कुछ विलुप्त होते ब्लॉग
हौसला बढ़ाइए
मात्र औपचारिकता ही सही, निभाइए ।।
कुछ अत्यंत प्रभावी पोस्ट प्रस्तुत नहीं कर पाया हूँ ।
विद्वान क्षमा करें ।।
फागुन और श्रावणी
फागुन से मन-श्रावणी, अस्त व्यस्त संत्रस्त
भूली भटकी घूमती, मदन बाण से ग्रस्त ।
आश्विन और ज्येष्ठ
आश्विन की शीतल झलक, ज्येष्ठ मास को भाय।
नैना तपते रक्त से, पर आश्विन इठलाय ।
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(२)मुक्तक
सतीश शर्मा 'यशोमद '
मैं मलबे से मकान बनाता हूँ
आदमी को इंसान बनाता हूँ .
अगर अपनी पर आ जाऊं तो -
पत्थर को भगवान बनाता हूँ .
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(३अ से स)
अपने पर हँसना जो सीखे, रविकर देता उसे बधाई-अअतिथि देवो भव :सुशील कुमार जोशी "उल्लूक टाईम्स " -
घर में बासी चाव से, चाबेगा इन्सान ।
बिना दूध की चाय भी, पीता अमृत जान ।
पीता अमृत जान, नारियल वाली खटिया ।
सोता चद्दर तान, मगर बाहर गिट-पिटिया ।
बन जाता भगवान्, पहुँच जाता जो काशी ।
लेना कम एक्जाम, चाहता बढ़िया राशी ।।
बमहामूर्ख मेलादेवेन्द्र पाण्डेय बेचैन आत्माविद्वानों से डर लगता है , उनकी बात समझना मुश्किल ।आशु-कवि कह देते पहले, भटकाते फिर पंडित बे-दिल । अच्छा है सतसंग मूर्ख का, बन्दर तो नकुना ही काटे - नहीं चढ़ाता चने झाड पर, हंसकर बोझिल पल भी बांटे । सदा जरुरत पर सुनता है, उल्लू गधा कहो या रविकर मीन-मेख न कभी निकाले, आज्ञा-पालन को वह तत्पर । प्रकृति-प्रदत्त सभी औषधि में, हँसना सबसे बड़ी दवाई । अपने पर हँसना जो सीखे, रविकर देता उसे बधाई ।। सतोता और कौवा !संतोष त्रिवेदी बैसवारी baiswari
सुन्दर से ये चिन्ह दो, खींच गए इक चित्र ।
रंगबाज की जीत है, नहीं राम जी मित्र ।
पिंजरे में ही काट, वक्त ये हर-पल गिन गिन ।
कौआ सत्ताधीश, रखे अति-हिंसक अंतर ।
रटे राम का नाम, रहेगा तोता सुन्दर ।।
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(४)
क्या निर्धारित सीमा के बाद हटेंगे अतिथि अध्यापक ?
| - अतिथि अध्यापकों को सुप्रीम कोर्ट द्वारा नई भर्ती तक बने रहने की राहत मिल गई है । यह राहत अनिवार्य लग रही थी क्योंकि सरकार ने नई भर्ती के लिए कुछ समय माँगा... प्रस्तुति-दिलबाग विर्क |
तुम्हें चलना है
मेरे नन्हें शव्दों
तुम्हें कागज पर उतर कर
विचलित नहीं होना !
तुम्हें चलना है ! तुम्हें चलना है!
तुम्हें चलना है ! तुम्हें चलना है !
