"जय माता दी" अरुन की ओर से आप सभी को सादर प्रणाम. | ||
"माँ सरस्वती वन्दना" Rajendra Kumar
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धरा पर बसंत ऋतु आई रश्मि शर्मा
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"दो मुक्तक" (डॉ.रूपचन्द्र सास्त्री 'मयंक')
शहनाइयों के शोर में, भी घोर मातम है।
हमारी अंजुमन में आज तनहाई का आलम है।
हबीबों की मजारों पर कोई सज़दा करेगा क्यों?
रकीबों की कतारें है जहाँ खुशियाँ बहुत कम हैं।।
गमजदा हो कर जुल्म को खूब सहते हैं।
थपेड़े सहन करके भी सदा खामोश रहते हैं। नदी के दो किनारों को कभी मिलना नहीं होता।
मगर वो चूमकर मौजों को दिल की बात कहते हैं।।
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जिनकी चाकरी नहीं पक्की -"दिनेश चन्द्र गुप्ता रविकर"
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कुण्डलिया
छंद : अरुण कुमार निगम चोंच नुकीली तीक्ष्ण हैं ,पंजों के नाखून जो भी आये सामने , कर दे खूनाखून कर दे खूनाखून , बाज है बड़ा शिकारी गौरैया खरगोश , कभी बुलबुल की बारी सबकी चोंच है मौन,व्यवस्था ढीली-ढीली चोंच लड़ाये कौन, बाज की चोंच नुकीली || |
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ग़ज़ल मेरी मुझे तेरी ज़ुबानी अच्छी
लगती है- शायर अशोक
मिज़ाज बद्र शायर अशोक मिज़ाज बद्र बहुत से मोड़ हों जिसमें कहानी अच्छी लगती है निशानी छोड़ जाए वो जवानी अच्छी लगती है सुनाऊं कौन से किरदार बच्चों को कि अब उनको न राजा अच्छा लगता है न रानी अच्छी लगती है खुदा से या सनम से या किसी पत्थर की मूरत से मुहब्बत हो अगर तो ज़िंदगानी अच्छी लगती है पुरानी ये कहावत है सुनो सब की करो मन की खुद अपने दिल पे खुद की हुक्मरानी अच्छी लगती है |
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ग़ज़ल -1 रोहितास घोरेला अच्छा है की मेरे देश में दो तारीखें आती है दिखाने को ही सही जो संस्कृति की यादें आती है। ये जो पश्चिम की हवा है बे-अंत, सब भुला दिया अपनी पुरानी ऋतुओं की जो केवल यादें आती हैं। मुद्दतों से कुछ कर गुजरने वाले सिरफिरे नहीं देखे सियासत के लोगों को तो केवल बातें आती है। खाली ज़ेब और थकन लिए लेटा हूँ घर में बेटी पाँव दबाती है और मूफ़लिसी मुझे जगाने आती है। |
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GOD
का लड़का .. ZEAL जब पूरी पृथ्वी पर कोई कपड़े पहनना नहीं जानता था तब हम कपड़े का निर्यात करते थे जब पूरी दुनिया के लोग जानवरों को मार कर खाते थे तब हम यहाँ पर अपने भगवान को 56 भोग चढ़ाते थे जब पूरी दुनिया के बच्चे नंगे घूमते थे तब हम मंत्रोच्चार करते थे जब पृथ्वी पर उस परवरदिगार के संदेश वाहक और उस GOD का लड़का नहीं आया था तब हमारे यहाँ के बच्चे सरस्वती वंदना करते थे जब पूरी दुनिया मे लोग एक दूसरे को लूटते तब हमारे यहाँ पर शांति का उपदेश दिया जाता था. |
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हेलिकॉप्टर घोटाले में वाजपेयी का नाम वीरेंद्र कुमार शर्मा
पत्रिका ने लिखा "हेलिकोप्टर घोटाले में भारतीय
अधिकारियों और वायु सेना प्रमुख की रिश्वतखोरी के बीच रक्षा मंत्रालय ने
अगस्ता वेस्टलैंड से सम्बंधित कुछ जानकारियाँ सार्वजनकि करते हुए
कहा है कि हेलिकोप्टर की खरीद के लिए तकनीकी शर्तें वर्ष 2003
में
अटल बिहारी वाजपेई के समय निविदाओं में बदल दी गईं थीं और इसमें तत्कालीन
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ब्रजेश मिश्र ने एहम भूमिका निभाई थी
,....."
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दिनकर का वंशज हूं मैं,
श्रृँगार नहीं अंगार
लिखूंगा !! पूरण खण्डेलवाल मेरे प्रिय कवि राजबुन्देली जी कि रचना.........
