जन्म-दिन की शुभ-कामनाएं
सौम्या सृष्टी सोहिनी, माँ की मंजिल राह ।
सचुतुर, सुखदा, सुघड़ई, दुर्गे मिली अथाह ।
दुर्गे मिली अथाह, बड़ी आभारी माता ।
ताकूँ अपना अक्श, कृपा कर सदा विधाता ।
हसरत हर अरमान, सफल देखूं इस दृष्टी ।
मंगल-मंगल प्यार, लुटाती सौम्या सृष्टी ।।
पोर-पोर में प्यार है, ममता अंश असीम ।
दर्शन तुझमे ही करूँ, अपने राम रहीम ।
(१)
अखबारों का छपना देखा
श्यामल सुमन
सुमन सिखाये सच्ची चीज ।
खुश्बू सींचे अन्तर-बीज ।
काँटो को यह रास ना आये -
कुढ़न-कुबत कलही की खीज ।
उन्माद लिखें अवसाद लिखें ।
कुछ पहले की, कुछ बाद लिखें ।
हर पल का एक हिसाब बने ,
कुछ भूली बिसरी याद लिखें ।।
(केवल उत्कृष्ट कविता के लिए / नथिंग इल्स )
कुछ पहले की, कुछ बाद लिखें ।
हर पल का एक हिसाब बने ,
कुछ भूली बिसरी याद लिखें ।।
(केवल उत्कृष्ट कविता के लिए / नथिंग इल्स )
(३)
यूपी सरकार का काला सच ....
महेन्द्र श्रीवास्तव at बेसुरम्
चोट्टे चौगोषा लखें, चमचे चुप चुबलांय ।
चौगोषा मिष्ठान भर, चाट-चूट के खांय ।
चाट-चूट के खांय, हरेरी सबके छावे ।
अफसरगन उकताँय, जान जोखिम में पावे।
फिफ्टी-फिफ्टी होय, चलाचल चक दे फ़ट्टे ।
व्यर्थ हुवे बदनाम, आज मौसेरे चोट्टे ।।
चौगोषा मिष्ठान भर, चाट-चूट के खांय ।
चाट-चूट के खांय, हरेरी सबके छावे ।
अफसरगन उकताँय, जान जोखिम में पावे।
फिफ्टी-फिफ्टी होय, चलाचल चक दे फ़ट्टे ।
व्यर्थ हुवे बदनाम, आज मौसेरे चोट्टे ।।
(४)
आधा सेर चाउर
वटवृक्ष
अरविन्द मिश्रा
खबर आजतक पर चली, गली गली सी लाश ।
नक्सल-गढ़ थाने पड़ी, जिसकी रही तलाश ।।
(५)
उन्होंने घर बनाए - अज्ञेय
मनोज कुमार at राजभाषा हिंदी
खुद को खुद का ना पता, खुदा बूझता खूब ।
टुकुर टुकुर रविकर लखे, गहरे ग्यानी डूब ।
टुकुर टुकुर रविकर लखे, गहरे ग्यानी डूब ।
(६)कामसूत्र -लेखिका के. आर. इंदिरा
वात्स्यायन थे 'पुरुषवादी',अब नया कामसूत्र.