..........रचना - राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी'
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(६)
मारीशस का हिंदी साहित्यएक कविता
आदत पड़ चुकी है
तेरे विचारों और उद्घोषणाओं का बोझ लादने की मेरी सोच पर है तेरा नियंत्रण मेरे निर्णय |
(७)नितीश कुमार 's ब्लॉग''एक वादा निभाया... भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग जारी रहेगी''
बीते विधान सभा चुनावों के बाद यह पहला अवसर है जब इस ब्लॉग के माध्यम से मैं अपने विचार आपसे साझा कर रहा हूँ ।
सबसे पहले बिहारवासियों को धन्यवाद देना चाहूँगा, जिन्होंने हमारी सरकार को खुले दिल से बेमिसाल समर्थन दिया और अपनी निष्ठा व्यक्त की । बिगत कुछ महिनों में दुनियॉं के विभिन्न कोने से लोगों ने यह जिज्ञासा प्रकट की मैंने ब्लॉग लेखन को विराम क्यों दे दिया । |
(८)बोधिवृक्षस्कूल या यातना गृह
पल्लू में एक मासूम की बेरहम पिटाई का मामला सामने आया है। जयपुर में, और
अन्य जगहों से पहले भी इस तरह की घटनाएँ देखने-सुनने में आती रही हैं। पता
नहीं हम लोग सभी कब होंगे और लोकतान्त्रिक तो पता नहीं होंगे भी या
नहीं...मासूम बच्चे को पीटते हुए हमारे कथित गुरुजनों के हाथ किसी शर्म,
दबाव या अदालतों के आदेशों से भी रुकने में नहीं आ रहे।
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(९)
लिली कर्मकारभारतीय मीडिया की क्या भूमिका है , इस पर भी सवाल उठाना बेहद जरुरी है |
भारतीय मीडिया की क्या भूमिका है , इस पर भी सवाल उठाना बेहद जरुरी है | हमारे लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाने वाला यह भारतीय मीडिया
क्या सच्च में लोकतंत्र का एक मजबूत स्तम्भ है ?? और क्या हमें इसकी
निष्पक्षता पर पूर्ण विश्वास करना चाहिये ?? ये सवाल मेरे नहीं है , ये
सवाल है देश की आम जनता के |
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(१०)त्रिवेणीदर्पण देखूँ -मन का पंछी
प्रो. दविंद्र कौर सिद्धू
दर्पण देखूँ
झूठ- फरेब- दगा
किया ज्यों उल्टा
चेहरा भी फरेबी
कहीं वो मैं तो नहीं ।
(११)एक लम्हा था (ताँका)
डॉ रमा द्विवेदी
दीप लघु हूँ
अन्धकार पीता हूँ प्रकाश देता स्वयं जलकर भी खुशियाँ बाँटता हूँ । |
(१२)Dil se..कोई ख़ास नहीं
कोई तुम से पूछे कौन हूँ मैं
तुम कह देना ?
कोई ख़ास नहीं ?
एक दोस्त है कच्चा पक्का सा एक झूट है आधा साचा सा
जज़्बात को ढांपे एक पर्दा बस एक बहाना अच्छा सा
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(१३)चेहरे! कविता पर भीकविताअजीब,गरीब, और हाँ, अजीबो गरीब! मुरझाये, कुम्हलाये, हर्षाये, घबराये, शर्माये, हसींन, कमीन, बेहतरीन, नये, पुराने जाने, पहचाने, और हाँ ’कुछ कुछ’ जाने पहचाने, अन्जाने, बेगाने, दीवाने काले-गोरे, और कुछ न काले न गोरे, कुछ कि आँखों में डोरे, |
(१४)
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(१५)
मशहूर गायक कैलाश खेर से फिल्म लेखक/निर्देशक पंकज शुक्ल की यह बातचीत उनके ब्लॉग से ली गयी है. इनसे आप pankajshuklaa@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं.
कैलाश खेर की गायिकी की दुनिया दीवानी है। उनके गाए अल्लाह के बंदे को
संगीतकार ए आर रहमान तक अपना पसंदीदा गीत मानते हैं। उनके कैलासा बैंड ने
पिछले आठ साल में दुनिया भर में 800 से ऊपर कंसर्ट किए हैं। वह नौजवानों
में एक हौसला, एक विचार, एक संस्कृति पनपती देखना चाहते हैं। एक ऐसी परंपरा
जिसमें देश सर्वोपरि हो। ---
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हैं सब एक-से ; नाम क्या अलहदा दें
फ़रेबो-दग़ा मक्र मतलबपरस्ती
यही सब जहां है तो तीली लगादें
कहां खो गए लोग कहते थे जो
यूं-
‘चलो ज़िंदगी को मुहब्बत बनादें’
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(१७)बच्चों ने भी बचपन पीछे छोड़ दिया ...स्वप्न मेरे..काँटों की परवाह कहाँ वो करते हैं पुरखे हम से दूर कहाँ रह पाते हैं बच्चों की परछाई में ही दिखते हैं |
(१८)
आशा सक्सेना
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(२०)
व्यंग्य - बाण |
मेरा जीवन अब तक
30 जून 1982 को कवि श्री चन्द्रपाल शर्मा 'रसिक हाथरसी की ज्येष्ठ पुत्री ''शशि'' जो विवाह पूर्व लेख व कहानियाँ लिखा करती थी के साथ प्रणय हो जाने पर हम दोनों अपनी-अपनी रचनायें एक दूसरे को दिखाकर एवं आवश्यक हुआ तो उचित संशोधन करके पत्र-पत्रिकाओं को भेजने लगे।शादी के बाद अपने नाम के साथ पत्नी का नाम जोड़ लेने पर गुड़गाँव के मेरे साहित्यकार मित्र श्री ज्ञानप्रकाश विवेक ने काफी बुरा महसूस किया, मुझे लताड़ा भी।
सन 1978 से 85 तक का दौर ऐसा रहा जब प्रत्येक महीने देश की व विदेश की भी (नवनीत,कादम्बिनी,सारिका,साप्ता.हिन्दुस्तान,धर्मयुग, अमर उजाला, दै.जागरण,विश्वविवेक एवंबच्चों की पत्रिका चंपक, बालक,आदि) कम से कम 6-7 पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ छपती रहीं, फिर सन 1986 में पत्नी का सीधा हिस्सा सिर से पैर तकपक्षाघात का शिकार हो जाने के कारण डाक्टरों के पास भागा दौड़ी में लेखन प्रभावित हुआ।
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जवाब देंहटाएं♥
आदरणीय रविकर जी
सादर नमन !
