चर्चा-दुबारा सजा रहा, यही मूर्ख की सजा रही ।
नेह निमंत्रण भेज चुका, छूट ना जाएँ आप कहीं ।।
माफ़ करना ।।
कहाँ खो गयी संतुष्टी ?
Kailash Sharma
कहाँ खो गयी संतुष्टी,कहाँ गये वे दिन जब होती थी एक रोटीबाँट लेते एक एक टुकड़ाऔर नहीं सोता कोई भूखा.लेकिन आज भूख रोटी की गयी है मर,लगी है अंधी दौड़ दौलत के पीछेकुचलते सब रिश्तों कोअपने पैरों तले.ईमानदारी बन कर रह गयी बेमानीऔर छुपाती मुंह शर्मिन्दगी से,भ्रष्टाचार और काला धन बन कर रह गए सिर्फ़ एक मुद्दाबहस और अनशन का.यह तो हाल है जबकि पता है क़फ़न में ज़ेब नहीं होतीऔर मुट्ठी भी खाली होतीअंतिम सफ़र में.क्या होता हाल इन्सान के लालच काअगर ऊपर भी खुल जातीकोई शाखा स्विस बैंक कीजहां भेज सकते पैसामरने से पहले.कैलाश शर्मा |
अशोक कुमार शुक्ला
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दिनेशराय द्विवेदी
अनवरत -
कोई पैंतीस बरस हुए, बुआ की पुत्री के विवाह में जाते हुए रास्ते में दुर्घटना हुई और पिताजी के दाहिने हाथ की कोहनी में गंभीर चोट लगी। रेडियस अस्थि का हेड अलग हो गया। हड्डी की किरचें मांस में घुस गईं। जिन्हें निकालने के लिए कुछ ही दिनों के अन्तराल से कुछ आपरेशन्स कराने पड़े। हमें जोधपुर में रुकना पड़ा। वहां विवाह में आए हुए अनेक परिजन थे जो विवाह के उपरान्त भी रुके थे। दिन भर क्या करते तो शाम को कहीं न कहीं घूमने निकल पड़ते। एक दिन भूतनाथ जाने की योजना बनी। तीसरे पहर जब सब लोग जाने के लिए घर से बाहर निकले उसी समय मुझे हाजत हुई और मैं यह कह कर फिर से घर में घुस गया। मुझे कहा गया कि |
शराफत से अच्छा है ,कहीं बदतमीज हो जाना ,
दोस्त से अच्छा है, कहीं रकीब हो जाना -
जिंदगी आसन नहीं ,बे -अदब चौराहोहों पर , बे- नजीर से अच्छा है,कहीं नजीर हो जाना - क़त्ल होना बनता हो जब, हँसी का सबब , म्यान से अच्छा है , कहीं शमशीर हो जाना - अमन यूँ ही खैरात में ,मिलता नहीं उदय, नशीब से अच्छा है ,कहीं बदनशीब हो जाना - |
परीक्षाऎं हो गयी हैं शुरु
मौका मिलता है साल में एक बार मुलाकातें होती हैं बहुत सी बातें होती हैं बहुत से सद्स्यों की टीम में एक हैं |
बात का बतंगड़...माननीय दिव्याजी!नेहरू खानदान की असलियत आप के ब्लॉग पर पढी!...कोमेंट लिखने के लिए कोई प्रबंध नहीं पाया गया.इसी वजह से आपकी पोस्ट यहाँ दे रही हूँ. अगर आपको कोई एतराज हो तो बताएं.मैं तुरंत इसे डिलीट कर दूंगी! ...यहाँ दी गई जानकारी या खोजबीन श्री दिनेशचन्द्र मिश्राजी की है और वे अपने ब्लॉग पर इसे क्रमश: प्रस्तुत कर रहे है...मतलब कि आपने उनकी पोस्ट अपने ब्लॉग पर दी है..जो कि बहुत ही महत्वपूर्ण विषय है! |
"सच में!"चोट खा कर मुस्कुराना चाहता हूँ,क्या करूँ रिश्ते निभाना चाह्ता हूँ! ये रंगत-ए- महफ़िल तो कुछ ता देर होगी, मैं थक गया हूँ घर को जाना चाहता हूँ! |
सियानी गोठ
श्रीमती सपना निगम (हिंदी )
गुरु
गुरु हरथे अज्ञान ला, गुरु करथे कल्यान
गुरु के आदर नित करो,गुरु हर आय महान
गुरु हर आय महान, दान विद्या के देथे
माता-पिता समान, शिष्य ला अपना लेथे
मानो गुरु के बात, भलाई गुरु हर करथे
खूब सिखो के ज्ञान, बुराई गुरु हर हरथे.
- जनकवि कोदूराम “दलित”
[ गुरु अज्ञान हरते हैं, गुरु कल्याण करते हैं. गुरु का नित्य आदर करें क्योंकि गुरु महान हैं. ये विद्या का दान देते हैं. माता –पिता के समान ही शिष्य को अपना लेते हैं. गुरु की बात मानें. गुरु ही भलाई करते हैं. ये खूब ज्ञानसिखा कर बुराई का हरण करते हैं.]
