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शुक्रवार, अप्रैल 27, 2012

गुणवत्ता को छोड़कर, निकृष्ट अधम प्रयोग : चर्चा-मंच 862



रतन खोज में हमने, खँगाला था समन्दर को
इरादों की बुलन्दी से, बदल डाला मुकद्दर को

लगी दिल में लगन हो तो, बहुत आसान है मंजिल
हमेशा जंग में लड़कर, फतह मिलती सिकन्दर को

अनल किरीट

 

मनोज जी!  इस शृंखला की मुझे अब प्रतीक्षा रहने लगी है। इस मंच से प्रकाशित समस्त रचनाओं को पढ़ता हूँ और आप के शांत तापस कर्म से अभिभूत होता हूँ लेकिन इस शृंखला ने मुझे मेल करने को बाध्य किया है। प्रस्तोता तक मेरा आभार पहुँचाइयेगा। 'ब्रिह्त्रायी' को ठीक कर दीजिये। सादर, गिरिजेश
हिंदी कविता के छायावादोत्तर युग की सबसे बड़ी घटना दिनकर और बच्चन का आविर्भाव थी. जब खड़ी बोली अन्ततोगत्वा कविता की भाषा बन गयी 


बैठे -ठाले 

आईने से सवाल क्या करना - शैलजा नरहरि [3 ग़ज़लें]


आईने से सवाल क्या करना
दर्द का हस्बेहाल क्या करना

किरचों किरचों बिखर गया है जो
आज उस का मलाल क्या करना


उम्र भर था थकन से वाबस्ता
उस को माज़ी या हाल क्या करना



डा रंगनाथ मिश्र 'सत्य' के चार अगीत....डा श्याम गुप्त

डा रंगनाथ मिश्र ’सत्य’
                                      ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...

                हिन्दी कविता में  अगीत विधा  के संस्थापक... कवि डा रंगनाथ मिश्र 'सत्य' के..सामाजिक सरोकार युक्त ... चार अगीत....  
 १.
जीवन में जो कुछ भी 
आज होगया घटित,
कल भी वैसा होगा 
एसा मत सोचो;
ओ मेरे विश्वासी मन


दिवाश्वप्न

प्रहरी       देखे ,      दिवा -  श्वप्न ,
रण  -    रक्षण   ,    कैसा    होगा -
विष   अंतस , अमृत  जिह्वा   पर ,
ईश  -   स्मरण    कैसा        होगा-



तन पंछीड़ा

  जाले  
"It is too bad to be too good." यह प्रतिक्रिया महात्मा गाँधी जी के मारे जाने पर अंग्रेज लेखक, जार्ज बर्नार्ड शा, की थी. इस सँसार में अनेक घटनाएं/दुर्घटनाएं नित्यप्रति होती रहती हैं, जिनमें सीधे-सरल, परोपकारी लोगों के साथ दुर्व्यवहार होता है. ये घटनाएं हमेशा सुर्ख़ियों में भी नहीं आ पाती हैं, लेकिन पीड़ित जन तो घाव सहलाते ही रहते हैं डाक्टर सुबोध बैनर्जी एक प्रतिभावान बाल-रोग विशेषज्ञ हैं.


हज़रत हसन बसरी रह. नदी के किनारे नाव का इंतज़ार कर रहे थे। हबीब नामक उनका शिष्य आया और बोला, “उस्ताद! आप किस चीज़ का इंतज़ार कर रहे हैं?”
वे बोले, “नाव का।
तो शिष्य बोला, “क्यों?”
वे बोले, “नदी पार करनी है।
शिष्य ने कहा, “ इसमें क्या बड़ी बात है? अपने दिल से जलन, बैर और सांसारिकता निकाल फेंकें, अंतःकरण को पवित्र कर लें और ख़ुदा पर यक़ीन कर नंगे पांव चलें, आसानी से नदी पार कर लेंगे।
संत ने सोचा, ‘मेरा चेला मुझे ही सीख दे रहा है।बोले, “तू कहीं पगला तो नहीं गया है?”


नारी , NAARI

आज दो समाचार पढ़े हैं आप सब से बाँट रही हूँ

   पहला समाचार

बहुत जल्दी महिला के लिये हेलमेट पहनना अनिवार्य हो जाएगा . कोर्ट से ये आर्डर शीघ्र पास होने जा रहा हैं .  -. 
जीवन हैं तो सब कुछ हैं
दूसरा समाचार
अब १८ साल से कम आयु के स्त्री या पुरुष के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाना कानून अपराध होगा और उसकी सजा ७ वर्ष होगे . 