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आचार्य चतुरसेन शास्त्री -स्मृति शेष प्रेम सागर सिंह वैशाली की नगरवधू : आचार्य चतुरसेन शास्त्री ( जन्म- 26 अगस्त,1891) ( निधन: 02 फरवरी, 1960 ) जमाने में कहां , कब कौन किसका साथ देता है, जो अपना है. वही ग़म की हमें सौग़ात देता है।
“यह सत्य है कि यह उपन्यास है।
परन्तु इससे अधिक सत्य यह है कि यह
एक गम्भीर रहस्यपूर्ण
संकेत है, जो उस काले पर्दे के प्रति है, जिसकी ओट
में आर्यों के
धर्म, साहित्य, राजसत्ता
और संस्कृति की पराजय, मिश्रित जातियों की प्रगतिशील
विजय सहस्राब्दियों
से छिपी हुई है, जिसे सम्भवत: किसी इतिहासकार ने आँख
उघाड़कर देखा नहीं है। “ -
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शीर्षक : स्त्री BAL SAJAG " स्त्री " एक स्त्री जिसने समाज को बनाया , आज उस स्त्री को महत्व , लोगों की समझ से परे है , क्योंकि लोगों नहीं समझ रहें सामाजिक तत्व , की स्त्री वाही नारी है , जिसकी गोद मे खेली दुनिया सारी , आखिर कब तक सहे वह जुल्म , मानव कर रहा दिन प्रति -दिन जुर्म , तुम्हे है इतनी बेशर्मी , फिर भी बैक स्त्री को ही कहते मम्मी , तुम्हारे घर में भी है माँ - बहन ; |
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बेवफाई | रेखा जोशी जिनके लिए हमने दिल औ जान लुटाई . मिली सिर्फ उनसे हमको है बेवफाई | ............................................... सजदा किया उसका निकला वो हरजाई , मुहब्बत के बदले पायी हमने रुसवाई | ............................................... धडकता है दिले नादां सुनते ही शहनाई, पर तक़दीर से हमने तो मात ही खाई | ................................................ न भर नयन तू आग तो दिल ने है लगाई , धोखा औ फरेब फितरत में, दुहाई है दुहाई,| |
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हाथों की लकीरें साधना वैद
ये
लकीरें भी ना !
कितना छलती हैं इंसान को !
कभी
माथे की लकीरें !
तो कभी हाथों की लकीरें !
कभी
चहरे की लकीरें !
तो कभी किस्मत की लकीरें !
हरदम
उलझाए रखती हैं
!
ना
तो खुद सुलझती
हैं ! ना सुलझाने में आती हैं !
कितनी
गहरी हैं मेरे
हाथों की लकीरें !
जाने
क्या-क्या
छिपाए हुए हैं अपनी पतली सी जान में जो मैं भी नहीं जान पाती !
नहीं जान पाती शायद
इसीलिये माथे पर चिंता लकीरें भी गहरी होती जाती हैं ! |
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दुविधा ©दीप्ति शर्मा
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नग्नता
का ज्वार मधु "मुस्कान "
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♥प्यार का बसंत..♥♥ चेतन रामकिशन "देव" ♥♥♥♥♥♥♥♥प्यार का बसंत..♥♥♥♥♥♥♥♥ पीले फूलों की खुश्बू है, बरस रही बरसात! बारिश की बूंदें लाईं हैं, खुशियों की सौगात! चलो बसंती हो जायें हम, इन फूलों के संग, बारिश की प्यारी बूंदों से, कहेंगे दिल की बात! सखी मुझे हर मौसम में, भाये तेरा साथ! मुझे कभी न तन्हा करना, नहीं छुड़ाना हाथ! सखी तेरे ही प्रेम से हर्षित, हैं मेरे दिन रात! पीले फूलों की खुश्बू है, बरस रही बरसात.. |
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मेरी माँ …प्यारी माँ ……. काहे तू
रुलाये …. क्यूँ ना तू आये ?? …… प्रवीन मलिक
माँ शब्द में संसार समाया है ! माँ के आँचल में बच्चा खुद को
हर तरह से महफूज़ समझता है ! माँ बच्चे कि पहली गुरु होती है ! इसीलिए
माता को भी गुरु के सामान दर्ज़ा दिया जाता है ! माँ अछे बुरे में भेद
करना सिखाती है ! माँ जीवन में आने वाली हर मुसीबतों से डट कर सामना करना
सिखाती है ! ………………… आज
मेरी माँ नहीं है लेकिन मैं अपनी ये रचना अपनी माँ को समर्पित करती हूँ .
