टिप्पणी : यह चर्चा 23-8-2012 को लगाईं गई ।।
हास्यफुहारतुम रूठा न करो मेरी जान निकल जाएगी
बड़ा मस्त अंदाज है, सीधी साधी बात |
अट्ठाहास यह मुक्त है, मुफ्त मिली सौगात | मुफ्त मिली सौगात, डाक्टर हों या भगवन | करिए मत नाराज, कभी दोनों को श्रीमन | भगवन गर नाराज, पड़े डाक्टर के द्वारे | डाक्टर गर नाराज, हुए भगवन के प्यारे|| |
धन्य-धन्य भाग्य तेरे यदुरानी ,तुझको मेरा शत-शत नमन
यदुरानी तू धन्य है, धन्य हुआ गोपाल ।
दही-मथानी से रही, माखन प्रेम निकाल ।
माखन प्रेम निकाल, खाय के गया सकाले ।
ग्वालिन खड़ी निढाल, श्याम माखन जब खाले ।
जकड कृष्ण को लाय, पड़े दो दही मथानी ।
बस नितम्ब सहलाय, हँसे गोपी यदुरानी ।। |
खुद को बांधा है शब्दों के दायरे में - - संजय भास्कर
संजय भास्कर at आदत...मुस्कुराने की -
बड़ा कठिन यह काम है , फिर भी साधूवाद | करे जो अपना आकलन , वही बड़ा उस्ताद | वही बड़ा उस्ताद, दाद देता है रविकर | रच ले तू विंदास, कुशल से चले सफ़र पर | मात-पिता आशीष, आपकी सुधी कामना | हो जावे परिपूर्ण, सत्य का करो सामना || |
आए तुम याद मुझे --जिंदगी के ३६ साल बाद --महत्वपूर्ण है जिंदगी, घर के दर-दीवार | छत्तीस से विछुड़े मगर, अब तिरसठ सट प्यार | अब तिरसठ सट प्यार, शिला पर लिखी कहानी | वह खिडकी संसार,दिखाए डगर जवानी | आठ साल की ज्येष्ठ, मगर पहला था चक्कर | चल नाले में डाल, सुझाता है यह रविकर || |
जीने-मरने में क्या पड़ा है, पर कहने-सुनने...
यादें....ashok saluja .
यादें... मौत-जिंदगी हास्य-व्यंग, क्रमश: साँझ- विकाल । क्रमश: साँझ- विकाल, मस्त होकर सब झूमें। देते व्यथा निकाल, दोस्त सब हर्षित घूमें । पर्दा गिरता अंत, बिछ्ड़ते पात्र-पात्रा । पर चलती निर्बाध, मनोरंजक शुभ यात्रा ।। |
पहियेदेवेन्द्र पाण्डेयबेचैन आत्मा वैचारिक पहिये चले, सधा-संतुलित वेग | प्रगट करें पहिये सही, ऊँह उनमद उद्वेग | ऊँह उनमद उद्वेग, वेग बढ़ता ही जाए | समय फिसलता तेज, मनुज भागे भरमाये | बिन पहियों के सफ़र, करे कंधे पर लंबा | रहे न चक्कर शेष , कृपा कर देना अम्बा || |
"हमारे घर में रहते हैं, हमें चूना लगाते हैं" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
सुन्दर प्रस्तुति आपकी, मनभावन उत्कृष्ट |
स्वीकारो शुभकामना, अति-रुचिकर है पृष्ट | अति-रुचिकर है पृष्ट, सृष्ट की रीत पुरानी | कहें गधे को बाप, नहीं यह गलत बयानी | करे आर्त आलाप, बुद्धि फिर नाहक खरचे || |
M VERMA
जज़्बात
वर-माँ का मिल जाय तो, जीवन सुफल कहाय |
वर्मा जी की कवितई, दिल गहरे छू जाय | दिल गहरे छू जाय, खाय के इन्नर मीठा | रोप रहे हैं धान, चमकते बारिस दीठा | बापू को इस बार, घुमाना दिल्ली भैया | बरधा जस हलकान, मिले तब कहीं रुपैया || |
जिद्दी सिलवटें
संगीता स्वरुप ( गीत )
सौ जी.बी. मेमोरियाँ, दस न होंय इरेज |
रोम-रैम में बाँट दे, कुछ ही कोरे पेज | कुछ ही कोरे पेज, दाग कुछ अच्छे दीदी | रखिये इन्हें सहेज, बढे इनसे उम्मीदी | रविकर का यह ख्याल, किया जीवन में जैसा | रखे साल दर साल, सही मेमोरी वैसा | |
अच्छी नींद के लिए....
