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रविवार, फ़रवरी 10, 2013

स्वागत बसंत" (रविवार की चर्चा : 1151)

आप सबको विन्रम प्रणाम/ नमस्ते मैं रु हाजिर हूँ, अपनी पहली चर्चा शगुन के पूरे “२१” लिंक के साथ.
१.
स्वागत बसन्त...
अर्चना
१.
स्वागत तेरा
आँगन आँगन में
मेरे बसन्त ...


२.
पीली सरसों
और लाल पलाश
केशरिया मैं...
२.
आशा सक्सेना 



बौराता अमवा 
महका वन उपवन
चली वासंती पवन
बसंत में रंग गयी
फूलों से लदी डालियाँ
झूमती अटखेलियाँ करतीं
आपस में चुहल करतीं
३. 
मौसम या तुम
शालिनी रस्तोगी  



आज सुबह
गुनगुनी धूप की
नरम चादर लपेट
पड़ी रही न जाने कब
तकतेरी यादों की आगोश में
दिल को मिलता रहा
गुनगुना सा
सुकून
४.
दाना-दाना निगलाया आशा का 
शारदा अरोरा 

तिनका-तिनका चुन कर नीड़ बनाया आशा का
कर पायेंगे , उड़ पायेंगे , दिन अच्छे भी आयेंगे
दाना-दाना निगलाया आशा का
कोई टहनी , कोई शाखा , कोई जमीं , कोई आसमाँ
नन्हें पँखों को सहलाया , दिन अच्छे भी आयेंगे 
दाना-दाना निगलाया आशा का
५.
"ग़ज़ल-खो चुके सब कुछ"
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक"
खो चुके सब, कुछ नहीं अब, शेष खोने के लिए।
कहाँ से लायें धरा, अब बीज बोने के लिए।।
सिर्फ चुल्लू में सिमटकर, रह गई गंगा यहाँ,
अब कहाँ जायें बताओ, पाप धोने के लिए।
पत्थरों के साथ रह कर, हो गये हैं संगे-दिल,
अब नहीं ज़ज़्बात बाकी, रुदन रोने के लिए।
६.
सदन दहलता ख़ास, किंग को दहला पंजा-
रविकर 


सत्तावन "जो-कर" रहे,  जोड़ा बावन ताश ।
महल बनाया दनादन, "सदन" दहलता ख़ास ।





File:Bicycle-playing-cards.jpg

सदन दहलता ख़ास, किंग को दहला पंजा।
रानी *नहला जैक, कसे हर रोज शिकंजा ।
 
७.
दो में रुकना ही दुःख है
अनीता 

ईश्वर निर्विरोध सत् है,इस जगत में दिखाई पड़ने वाली वस्तुएं किसी न किसी का विरोध करती हैं. जो ‘यह’ है वह ‘वह’ नहीं है, कपड़ा, लकड़ी नहीं है, किताब, कलम नहीं है, पर ईश्वर का किसी से विरोध नहीं, वह ‘यह’ भी है और ‘वह’ भी. प्रेम, घृणा नहीं है, लोभ, उदारता नहीं है, पर ईश्वर एक साथ दयालु और न्यायकारी है. कोमल और कठोर है. वह सारे द्वन्द्वों से अतीत है, पर उसमें कुछ भी होने का अभिमान नहीं है, चैतन्य निरहंकार है, इसीलिए ऐसा भी कह सकते हैं कि वह न ‘यह’ है न ‘वह’ है.
८.
कोई खोपड़ा-फिरा खोट है ...
अमृता तन्मय 

 मनुष्यता में ही मनचला-सा
कोई खोपड़ा-फिरा खोट है
या कि सब खोपड़ी पर ही
      एक-सी लगी कोई चोट है


सारे के सारे स्मृति के तंतु
जो ऐसे अस्त-व्यस्त से हैं
  मानो बेहोशी- कोमा में ही
जैसे कि सब सन्यस्त से हैं
९.
61.मधु सिंह : पी के मतवाला रहे
मधु “ मुस्कान" 

