गुरुवर के आदेश से , मंच रहा मैं साज ।
निपटाने दिल्ली गये, एक जरुरी काज ।
एक जरुरी काज, बधाई अग्रिम सादर ।
मिले सफलता आज, सुनाएँ जल्दी आकर ।
रविकर रहा पुकार, कृपा कर बंदापरवर ।
अर्जी तेरे द्वार, सफल हों मेरे गुरुवर ।।
स्वप्न रहस्य -सतीश सक्सेना
*अली सर से आज फोन पर बात करते हुए उनके नए लेख की चर्चा हुई जिसमें
उन्होंने किशोरावस्था में किसी विदेशी लड़की को स्वप्न में देखा था और उसका
चेहरा मोहरा और आकृति आज भी उन्हें याद है !
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palash "पलाश"क्या पता कल..............Who can see tomorrow
आज जो है संग तेरे, उनके साथ जी लो जिन्दगी,
क्या पता कल उनसे कभी, फिर मुलाकात हो कि ना हो....
राह में काँटें मिले तो भी रुको नही, बढते ही चलो,
क्या पता कल मंजिल को तेरा इन्तजार हो कि ना हो...
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ब्लॉग जगत की बड़ी शख्सियत गुरदेव समीर लाल.....संजय भास्कर |
याद रखो न्याय की कश्ती रेत पे भी चल जाती है !!गिरीश बिल्लोरे "मुकुल"(गिरीश"मुकुल") मिसफिट Misfit
आज़
किसी ने शाम तुम्हारी
घुप्प
अंधेरों से नहला दी
तुमने
तो चेहरे पे अपने,
रंजिश
की दुक़ान सजा ली ?
मीत
मेरे तुम नज़र बचाकर
छिप
के क्यों कर दूर खड़े हो
संवादों
की देहरी पर तुम
समझ
गया मज़बूर बड़े हो ..!!
षड़यंत्रों
का हिस्सा बनके
तुमको
क्या मिल जाएगा
मेरे
हिस्से मेरी सांसें..
किसका
क्या लुट जायेगा …?
चलो
देखते हैं ये अनबन
किधर
किधर ले जाती है..?
याद
रखो न्याय की कश्ती
रेत
पे भी चल जाती है !! |
याद आ गया कोई ....
मैं लगा रहा था उनको गले
वो बना रहें थे ,मुझसे दुरी
मेरी तो फ़ितरत ही ऐसी है
होगी कुछ उनकी भी मज़बूरी |
----अशोक"अकेला" |
रुनझुनपहला ज्योतिर्लिंग दर्शन....
आज टी.वी. पर मैं एक कार्यक्रम देख रही थी- "देवों के देव महादेव" तो
अचानक मुझे शंकर भगवान से जुड़ी एक कहानी याद आ गई... मैंने सोचा आप सब से
ज़रूर शेयर करूँगी... पता है कौन सी कहानी....बताती हूँ....
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बनता जाय लबार, गाँठ जिभ्या में बाँधों -यात्रानामा: समय की धार में सब बह गयाsatish sharma 'yashomad' at यात्रानामा -
फुर्सत जीवन में कहाँ, बहते रहे अबाध |
बहने से ज्यादा मिला, ईश्वर भक्ति अगाध |
ईश्वर भक्ति अगाध, रास्ते ढेर दिखाते ।
उड़कर आऊं पास, छेकते रिश्ते नाते ।
स्वार्थ सिद्धि का योग, पूर कर उनकी हसरत ।
टिप्पण पाऊं ढेर, मिले न हमको फुर्सत ।।
सब्ज़ियों के प्रकार और पोषक तत्वकुमार राधारमण at स्वास्थ्य-सबके लिए
सब्जी के संसार पर, डाली राधा दृष्टि ।
पौष्टिक व स्वादिस्ट है, चखते कृष्णा सृष्टि ।।
