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शुक्रवार, मई 31, 2013

"जिन्दादिली का प्रमाण दो" (चर्चा मंचःअंक-1261)

 मित्रों!
      रविकर जी अभी अवकाश पर हैं! इसलिए शुक्रवार के चर्चा मंच में मेरी पसन्द के कुछ लिंक देखिए!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"
अज्ञान तिमिर

आकंठ डूबे हुये हो क्यों, अज्ञान तिमिर गहराता है।
ये तेरा ये मेरा क्यों , दिन ढलता जाता है…
सादर ब्लॉगस्ते! पर Shobhana Sanstha
छोटी बहर की छोटी ग़ज़ल
निगाहों में भर ले, मुझे प्यार कर ले,
खिलौना बनाकर, मजा उम्रभर ले…
दास्ताँने - दिल (ये दुनिया है दिलवालों की) पर
अरुन शर्मा 'अनन्त'
औरतों के जिस्म पर सब मर्द बने हैं..
मर्दों की जहाँ बात हो, नामर्द खड़े हैं…
रवि कुमार

मेरी धरोहर पर yashoda agrawal
जा रामप्यारी जल्दी जाकर इसका कैट-स्केन करवा !
My Photo
ताऊ डाट इन पर ताऊ रामपुरिया
अपने ब्‍लाग के लिये सर्च इंजन बनायें
MY BIG GUIDE पर Abhimanyu Bhardwaj
दरवाजे पर हुई आवाज से सुलोचना बाहर आई , एक लड़का था २५ साल का छोटी सी गठरी लिए हुए , "मम्मी जी, सूट के कपडे है ले लीजिये , कम दाम में…
सूचना - केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड 10 वीं का परीक्षा परिणाम आज घोषित हो गया है अपना परिणाम जानने के लिए नीचे क्लिक करें ...
- *बूंदा - बांदी* गुनगुनाते भँवरों को दोष मत देना, ये तो रंगत खिलती कली के गाते हैं, बाग में कली कोई जो खिल जाए
बदल बदल के भी दुनिया को हम बदलते क्या - नवीन - मुहतरम बानी मनचन्दा की साहब ज़मीन ‘क़दम ज़मीं पे न थे राह हम बदलते क्या’ पर एक कोशिश।बदल बदल के भी दुनिया को हम बदलते क्या…?
ये जहर मेरे लहू में उतर गया कैसे..... -उदासी की आठवीं किस्‍त * * * * 'मैं होश में था...... तो उस पे मर गया कैसे...?
आँखें भी दिख रही हमें दो की जगह चार - चाँद अजनबी क्या दिल को भा गया है यार धड़कन-ए-दिल कहने लगी हो रहा हो प्यार आँखों में अपनी थे सजे जो सपने हजारों सपने सभी वो होने लगे चाँद पे निसार...
Old Age Home – वृद्धाश्रम - अभी कुछ दिन पूर्व अग्रवाल समाज के एक कार्यक्रम में नीमच जाने का अवसर मिला। युवाओं की स्‍वयंसेवी संस्था ने सुविधा युक्‍त वृद्धाश्रम का निर्माण कराया था…
क्या दूँ आज तुम्हें ..
समझ में नहीं आ रहा  क्या दूँ  तुम्हे आज मैं 
कैसे बनाऊं इस दिन को  खास मैं ...
बैठ कर सोंचा तो कुछ  समझ न  आया
कोई खुबसूरत सा तोहफा  नज़र न आया ...
Pratibha Verma पर Pratibha Verma
बच्चे तो कच्ची मिट्टी हैं

बच्चे तो कच्ची मिट्टी हैं, जैसे चाहो ढल जायेंगे.
जो राह दिखाओगे उनको, उन राहों पे बढ़ जायेंगे..
बच्चों का कोना पर Kailash Sharma
जिन्दगी तुझसे क्या सवाल - क्या शिकायत करूँ...

