दोस्तों ग़ाफ़िल का आदाब क़ुबूल फ़रमाएं!
पेशेख़िदमत है सोमवारीय चर्चा के लिए कुछ लिंक-
पेशेख़िदमत है सोमवारीय चर्चा के लिए कुछ लिंक-
- मेरा एक पुराना गीत -'मयंक'
- तुम हार गए बसंत! -बब्बन पाण्डेय
- राजनैतिक कुण्डलियाँ -‘रविकर’
- आरोग्य प्रहरी -वीरेन्द्र शर्मा ‘वीरू भाई’
- कैसी उदासी -आशा सक्सेना
- इमोशनल ब्लैकमेलिंग -कमल कुमार सिंह ‘नारद’
- दस्ताने -दर्द -मीनाक्षी पंत
- चुप की नदी (चोका) -हरदीप कौर सन्धू
- सब कुछ समझ कर भी नासमझ बनता रहा -'निरन्तर'
- बसन्त गीत -अरुन शर्मा 'अनंत'
- मास्टर टैक टिप्स -आमिर दुबई
- ऐ री! बसन्त आया!! -अनुपमा त्रिपाठी
- कुछ सुखद एहसास -नवीन सी. चतुर्वेदी
- दुन्नौ हाथे लड्डू -देवेन्द्र पाएडेय ‘बेचैन आत्मा’
- भानमती की बात राष्ट्रीय गाली -प्रतिभा सक्सेना
- क्या पता कैलेन्डर को -सिद्धेश्वर सिंह
- पड़ी लाश माँ की -मधू सिंह
- बेजा बदगुमानी किसलिए? -ग़ाफ़िल
- श्रीमती अनारो देवी -तुषार राज रस्तोगी
- मत करो खुद को निर्वस्त्र -दिव्या श्रीवास्तव ZEAL
- हैलीकॉप्टर आया -काज़ल कुमार
अच्छे लिंक्स !
जवाब देंहटाएंnice links to look & thanx sir 4 sharing my blog post
जवाब देंहटाएंगाफिल जी, गागर में सागर भरने वाली आपकी यह चर्चा पसंद आई। आभार, इन शानदार लिंक्स के लिए।
जवाब देंहटाएं.............
एक सदी शोषण की जी ली...
संक्षिप्त मगर सारगर्भित चर्चा!
जवाब देंहटाएंआभार ग़ाफ़िल जी!
आप सभी को सुप्रभात
जवाब देंहटाएंआज का दिन आपके लिए नये जोश लेकर आयेँ
एक सुविचार ..
हर पहलुऔँ के दो पक्ष होते हैँ आपकी सोच तय करती हैँ आपको क्या नकारात्मक लगा , आप उक्त पहलुऐँ सेँ निकलकर देखियेँ तो , सच्चाई मिल जायेँगी । जिद करने से नकारात्मक भाव की वृद्धी आपके विचारोँ भावनाओँ को अपने अंदर समाहित करती चली जायेँगी और आपके उस पहलुँयेँ का कभी दुसरेँ पक्ष पर नजर नही डाल पायेँगे ।
अर्थात अपने सकारात्म सोच को बढाईयेँ आपके व्यक्तिव के विकाश मेँ सहायक होगी ।
‘ग़ाफ़िल’ जी कार्टून को भी चर्चा में सम्मिलित करने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंहृदय से आभार गाफिल जी मेरी रचना को आज यहाँ स्थान दिया ......!!
जवाब देंहटाएंअन्य लिंक्स भी बढ़िया ।बहुत अच्छी चर्चा ......!!