उज्जवल भविष्य का इंश्योरेंस लाया हूँ

उज्जवल भविष्य का  इंश्योरेंस लाया हूँ 
किस्मत चमकाने का स्योरेंस लाया हूँ
मुझपर अविश्वास करके पाप का भागी न बन
टीवी वाला बाबा हूँ,  चुना लगाने का लाइसेंस लाया हूँ 

  हास्य-व्यंग्य का रंग गोपाल तिवारी के संग

कामनी और कंचन को हाथ नहीं लगाता हूँ

भटके हुए प्राणियों को रास्ता दिखाता हूँ 
कामनी और कंचन को हाथ नहीं  लगाता हूँ 
भक्तों को माया से दूर रखने के लिए 
उनकी गाढ़ी कमाई को मुफ्त में उड़ाता हूँ 



आओ सब मिल पेड़ लगायें,

  बच्चों का कोना
आओ सब मिल पेड़ लगायें,
  पौधा एक एक अपनायें.


घर में या बगिया में बाहर,
जहां जगह एक पौध लगायें.
ध्यान रखें पानी देने का,
और खाद भी कभी मिलायें.

दिल जार जार है

विषम परिस्थित में अगर, भूले रिश्ते-नात ।  
जिन्दा रहने के लिए, करता है आघात ।
करता है आघात, क्षमा उसको कर देते ।
पर उनका क्या मित्र, प्राण यूँ ही हर लेते ।
भरे पेट का शौक, तड़पता प्राणी ताकें ।
दुष्कर्मी बेखौफ, मौजकर पाचक फांके ।।

खुशियों का खज़ाना.

आपाधापी जिंदगी, फुर्सत भी बेचैन।
बेचैनी में ख़ास है, अपनेपन के सैन ।
अपनेपन के सैन, बैन प्रियतम के प्यारे ।
सखियों के उपहार, खोलकर अगर निहारे ।
पा खुशियों का कोष, ख़ुशी तन-मन में व्यापी ।
नई ऊर्जा पाय, करे फिर आपाधापी ।।

उभार की सनक बनाम बिकने की ललक !

संतोष त्रिवेदी
बैसवारी baiswari
     

भौंडी हरकत कर रहे, सुविधा-भोगी लोग ।
गुणवत्ता को छोड़कर, निकृष्ट अधम प्रयोग ।
निकृष्ट अधम प्रयोग, देख व्यापारिक खतरा ।
दें अश्लील दलील, पृष्ट पर पल-पल पसरा ।
कब बाबा का भक्त, बने कब सत्ता-लौंडी ।
प्रामाणिकता ख़त्म,  करे अब हरकत भौंडी ।।

हमारी सरकार !


कौवा मोती खा रहा, दाना तो है खीज ।
वंचित वंचित ही रहे, ताकत की तदबीज ।
ताकत की तदबीज, चतुर सप्लाई सिस्टम । 
कौआ धूर्त दलाल, झपट ले सब कुछ हरदम ।
काँव-काँव माहौल, जमाता कुर्सी-किस्सा ।
  है अपनी सरकार, लूट ले सबका हिस्सा ।। 


स्मृति शिखर से – 15 : वे लोग, भाग – 5

यायावर की यह कथा, मन के बड़े समीप ।
प्रेम लुटाते जा रहे, कर प्रज्वलित प्रदीप । 
कर प्रज्वलित प्रदीप, अश्व यह अश्वमेध सा ।
बाँध सके ना कोय, ठहरना है निषेध सा ।
सिखा गए संगीत,  गए सन्मार्ग दिखाकर ।
 सादर करूँ प्रणाम, सफ़र कर 'वे' यायावर ।।

तेरा आँचल आवारा बादल

babanpandey at मेरी बात

चाह जहाँ पर है सखे, राह वहीँ दिख जाय ।
स्नेह-सिक्त बौछार से, अग्नि-शिखा बुझ जाय ।। 

कीमत चुकता....

  मो सम कौन कुटिल खल ...... ?


एक रूपये ने किया, असरदार इक काम ।
ग्राहक पक्का हो गया, ठेले तुझे सलाम ।।
बात पते की कह गए, बालक सब्जी खोर ।
ठंडा पानी पी करो, राजा भैया गौर ।।
पारस तो निर्लिप्त हो, करे काम चुपचाप ।
बढ़ें भाव जिस पिंड के, रास्ता लेवें नाप ।। 


एक चड्ढी कथा

  क्वचिदन्यतोSपि..