चर्चा मंच में
शस्वरं को एक बार फिर याद रखने के लिए आभारी हूं !
बहुत श्रम-साधना से , लगन से आपने आज की चर्चा में जिन ब्लॉगों को सम्मिलित किया है… मेरा पूरा प्रयास रहेगा इनमें से अधिकाधिक ब्लॉग्स तक पहुंच कर बात करने का …
चर्चा मंच के माध्यम से शस्वरं पर आने वाले सभी मित्रों का हृदय से स्वागत है !
शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
प्यार भरा आभार !!!
जवाब देंहटाएं़़़़़़
ताज्जुब होता है
आप की नाक की
संवेदनशीलता पर
कैसे सूंघते चले जाते हैं
इतनी सारी महकती
अगरबत्तियां आप
हमारे लिये कहाँ कहाँ
से ढूंड कर ले आते हैं
चलिये एक एक करके जलायेंगे
पर सुनिये क्या एक बात
हमें भी समझायेंगे
ये कोयलों की कूक के बीच
मुझ कौवे की काँव काँव
भी आप अपने झोले में
काहे को रख लाते हैं।
(बीबी पूछ रही थी)
वाह बहुत उम्दा प्रस्तुति! बधाई हो....
जवाब देंहटाएंअब शायद 3-4 दिन किसी भी ब्लॉग पर आना न हो पाये!
उत्तराखण्ड सरकार में दायित्व पाने के लिए भाग-दौड़ में लगा हूँ!
बृहस्पतिवार-शुक्रवार को दिल्ली में ही रहूँगा!
बेहतरीन चर्चा की प्रस्तुति विभिन्न आयामों विधाओं का सफल संयोजन प्रभावशाली है /शुभकामनाये जी /
जवाब देंहटाएंकाँव काँव प्रात: करे, मतलब कि मेहमान |
जवाब देंहटाएंघरे हमारे आ रहे, शायद मामा जान |
शायद मामा जान, सुनो बच्चों की अम्मा |
भाई तेरी शान, मानती मुझे निकम्मा |
बोले यह उल्लूक, समय जब होता गड़बड़ |
सबसे बोलो मीठ, करो पर हम पर बड़ बड़ ||
सादर भाभी जी के चरणों में प्रस्तुत करें |
हा हा हा हा
बहुत ही बढि़या लिंक्स का संयोजन किया है आपने ...आभार ।
जवाब देंहटाएंरोचक चर्चा……खूबसूरत लिंक संयोजन
जवाब देंहटाएंरोचक चर्चा…
जवाब देंहटाएंलाजवाब चर्चा रविकर जी ... शुक्रिया मुझे भी जगह देने की ...
जवाब देंहटाएंbahut badiya links ke sath sarthak charcha prastuti hetu aabhar!
जवाब देंहटाएंरंगविरंगी चर्चा.
जवाब देंहटाएंआभार रविकर भाई :-)
जवाब देंहटाएंआदरणीय रविकर जी इन सतरंगी रचनाओं कलियों फूलों के चुनाव में आप ने जो श्रम किया और हिंदी साहित्य को उच्च शिखर पर ले चलने का जो जज्बा और काबिलियत आप में भरी है उसे भ्रमर का सलाम ...
जवाब देंहटाएंआप ने मेरे ब्लॉग से भी ---यहीं खिलेंगे फूल - को चुना --मन अभिभूत हुआ आभार
भ्रमर ५
भ्रमर का दर्द और दर्पण
कुछ व्यस्तता के कारण जल्दी ब्लॉग पर नहीं आ सकी क्षमा चाहती हूँ मेरी पोस्ट शामिल करने के लिए आभार |
जवाब देंहटाएंआशा
रविकर जी बहुत बहुत धन्यवाद...मेरी पोस्ट का चयन करने के लिए...वक़्त देने के लिए..और ....सराहना के साथ साथ जो...आपने साथ में कविता रची हे...वो अपने आप में ही बहुत खूबसूरत हे ...बहुत खूबसूरती भरे अंदाज़ में आपने लीनक्स दिए हैं...बहुत अच्चा लगा........सभी पर नज़र डालना अभी जरा मुश्किल हे....हाँ धीरे धीरे सब को बांचती हूँ
जवाब देंहटाएंफिर से धन्यवाद
इस अदब की महफ़िल के काबिल नहीं हूँ,आ गया हूँ,
जवाब देंहटाएंगर्दे बे मौसम-ए- मानिंद यहाँ गहरा गया हूँ!
रविकर जी, आपको दिल से धन्यवाद मुझे इस मंच तक लाने के लिये, आशा है विलम्ब से यहाँ आकर सब सुधी पाठकों का आभार करने के लिये भी माफ़ी मिल ही जायेगी। आभार!