भाई मेरे ! मरो नहीं !Dr.J.P.Tiwari at pragyan-vigyan
मरने से ज्यादा कठिन, जीना इस संसार ।
करे पलायन लोक से, होगा न उद्धार ।
होगा न उद्धार, जरा पर-हित तो साधो ।
बनता जाय लबार, गाँठ जिभ्या में बाँधों ।
फैले सत्य "प्रकाश", स्वयं पर "जय" करने से ।
होय लोक-कल्याण, बुराई के मरने से ।
कविता : विज्ञान के विद्यार्थी की प्रेम कविताधर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’ के कल्पनालोक में आपका स्वागत है -
परखनली में दीखता, तात्विक प्रेम प्रसाद ।
दहन-गहन लौ कीजिये, सरस द्रव्य के बाद ।
सरस द्रव्य के बाद, देखते रहो रिएक्शन ।
धुवाँ जलाये आँख, दूर कर दीजै तत्क्षण ।
और अगर स्वादिष्ट, मिष्ट सी आये ख़ुश्बू ।
फील्ड वर्क प्रोजेक्ट, गाड़ दे तम्बू-बम्बू ।।
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एक मनमोहक रपट
जाट देवता द्वारा प्रेषित लिंक ।।
और वह मरने कि हद तक जिन्दा रहा!!PD at मेरी छोटी सी दुनिया
आय-हाय इस दर्द को, काहे रहे उभार ।
आशिक शायर बन गया, पड़ी वक्त की मार ।
पड़ी वक्त की मार, बदलता जीवन पाला ।
मरने की हद उफ्फ़, लगा किस्मत पर ताला ।
ढोता पल-पल स्वयं, आज तक लाश सर्द को ।
पट्टा कर दे बेंच, दफ़न कर सकूँ दर्द को ।।
कुछ कुछ की कोशिश करें, कुछ न कुछ हो जाय ।
दुनिया कुछ समझे तभी, कुछ कर व्यक्ति दिखाय ।
मनोज पटेल की एक जबरदस्त प्रस्तुति
वेरा पावलोवा की नोटबुक सेपढ़ते-पढ़ते -
(१)
कविता होती तब शुरू, जब शंकित भवितव्य ।
पाठक कवि के बीच में, सब कुछ हो शंकितव्य ।।
(२)
चार लाख अंडाणु को, रखती इक नवजात ।
पहले से ही देह में, कविता आश्रय पात ।।
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क्या है ग्लाईकीमिक इंडेक्स ? |
लोफर..... लघु कथा ........डा श्याम गुप्त...'एक ब्रेड देना ।' दूकान पर बैठे हुए सुन्दर ने ब्रेड देते हुए कहा ,' पांच आने ।' 'लो, तीन आने लुटाओ ।' अठन्नी देते हुए रूपल ने कहा । लुटाओ या लौटाओ, सुन्दर ने उस के चहरे की तरफ घूर कर देखते हुए पैसे उसके हाथ पर रख दिए । केपस्टन की सिगरेट फूंकना, उजले कपडे पहनना, लड़के लड़कियां अंग्रेज़ी स्कूल में ही पढ़ते थे व अंग्रेज़ी में बोलने में ही शान समझते थे । |
मैं तो सपाट सीधी सी एक डाली थी
जो न झुकी, न टूटी थी कभी
उम्र भी न झुका सकी थी मुझे
आसमां को छूने की जिद्द में
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प्रस्तुति
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)
उच्चारण
इन्द्र बहादुर सेन, ‘कुँवर कान्त’ की एक रचना
♥♥ सौन्दर्य बोध ♥♥
शृंगार जितना भी
किया है तुमने...
वह तुम्हारी वास्तविक
सुन्दरता से
बहुत कम है।
मैं जानता हूँ
कि, तुम्हारा हृदय...
