आज की मंगलवारीय चर्चा में आप सब का स्वागत है राजेश कुमारी की आप सब को नमस्ते , ,आप सब का दिन मंगल मय हो अब चलते हैं आपके प्यारे ब्लॉग्स पर
यह जग सुंदर हो जाये
Anita at डायरी के पन्नों से -
बद्दुवायें ये हैं उस माँ की खोयी है जिसने दामिनी ,
शालिनी कौशिक at !
कौशल ! -
जिन्दगी में बस जीना होता है .....
उपासना सियाग at nayee udaan
!!..'बचपन सुरक्षा' एवं 'नारी उत्थान' ..!!
सरिता भाटिया at गुज़ारिश -
मुझ मे मेरा ही वजूद था वो,
suresh agarwal adhir at एहसास ..
"पत्थरों को तोड़ना" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
ZEAL -
आज समर्थक हो गए, पूरे एक हजार-
रविकर at "लिंक-लिक्खाड़" –
Soniya Bahukhandi Gaur at बुरांस के फूल... और तुम्हारी यादें –
मैं जो चुप रहा तो फिर मेरी खता समझ गए
नीलांश at कविता-एक कोशिश -
संगीत से सरहदों को तोड़ देना चाहते हैं दलेर मेंहदी
Dayanand
Pandey at सरोकारनामा
आज की चर्चा यहीं समाप्त करती हूँ फिर चर्चामंच पर हाजिर होऊँगी कुछ नए सूत्रों के साथ तब तक के लिए शुभ विदा बाय बाय ||
आगे देखिए..
"मयंक का कोना"
(१)
प्रेम विरह
मन बैरागी है नहीं, उड़ता पंख पसार।
यदि चाहे बैराग को, मन को लेना मार।।
(२)
दिन हौले-हौले ढलता है,
दिन होले-हौले ढले, जग सूना हो जाय।
अंधियारे में अल्पना, नज़र कहीं ना आय।।
आगे देखिए..
"मयंक का कोना"
(१)
प्रेम विरह
मन बैरागी है नहीं, उड़ता पंख पसार।
यदि चाहे बैराग को, मन को लेना मार।।
(२)
दिन हौले-हौले ढलता है,
दिन होले-हौले ढले, जग सूना हो जाय।
अंधियारे में अल्पना, नज़र कहीं ना आय।।
बहुरंगी लिंक्स आज |
जवाब देंहटाएंआशा
बहुत बढ़िया लिनक्स.....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सतरंगी आभा बिखेरती हुई चर्चा!
जवाब देंहटाएं--
आभार बहन राजेश कुमारी जी!
आज समर्थक हो गए, पूरे एक हजार |
जवाब देंहटाएंचर्चाकारों कीजिये, उन सबका आभार |।
--
पार किया है आँकड़ा, हमने एक हजार।
मित्रों चर्चामंच से, बहुत आपका प्यार।।
--
धन्यवाद और आभार अपने सभी मित्रों का!
आज चर्चा मंच के समर्थक 1001 हो गये हैं!
हम भी हिस्सा हो गये,है 'गुरु जी' का आभार
हटाएं1001का आँकड़ा पार किया, बधाई करें स्वीकार
सुन्दर चर्चा आदरेया -
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें-
jaandaar ...
जवाब देंहटाएंडॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी आपका बहुत 2 आभार की अपने मेरी कविता चर्चा मंच में शामिल की
जवाब देंहटाएंराजेश कुमारी जी आनंद आगया आपके इन लिंकों को देख कर और इन लिंकों की पोस्ट को पड़ कर
आपका बहुत 2 आभार
दिनेश पारीक
बहुत ही रंग विरंगा सुंदरा प्रस्तुति,आदरेया आभार.
जवाब देंहटाएंसुन्दर सूत्रों में पिरोइ चर्चा के लिए बधाई एवं हमारी चर्चा को उचित समय एवं मंच देने के लिए दीदी आपका आभार
जवाब देंहटाएंएक लिंक्स को छोड़कर बहुत सुंदर चर्चा
जवाब देंहटाएंमुझे लगता है कि अश्लीलता और नग्नता को मंच से दूर रखा जाना चाहिए।
आदरणीय महेंद्र जी आपकी बात ठीक है खुल कर बताइये हो सकता है गलती वश हो गया हो
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंमैं आपको मेल पर जानकारी देता हूं, सार्वजनिक मंच पर मैं ऐसे लोगों का नाम लेना ठीक नहीं समझता हूं।
हटाएंसादर धन्यवाद महेंद्र जी
हटाएंबेहतरीन लिंक्स संयोजित किये हैं आपने .. आभार
जवाब देंहटाएंअच्छे लिंक्स, आभार
जवाब देंहटाएंfinest links of the day..