आज समर्थक हो गए, पूरे एक हजार |
जवाब देंहटाएंचर्चाकारों कीजिये, हम सबका आभार |
हम सबका आभार, हजारी का यह गौरव |
हाजिर होकर रोज, करें चर्चा कर कलरव |
रविकर गाफिल रूप, अरुण दिलबाग परिश्रम |
राजे' दीप प्रदीप, वन्दना करते हैं हम ||
इमोशनल ब्लैकमेलिंग -कमल कुमार सिंह ‘नारद’
जवाब देंहटाएंगोली खाय जुलाब की, करता मोशन लूज ।
चिंता खाए देश की, बनी हॉट यह न्यूज ।
बनी हॉट यह न्यूज, फ्यूज कितने कर देता।
पर अन्ना का यूज, नहीं कर पाता नेता ।
कहाँ करोडो रोज, आज दस दस की बोली ।
होता जाए सोझ, मार सत्ता को गोली ।।
जवाब देंहटाएंतीन पीढ़ी का बचपन : कौन सही कौन गलत?
smt. Ajit Gupta
अजित गुप्ता का कोना
पानी बिजली आ गई, बढ़ी जरुरत मूल |
इक-जुटता परिवार की, अब भी रहा उसूल |
अब भी रहा उसूल, अभी तक बिजली रानी |
रही जरुरत मूल, विलासी नहीं निशानी |
सरकारी इस्कूल, पढो घूमो मनमानी |
मरा नहीं अब तलक, मित्र आँखों का पानी ||
कल हारे का पूत या, *कलहारी का पूत |
जवाब देंहटाएंभिगो भिगो के भूनता, खा जाता साबूत |
खा जाता साबूत, कल्हारे नमक मिर्च दे |
सबसे बड़ा कपूत, अकेले स्वयं सिर्ज ले |
दी-फेमिली महान, बड़े चॉपर हैं प्यारे |
मामा का एहसान, तभी तो हम कल हारे ||
*झगडालू
कार्टून :- हैलीकॉप्टर आया
(काजल कुमार Kajal Kumar)
Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून
तोपा तोपें तोपची, हेलीकाप्टर तोप |
जैसे वह गायब हुआ, वैसे इसका लोप |
वैसे इसका लोप, जाँच पर मामा बोला |
दाबे दस्तावेज, फेमिली जान टटोला |
जिन्दा है इंसान, भेंट कर इन्हें सरोपा |
इटली के मेहमान, केस को फिर से तोपा ||
भानमती की बात - राष्ट्रीय गाली .
जवाब देंहटाएंप्रतिभा सक्सेना
लालित्यम्
गा ली अपनी भानमति, अपनी मति अनुसार |
गाली देकर पुरुष पर, करता पुरुष प्रहार |
करता पुरुष प्रहार, अगर माँ बहन करे है |
नहीं पुरुष जग माहिं, कहाँ चुप सहन करे हैं |
मारे या मर जाय, जिंदगी क्या है साली |
इज्जत पर कुर्बान, दूसरा पहलू गाली ||
कैसी उदासी
जवाब देंहटाएंAsha Saxena
Akanksha -
मनचाहे व्यवहार की, कर दूजे से आस |
लेकिन हो निश्चिन्त मत, व्यर्थ पूर्ण विश्वास |
व्यर्थ पूर्ण विश्वास, ख़ास लोगों से चौकस |
होगा जब एहसास, दुखी हो जाए बरबस |
पग पग पर हुशियार, गली ऑफिस चौराहे |
दे जाते वे दर्द, जिन्हें अपना मन चाहे ||
तुम हार गए बसंत!
जवाब देंहटाएं-बब्बन पाण्डेय
वेलेंटाइन को सभी, करते आज प्रोमोट |
रति-अनंग की रुत नई, देह खोट के पोट |
देह खोट के पोट, मोट बाजारू-पन है |
यह बसंत अब छोट, घोटता अपना मन है |
कोयल लेती कूक, मंजरी भी है फाइन |
लेकिन भरी पड़े, मित्र यह वेलेंटाइन ||
अच्छे लिंक्स | मेरा लिंक शामिल करने के लिए धन्यवाद् | प्रणाम |
जवाब देंहटाएंदस्ताने -दर्द -मीनाक्षी पंत
जवाब देंहटाएंमार्मिक-
शुभकामनायें आदरेया ।।
ताने हों या इल्तिजा, नहीं पड़ रहा फर्क ।
पत्थर के दिल हो चुके, सह जाता सब जर्क ।
सह जाता सब जर्क, नर्क बन गई जिंदगी ।
सुनते नहिं भगवान्, व्यर्थ में करे बंदगी ।
सत्ता आँखे मूंद, बनाती रही बहाने ।
चूस रक्त की बूंद, मार के मारे ताने ।।
बेहतरीन लिंकों से सजी है आज की सारगर्भित चर्चा,आभार.