सागर से भी गहरा है।
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क्या क्या खिलाती है?क्या क्या खिलाती है? न पूछो आप हमसे औरतें क्या क्या खिलाती है ये खुद गुल है,मगर फिर भी,हजारों गुल खिलाती है हसीं हैं,चाँद सा चेहरा,ये मेक अप कर खिलाती है अदा से जब ये चलती है,कमर को बल खिलाती है ख़ुशी में,प्यार में,जब झूम के ये खिलखिलाती है चमक आँखों में आ जाती,हमारे दिल खिलाती है करो शादी अगर तो सात ये फेरे खिलाती है किसी वीरान घर को भी ,चमन सा ये खिलाती है पका कर दो वख्त ,ये मर्द को ,खाना खिलाती है जो बच्चे तंग करते,उनको ,रोज़ाना खिलाती है कभी गुस्सा खिलाती है,कभी धमकी खिलाती है जरा सी बात ना मानो,तो बेलन की खिलाती है कभी होली खिलाती है,कभी गोली खिलाती है ये कडवे डोज़ भी हमको,बनी भो.. |
मेरे हमसफ़र उदास न हो
साहिर लुधियानवी Mukesh Bhalse - मेरे दिल की आवाज़मेरे नदीम मेरे हमसफ़र उदास न हो कठिन सही तेरी मंजिल मगर उदास न हो कदम कदम पे चट्टानें खडी रहें लेकिन जो चल निकले हैं दरिया तो फिर नहीं रुकते हवाएँ कितना भी टकराएँ आँधियाँ बनकर मगर घटाओं के परचम कभी नहीं झुकते मेरे नदीम मेरे हमसफ़र ...... |
घिर बदरा कारे...Amrita Tanmay at Amrita Tanmayधरा करे विलाप पड़ गयीं दरारें सूखे ओंठ सारे उड़ रहीं धूल मूर्झा गये फूल चांदनी शब् गुजार दी यूं ही जलकर हमनेDr.Ashutosh Mishra "Ashu" at My Unveil Emotions -
हमको दुनिया में ग़मों की ही सौगात मिली
ख्वाइश-ए-गुल थी, खारों की बरसात मिली चांदनी शब् गुजार दी यूं ही जलकर हमने अब्र में चाँद छुपा , तारों की बारात मिली |
तू यूं ही सजा चर्चा -ए -लिंक ,
जवाब देंहटाएंहम रातों को जागेंगे रोज़ रोज़ .
आज भी बहुआयामी चर्चा |
जवाब देंहटाएंआशा
बहुत बढिया! अच्छे लिंक, सुन्दर चर्चा, आभार!
जवाब देंहटाएंफुलवारी है आज की न्यारी
जवाब देंहटाएंमधुमक्खियाँ और भवँर भी
सज रही है एक एक क्यारी
उल्लूक कौने में रहा सँवर भी।
़़़़़
आभार ! निहारते रहेंगे दिन भर बार बार ।
some of the likns are intresting, some are informative and some are heart touching.. very balanced charchaa..
जवाब देंहटाएंalso thanks for inluding me ....
दिन में कैसी है नजर, धूप में होगी चूक |
जवाब देंहटाएंगधा सम्भाले दिन सकल, मूक रहे उल्लूक |
मूक रहे उल्लूक , रात में जागना भैया |
दिन में आँखें मीच, रत भर जागें पढ़ैया |
ही इ इ गदाप्रसाद, बोझ ढोने में माहिर |
मिले आपका प्यार, करूँ मैं भी जग-जाहिर ||
मूक रहे उल्लूक , रात में जगना भैया |
जवाब देंहटाएंदिन में आँखें मीच, रात भर जगें पढ़ैया |
आज की चर्चा तो बहुत रोचक ढंग से की है!
जवाब देंहटाएंआभार!
aaj ki charcha bahut acchi hai. sabhi link shandar hai
जवाब देंहटाएंसार्थक सुन्दर चर्चा, आभार रविकर भाई!!
जवाब देंहटाएंअतीव सुन्दर
जवाब देंहटाएंआभार आपका !
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढिया लिंक्स का संयोजन किया है आपने ...आभार ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे लिंक हैं, मुझे शामिल करने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंबहत सुन्दर लिंक्स ....रोचक चर्चा...
जवाब देंहटाएंथैंक्यू रविकर अंकल मुझे इस चर्चा में शामिल करने के लिए....बाप रे!!! कितने सारे लिंक्स !!!... मैं तो सारे पढ़ भी नहीं पाऊँगी... और शायद ये सब मेरे समझ में भी न आयें लेकिन हां राजस्थान की सैर तो मैंने कर ली बहुत मज़ा आया... बहुत इंट्रेस्टिंग थी ये सैर... अभी देखती हूँ मुझे और क्या-क्या पसंद आयेगा.... एक बार फिर ढेर सारा थैंक्यू!!!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लिंक्स के साथ सार्थक चर्चा प्रस्तुति हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंअच्छी वार्ता... बहुत अच्छे लिंक... हमारी रचना को स्थान देने के लिए आभार आपका...
जवाब देंहटाएंरोचक चर्चा ..मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार आपका...
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा.. आभार...
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