फूल चाहे तो फूल ही मिले फूलों में,
काँटों की शिकायत तुझसे क्यूँ करूँ...
नयी उड़ान पर उपासना सियाग
बादल तू जल्दी आना रे

काले काले बादल बताओ तुम कहाँ है तुम्हारा देश?
कहाँ से तुम आये ,जा रहे हो
कहाँ जहां होगा नया नया परिवेश।
दूर देश से आये हो तुम
थक कर हो गये हो चूर चूर… ?
मेरे विचार मेरी अनुभूति पर कालीपद प्रसाद
ओ पलाश !

*सुनो सुनो ओ! पलाश,
प्रसन्न देख तुम को बन में,
जागी इच्छा मेरे भी मन में…
सहज साहित्य पर सहज साहित्य
जो सहि दुःख पर छिद्र दुरावा ...लघु कथा,,,,डा श्याम गुप्त.... - * ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ..
" गुलमोहर का, “रूप” सबको भा रहा" हो गया मौसम गरम. सूरज अनल बरसा रहा। गुलमोहर के पादपों का रूप सबको भा रहा।। दर्द-औ-ग़म अपना छुपा, हँसते रहो हर हाल में…
धोनी रे मोनी रे तू समझे न इशारे -जिसे सब धोनी की चुप्‍पी माने बैठे हैं दरअसल, उसके लिए जिम्‍मेदार उनकी आस्‍तीन में छिपा कोई सांप भी हो सकता है जिसका उन्‍हें भी इल्‍म न हो…
- मज़ा घास हो जो हरी कोमल,घूमने में है मज़ा गुलाबी हो गाल या लब ,चूमने ने है मज़ा फलों वाली डाल हो तो , लूमने में है मज़ा और नशा हो प्यार का ...

कौटुम्बिक व्यभिचार क्यूँ बढ़ रहा है ? - वैसे तो यह साल बलात्कार के नाम रहा और मीडिया वालों ने तो सारे हिन्दुस्तान में हो रहे अलग अलग किस्म के बलात्कारों को सामने लाने की कोशिश…
'पहला पड़ाव..' - ... "राजधानी की यात्रा.. पहला पड़ाव हमारे प्रेम का.. याद है न..?? कल फिर से जा रही हूँ.. स्मृतियों को मिटाने.. चिपकी हैं जाने कबसे.. मीलों दौड़ती सडकों ...
मानसिक विलास -एक मित्र महोदय से कहा कि इस नगर में कोई ऐसा स्थान बतायें जहाँ चार पाँच घंटे शान्तिपूर्वक मिल सकें, पूर्ण निश्चिन्तता में। मित्र महोदय संशय से देखने लगते ...
"लीची होती बहुत रसीली" हरी**, **लाल और पीली-पीली!*** *लीची होती बहुत रसीली!!*** * गायब बाजारों से केले।*** *सजे हुए लीची के ठेले…
अग़ज़ल - 58 - हमें भी उम्मीद का एक आशियां बनाने दो कांटो भरी बेल पर कोई फूल खिलाने दो । क्या हुआ गर बिखेर दिए हैं तिनके किस्मत ने दूर जा चुकें हैं जो , उनको पास बुलाना...
सट्टा, आतंक, रेप, करप्शन... - व्यंग : कस्मे, वादे, प्यार, वफा सब... सट्टा, आतंक, रेप, करप्शन, रुके कभी हैं रुकेंगे क्या... कितना भी लिखलो चिल्लालो, दिखेंगे नारे, नारों का क्या. ...
ओ मेरे
ज़िन्दगी…एक खामोश सफ़र
कुछ आईने बार बार टूटा करते हैं कितना जोड़ने की कोशिश करो .....शायद रह जाता है कोई बाल बीच में दरार बनकर .......और ठेसों का क्या है वो तो फूलों से भी लग जाया करती हैं ......और मेरे पास तो आह का फूल ही है…
ज़िन्दगी…एक खामोश सफ़र  पर vandana gupta
आस्था या अंध-भक्ति

मुझे नहीं लगता कि कोई भी धार्मिक व्यक्ति कभी भी किसी बाबा या तांत्रिक के चक्कर में पड़ कर अपनी इज्ज़त-आबरू या पैसा बर्बाद कर सकता है... हाँ अंध-भक्त हमेशा ऐसा ही करते हैं…..
प्रेमरस.कॉम पर Shah Nawaz
सब तुम्हारे कारण हुआ पापा...