हाथ  में  दारू  की बोतल , अक्ल  पर ताला रहे
रहनुमा   हमारे  देस  का,  पी  के  मतवाला रहे
    आँख  पर  पट्टी  बंधी  हो ,  दुम  कटी  वाला रहे
    बेटा  पार्टी  अध्यक्ष  हो  , या  जीजा , साला रहे 
    बदलता पार्टी   हर साल हो, लंबी मूँछ वाला रहे
    हों हाथ में दो चार कट्टे,गले में फूल की माला रहे
१०.
आठवा ख़त .......Valentine special..........
सुषमा “आहुति”
कभी उगते सूरज को तुम्हारे साथ देखना चाहती हूँ......
तो कभी ढलती शाम को तुम संग गुजारना चाहती हूँ......
कभी रात का लम्बा सफ़र.......तुम्हारी गोद में सर रख कर,
चाँद को एकटक निहारते गुजारना चाहती हूँ.........
चाहती तो मैं यह भी हूँ....................
एक दिन हम आसमान के सारे तारो को गिन डाले........
ना जाने क्यों तुम्हारे साथ अब कुछ भी नामुमकिन सा नही लगता........!!!
११.
लाभ उठायें अपने आफिस की आंतरिक साज सज्जा से
रेखा जोशी
वास्तु टिप्स
१. आफिस के मुखिया को सदा दक्षिण पश्चिम दिशा में बैठने चाहिए |
२. आफिस में लेखाधिकारी के लिए दक्षिण पूर्वीय दिशा शुभ है |
३.आफिस में काम करने वालों को सदा पूर्व याँ उत्तर दिशा की तरफ मुख कर के कार्य करना चाहिए |
४. आफिस में ब्रह्म स्थान सदा साफ़ सुथरा और खाली रहना चाहिए |
५. आफ़िस के ईशान कोण में पानी का फुवाहरा अति उत्तम माना गया है |
६. आफिस में मार्किटिंग के लिए उत्तर पश्चिम दिशा शुभ होती है
१२.
FRUITS AND VEGETABLES MAY PROTECT KIDNEYS
वीरेंद्र शर्मा 

FRUITS AND VEGETABLES MAY PROTECT
KIDNEYS/SCI-TECH/MumabiMirror ,FE 9
,2013,P24
(1)Adding fruits and vegetables to the diet may help protect the kidneys of patients with chronic kidney disease (CKD) with too much acid build -up .Simply adding more fruits and vegetables -which contain alkali that help manage the condition .
१३.
293. दिलबाग विर्क  परिचय
जन्म :  23.10.1976।
शिक्षा :  एम. ए. (हिंदी एवं इतिहास), बी.एड, ज्ञानी, उर्दू में सर्टिफिकेट कोर्स।
लेखन/प्रकाशन/योगदान :  मूलतः कवि एवं लघुकथाकार। हिन्दी व पंजाबी- दोनों भाषाओं में लेखन। चंद आंसू, चंद अल्फाज (अगज़ल), निर्णय के क्षण (हरियाणा साहित्य अकादमी के सौजन्य से प्रकाशित कविता संग्रह) एवं माला के मोती (हाइकु संग्रह) प्रकाशित कृतियाँ। कुछ कृतियाँ प्रकाशनाधीन।

          दिलबाग विर्क
१४.
मन
डॉ. निशा महाराणा
1.
स्वार्थी मन
तोड़ देता सम्बन्ध
जानबूझकर .......




2.                                           3.

व्याकुल मन                           युगों की भटकन
निस्तब्ध निशा                        मन की उलझन  
आत्मविस्मृति के क्षण ....            रुह में समाई .......










१५.

पुत्र-वधु, परिवार की कुलवधु या केवल पुत्र की पत्‍नी?

अजित गुप्ता 

पुत्र के विवाह पर होने वाली उमंग से कौन वाकिफ नहीं होगा? घर में पुत्र-वधु के रूप में कुल-वधु के आने का प्रसंग परिवारों को रोमांचित करता रहा है। माता-पिता को अपनी वधु या बहु आने का रोमांच होता है, छोटे भाई-बहनों को अपनी भाभी का और पुत्र को अपनी पत्‍नी का। परिवार में न जाने कितने रिश्‍ते हैं और सभी को रिश्‍तों के अनुसार ही रोमांच होता है। जो पिता रात-दिन परिवार को थर्राते रहते थे, वे भी रातों-रात बदल जाते हैं।
१६.
मेरी पीठ पर दोस्तों के खंजर चले
राज कानपुरी 