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कुछ सुनहरी यादें जो साथ चलेगी अब ज़िन्दगी के आगे के सफ़र
में :) रंजना भाटिया
पगडण्डी पहला एडिटर के रूप में साझा काव्य संग्रह ..ज़िन्दगी
भर एक न भूलने वाला पल ज़िन्दगी के कुछ पल बहुत ख़ास होते हैं ..वह लम्हे आप
कभी भूल नहीं सकते है ..जब लिखना शुरू किया था तो अपना कोई संग्रह
भी आएगा यह सोचा नहीं था .,..पर यह हुआ ..क्यों की होना तय था ..लिखने का
सिलसिला जो यूँ ही बचपन में शुरू हुआ था वह एक जनून बन गया मेरा ..ब्लॉग
तब बनाया जब महिला ब्लॉगर बहुत ही कम थी.
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कवियों की बस्ती Manoj Nautiyal कवियों की बस्ती में कौवे करते यहाँ बसेरा हैं आग उगलते खुद ही जलते दीपक तले अँधेरा है || एहसास हुआ निस्वास यहाँ पर मर्यादा का ओछापन करतूतें काली करते हैं ज्ञान बांटते मूरख जन दुर्व्यवहार दंभ अभिलाषी सरपंचों का मंच गजब है लेखन नहीं लेखनी इनकी अपशब्दों का दंश अजब है || काली रात अमावास की है सहमा हुआ सवेरा है आग उगलते खुद ही जलते दीपक तले अँधेरा है || |
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"वह-प्रेम-पांखुरी" Meenakshi Mishra Tiwari
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'राग दरबारी..' प्रियंकाभिलाषी
"क्यूँ गहरा सार था तेरी हर इक बात में..शब्दों के पीछे छिपे उन अनगिनत
विचारों में बंधा था स्मृतियों का ठेला.. जानते थे मेरी मनोस्थिति, इसीलिए
रोक लेते थे उस सफ़ेद दरिया का ज्वारभाटा भी..है ना..??? नकरात्मक गोलार्ध
को तोड़ने के लिए बिछाते थे रेशम-से कोमल सकरात्मक तंतु..और उसपर छिड़कते
जाते थे--जीवन से लबालब संगीतबद्ध शब्द-माल..!!!
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कभी देखते मेरी नजरों से तो जान पाते - Feel Again Sujit Kumar Lucky वो शीत की धुप गिरती तुम पर, भिगोती तुझे और चमक जाती, अनेकों लकीरें तेरी चेहरों पर ! कभी देखते मेरी नजरों से तो जान पाते ! उबड़ खाबड़ राहों पर देख तेरी नादानियाँ, सहम जाते हम, कोई तो हो संभाल ले, लरखराते तेरे कदमों को जरा ! कभी चलते मेरे संग तो जान पाते ! |
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आज के लिए बस इतना ही अगले रविवार फिर मुलाकात होगी, आप सब चर्चा मंच पर बने रहें...... सादर | ||
आगे देखिये " मयंक का कोना"
(विष्णु बैरागी)
एकोऽहम्पैनापन विश्वास पर, सुन्दरतम सामीप्य । जीवन रूपी दाल में, पत्नी छौंका *दीप्य । *जीरा / अजवाइन पत्नी छौंका *दीप्य, बढे जीवन रूमानी । पुत्र पुत्रियाँ पौत्र, तोतली मनहर वाणी । शुभकामना असीम, लड़ाओ वर्षों नैना । पर नंदी ले देख, हाथ में उनके ----।। अब आप ही पूरी कर दें यह पंक्ति- भानमती की बात - राष्ट्रीय गाली .
प्रतिभा सक्सेना
गा ली अपनी भानमति, अपनी मति अनुसार |
गाली देकर पुरुष को, करता पुरुष प्रहार | करता पुरुष प्रहार, अगर माँ बहन करे है | नहीं पुरुष जग माहिं, सहन चुपचाप करे हैं | मारे या मर जाय, जिंदगी क्या है साली | इज्जत पर कुर्बान, दूसरा पहलू गाली || धन्यवाद रविकर जी! "मयंक का कोना" सूरज की शह पर...
मेरे मन कीपरArchana -
*ऐ सफेद फूलों और इतराने वाली गुलाबी कलियों!
देख लिया है शायद तुमने मेरे साजन को
तभी मुस्कुरा उठी हो शरमा भी रही हो मुझे चिढ़ाते हुए
सूरज से कहने लगीं, कलियाँ मन की बात।
क्या तुम भी दे पाओगे, सदा हमारा साथ।।
अनकही वजह ........