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'देहरी' और 'कविता का समकाल' लोकार्पित |
“एक आदर्श आदमी वह है, जिसमें इस तरह की उत्तम बुद्धि और विवेक हो जैसे कि वह ईरानी मूल का हो, अरब आस्था का हो, धर्म में सीधी राह की ओर प्रेरित हनफ़ी (इस्लामी धर्मशास्त्र की सबसे तार्किक और उदार शाखा के मानने वाले) हो, शिष्टाचार में इराक़ी हो, परम्परा में यहूदी हो, सदाचार में ईसाई हो, समर्पण में सीरियाई हो, ज्ञान में यूनानी हो, दृष्टि में भारतीय हो, ज़िन्दगी जीने के ढंग में रहस्यवादी (सूफ़ी) हो।”
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ज़िन्दगीनामा |
डा श्याम गुप्त के.....दो अगीत.....अर्थ** **अर्थ**, **स्वयं****ही** **एक** **अनर्थ** **है**;
**मन** **में** **भय* **चिंता* **भ्रम****की* -**उत्पत्ति* **में* **समर्थ** **है** |
*इसकी** **प्राप्ति*,**रक्षण* **एवं* **उपयोग** **में* **भी** ,**करना** **पडता*है
**कठोर****श्रम** ;**आज** **है**, **कल** **होगा** **या** **होगा** **नष्ट**-**इसका** **नहीं****है** **कोई** **निश्चित** **क्रम** |
**अर्थ** **मानव***के****पतन* **में** **समर्थ* **है** ,*फिर** **भी**, **जीवन**
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एडियों की बिवाई (फटन )से राहत के लिए पैर धोकर सोयें लेकिन तलुवों पर और एडियों में घी मलने के बाद ही बिस्तर में जाएँ .
यदि बाल झाड़तें हैं तब शिरोवल्क (खोपड़ी,सिर की खाल )में नारियल के तेल में मीठे नीम्बू (लाइम ) का रस मिलाकर उंगली के पौरों से धीरे धीरे लगाएं . राम राम भाई ! राम राम भाई ! राम राम भाई ! हाथ, उंगलियां सुन्न हो जाती हैं? सावधान! - कंप्यूटर पर काम करने वाले, कैशियर, ड्राइवर और मीट पैकर जरा सावधान रहें। अगर आपकी उंगलियों में गुदगुदी, जलन या सुन्नपन है या फिर उंगलियों को मोड़ने में या . |
मीन-मेख ही ढूँढ़ते, महा-कुतर्की विज्ञ-मैं देखता रहा :
मालिक तड़पे दर्द से, बाम मलाये हाथ |
नौकर मलता जा रहा, पीठ दर्द के साथ | पीठ दर्द के साथ, रखे होंठों को भींचे | अश्रु बहे चुपचाप, आग भट्ठी की सींचे | रविकर माँ का ख्याल, यहाँ आजादी हड़पे | सहता जुल्म बवाल, नहीं तो मालिक तड़पे || सूरज को दिया दिखाने की जिद।
सुज्ञ at ॥ भारत-भारती वैभवं ॥
शिल्पा जी आभार है, साधुवाद श्री सुज्ञ |
मीन-मेख ही ढूँढ़ते, महा-कुतर्की विज्ञ |
महा-कुतर्की विज्ञ, कृत्य सब अपने भायें |
करे अनैतिक काम, सही उसको ठहराएं |
जो है शाश्वत सत्य, टिप्पणी उस पर करते |
जाने पथ्यापथ्य, मगर नित मांस डकरते ||
मै ब्राहमण हूँ
कमल कुमार सिंह (नारद ) at नारद
सदियों से संकर पर होती, हर पीढ़ी यह खोजे-खाजे - नित नया अनोखा करते हैं, बस खोजों में मशगूल रहे - कुछ इधर मिला कुछ उधर मिला, ना शादी ना बाजे गाजे । जो धर्म जाति से ऊपर हो, कल्याण का ले ले ठेका जो- वो ही तो ब्राह्मण होता है, पहचान गए राजा-राजे ।। भूख तो कम हुई ,प्यास बढती गई
babanpandey at मेरी बात
जालिम शेर -कातिल निगाह
नजरें रख के चित्र पर, दिया शेर पर ध्यान ।
किया कलेजा चाक फिर, लिया दर्द एहसान ।।
हा! आफरीन...S.M.HABIB एहसासात... अनकहे लफ्ज़जितनी जल्दी हो सके, लो गलतियाँ सुधार । बिटिया बिन इस जगत में, छा जाए अंधियार ।। भ्रष्ट कौन (लघु कथा)संगीता तोमर Sangeeta Tomar at नुक्कड़ग्यानी ध्यानी शिक्षिका, जाने सब गुण-दोष । मुखड़ा अपना न लखे, दर्पण अति-अफ़सोस । दर्पण अति-अफ़सोस, दूध में बड़ी कमाई ।
गर परचून दूकान, मिलावट हर घर आई ।
पुलिस भ्रष्टतम किन्तु, गौर कर मूर्ख सयानी ।
गंदे वाणी-कर्म, बनी फिरती है ग्यानी ।। |