जवाब देंहटाएंBadhiya Links.....
जवाब देंहटाएंsaarthak charchaa,ravikar ji kee baat se sahmat hoon
जवाब देंहटाएंसागार्भित और सार्थक चर्चा |मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
जवाब देंहटाएंआशा
बढिया चर्चा
जवाब देंहटाएंआदरणीय ‘ग़ाफ़िल’ सर प्रणाम संक्षिप्त परन्तु शानदार प्रस्तुति मेरी रचना को स्थान दिया ह्रदय से आभारी हूँ. हार्दिक बधाई स्वीकारें इस शानदार प्रस्तुति पर सादर
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छे लिंक्स ... बेहतरीन प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा इन लिंक्स को पढ़कर !
जवाब देंहटाएंशास्त्री सर का कोना रखकर बहुत अच्छा किया !
~सादर!!!
चर्चा काफी सुन्दर रही। अरुण को चर्चा मंच के नए चर्चा कार के रूप में जुड़ने के लिए बधाई। और दुःख इस बात का है की एक बेहतरीन चर्चा कार रूप चंद शास्त्री जी ने चर्चा स्थान छोड़ दिया।
जवाब देंहटाएंसार्थक पठनीय सूत्रों से सुसज्जित चर्चा हेतु बधाई गाफिल जी
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति .
जवाब देंहटाएंमत करो खुद को निर्वस्त्र -दिव्या श्रीवास्तव ZEAL
वाह बसंत के तमाम रंग श्री मति जी में देखते हैं आप .कहाँ गईं वह रूपसियाँ और शब्द चित्र .बढ़िया प्रस्तुति है शहरी पर्यावरण के गंधाने की लेकिन वह रूपसी गईं कहां
जवाब देंहटाएंतमाम की तमाम कविता को शब्द देती हुई सी .
तुम हार गए बसंत! -बब्बन पाण्डेय
शानदार अभिव्यक्ति .
जवाब देंहटाएंभोगवाद अब जीतता, रीते रीति-रिवाज ।
विज्ञापन से जी रहे, लुटे हर जगह लाज ।
राजनैतिक कुण्डलियाँ -‘रविकर’
बेजा बदगुमानी किसलिए?
जवाब देंहटाएंकोकिलों के मध्य कौए की बयानी किसलिए?
शर्म कर! ख़ामोश रह बे! लन्तरानी किसलिए?
है सदी इक्कीसवीं किस दौर में तू जी रहा?
क़ायदन ग़ाफ़िल है बेजा बदगुमानी किसलिए?
हाँ नहीं तो!बहुत खूब ( प्रस्तुति ).वाह !
मेरे गीत को सुनिए-
जवाब देंहटाएंअर्चना चावजी के मधुर स्वर में!
सुख के बादल कभी न बरसे,
दुख-सन्ताप बहुत झेले हैं!
जीवन की आपाधापी में,
झंझावात बहुत फैले हैं!!
अनजाने से अपने लगते,
बेगाने से सपने लगते,
जिनको पाक-साफ समझा था,
उनके ही अन्तस् मैले हैं!
जीवन की आपाधापी में,
झंझावात बहुत फैले हैं!!
बन्धक आजादी खादी में,
संसद शामिल बर्बादी में,
बलिदानों की बलिवेदी पर,
लगते कहीं नही मेले हैं!
जीवन की आपाधापी में,
झंझावात बहुत फैले हैं!!
ज्ञानी है मूरख से हारा,
दूषित है गंगा की धारा,
टिम-टिम करते गुरू गगन में,
बहुत खूब . !बहुत सुन्दर रूपकात्मक गीत
आपकी टिपण्णी हमें प्रासंगिक बनाए रहती है ,ऊर्जित करती है .शुक्रिया आपका तहे दिल से .चर्चा मंच में हमें बिठाके आप हमारा मान बढाते हैं शुक्रिया .
जवाब देंहटाएंसुंदर और सार्थक संयोजन के लिये
जवाब देंहटाएंबधाई
सभी रचनाकारों को शुभकामनायें