* **माना *
*बदलते वक्त के साथ *
*कम हो ही जाता है *
*छोटी चीजों का दिखना *
*या मान लें *
*वो चीजें ही हो जाती हैं *
*बहुत छोटी ....
वक्त बहुत है बेवफा, मत करना बेकार।
बिना वक्त किसी से, मत कर लेना प्यार।।
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रविवार, फ़रवरी 17, 2013
"माँ सरस्वती वन्दना" (चर्चा मंच-1158)
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उम्दा लिंक्स से सजी चर्चा के लिए बधाई |
जवाब देंहटाएंआशा
अरुन शर्मा "अनंत" जी!
जवाब देंहटाएंआपने अच्छे लिंकों के साथ बहुत सुन्दर चर्चा की है!
आभार!
आज बाहर जाना है। रात तक बापिस आ जाऊँगा!
सादर!
शुभकामनायें प्रिय अरुण |
जवाब देंहटाएंप्रभावी चर्चा-
उत्कृष्ट-
प्रिय अरुण , मनोहारी लिंक्स से चर्चा मंच को बहुत ही सुंदर सजाया है , बधाई.
जवाब देंहटाएंप्रिय अरुण , मनोहारी लिंक्स से चर्चा मंच को बहुत ही सुंदर सजाया है , बधाई.
जवाब देंहटाएंमेरे लिखे का यहॉं भी शामिल कर आपने मेरे सुख को सहसगुना कर दिया। यह अतिरिक्त सुखदायी है। कोटिश: धन्यवाद और आभार।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लिंकों से सजी है आज की चर्चा,हमारी शुभकामनाये आपके साथ है.
जवाब देंहटाएंशानदार लिंक्स चयन | धीरे धीरे सभी को पढ़कर टिप्पणियां दूंगा | :)
जवाब देंहटाएंसुन्दर सार्थक लिंक्स से चर्चामंच सजाया है अरुण जी ! मेरी प्रस्तुति को भी इसमें स्थान दिया आभारी हूँ ! सधन्यवाद !
जवाब देंहटाएंविद्या की देवी माँ सरस्वती की वंदना से शुरू हुयी सुन्दर और पठनीय लिंकों से सजी सुन्दर चर्चा जिसमें मेरे लिंक को भी जगह मिली इसके लिए आभार !!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंआभार!
उम्दा लिंक्स से सजी चर्चा
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार उम्दा लिंक्स,,,मनोहारी प्रस्तुति के लिए बधाई,,,,अरुन जी,,,
जवाब देंहटाएंएक से बढ़कर एक सूत्रों से पिरोया गया है आज का चर्चा मंच अरूण जी ने ! आभारी हूँ उल्लूक की किताब के एक पन्ने को भी दिखाने के लिये !
जवाब देंहटाएंप्रिय अरुण, मेरी प्रस्तुति को भी इसमें स्थान दिया,धन्यवाद और आभार,शानदार प्रस्तुति के लिए बधाई,शुभकामनाये
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ...
जवाब देंहटाएंजिनकी चाकरी नहीं पक्की -
जवाब देंहटाएं"दिनेश चन्द्र गुप्ता रविकर"
ठीका पर बहाल करते हैं।
गाँधी को निहाल करते हैं ।।
मनरेगा-हाथ में ठेंगा
करते ठीक-ठाक आमदनी -
मिहनत बेमिसाल करते हैं ।।
देशी का सुरूर चढ़ जाता -
ठीका पर बवाल करते हैं ।।
जिनकी चाकरी नहीं पक्की -
वो भी पाँच साल करते हैं ।
तू लाखों कमा कमीशन जब
कारीगर कमाल करते हैं ।।
छोटी बहर का बड़ा जादू बोले तो रविकर .
