निवेदन
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महेंद्र मिश्र
इब्राहीम गार्दी ने हँसकर कहा - हिन्दुस्तान मेरी जन्मभूमि है और यह मेरा प्यारा वतन है और
इसकी मिटटी में मैं पला और बड़ा हुआ हूँ . मुझे अपने वतन की मिट्टी से असीम लगाव और प्यार है . जो मेरी देश पर बुरी नजर डालेगा मैं उसकी आँखे नोच लूँगा . यह सुनकर अहमदशाह अब्दाली आग बबूला हो गया और उसने इब्राहीम गार्दी को मौत के घाट उतार दिया . इस तरह से एक सच्चे मुस्लिम देश भक्त ने अपने देश के लिए अपने प्राण हँसते हँसते निछावर कर दिए .
अग्नि मिसाइल का सफल परीक्षण
रिपोर्ट
(1) सब्जी महंगी है न ?देवेन्द्र पाण्डेय सब्जी बाजार में भटकते-भटकते थक हार कर देर शाम अपनी वाली सब्जी कीदुकान से सब्जी खरीदने गया तो देखा सभी हरी सब्जियाँ बिक चुकी थीं। आलू, टमाटर,प्याज के अलावा एक छोटी कटहरी अकेले उदास बैठी थी। मैने लपक कर उसे उठा लिया। पहली बार चर्चा-मंच पर :- अच्छा सा लगाआज फिर पुरानी गलियों से, गुज़रना अच्छा सा लगा जो झूठा था कल मेरे लिए,वो आज़ सच्चा सा लगा ॥ ये जो आज खुलके बिखरी है, लौ चिराग की जाने पहले मुझे क्यूँ ये,था एक धुआँ सा लगा॥ पूनम राणा 'मनु' अल्फ़ाज ए रवि"जीवन है एक धुप्प अँधेरा"जीवन है एक धुप्प अँधेरा होता जिसका नहीं सवेरा हम सब है बस ओस की बूंदे इस जीवन के कोहरे में ,भाग रहे है इधर उधर लड़ते एक दूसरे से मानो सभी ख़ोज रहे हो छुटकारा इस जीवन से , |
(3 : A-J)वैज्ञानिक वरदान यूँ , बन जाता अभिशाप । यांत्रिकता बढती चली, भेद पुण्य को पाप । भेद पुण्य को पाप, साफ़ गंगा खो जाती । कलुषित नर'दा रोर, नार'की भोग भुगाती । कामप्रेत के कर्म, करे नर से नर'दारा । चुड़ैल की अघ-देह, बुलाती खोल पिटारा ।। (B)अनजान बन जाऊंयशवंत जी की ३०० वीं पोस्ट कृपण हृदय ख्वाहिश करे, करना चाहे अर्पण । भाव हुए महरूम शब्द से, झूठ ना बोले दर्पण ।। (C)औरत और सब्जीअरुण चन्द्र रॉय at सरोकार--स्वाद नमक का स्वेद से, मीठा-पन है स्नेह । यही दर्द क्वथनांक है, जलती थाली देह । जलती थाली देह , बना करुनामय चटनी । धी-घृत से हररोज, चूरमा बेकल-मखनी । अरमानों की महक, ठगे-दिल का दे चूरन । पति पर गर कुछ खीस, पुत्र करता मन पावन ।। समझा खुद के कुछ सही गलत, या निभा रहा वो मात्र धर्म । नायक इंगित कुछ किये बिना, चुपचाप दिखाता राह चला - आदर्श करे इ'स्थापित वो, अनुसरण करे जग समझ मर्म ।। यादों का हसीं कारवाँ....!!! .ashok saluja . at यादें... कुछ कह लेता कुछ सुन लेता, गम के गाने भी गा लेता - खुशियाँ भी चुन चुन रखे रहे, मुस्काता है शर्माता है - जो रहे स्वस्थ खुशहाल सदा, वह सारी नियामत पा लेता ।। Fबवाल-ए-बालवाह खबा क्या चीज हो, सहता जग परिहास । कितना भी चैतन्य हो, तुम लेते हो फांस । तुम लेते हो फांस, शर्त की खाय कचौड़ी । नाड़ा देते काट, दूर की लाते कौड़ी । जौ-जौ आगर जगत, मिले ना तेरा अब्बा । खब्ती-याना दूर, गोल कर दे ना डब्बा ।। Gमेरे आस-पास कुछ बिखरा सा.......my dreams 'n' expressions.....