्रेड हिचकाक दुनिया के महानतम फिल्म निर्देशकों में से एक माने जाते हैं। उन्हें मास्टर आफ सस्पेंस कहा जाता है। लेकिन यह उनका अधूरा परिचय ही है। फिल्मों में हिचकाक के योगदान को देखते हुए उन्हें एक फिल्म स्कूल कहना ही ज्यादा उचित होगा। हिचकाक आम दर्शकों को जितना पसंद आते हैं उतना ही वह फिल्म बनाने वालों को भी प्रभावित करते हैं। फिल्मी भाषा में जिसे फिल्म का क्राफ्ट कहते हैं उसमें हिचकाक अन्यान्य हैं।

                                          17

My Photoनही चलेगी ये अन्नागिरी...
आज चर्चा के लिए तीन मुद्दे हैं जो मुझे बेहद परेशान कर रहे हैं। कल से यही सोच रहा हूं कि क्या करूं। अन्ना जी का मैं समर्थक हूं, मुझे ही नहीं देश के आम आदमी को उनके आंदोलन से बहुत ज्यादा उम्मीदें थीं, लेकिन अब मुझे अन्ना को कटघरे में खड़ा करना पड़ रहा है। इस बारे में मैं कल ही लिखना चाहता था, लेकिन कल अन्ना और उनकी टीम को लेकर मैं बेहद गुस्से में था, लिहाजा मुझे लगा कि अभी मैं अपने लेख के साथ न्याय नहीं कर पाऊंगा, क्योंकि मेरे लेख पर मेरे गुस्से का प्रभाव पड़ सकता है।

                                       16

गुटबंदी का कोई इलाज नहीं

पूर्वांचल की माटी ने एक से एक साहित्य सृजनकार पैदा किए हैं। वे अपनी प्रतिभा से पूरे विश्व को साहित्य रस में डुबोते हैं। विश्वनाथ प्रसाद तिवारी को जब बिड़ला फाउंडेशन 2010 का व्यास सम्मान देने की घोषणा हुई तो यहां की प्रतिभा ने एक बार फिर लोगों को चमत्कृत कर दिया। परमानंद श्रीवास्तव के बाद वह पूर्वांचल के दूसरे साहित्यकार थे, जिन्हें इस पुरस्कार से नवाजा गया।

                                        15

clip_image003[4]

सितारों को सब पता है

हथेलियों की सतह पर
कोई अक्स उभरता है बार - बार
दु:ख उन्हें दुलारता है
और घटता जाता है
दूरियों का अंबार।

                                       14

clip_image004[4]

हम और वह

हम अहसान जताते उस पर, जिसको अल्प दान दे देते किन्तु परम का खुला खजाना, बिन पूछे ही सब ले लेते !
दो दाने देकर भी हम तो, कैसे निर्मम ! याद दिलाते जन्मों से जो खिला रहा है, क्यों कर फिर उसके हो पाते ?
कैसे मोहित हुए डोलते, मैं बस मैं की भाषा बोलें परम कृपालु उस ईश्वर का, कैसे फिर दरवाजा खोलें !

                                       13

clip_image0054

"ग़ज़ल" कठिन गुजारा लगता है (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

सुमनों की मुस्कान भुला देती दुखड़े

खिलता गुलशन बहुत दुलारा लगता है

जब मन पर विपदाओं की बदली छाती

तब सारा जग ही दुखियारा लगता है

                                    12

My Photoमेरा शहर उदास है
आजकल मेरा शहर उदास है|हर गली -मोहल्ले में फैली बेचैनी को अनुभव किया जा सकता है |फिजा में गहरे अवसाद की गंध है|बोर्ड परीक्षाओं के परिणाम घोषित हो चुके हैं |वे मेधावी छात्र जो बोर्ड परीक्षाओं में अच्छे अंक हांसिल कर फूले नहीं समा रहे थे ,अब हताश हैं|इनमें वे छात्र भी हैं जिनकी अंकतालिकाओं को लेकर वे  संस्थान जिनमें ये पढ़ते थे ऐसे प्रचारित करते दिखाई दे रहे थे जैसे कोई शिकारी अपने आखेट के साथ चित्र उतरवाता हुआ गौरवान्वित होता है |

                                         11

याद आये फिर तुम्हारे केश

याद आये फिर तुम्हारे केश,
मन-भुवन में फिर अंधेरा हो गया
पर्वतों का तन
घटाओं ने छुआ
घाटियों का ब्याह
फिर जल से हुआ
याद आये फिर तुम्हारे नैन
देह मछली, मन मछेरा हो गया

                                           10
My Photo

फिल्म समीक्षा : डबल धमाल
इन्द्र कुमार की पिछली फिल्म धमाल में फिर भी कुछ तर्क और हंसी मजाक था। इस बार उन्होंने सब कुछ किनारे कर दिया है और लतीफों कि कड़ी जोड़ कर डबल धमाल बनायीं है। पिछली फिल्म के किरदारों के साथ दो लड़कियां जोड़ दी हैं। कहने को उनमें से एक बहन और एक बीवी है, लेकिन उनका इस्तेमाल आइटम ग‌र्ल्स की तरह ही हुआ है।

                                       09

clip_image0074

कॉल करती….ना मिस कॉल करती- राजीव तनेजा

“वोही तो….आप क्या चिकन-शिकन या फिर दारू-शारू का कोई शौक रखते हैं?”
गुप्ता जी किसी नतीजे पे पहुँचने की कोशिश करते हुए बोले……

“सिर्फ पूछ रहे हैं या फिर खिलाने-पिलाने की भी सोच रहे हैं?”
मेरी आँखें चमकने को हुई…

“अभी फिलहाल तो सिर्फ पूछ ही रहा हूँ"
गुप्ता जी का संयत स्वर…

“ओह!….फिर तो मैं इन चीज़ों से कोसों दूर रहता हूँ"
मैं संभलता हुआ बोला..