चड्ढी बिन खेला किया, आठ साल तक बाल ।
शीतल मंद समीर से, अंग-अंग खुशहाल ।
अंग-अंग खुशहाल, जांघिया फिर जो पा ली।
हुवे अधिक जब तंग, लंगोटी ढीली ढाली | 
चड्ढी का खटराग, बैठ ना पावे खुड्डी ।
घट जावें इ'स्पर्म, बिगाड़े सेहत चड्ढी ।।


बेरोजगारी

  सिंहावलोकन

बड़ा मार्मिक कष्ट-प्रद, सारा यह दृष्टांत ।
असहनीय जब परिस्थित, सहज लगे प्राणांत ।
सहज लगे प्राणांत, प्रशासन की अधमाई ।
या कोई षड्यंत्र, समझ मेरे ना आई ।
पर प्राणान्तक कष्ट, झेल तू प्रियजन खातिर ।
 बिन तेरे परिवार, मिटा दे दुनिया शातिर ।

"बदल जमाने के साथ चल"

  "उल्लूक टाईम्स "

सारे जैसा सोचते, तू वैसा ही सोच ।
बकरी को कुत्ता कहें, मत कुत्ता को कोंच ।
मत कुत्ता को कोंच, लोच जीवन में आया ।
लुच्चों ने ही आज, सदन में नाम कमाया ।
हरिश्चंद के पूत, घूमते मारे मारे ।
करो वही सब काम, करें जो चालू सारे ।।

सीधी रेखा और अपारदर्शी झिल्ली

अरुण चन्द्र रॉय at सरोकार

सुविधा-भोगी छद्मता, भोगे रेखा-पार।
वंचित भोगे *त्रिशुचता, अलग-थलग संसार ।। 
*दैहिक-दैविक भौतिक ताप ।


क्या कहता कबीरा इस पर...

  मेरी माला,मेरे मोती...

गस्त कबीरा मारता, अक्खड़ ढूंढे खूब ।
कोठे पर पाया पड़ा, रहा सुरा में डूब ।
रहा सुरा में डूब, चरण-चुम्बन कर चहके ।
अपनों को अपशब्द, गालियाँ देकर बहके ।
यह अक्खड़पन व्यर्थ, स्वार्थी सोच बताता ।
फँसा झूठ में जाय, तोड़ के सच्चा नाता ।। 

 

16 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छी लिंक्स हैं कुछ सोचने को बाध्य करती हैं |
    आशा

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  2. सार्थक, सफल, प्रयास, आपकी निष्ठा, श्रमसाध्य अनुशीलन को प्रतिष्ठा,साहित्य समर्पण के जज्बे को नमन ,,,,,,अंतत आभार व शुभकामनायें .....

    जवाब देंहटाएं
  3. आज के चर्चामंच का फ्रेम
    कुछ अलग नजर आता है
    अपना भी है कुछ देख
    उल्लूक आभार जताता है
    टिप्प्णी दे कर चला गया
    लिंक्स एक एक खंगालने
    बाद में चलो आता है ।

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  4. ...कई पोस्टों पर भारी है आपकी टिप्पणियां !

    आभार !

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  5. अरे वाह!
    फिर से एक उपयोगी चर्चा!
    --
    अब तो यह सिद्ध हो गया है कि पोस्ट पर आपकी टिप्पणियाँ मन को मोह लेती हैं और लेखकों को प्रोत्साहित करती हैं!
    --
    आभार आपका!

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  6. जिस प्रकार क्रिकेट के खेल से ज्यादा उसकी कमेंट्री रोचक होती है, उसी तरह लेखकों की रचनाओं से ज्यादा आकर्षक आपका संयोजन तथा टिप्पणियाँ होती है. धन्यवाद.

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत सुन्दर और उपयोगी लिंक्स!...शुभकामनाएं!मेरी रचना शामिल की आपने....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  8. सुंदर लिंक्स सजोये रोचक चर्चा. आभार

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत बढ़िया लिंक्स के साथ सार्थक चर्चा प्रस्तुति
    आभार !

    जवाब देंहटाएं
  10. bahut upyogi post mili padhne ko. meri post DINKAR JI KA JIWAN DARPAN
    Raajbhasha se lene k liye aabhari hun.

    जवाब देंहटाएं

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