मुख्तलिफ खूब सूरत अंदाज़ कहते हैं की निगम अरुण का अंदाज़े ब्यान और ....हैं और भी अरुण कुमार दुनिया में बहुत अच्छे कहतें हैं की अरुण कुमार का अंदाज़े ब्यान और ,तीरे तरकश और निशाना
जवाब देंहटाएंकोई
और
कुण्डलिया छंद :
अरुण कुमार निगम
चोंच नुकीली तीक्ष्ण हैं ,पंजों के नाखून
जो भी आये सामने , कर दे खूनाखून
कर दे खूनाखून , बाज है बड़ा शिकारी
गौरैया खरगोश , कभी बुलबुल की बारी
सबकी चोंच है मौन,व्यवस्था ढीली-ढीली
चोंच लड़ाये कौन, बाज की चोंच नुकीली ||
मुख्तलिफ खूब सूरत अंदाज़ कहते हैं की निगम अरुण का अंदाज़े बयाँ और ....हैं और भी दुनिया में रविकर बहुत अच्छे कहतें हैं ,कहते हैं के अरुण कुमार का अंदाज़े बयाँ और ,तीरे तरकश और
जवाब देंहटाएंनिशाना
कोई
और
कुण्डलिया छंद :
अरुण कुमार निगम
चोंच नुकीली तीक्ष्ण हैं ,पंजों के नाखून
जो भी आये सामने , कर दे खूनाखून
कर दे खूनाखून , बाज है बड़ा शिकारी
गौरैया खरगोश , कभी बुलबुल की बारी
सबकी चोंच है मौन,व्यवस्था ढीली-ढीली
चोंच लड़ाये कौन, बाज की चोंच नुकीली ||
अरुण शर्मा अनंत आपने बहुत सुन्दर सेतु सजाये हैं .शुक्रिया हमें जगह देने के लिए .
जवाब देंहटाएंदो मुक्तक" (डॉ.रूपचन्द्र सास्त्री 'मयंक')
जवाब देंहटाएंशहनाइयों के शोर में, भी घोर मातम है।
हमारी अंजुमन में आज तनहाई का आलम है।
हबीबों की मजारों पर कोई सज़दा करेगा क्यों?
रकीबों की कतारें है जहाँ खुशियाँ बहुत कम हैं।।
गमजदा हो कर जुल्म को खूब सहते हैं।
थपेड़े सहन करके भी सदा खामोश रहते हैं।
नदी के दो किनारों को कभी मिलना नहीं होता।
मगर वो चूमकर मौजों को दिल की बात कहते हैं।।
सार्थक मुक्तक .
.सार्थक मुक्तक .अच्छा रूपक है नदी के दो किनारों का .
बहुत बढ़िया गजल बद्र साहब .अर्थ पूर्ण व्यंजना तत्व लिए .
जवाब देंहटाएंग़ज़ल मेरी मुझे तेरी ज़ुबानी अच्छी लगती है- शायर अशोक मिज़ाज बद्र
शायर अशोक मिज़ाज बद्र
बहुत से मोड़ हों जिसमें कहानी अच्छी लगती है
निशानी छोड़ जाए वो जवानी अच्छी लगती है
सुनाऊं कौन से किरदार बच्चों को कि अब उनको
न राजा अच्छा लगता है न रानी अच्छी लगती है
खुदा से या सनम से या किसी पत्थर की मूरत से
मुहब्बत हो अगर तो ज़िंदगानी अच्छी लगती है
पुरानी ये कहावत है सुनो सब की करो मन की
खुद अपने दिल पे खुद की हुक्मरानी अच्छी लगती है
अरुण जी एवं बाकि सभी लेखको को मेरा सप्रेम नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंमुझे चर्चामंच का ज्यादा ज्ञान नहीं है लेकिन ऊपर जितनी भी रचनाएँ लगी हैं सभी उत्तम हैं और उन रचनाओं में मेरी रचना को जगह देने के लिए अरुण जी आपका तहे दिल से शुक्रिया ...
आपका ये सहयोग मेरे लिए मार्गदर्शक साबित हो रहा है .. धन्यवाद...
अच्छी पठनीय सामग्री मिल गयी ......आभार!
जवाब देंहटाएंबढिया लिंक्स
जवाब देंहटाएंपहले तो धन्यवाद कि मेरी कविता को शामिल किया आपने.....सभी लिंक्स अच्छे हैं...सुंदर चर्चा लगाई है आपने।
जवाब देंहटाएंnice links nice presentation . कैग [विनोद राय ] व् मुख्य निर्वाचन आयुक्त [टी.एन.शेषन ]की समझ व् संवैधानिक स्थिति का कोई मुकाबला नहीं . कैग [विनोद राय] मुख्य निर्वाचन आयुक्त [टी.एन.शेषन] नहीं हो सकते
जवाब देंहटाएंवाह! क्या बात है बहुत ख़ूब! बहुत ख़ूब!
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत बधाई अरुन!
जवाब देंहटाएंचुनी हुई रचनाएं पढ़ने को मिलीं,आपका आभार - मेरी रचना को स्थान देने के लिये भी !
जवाब देंहटाएंअरुण चर्चा मच पर आपका स्वागत है,सुन्दर सूत्रों में पिरोइ चर्चा के लिए बधाई
जवाब देंहटाएं