Kumar Radharaman
स्वास्थ्य
बरसे धन-दौलत सकल, बचे नहीं घर ठौर |
नींद रूठ जाए विकल, हजम नहीं दो कौर | हजम नहीं दो कौर, गौर करवाते भैया | बड़े रोग का दौर, काम का नहीं रुपैया | करिए नित व्यायाम, गर्म पानी से न्याहो | मिले पूर्ण विश्राम, राधा-कृष्ण सराहो |। |
आज अमरीका भर में नेशनल
veerubhai
एकाधिक से यौनकर्म, ड्रग करते इंजेक्ट ।
बाई-सेक्सुयल मैन गे, करिए इन्हें सेलेक्ट ।
करिए इन्हें सेलेक्ट, जांच करवाओ इनकी ।
केस यही परफेक्ट, जान जोखिम में जिनकी ।
एच. आई. वी. प्लस, जागरूक बनो नागरिक ।
वफादार हो मित्र , नहीं संगी एकाधिक । |
गुलदस्ते में राष्ट्रपति..ZEAL at ZEALखरी खरी कहती रहे, खर खर यह खुर्रैट । दुष्ट-भेड़ियों से गले, मिलते चौबिस रैट । मिलते चौबिस रैट, यही दोषी है सच्चे । हो सामूहिक कत्ल, मरे जो बच्ची-बच्चे । ईश्वर करना माफ़, इन्हें यह नहीं पता है । बुद्धी से कंगाल, हमारी बड़ी खता है ।। |
सच कहो...Amrita Tanmay
तन्मय होकर के सुनो, अट्ठारह अध्याय |
भेद खोलता हूँ सकल, रहे कृष्ण घबराय | रहे कृष्ण घबराय, सीध अर्जुन को पाया | बेचारा असहाय, बुद्धि से ख़ूब भरमाया | एक एक करतूत, देखता जाए संजय | गोपी जस असहाय, नहीं कृष्णा ये तन्मय || |
हगने हगने मे अंतरArunesh c dave at अष्टावक्र
सेंट्रलाइज ए सी लगे, चकाचौंध से लैस ।
शौचालय में हग रहे, मंत्री करते ऐश ।
मंत्री करते ऐश, गोडसे नाम धरोगे ।
बापू वादी पैंट, बहुत सी गील करोगे ।
रविकर एक सुझाव, अजादी दो हगने की ।
खाद बने या खेत, बात तो है लगने की ।। |
आप मुड़ कर न देखते
नीरज गोस्वामी
धीरे से अपनी कहे, नीरज रविकर-मित्र | चींखे-चिल्लायें नहीं, खींचे रुचिकर चित्र | खींचे रुचिकर चित्र, पलट कर ताके कोई | हालत होय विचित्र, राम-जी सिय की सोई | पर मैं का मद आज, कलेजा हम का चीरे | कभी रहा था नाज, भूलता धीरे धीरे || |
हवन का ...प्रयोजन.....!!
Anupama Tripathi
anupama's sukrity. वाह वाह अनुपम हवन, किन्तु प्रयोजन भूल । आँख धुवें से त्रस्त है, फिर भी झोंके धूल । फिर भी झोंके धूल , मूल में अहम् संभारे । सुकृति का शुभ फूल, व्यर्थ ही ॐ उचारे । अहम् जलाए अग्नि, तभी तो बात बनेगी । आत्मा की पुरजोर, ईश से सदा छनेगी ।। |
कमल का तालाब
देवेन्द्र पाण्डेय
कमल-कुमुदनी से पटा, पानी पानी काम ।
घोंघे करते मस्तियाँ, मीन चुकाती दाम ।
मीन चुकाती दाम, बिगाड़े काई कीचड़ ।
रहे फिसलते रोज, काईंया पापी लीचड़ ।
किन्तु विदेही पात, नहीं संलिप्त हो रहे ।
भौरे की बारात, पतंगे धैर्य खो रहे ।।
|
तारों की घर वापसी
तारे होते बेदखल, सूरज आँखे मूंद |
अद्वितीय अनुकल्पना, आंसू शबनम बूंद | आंसू शबनम बूंद, सूर्य को तपना भाये | किन्तु वियोगी चाँद, अकेला रह न पाए | उतर धरा पर चाँद, इकट्ठा करे संभारे | छूकर प्रभु के चरण, गगन पुनि चमकें तारे || |