लखनऊ - क्लास VI स्टुडेंट ऐश्वर्या पराशर Right to Information Act के अंतर्गत प्रधानमंत्री जी से यह प्रश्न पूछ । Ministry of Home Affairs (MHA) to the National Archives of India (NAI) किसी के पास यह जवाब नहीं है --
ब्लॉग-जगत में दूसरी वर्षगांठ ....
Sunil Kumar at दिल की बातें
जी हाँ आज मैंने ब्लोगिंग के दो वर्ष पूरे कर लिए ,यह दो वर्ष कैसे बीते इसका पता ही नहीं चला । लिखना, पढ़ना और टिपियाना यही क्रम चलता रहा । कभी कभी अच्छी पंक्तियाँ, सुंदर अभिव्यक्ति ,बहुत खूब, मजेदार जैसी टिपण्णी करते करते ऊब जाता था मगर ब्लोगिंग की यह आवश्यकता हैं । इसी बीच बहुत से ब्लोगर से बातचीत भी हुई जैसे जाकिर अली रजनीश ,कुंवर कुसुमेश , विजय कुमार सपत्ति , चंद्रमौलेश्वर प्रशाद, शिखा दीपक सुमन लता पाटिल , रश्मि प्रभा और देवेन्द्र पाण्डेय इन दो वर्षों में मेरी प्रोग्रेस कैसी रही यह आप रिपोर्ट कार्ड देख कर बताएं । कुल पोस्ट १५१ ( एक सौ इक्यावन) ( किसी तरह .ख़त
venus****"ज़ोया" at चाँद की सहेली****
सौदागर भेजा करे, नियमित लम्बी किश्त ।
कश्ती जीवन की चले, चले जीविका वृत्त ।
चले जीविका वृत्त, वाह जोया सन्जोया ।
सुलगे सीली राख, अश्रु ने इन्हें भिगोया ।
उलाहना अंदाज, आपका है आकर्षक ।
देने पूर्ण हिसाब, सत्य पहुंचेगा भरसक ।।
बचपन में पी जा रही सोफ्ट ड्रिंक्स के तार जुड़े हैं दिल की बीमारियों से
साफ्ट ड्रिंक मीठा जहर, घुटे घोंटते घूट ।
लगता अमृत तुल्य यह, पी लो खुल्ली छूट ।
पी लो खुल्ली छूट , लूटता जा बंजारे ।
दुग्धपान के बाद, मिले ये नए सहारे ।
अगला लौकिक पान, मगर ना कर पायेगा ।
होता दिल बीमार, दाब ना सह पायेगा ।।
मां बाप का आदर करना सीखिए Manu means Adam
DR. ANWER JAMAL at Blog News
पुरखों के सम्मान से, जुडी हुई हर चीज ।
अति-पावन है पूज्य है, मानवता का बीज ।
मानवता का बीज, उड़ाना हँसी ना पगले ।
करे अगर यह कर्म, हँसेंगे मानव अगले ।
पढो लिखो इतिहास, पाँच शतकों के पहले ।
आदम-मनु हैं एक, बाप अपना भी कह ले ।।
चटकनीदेहली सजनी से मिलन, करता कष्ट कपाट । लौह-हृदय कब्जे लगे, देते अन्तर पाट । देते अन्तर पाट , दुष्ट गिट्टक इ'स्टापर । खलनायक बन टांग, अड़ा देते नित-वासर । रविकर बड़ी महान, हमारी छोट सिटकिनी । है सुधीर आभार, मिलाती देहली सजनी ।। |
माधवी शर्मा गुलेरी at उसने कहा था...
मन के भी*तर** **की** **यात्रा** **अनवरत** **है।** **कहना** **कठिन **है** ** कि** **यह** **अंतर्यात्रा** **कब** **और** **कैसे** **शुरू** **होती** **है पर **बाहर** **की** **यात्रा** **एक** **छोटे**-से** **क़दम** **से** **शुरू** **हो** जा**ती** **है।** **कभी, **किसी** **अनजान** **जगह** **पर **निरुद्देश्य ** **भटकने से हम वो पा जाते हैं जो दस किताबें पढ़कर नहीं पाते।
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जाट-देवता द्वारा प्रेषित दो लिंकGhrishneshwar Jyotirling / घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग: आस्था का सैलाब
जय घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मेरी पिछली पोस्ट में मैंने आपको अवगत कराया था औरंगाबाद तथा आसपास के दर्शनीय स्थलों से, और आइये अब मैं आपको लिए चलता हूँ औरंगाबाद के ही समीप स्थित घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर तथा एलोरा की प्रसिद्द गुफाओं के दर्शन कराने के लिए. जय घृष्णेश्वर अगले दिन सुबह जल्दी उठकर नहा धोकर हम निकल पड़े घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने के लिए. समय था सुबह के लगभग आठ बजे का, ठण्ड का मौसम था, और जनवरी माह की यह एक ठंडी सुबह थी.
एक और लिंक सफ़र है सुहानाएक सुनहरा सफ़र मनाली काद्वारा : रीतेश गुप्ता |
नाचो हे, नाचो, नटवर !