जवाब देंहटाएंwill be visiting one by one :)
सुंदर चर्चा..आभार राजेश जी.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर पठनीय लिंक संयोजन ,,,बधाई राजेश जी ,,,
जवाब देंहटाएंमेरे पोस्ट को मंच में शामिल करने के लिए,,,शास्त्री जी आभार,,,
.आभार आपकी टिपण्णी का .बेहतरीन प्रस्तुति ,व्यंजना और तंज की अन्विति .(अदम गोंडवी )
जवाब देंहटाएंदिनकर का अनुयाई हूँ मैं, धूमिल का अहसास लिखूँगा
"आदम" गोंडवी की मुठभेड़ों का एक नया विश्वास लिखूँगा (अदम )
कसम खा रहा गीता " का " "मै ",गल्प नहीं इतिहास लिखूँगा
तुलसी के रामायण में अंकित सीता का बनबास लिखूँगा(की मैं )
कर सूरदास को महिमा मंडित, राधा का रास लिखूँगा
प्रेम अग्नि की चिता में जलती विरह दग्ध "उछ्वास" लिखूँगा(उच्छ्वास )
राणा की हल्दीघाटी से चेतक का बलिदान लिखूँगा
बन एक परम्परा भंजक "मै " विद्रोह भरा अहसास लिखूँगा(मैं )
सत्ता की कुर्सी पर काबिज़ हो, घोटालो का राज लिखूँगा
हटा मुखौटा अपने मुँह का ,श्रीमन्तों का इतिहास लिखूँगा(घोटालों )
इतनी सशक्त रचना में यहाँ वहां कुछ वर्तनी चूक हुई है .हिमाकत की है अज़ीज़ भाई .शुद्ध रूप लिख कर .बधाई आपको बहुत सार्थक कलेवर और रूपक तत्व लिए है रचना .नामचीन लोगों को पिरोये हुए .तुलसी दास से धूमल तक .
अज़ीज़ जौनपुरी : एक नया इतिहास लिखूँगा
Zindagi se muthbhed
यह जग सुन्दर हो जाए ....बांचे तो जरा डायरी के पन्ने ....
जवाब देंहटाएंयह जग सुंदर हो जाये
Anita at डायरी के पन्नों से -
गेयता सांगीतिकता अर्थ औ भाव लिए देश की संस्कृति की चिंता से आप्लावित रचना .
जवाब देंहटाएंसभ्यता और संस्कृति जब तक|
लौ जीवन की जलती तब तक ||
पत्थर में हीरा पह्चानो|
सद् गुण रुप सकल तुम जानो ||
जल बिन कमल चाँद बिन अंबर
गुण बिन वदन मान मत सुंदर ||
आदर्शों से चलती नैया|
मिट जाएँ तो कौन खिवैया ||
जवाब देंहटाएंकभी एक बेटी थी मेरी करोड़ों बेटियां हैं अब ,
बचाऊंगी सभी को मैं ,सजा दिलवाकर कमबख्तों .
ये पीड़ा हिन्दुस्तान की माँ की है हिन्दुस्तान की बेटी के साथ हुई बर्बरता पर माँ की बद्दुआ है जो खाली नहीं जाती .मरेगा वह जुवेनाइल भी कमबख्त /कमबख्तों
.
किया तुमने जो संग उसके मिले फरजाम अब तुमको ,
देश का बच्चा बच्चा अब, देगा दुत्कार कमबख्तों .
फरजाम शब्द को फरंजाम /सरंजाम कर लें .शुक्रिया! रचना में एक माँ की पीड़ा और आहत भावना पूरी तरह अभिव्यक्त हुई है भोगा उस
दंश को निर्भया की माँ श्री ने लिखा आपने है।उसी भाव भूमि में उतरके
कडुवा सच ...
बद्दुवायें ये हैं उस माँ की खोयी है जिसने दामिनी ,
शालिनी कौशिक at ! कौशल ! -
बत्तीसी सलामत रहे रागात्मकता भी अन्दर बाहर की .सेहत भी शीर्ष पर रहे .भाई साहब इस मिथ में कोई जान है -बत्तीस दांत वाले की भखा (बद्दुआ )फलती है ?आप भी छोटों को आशीष देवें .
जवाब देंहटाएंपरिणय बसंत बत्तीसी!
क्वचिदन्यतोSपि...
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंbahut hi khoobsurat link sanyojan
जवाब देंहटाएंplease visit my blog
kaynatanusha.blogspot.in
sadar...