“दैट्स नाईस"…

                                            08
My Photo

मैं पिट्सबर्ग हूँ [इस्पात नगरी से - 42]
पिट्सबर्ग एक छोटा सा शहर है। सच्चाई तो यह है कि यह शहर सिकुड़ता जा रहा है। पिट्सबर्ग ही नहीं, अमेरिका के बहुत से अन्य शहर लगातार सिकुड़ रहे है। घबराईये नहीं, सिकुड़ने से मेरा अभिप्राय था जनसंख्या से। दरअसल पिट्सबर्ग जैसे ऐतिहासिक नगरों की जनसंख्या लगातार कम होती जा रही है।

                                        7

clip_image0084

राजभाषा की अवधारणा, हमारे कर्तव्य और मनमानी व्याख्याएँ

एक सरकारी कर्मचारी के नाते मुझे यदि किसी कार्यालय आदेश में नियम विरुद्धता नजर आती है तो मुझे इसे सक्षम अधिकारी या प्राधिकारी के संज्ञान में लाना है। यदि फिर भी मुझे नियम विरुद्धता प्रतीत होती है तो मुझे न्यायालय में अपील करनी है। निचली अदालत के निर्णय से संतुष्टि न मिलने पर उससे बड़ी, यहा तक कि सर्वोच्च अदालत तक जाया जा सकता है। सर्वोच्च अदालत की व्याख्या अंतिम और सर्वमान्य है।

                                              6

clip_image0094

दो मुफ्त एंटीवायरस प्रोग्राम के नए संस्करण

मुफ्त एंटीवायरस के क्षेत्र में सबसे लोकप्रिय दो एंटीवायरस प्रोग्राम के नए संस्करण आपके कंप्यूटर को और ज्यादा सुरक्षित बनाने के लिए अब उपलब्ध है ।
Avira का AntiVir Personal 10.0.0.650 और AVG का AVG Free Edition 10.0.1388 ।

                                      05

My Photo{ तुम्हें ही भेदना है }

पल रहा अन्याय उर में , तो उसे अभिव्यक्ति भी दो ,

गाँठ मन की खोल दो, अंतःकरण की शक्ति भी दो /

देश यह पालक पिता है और धरती माँ सभी की ,

इसलिए इसको समर्पण भाव दो,अनुरक्ति भी दो /

                                      04

दो प्रश्न

भविष्य में क्या बनना है, इस विषय में हर एक के मन में कोई न कोई विचार होता है। बचपन में वह चित्र अस्थिर और स्थूल होता है, जो भी प्रभावित कर ले गया, वैसा ही बनने का ठान लेता है बाल मन। अवस्था बढ़ने से भटकाव भी कम होता है, जीवन में पाये अनुभव के साथ धीरे धीरे उसका स्वरूप और दृढ़ होता जाता है, उसका स्वरूप और परिवर्धित होता जाता है। एक समय के बाद बहुत लोग इस बारे में विचार करना बन्द कर देते हैं और जीवन में जो भी मिलता है, उसे अनमने या शान्त मन से स्वीकार कर लेते हैं। धुँधला सा उद्भव हुआ भविष्य-चिन्तन का यह विचार सहज ही शरीर ढलते ढलते अस्त हो जाता है।

                                         03

clip_image0104

तुम मेरे उनींदरे से बनी सलवट हो ..

कल चाँद संतूर बजा रहा था ;
पूजाघर में बूढ़े मन्त्रों के साथ सुनी मैंने
कृष्ण की हंसी !
मैं करवट ले रही थी

सलवटों से भरा था हवा का बिस्‍तर

                                           02

एक नन की आत्मकथा
कैथोलिक धर्मसंघो के लिए सिस्टर जेस्मी की आत्मकथा एक भूचाल बन कर आयी। यह विवादास्पद पुस्तक पहले मलयाली फिर अंग्रेजी और अब हिन्दी में आई है। इस आत्मकथा में जेस्मी ने कान्ग्रीगेशन आफ मदर आफ कार्मेल (सीएमसी) के भीतर घर कर चुकी अनियमितताओं के लेकर अपना व्यक्तिगत अनुभव प्रस्तुत किया है। आम मान्यता है कि धर्मसंघों का गठन सात्विक लोगों द्वारा धार्मिक कार्यों के लिए किया जाता है। इस पुस्तक को पढ़ने के बाद ऐसी मान्यताओं पर गंभीर प्रश्न खड़े होते हैं।

                                       01

क्या बनोगे बच्चे

क्या बनना है बच्चे को?
बच्चा अभी कहाँ जान पायेगा कि
ये कुछ एक बनने की लहरदार सीढ़ी
चुनाव और रुझान से ज्यादा
कब एक जुए की शक्ल ले लेगा
जो भाग्य...भविष्य
और बदलते बाज़ार की ज़रुरत के दांव से खेला जाएगा

आज बस इतना ही।
अगले हफ़्ते फिर मिलेंगे।
तब तक के लिए हैप्पी ब्लॉगिंग!!