याने मेरे दिल से सीधा कनेक्शनप्यार बूढ़ दिल मोंगरा, अमलताश की आग । लड़की को कर के विदा, चला बुझाय चराग ।। H“ सपन संजोते देखा ”अरुण कुमार निगम (हिंदी कवितायेँ)सपना अपना चुन लिया, करे नहीं पर यत्न । बिन प्रयत्न कैसे मिले, कोई अद्भुत रत्न । Iरिश्तेaahutiरिश्ते रूपी बेल को, डोर प्रेम-विश्वास ।स्वाभाविक अंदाज में, ले चलती आकाश । ले चलती आकाश, ख़ुशी के शबनम झिलमिल । मिलते नमी प्रकाश, सामने दिखती मंजिल । पर रविकर कुछ दुष्ट, तापते आग जलाकर । पाता है आनंद, बेल को जला तपा कर ।। गई किताबें हैं कहाँ, जाती झटका खाय । शादी उसकी क्या हुई, पुस्तक गईं लुटाय । पुस्तक गईं लुटाय, पुस्तकें सखी सहेली । बचपन से हुलसाय, साथ इनके ही खेली । शादी ख़ुशी मनाय, दर्द यह कैसे दाबे । वापस दो लौटाय, जहाँ भी गई किताबें ।। |
....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ... *समर्पण *...डा श्याम गुप्त *इन्द्रधनुष का कथ्य* .... डा श्याम गुप्त *इन्द्रधनुषी विचारों के दरवार में .*.. प्रोफ.वी बै ललिताम्बा . पूर्व प्रोफ. तुलनात्मक भाषा एवं संस्कृति , अहल्या देवी वि वि, इंदौर इन्द्रधनुष का यथार्थ.... मधुकर अस्थाना...नव गीतकार ..लखनऊ .. |
(5)गांधी ही मेरा बाप हैमै बचपन में सोचा करता था की राष्ट्रपिता क्या होता है ?? राष्ट्रपति क्या होता ?? शायद दोनों एक होते क्या , या शायद अलग अलग , तब इनमे अंतर क्या होता है ?? आखिर चक्कर क्या है रास्ट्रपिता का?? सुना था जिसका कोई नहीं होता उसका भगवान् होता है, तो क्या जो अवैध बच्चे होते हैं जिनके पास ब्रांडिंग नहीं होती कहीं उनके लिए कोंग्रेसियों ने गाँधी को रास्ट्रपिता बना हलाल तो नहीं कर दिया गया ?? |
आज गंगा को लेकर जन मानस जितना आंदोलित है शायद पहले कभी नहीं था। साधु संत ही नहीं आम जन भी अब गंगा की दारुण दशा को देख सड़कों पर आ गए हैं। लोग आमरण अनशन पर आमादा हैं। मगर गंगा के मुद्दे पर आज भावुकता के बजाय व्यावहारिक और गंभीर विमर्श की जरुरत है। (७-A)सिनेमा को नए रंग दे रही स्त्रियांकुमार राधारमणफ़िल्म जगत ‘सिनेमा महिलाओं के बस की बात नहीं है..’ साल 1913 में भारत में मोशन पिक्चर्स की शुरुआत के साथ इस धारणा ने भी पैठ बना ली थी। भारतीय सिनेमा पर यह पूर्वाग्रह लंबे समय तक हावी रहा। आलम यह था कि महिला पात्रों की भूमिका भी पुरुष निभाते। हालांकि भारतीय सिनेमा के शैशवकाल में ही फिल्म मोहिनी भस्मासुर में एक महिला कमलाबाई गोखले ने अभिनय कर नई शुरुआत की, लेकिन सिनेमा अब भी महिलाओं के लिए दूर की कौड़ी थी। कमलाबाई, चरित्र अभिनेता विक्रम गोखले की परदादी थीं, जिन्होंने बाद में कई फिल्मों में पुरुष किरदार भी निभाए। बाद में फिल्मों में महिलाओं के काम करने का सिलसिला बढ़ता गया और अब यह कोई नहीं कहता कि सिनेमा महिलाओं के बस की बात नहीं। ७-Bरेखा -राजनीति मे आने की सम्भावनाविजय माथुर क्रांति स्वर....