वात्स्यायन के कामसूत्र को अब महिलाओं के नजरिए से लिखने की कोशिश हो रही
है। यह पहल की है लेखिका के. आर. इंदिरा ने। महिलाओं को कामसूत्र का पाठ
पढ़ाने वाली उनकी किताब जून के पहले हफ्ते में रिलीज़ होगी।
इंदिरा का मानना है कि वात्स्यायन के कामसूत्र को पुरुषों के नजरिए से लिखा गया है। जिसमें बताया गया है कि महिलाओं का कैसे इस्तेमाल किया जाए। |
(७)सेंटीमेंटल होना ठीक नहीं पर हूँ - shelley |
(८)
चिड़िया
उस दिन दिखी थी चिड़िया थकी- हारी बेबस क्लांत सी मुड़- मुड़ कर जाने किसे देख रही थी या फिर, नजरें दौड़ा- दौड़ाकर कुछ खोज रही थी मैंने सोचा, ये तो वही चिड़िया है जो बैठती है मुंडेर पर चुगती है आंगन में खेलती है छत पर और मैं | घर में, बाहर मुडेर पर, छत पर जा - जाकर देख आई दिखी कहीं भी नहीं वह तब याद आया वो तो दाना चुगती है मुठ्ठी में लेकर दाने बिखेरे आंगन से लेकर छत तक पर आज तक बिखरे हैं दानें चिड़िया का नामोनिशां नहीं ‘शायद अब दिखती नहीं चिड़िया आंगन में, छत पर या मुड़ेर पर चिड़िया हो गई हैं किताबों और तस्वीरों में कैद |
(९)त्रिवेणी
कमला निखुर्पा
धरती मिली
गगन से जब भी
पुलक उठी
क्षितिज हरषाया ।
बदली मिली
पहाडों के गले से
बरस गई
सावन लहराया ।
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(१०)छत्तीसगढ़ी |
(११)पहली बार निर्मल बाबा का संपूर्ण जीवन परिचय। निर्मल बाबा का एक-एक सच का खुलासा। निर्मललीला-1Aaj Samaj
निर्मल सिंह इन्हीं इंदर सिंह नामधारी का सगा साला है. यानी
नामधारी की पत्नी मलविन्दर कौर का सगा भाई.
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(१२)सफलता के कुछ सूत्र...
नीलकमल वैष्णव अनिश at ₥ĨṱЯằ-₥ǎĐђบЯ
कामयाबी तय करना है तो आज बुधवार को बोलें यह श्री गणेश मंत्र |
(१४)"झूठ आजाद है, सत्य परतन्त्र है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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(१५)कुरुक्षेत्र-मन बिकल है, चलिए प्रभू शरण -Aचलो इसे घर ले चलें
satish sharma 'yashomad' at यात्रानामा
जंगल की लकड़ी ख़तम, बढ़ते ईंधन दाम ।
बिजली बिल आये बहुत, ले चल सूरज थाम ।।
जीवन में ठहराव से, ठहरी हवा -किरण ।
कुरुक्षेत्र-मन बिकल है, चलिए प्रभू शरण ।।
Cहम पहले ही मारे जा चुके हैं....मन पाए विश्राम जहाँ -
दर्शन रूप विराट के, मिली दिव्यतम दृष्ट ।
मरे हुए हम भी दिखे, सृजित करें नव सृष्ट ।। Dआस का एक धागा ....सदा दीखती दृष्टि-नवल, धवल प्रेम संवाद ।
संग जुड़ें शक्ति मिले, प्रेम सूत्र नाबाद ।।
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(१६)याद रखना चाहतें हैं देखे गए सपने को ? |
मुकेश भालसे - मेरे दिल की आवाज़
हम पंछी उन्मुक्त गगन के
पिंजरबद्ध न गा पाऍंगे,
कनक-तीलियों से टकराकर
पुलकित पंख टूट जाऍंगे।
हम बहता जल पीनेवाले
मर जाऍंगे भूखे-प्यासे,
कहीं भली है कटुक निबोरी
कनक-कटोरी की मैदा से,
पिंजरबद्ध न गा पाऍंगे,
कनक-तीलियों से टकराकर
पुलकित पंख टूट जाऍंगे।
हम बहता जल पीनेवाले
मर जाऍंगे भूखे-प्यासे,
कहीं भली है कटुक निबोरी
कनक-कटोरी की मैदा से,
(१८)
जयजयकार बिल्लियों की ।
"उल्लूक टाईम्सइच्छा कर ले नियंत्रित, बन्धु जाना न लेट ।
चूहों को खाते नहीं, उल्लू लेत लपेट ।
उल्लू लेत लपेट, आज-कल कम्बल ओढ़े ।
घी से भरते पेट, समझ न गलत निगोड़े ।
मिलते उल्लू ढेर, सोच की करो समीक्षा ।
अंधे हाथ बटेर, नहीं तो करती इच्छा ।।
नमस्कार: आप आये आभार
मिलते उल्लू ढेर, सोच की करो समीक्षा ।
जवाब देंहटाएंअंधे हाथ बटेर, नहीं तो करती इच्छा ।।
सुंदर संयोजन अच्छी प्रस्तुति,.....
