आप सबको प्रदीप का नमस्कार | शुरू करते हैं आज की चर्चा | |
सहजि सहजि गुन रमैं : मनोज छाबड़ा |
बहनें - बहनें |
"मयंक का कोना" अक्सर उन लोगों को घोर निराशावादी कहके उनका उल्काओ के रश्म को, बीन रहा है विश्व। देखेंगे क्या मिलेगा, ये तो हैं जीवाश्व।। |
इजहार भी तो जरूरी है .. अब तो हाथ बढाइए, छाया है मधुमास। जल में रहकर मीन की, बढ़ जाती है प्यास।। |
"देश की कहानी" काठ भी तो बन गया है अब सुचालक,
अब नहीं मासूम लगता कोई बालक,
सभ्यता की अब नहीं बाकी निशानी।
आज के लिए बस इतना ही | मुझे अब आज्ञा दीजिये | मिलते हैं अगले बुधवार को कुछ अन्य लिंक्स के साथ |तब तक के लिए अनंत शुभकामनायें | आभार | |
शानदार लिंक्स
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे लिनक्स..... आभार शामिल करने का
जवाब देंहटाएंअच्छे लिंको के साथ उपयोगी चर्चा!
जवाब देंहटाएंआभार!
वाह प्रदीप जी, बहुत सुंदर लिंक्स सजाए हैं...
जवाब देंहटाएं@ राष्ट्रभाषा हिंदी और हमारी मानसिकता
जवाब देंहटाएंहिन्दी भारतवर्ष में ,पाय मातु सम मान
यही हमारी अस्मिता और यही पहचान |
शास्त्री जी आप स्थानापन्न शब्द का उपयोग ना करें । उपर दिया गया प्रस्ताव बढिया है चर्चा मंच में नये चर्चाकार जुडे स्वागतम ।
जवाब देंहटाएंआज की चर्चा में बढिया लिंक्स हैं
प्रदीप जी ,अर्चना जी हृदय से आभार मेरी भावनाओं को आपने मान दिया ......!!आप दोनों का ये स्नेह मैं जीवन पर्यंत नहीं भूलूँगी .....!!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुभकामनायें .....
अन्य लिंक्स भी बहुत बढ़िया ...सुंदर चर्चा है ....!!
हटाएंसुन्दर चर्चा..
जवाब देंहटाएंवाह.... एक से बढ़कर एक लिंक, अच्छी चर्चा।
जवाब देंहटाएंवाह !!! बहुत शानदार लिंक्स संयोजन,,,प्रदीप जी बधाई,,
जवाब देंहटाएंमेरे पोस्ट को मंच में शामिल करने के लिए आभार ,,,,
"दिन हौले-हौले ढलता है",के रचनाकार विक्रम सिंह का
आज जन्म दिन है २० फरवरी,,,बहुत२ बधाई विक्रम जी,,,
अरुण जी रचना छंद कुंडलिया ,,,
जवाब देंहटाएंराजनीति जैसा मजा,नाही दूसरा मित्र,
एमपी एमएलऐ बनो,महको जैसे ईत्र
महको जैसे ईत्र,नही कुछ करना धरना
कार्यक्षेत्र में बस,कभी-कभी जाते रहना
जनसेवा की आड़,कार्य है परम पुनीत
झोली भर लो आप,कहाये ये राजनीत,,,,
राष्ट्रभाषा हिंदी और हमारी मानसिकता,,,,(प्रेम सरोवर जी का आलेख )
जवाब देंहटाएंहै जिसने हमको जनम दिया ,हम आज उसे क्या कहते है
क्या यही हमारा राष्ट्र वाद ,जिसका पथ दर्शन करते है
है राष्ट्रस्वामिनी निराश्रिता ,इसकी परिभाषा मत बदलो
हिंदी है भारत माँ की भाषा ,हिंदी को हिंदी रहने दो,,,,,
कविताएँ लिखते-लिखते
जवाब देंहटाएंकाटे कागद कोर ने, कवि के कितने अंग ।
कविता कर कर कवि भरे, कोरे कागज़ रंग ।
कोरे कागज़ रंग, रोज ही लगे खरोंचे ।
दिल दिमाग बदहाल, याद बामांगी नोचे ।
रविकर दायाँ हाथ, एक दिन गम जब बांटे ।
जीवन रेखा छोट, कोर कागज़ की काटे ।।
very nice links
जवाब देंहटाएंअब नहीं लिखे जाते हैं गीत
जवाब देंहटाएंबुद्धि विकल काया सचल, आस ढूँढ़ता पास |
मृत्यु क्षुधा-मैथुन सरिस, गुमते होश हवास |
गुमते होश हवास, नाश कर जाय विकलता |
किन्तु नहीं एहसास, हाथ मन मानव मलता |
महंगा है बाजार, मिले हर्जाना मरकर |
धन्य धन्य सरकार, मरे मेले में रविकर ||
जवाब देंहटाएंप्रेम विरह
DINESH PAREEK
मेरा मन
तेरी मुरली चैन से, रोते हैं इत नैन ।
विरह अग्नि रह रह हरे, *हहर हिया हत चैन ।
*हहर हिया हत चैन, निकसते बैन अटपटे ।
बीते ना यह रैन, जरा सी आहट खटके ।
दे मुरली तू भेज, सेज पर सोये मेरी ।
सकूँ तड़पते देख, याद में रविकर तेरी ॥
*थर्राहट
सुन्दर लिंकों के साथ उपयोगी चर्चा,आभार प्रदीप जी.
जवाब देंहटाएंबढिया लिंक्स............
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंक्स से सुसज्जित चर्चा
जवाब देंहटाएंvery nice links
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा बेहतरीन लिंक्स हेतु हार्दिक बधाई प्रदीप जी
जवाब देंहटाएंप्रदीप भाई बेहद सुन्दर चर्चा के साथ साथ पाठनीय लिंक्स हार्दिक बधाई स्वीकारें.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लिनक्स संजोये हैं आपने आभार दामिनी गैंगरेप कांड :एक राजनीतिक साजिश ? आप भी जानें हमारे संविधान के अनुसार कैग [विनोद राय] मुख्य निर्वाचन आयुक्त [टी.एन.शेषन] नहीं हो सकते
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और व्यवस्थित चर्चा. आभार .
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लिंक्स के साथ सुन्दर चर्चा प्रस्तुति ..
जवाब देंहटाएंसुन्दर व सार्थक चर्चा!
जवाब देंहटाएंबेहद सुन्दर और सार्थक संकलन ....कुछ लिंक्स तो वाकई कमाल के हैं जो अगर यहाँ ना मिलते तो पढने से रह जाते। बहुत आभार।
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