भारत की संत परम्परातुम तो ठहरे बाबा-बैरागी, तुम्हें सांसारिकता से क्या प्रयोजन? जाओ, माला जपो और ईश्वर का ध्यान करो। अन्याय,शोषण और अत्याचार से तुम्हें क्या?........ सत्ता ने सत्य को घुड़की दी।...जैसे कि ईश्वर का ध्यान केवल बैरागी को ही करना है, अन्य किसी को नहीं।....और यह भी कि बैरागी को संसार के सामूहिक कष्टों से कभी कोई प्रयोजन नहीं होना चाहिये।निरंकुश सत्ताओं के इस युग में एक प्रश्न विचारणीय है कि तब अन्याय, शोषण और अत्याचार के उन्मूलन का प्रयोजन यदि संत को नहीं तो और किसे होना चाहिये? क्या असंत के कुकृत्यों का विरोध किसी असंत ने किया है कभी? क्या संतों के कर्तव्य असंतों द्वारा निर्धारित किय जायें. |
वाह क्या जवानी है
डॉ0 विजय कुमार शुक्ल ‘विजय’
तमको मुझसे मुहब्बत है मैंने माना!बात रक़ीब के ज़ुबानी है।मैंने लम्हा-लम्हा तुमको जिया हैफिर ये क्यों बदग़ुमानी है।सबके लिए शीरी मेरे लिए तल्ख़इसके क्या मानी है?जनम-जनम तक निभाने का वादाबात ये पुरानी है।हम रक़ीब से शादी रचाएंगेअब ये नई कहानी है।सुना है साक़ी ने मुझको पूछा थाचाल में फिर रवानी है।शीशा भी तड़प के चटक जाएवाह क्या जवानी है। -विजय |
"लक्ष्य बहुत संगीन हो गया" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बेहद सटीक सामग्री संजोई/सजाई है आपने हर बुधवार की तरह.
जवाब देंहटाएंदुहरी मेहनत के लिए दुहरा धन्यवाद!!
आपके श्रम को सलाम रविकर जी!
जवाब देंहटाएंशुरू-शुरू में मुझे भी कई बार दोबारा चर्चा लगानी पड़ती थी। तब मैं एक बार चर्चा लगा कर उसकी कॉपी बना लेता था।
फिर भी आपने बहुत अच्छे लिंकों का समावेश किया है आज की चर्चा में!
आभार!
बहुत आभार ..मेरी रचना को शामिल करने के लिए.बाक़ी लिंक्स भी अच्छे हैं.आपकी मेहनत को सलाम!!
जवाब देंहटाएंसुन्दर और मनभावन लिन्क संजोये हैं आपने। मेरे ब्लाग को शामिल करने के लिये आभार! आपकी दोहरी मेहनत बेकार नहीं गई रंग लाई है!
जवाब देंहटाएं़़़़़़़़़़़़़़
जवाब देंहटाएंरविकर ने चर्चामंच बनाया
चर्चांमंच का पर्चा पर्स में रख आया
कोई जेबकतरा होगा फिराक में
जिसने आठ घंटे की मेहनत को उड़ाया
जरूर कोई ब्लागर रहा होगा शातिर
खुराफात की होगी अपने ब्लाग की खातिर
पर रविकर तो रविकर है उसे कहाँ पता
तुरंत दूसरा चर्चामंच जा के खोद लाया
उल्लूक के निठल्ले चिंतन से पर
पता नहीं क्यों पीछा नहीं छुड़ा पाया।
पढ़ा रहा है 'उल्लूक टाईम्स' की बकबक
पाठक की जय हो पता नहीं सहेगा कबतक।
़़़़़़़
फिर भी आभारी हूँ ।
बहुत सुन्दर ... बेहतरीन प्रस्तुति हार्दिक बधाई .....
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा , मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार ..
जवाब देंहटाएंसादर
अनवरत की पोस्ट के उल्लेख के लिए आभार!
जवाब देंहटाएंमेरे कार्टून भी सम्म्िलित करने के लिए आपका अतीव आभार
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंBadhiya Charcha....
जवाब देंहटाएंदेख- देख इस मंच को, मन हर्षित हो जाय
जवाब देंहटाएंन जाने किस दिन मेरी,रचना भी दिख जाय
बेहतरीन रचनाओं की ,बेहतरीन प्रस्तुति
बहुत ही अच्छे लिंक्स का संयोजन किया है आपने ..आभार ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे लिंक्स चुने हैं आपने। मेहनत कभी विफ़ल नही होती।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लिंक्स का चयन...रोचक चर्चा...आभार
जवाब देंहटाएंझलकी भर देखि तो भा गए लिंक्स ,
जवाब देंहटाएंसब के सब हडका गए लिंक्स.
राहुल ब्राह्मण सलामत रहें ..
भाई विकर फैजाबादी जी आप बहुत ही मनोयोग, लगन और मेहनत से मंच सजाते हैं। कहां-कहां से ढूंढ कर अच्छे अछे लिंक्स लाते हैं, और फिर काव्यात्मक विवरण देते हैं।
जवाब देंहटाएंनमन आपको!