जो भी यहाँ सच की रह-गुजर चले
उसके घर पे यारों फिर पत्थर चले
मैं दुश्मनों से तो वाकिफ था मगर
मेरी पीठ पर दोस्तों के खंजर चले
लोगो ने उसको हँसता हुआ देखा है
कौन जाने क्या दिल के अंदर चले
१७.
Ego है तो Go ....
विभा रानी श्रीवास्तव 

बेटे के facebook के profile में 1500 friend हैं ....
उससे पुछी :-
इतने को Add क्यूँ करते हो .... ?
कैसे Manage करते हो .... ?
इतने सारे Friend हैं .... ?
तो वो बोला .... :-
जो मुझे जानते हैं ....
या
जानना चाहते हैं ....
मैं जिसे जानता हूँ ....
या
जानना चाहता हूँ ....
सब से जुड़ता जाता हूँ ....
घर - परिवार - रिश्तेदार हैं ....
School - College था ....
१८.
चाहतों का अम्बार ...
आनन्द
विद्वजन कहते हैं
कि,
प्रेम में नहीं होती कोई चाहत
विद्वजन चाहते हैं
कि,
माना जाए उनके कहे को अंतिम सच।
मुझे नहीं पता प्रेम का
नहीं जानता कब और कैसे होता है
किसको होता और क्यों होता है
कभी तुम्हें हुआ कि नहीं
कभी हमें हुआ कि नहीं
कुछ पता नहीं
१९.
कर्मठ 'कविता'....
नूतन
सभी कर्मयोगी थे
मैं न जाने कैसे
शिथिल सी बन
इधर उधर गिरती पड़ती बैठी बैठी
अनगिनत स्वप्न
...बुन चली
और मार्ग मार्ग पर कठिनाई का
एक चिट्ठा तक लिख डाला
और नाम दे दिया
मेरी 'कविता '
क्या कविता का सृजन
मात्र इतना भर था ....?
या फिर सृष्टि की उत्पत्ति जितना
ही
क्लिष्ट ?
२०.
War - Guerra – युद्ध
सुनील दीपक
 
Giant heads by Javier Marin, Rome, Italy - S. Deepak, 2013 Giant heads by Javier Marin, Rome, Italy - S. Deepak, 2013








Giant heads by Javier Marin, Rome, Italy - S. Deepak, 2013
रोम, इटलीः रात के अँधेरे में जब मेक्सिकन शिल्पकार ज़ाविएर मारिन की कलाकृतियाँ "सिर" पहली बार दिखी तो एक पल के लिए लगा कि किसी मध्ययुगीन युद्ध स्थल पर पहुँच गया हूँ और युद्ध में कटे सिर इधर उधर बिखरे पड़े हों. उनमें से एक सिर एक दाढ़ी वाले पुरुष का था, जो दूर से वृद्ध लग रहा था. लेकिन पास जा कर देखने में लगा कि वृद्ध नहीं था, बस उसकी आँखों और मुँह के भाव में दर्द भरी उदासी थी.
२१.
"मनमौन" (कार्टूननिस्ट-मयंक)
कार्टूननिस्ट – मयंक
इसी के साथ मुझे इजाजत दीजिये अगले रविवार फिर मिलेंगे एक नई चर्चा के साथ. आप सब का दिन मंगलमय हो.
आगे देखिए "मयंक का कोना"
पाला ग्यारह साल से, खूब खिलाया माल।
निर्वाचन को देखकर, कर ही दिया हलाल।।
सहलाती है चोट को, कहती है हे राम।
कलावती के न्याय का, क्या होगा परिणाम।।

24 टिप्‍पणियां:

  1. सुझाव बहुत अच्छा है शास्त्री जी चर्चा मंच पर व्यस्तता के कारण नहीं आएं पर थोड़ा समय तो दे ही सकते हैं मयंक के कौने के लिए |
    मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार अरुण जी |
    आशा

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह...!
    क्या बात है अरुण जी...!
    बहुत सुन्दर चर्चा की है आपने!
    पहली चर्चा पर आपको बधाई और स्वागत-अभिनन्दन!
    --
    हमने तो फुर्सत चाही थी लेकिन चर्चाकार मित्रों ने अब तो रोज का ही काम दे दिया।
    चलिए जो प्रभू की मर्जी।
    शिरोधार्य है यह जिम्मेदारी भी...!