अभिभूत हूँ मेरी नन्ही कली को इतना मान देने के लिए.
जवाब देंहटाएंआभार.
विस्तृत और बहुरंगी चर्चा |
जवाब देंहटाएंआशा
Bahut Badhiya Charcha.....
जवाब देंहटाएंबड़ा लम्बा हाथ मार के लाये हैं
जवाब देंहटाएंमौसेरे भाईयों के लिये ही सजाये हैं
हर शाख पर जब उल्लू बैठाये हैं
स्वछँद कैसे कोई उड़ पाये है
कहीँ ना कहीं एक तो टकराये है
मेहनत आपकी रंग जरूर लाये है
लक्ष्मी जी से शुरुआत करा चर्चा
उल्लूक पहरे पर अंत में बैठाये हैं।
आभार !!!
ब्लॉग जगत का सर्वोत्तम ढूंढकर लाये हैं आप।
जवाब देंहटाएंआपके पोस्ट पर स्वछंद होकर लिखना
जवाब देंहटाएंआपना अधिकार मान बैठा है यह गधा |
डर नहीं लगता है न |
सादर --
शानदार .
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंविस्तृत चर्चा है सो सभी लिंक अभी नहीं देखे हैं.............जितने देखे सभी लाजवाब.
जवाब देंहटाएंहमारी रचना को शामिल करने के लिया आपका शुक्रिया रविकर जी....
साथ ही रचना से भी सुंदर टिप्पणी का भी शुक्रिया.
सादर
अनु
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंश्री दिनेश गुप्ता"रविकर" जी साभार जो आपने हमारी रचना को यहाँ स्थान दिया,
जवाब देंहटाएंसभी लिंक्स बहुत प्यारे और सुन्दर हैं, बहुत सारी जानकारियों के साथ यह आज कि चर्चा रही, जन्मदिन से लेकर पोल खोलते राज सभी अच्छे लगे, पुनः बधाई आपको इस सफल चर्चा हेतु, हम आपकी यह लिंक अपने फेसबुक वाल में लगा रहे हैं अगर कोई आपत्ति ना हो तो अगर हो तो जरुर सूचित करें हमारे इस लिंक पर जो नीचे है,
हम इस टिप्पणी के साथ लिंक इसलिए नहीं लगा रहे है कि कही आपको कोई आपत्ति ना हो आपके मंच पर अन्य मित्र का लिंक देना तो आप हटा सके जिससे कि हमारी टिप्पणी बरकरार रहे और फेसबुक का लिंक अगर आपको हमारा देना अनुचित लगे तो हटा सके...
जवाब देंहटाएंhttps://www.facebook.com/mitramadhur
बहुत ही अच्छे लिंक्स का चयन जिनके साथ मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार ।
जवाब देंहटाएंNice
जवाब देंहटाएंफिफ्टी-फिफ्टी होय, चलाचल चक दे फ़ट्टे ।
जवाब देंहटाएंव्यर्थ हुवे बदनाम, आज मौसेरे चोट्टे ।।
रविकर लिखते हैं बहुत ,लिखना उनका काम ,
बिना लिखे बे -चैन रहें ,क्या सुबह क्या शाम .
चर्चा मंच सजाय के लाये कितने लिंक ,
पढ़कर देखो साथियों हो जाओगे पिंक .
r
सुन्दर चर्चा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मित्रवर रविकर जी!
जवाब देंहटाएंकल रात को देहरीदून से लोट आया हूँ।
अब निमित हो गया हूँ।
--
चर्चा बहुत अच्छी लग रही है।
ज़र्रा नवाज़ी के लिए शुक्रिया .
जवाब देंहटाएं