सुप्रसिद्ध फिल्म अभिनेत्री 'रेखा' किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं। उनके पिता सुप्रसिद्ध फिल्म अभिनेता शिवाजी गनेशन ने उनकी माता सुप्रसिद्ध फिल्म अभिनेत्री पुष्पावल्ली से विधिवत विवाह नहीं किया था। उन्हें पिता का सुख प्राप्त नहीं हुआ और न ही पिता का धन ही प्राप्त हुआ। कुल-खानदान से भी लाभ नहीं मिला और समाज से भी आलोचनाओ का सामना करना पड़ा। इतनी जानकारी पत्र-पत्रिकाओं मे छ्पी है। किन्तु ऐसा क्यों हुआ हम ज्योतिष के आधार पर देखेंगे। (8) बेडरूम लाइफ़ सेहत और उम्र पर असर डालती हैसोने पे सुहागा -तो दोस्तो, जितना जरूरी हफ्ते में 5 दिन ऑफिस में 'काम' करना है, उतना ही जरूरी हफ्ते में दो दिन बेडरूम में 'काम' करना है। (9) तीरिया..चरित्त्र देबो न जाने....दो दिन पहले छोटू का रिजल्ट आया था..आउटस्टैंडिंग। ग्रेडिंग सिस्टम की वजह से रिपोर्ट कार्ड पर रैंक तो नहीं लिखी थी लेकिन मैम ने ये जरूर कहा था कि तुम ही फस्ट हो। |
(10) तूफ़ानदिनकर जी -जीवन दर्पण -भाग –4 श्री भगवतीचरण वर्मा ने अंकित की है - कलाकार की हैसियत से दिनकर को मैं सबसे अधिक स्पष्ट और ईमानदार पाता हूँ. दिनकर अपनी भावनाओं की सीमा छोड़ने को कहीं भी तैयार नहीं, कहीं भी आरोपित विश्वासों एवं मान्यताओं का सहारा दिनकर ने नहीं लिया, दिनकर को तो संघर्षों से जैसे मोह था. (11) आंच-107हरीश प्रकाश गुप्तमनोज चीख-चीख कर जगा देती थी सोया आसमान । भर देती थी चूल्हे में पानी जेंव लो रोटी| मारलो काट कर डाल दो रमपतिया नही सहेगी कोई भी मनमानी । और यही कविता की ऊंचाई है जो उस स्त्री के साथ परवान चढी है जिसका चरित्र एक कोमल ह्रदय नारी का भी है और अन्याय का विरोध करती चंडिका का भी! रमपतिया, ओ अनपढ देहाती स्त्री काला अक्षर भैंस बराबर पर मुझे लगता है कि उस हर स्त्री को तुम्हारी ही जरूरत है जिसने तुम्हारी तरह नही जाना -समझा अपने आपको आज तक इस कविता की जो बात मुझे अच्छी लगी वह यह कि वह न तो ज़्यादा क्रांति की बात करती हैं, न चटपट मज़ेदार कविता की रचना ही। (१२) यूं बोली ज़िंदगीआ ज़िंदगी चल तुझसे कुछ बात करें खुले गगन तले दरख्त की छांव में कहीं एकांत की ठाँव में चल तुझसे कुछ बातें करें ज़रा बता तो ज़िंदगी - तू - सपनों और ख्वाहिशों को फंसा अपने भंवर में क्यों तोड़ देती है |
सबसे पहले हम पहुँचे। हो करके बेदम पहुँचे। हर चैनल में होड़ मची है, दिखलाने को गम पहुँचे। सब कहने का अधिकार है। चौथा-खम्भा क्यूँ बीमार है। गाँव में बेबस लोग तड़पते, बस दिल्ली का समाचार है। (१४) "सच्चे कवि कहलाओगे तब" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
छपते -छापतेएक खुशखबरी"हमारी नैनो" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') |
विस्तृत ,उत्कृष्ट चर्चा....बेहतरीन लिंक्स चयन ...
जवाब देंहटाएंबधाई एवं शुभकामनायें ...रविकर जी ...
उत्कृष्ट चर्चा...
जवाब देंहटाएंबधाई एवं शुभकामनायें !!!
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया बेहतरीन लिंक्स चयन .रविकर जी
जवाब देंहटाएंMY RECENT POST काव्यान्जलि ...: कवि,...
अहा!
जवाब देंहटाएंरविकर अब चर्चामंच पर
जवाब देंहटाएंमिसाईल लेकर आता है
सबको डराने के बाद चर्चामंच
सजाने बैठ जाता है
नये ब्लागो का समावेश कर
उत्साह बढ़ाता है
हर कोई आकर उसकी पीठ
थपथपाता है ।
विस्तृत चर्चा ... आभार
जवाब देंहटाएंविस्तृत चर्चा है................धीरे धीरे जाते हैं लिंक्स पर....
जवाब देंहटाएंहमारी रचना को शामिल करने का शुक्रिया सर.
सादर
अनु
सुन्दर गीतमय और गतिमय चर्चा।
जवाब देंहटाएंइस मंच मे स्थान देने हेतु 'रविकर'जी को धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंA rainbow of link... read " Sabzi Mahgi Hai naa" a good satire//
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा, मेरी रचना "गांधी ही मेरा बाप है " को शमी करने के लिए आभार :)
जवाब देंहटाएंबढ़िया सुन्दर पठनीय लिंकों से सजी चर्चा ... समयचक्र की पोस्ट को स्थान देने के लिए आभारी हूँ ...
जवाब देंहटाएंरविकर जी!
जवाब देंहटाएंआप बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं।
सुन्दर-सतरंगी चर्चा करने के लिए आभार!
चर्चामंच पर बहुत ही चुनिन्दा पोस्ट डाली हैं आपने. विशेषकर सरोकार ब्लॉग की "औरत और सब्जी" . भावभीनी कविता.
जवाब देंहटाएंआभार आपका !
जवाब देंहटाएंरविकर जी हमेशा अच्छी व जानदार चर्चा लगाते है, आज भी अपवाद नहीं है।
जवाब देंहटाएंbahut badiya links..saarthak charcha prastuti hetu aabhar!
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा
जवाब देंहटाएंis manch par rajbhasha se meri prastuti ko sthan diya. aabhar.
जवाब देंहटाएंany link bhi aakarshak hain.apki prayas ko naman.
सुन्दर चर्चा
जवाब देंहटाएंछाये रहें ब्लोग में जितने विषय-प्रपन्च
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव में ढाल के लाता चर्चामन्च ।
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