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही अच्छी चर्चा ...... सुंदर लिनक्स लिए , आभार

    जवाब देंहटाएं
  4. चर्चा मंच पर आपकी पहली चर्चा के लिए आभार और अभिनन्दन।बहुत ही बेहतरीन ढंग से चर्चा प्रस्तुत किये हैं ,आभार।

    जवाब देंहटाएं
  5. पहली पहली मर्तबा, मर्तबान मकरंद |
    छाये चर्चा मंच पर, ले बासंतिक छंद |

    ले बासंतिक छंद, बड़ी श्रृंगारिक आकृति |
    मदनोत्सव रति रूप, करे जड़-चेतन जागृति |

    स्वागत स्वागत अरुण, छटा रविकरी रुपहली |
    छाया रजत-प्रकाश, मुबारक चर्चा पहली ||

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. शिव सा चर्चामंच यह, करता है विषपान ।
      इसीलिए इस जगत में, अव्वल है श्रीमान ।

      अव्वल है श्रीमान, कंठ नीला पड़ जाता ।
      हास्य-व्यंग्य-श्रृंगार, जहर मद से गुस्साता ।

      मस्तक शीतल रहे, शूल से हो ना हिंसा ।
      सिर पर सजे मयंक, तभी तो लगता शिव सा ।।

      हटाएं
  6. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  7. अरुण जी आपकी पहली हि चर्चा के लिए आपको बधाई , आपने बहुत अच्छी चर्चा सजाई है और दूसरी बात मयंक का कौना भी एक अच्छा प्रयास है इस बहाने शास्त्रीजी रोज चर्चा में हमारे साथ रहेंगे !!

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  8. अच्छी चर्चा ...
    शुभकामनायें ...

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  9. पहली चर्चा के लिये हार्दिक बधाई …………बहुत सु्न्दर लिंक्स संयोजित किये हैं।

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  10. अरुण जी, सच में आपकी पहली चर्चा काफी आकर्षक और शानदार लिंक्स से सजी है।

    आद.शास्त्री जी, पहले ही मयंक का कोना मे मुझे स्थान देने के लिए बहुत बहुत आभार

    जवाब देंहटाएं
  11. आगे देखिए "मयंक का कोना"
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    अफजल गुरू की मीडिया


    हुआ खुदा के फजल से, अफजल काम तमाम |
    सुर बदले हैं सुबह के, जैसे कर्कश शाम |
    जैसे कर्कश शाम, हुआ बदला क्या पूरा |
    बाकी कितने नाम, काम है अभी अधूरा |
    व्यापारी मीडिया, आज कर बढ़िया सौदा |
    इन्तजार में भीड़, जले कब नीड़-घरौंदा ||

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  12. सुंदर लिंकों के साथ अच्छी चर्चा ,,,,अरुण जी बहुत२ शुभकामनायें ...बधाई
    दो लिंकों के साथ ही सही किन्तु रोज शास्त्री जी का साथ तो बना रहेगा,,,

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  13. पहली सुंदर चर्चा हेतु हार्दिक बधाई और आशीर्वाद

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  14. अरुणोदय लो हो गया , आलोकित है प्रात
    रुत बसंत का आगमन,कुलकित पुलकित गात
    कुलकित पुलकित गात , वात ने ली अंगड़ाई
    अरुण 'अरुण' को कहे,हृदय से बहुत बधाई
    प्रमुदित देख 'मयंक','चर्चा मंच की जय हो'
    आलोकित है प्रात , हो गया अरुणोदय लो ||

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  15. बहुत बढ़िया सार्थक चर्चा प्रस्तुति ..

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  16. बहुत आभार -"स्वागत बसन्त" के लिए और बधाई ..चर्चामंच में चर्चाकार ले रूप में शामिल होने के लिए...

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  17. बहुत खूब अरुण जी..... शास्त्री जी को आपने राज़ी कर ही लिया ...आपका यह शगुन बहुत अच्छा लगा... मुझे भी चर्चा में शामिल करने के लिए हार्दिक आभर ...

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  18. अरुण जी, किसी व्यस्तता के कारण कल चर्चा मंच नहीं देख पाई, आपकी नए अंदाज की प्रस्तुति व शगुन के इक्कीस लिंक्स के लिए बधाई स्वीकारें..आभार मुझे भी शामिल करने के लिए..

    जवाब देंहटाएं

"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

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