मनोज कुमार at राजभाषा हिंदी -
आप सब को अनामिका का सादर प्रणाम!
दिनकर जी को आवेश में आते देर नहीं लगती थी.
कोई आश्चर्य नहीं कि जीवन के उषःकाल में ही दिनकर जी जमीदारी प्रथा के विरूद्ध हो गए. जमींदारी प्रथा और जनतंत्र के खिलाफ इनकी कविताओं में जो कटुता व्यक्त हुई, उसके मूल में बहुत कुछ वैयक्तिक अनुभव ही हैं.
सन १९३३ ई. में इन्होने तांडव कविता लिखी, यह कविता इन्होने ख़ास तौर से वैद्यनाथ धाम (देवघर) जाकर, शंकर महादेव को सुनाई थी. परन्तु १९४९ में जब ये बाल-बच्चों को लेकर मंदिर में पहुंचे तो देखा कि वहां मिथिला की बहुत सी ग्रामीण स्त्रियाँ जल चढाने की प्रतीक्षा में खड़ी जाड़े से थर थर कांप रही थीं और पंडा उन्हें जल चढाने से रोके हुए था. पंडा अपने किसी सेठ यजमान की पूजा करवा रहा था और कहता था कि जब तक वह यजमान पूजा समाप्त नहीं कर लेता, मैं किसी को भी जल चढाने नहीं दूंगा. धर्म की छाती पर पूँजी का यह नंगा नाच था.
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....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...जो बोले सो कुंडी खोले ...एक नाटिका ...डा श्याम गुप्त ( नगर की एक सामाजिक संस्था की शाखा सभा की एक साधारण बैठक ....) दृश्य -एक सत्येन्द्र जी ( फोन पर)--हेलो रमेश जी ! आज शाखा सभा की बैठक है , एन्ज. रवि जी के यहाँ , चलेंगे ? रमेश जी -- हाँ ..हाँ ..चलेंगे, रमेश जी ने तो डिनर भी रखा है । जायेंगे...जायेंगे ..। |
आजकल पता नहीं क्यों लिखने से
मन कतराता है...घबराता है फिर उलझ-उलझ कर रह जाता है समझ नहीं आता कि क्या लिखूँ! कहां से शुरू करूँ और कहां ख़त्म विचारों का झंझावात जोशोख़रोश से |
अति-जोखिम का काम, करे जो वही सयाना-
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"ग़ज़ल-आशा शैली हिमाचली" (प्रस्तोता-डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")उच्चारण
♥ आज लूँ संवार ♥
मितवा मुस्काए देखो बन्दन वार
सुधि की तितली आई है मन के द्वार
झाड़-पोंछ पफेंक आई जीवन की कुण्ठा
घर की हर एक दिशा आज लूँ संवार
बरखा की रिमझिम है बून्दों का शोर
आया मधुमासों पर मादक निखार
वृक्षों पर चहकी है मैना मतवाली
जंगल में मोरों के नृत्य की झंकार
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रविकर फैजाबादी नया नाम है आया
जवाब देंहटाएंचटकाने पर वापिस चर्चामंच पर ले आया
कुछ अलग अलग चर्चा का पन्ना है बन आया
सबसे पहले "उल्लूक" टिप्पणी छापने चला आया।
आहा आहा !!
चिड़िया-घर का मैं दिखूं" "सब" का गधा प्रसाद |
जवाब देंहटाएंछुपा कर्म-गुण लिख दिया, रविकर फैजाबाद |
रविकर फैजाबाद , गदा से भारी लगता |
जुड़ा मूल से आज, कुशल व्यापारी लगता |
अब आएँगी खूब, टिप्पणी भारी भारी |
बाऊ-जी ही-इ-इ-इ, करी भैया तैयारी |
सादर
पहली टिप्पणी के लिए आभार ||
बहुत सुंदर प्रस्तुति,..नये उपनाम की बधाई ..
जवाब देंहटाएंMY RECENT POST...फुहार....: दो क्षणिकाऐ,...
विस्तृत और सार्थक चर्चा ...आभार
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट चयन..
जवाब देंहटाएंसार्थक सटीक छर्चा |अच्छी लिंक्स |
जवाब देंहटाएंआशा
आजकल पता नहीं क्यों मन कुछ भी लिखने से कतराता है
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा
जवाब देंहटाएंरोचक चर्चा
जवाब देंहटाएंचर्चा पे छाये रविकर ,
जवाब देंहटाएंब्लोगियंन कु हर्षाये रविकर ,
हरदम बांटे ज्ञान गधा खुद को बतलाये
ग्यानी झांके बगलें कुछ भी बोल न पायें . ,
बहुत सुंदर चर्चा
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा .
जवाब देंहटाएंbahut acchi links hain aaj to
जवाब देंहटाएंउपयोगी लिंकों के साथ बहुत सुन्दर चर्चा!
जवाब देंहटाएंआभार!
आज लौटे हैं सफ़र से,
जवाब देंहटाएंलौटकर देखी आपकी फ़नकारी
वाक़ई लाजवाब है आपकी पेशकश.
शुक्रिया !