सब तुम्हारे कारण हुआ पापा............ "किस्सा-कहानी" पर बहुत दिनों के बाद एक कहानी पोस्ट की है मित्रो. अगर समय हो, और मन भी हो तो पढ लीजियेगा . मुझे बहुत खुशी होगी . आपको भी शायद कहानी अच्छी लगे…
अपनी बात...पर वन्दना अवस्थी दुबे
कार्टून :- अब तो नक्‍सवाद ख़त्‍म हो के रहेगा...

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून
अन्त में..
"जिन्दादिली का प्रमाण दो"

जिन्दा हो गर, तो जिन्दादिली का प्रमाण दो।
मुर्दों की तरह, बुज-दिली के मत निशान दो..

गुरुवार, मई 30, 2013

हिंसा किसी समस्या का समाधान नहीं ( चर्चा - 1260 )

आज की चर्चा में आप सबका हार्दिक स्वागत है 
कसली हिंसा हो या आतंकवाद का कोई अन्य रूप यह निंदनीय है । भले ही ये आतंकवादी संगठन अपनी कार्यवाही को उचित ठहराते रहें,  लेकिन हिंसा को उचित नहीं ठहराया जा सकता, हिंसा किसी समस्या का कोई समाधान नहीं । 
चलते है चर्चा की ओर
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मेरा फोटो
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मेरा फोटो
कुछ रचनाएं फेसबुक से ( नया प्रयोग अगर अच्छा लगे तो सूचित करें ) -
आज की चर्चा में बस इतना ही 
धन्यवाद 
आगे देखिए..."मयंक का कोना"
(1)
हल्ला बोल हल्ला बोल आईपीएल की खुल गई पोल 
अन्दर खाने कित्त्ते हैं झोल हो रही सबकी सिट्टी गोल...
तमाशा-ए-जिंदगीपरतुषार राज रस्तोगी
(2)
(3)
आधा सच...पर महेन्द्र श्रीवास्तव 
(4)
चेहरे पर चेहरा** - ट्रिङ्ग ट्रिङ्ग - हॅलो? - 
नमस्ते जी! - नमस्ते की ऐसी-तैसी! 
बात करने की तमीज़ है कि नहीं....
(5)
अनजाने ही मिले अचान
क एक दोपहरी जेठ मास में 
खड़े रहे हम बरगद नीचे तपती गरमी जेठ मास में----- 
प्यास प्यार की लगी हुई होंठ मांगते पीना 
सरकी चुनरी ने पोंछा बहता हुआ पसीना 
रूप सांवला हवा छू रही बेला महकी जेठ मास में---
मेरी धरोहर पर yashoda agrawal

बुधवार, मई 29, 2013

बुधवारीय चर्चा ---- 1259 सभी की अपने अपने रंग रूमानियत के संग .....!

नमस्कार मित्रों ...!
आज की बुधवारीय चर्चा में आपकी दोस्त शशि पुरवार आपका स्वागत करती है . चलिए आज हम सीधे लिंक्स की तरफ चलते है , कहीं रूमानियत .....कहीं  आस , कभी जेठ की जलन , सभी के अपने अपने रंग ......... देखिये इन फिजाओं के संग !
3

चाँद कैसा है........

अरुण कुमार निगम 
6

६. साथ नीम का

नवगीत की पाठशाला 
7

गर्मी का यह रूप

कल्पना रामानी 

आगे देखिए ..."मयंक का कोना"
(1)
Yatra, Discover Beautiful India पर  Manu Tyagi
(2)

Rhythm

कितनी ओल्ड फैशंड हो तुम इत्ती बड़ी सी बिंदी लगाती हो !!! 
कल सरे राह चलते चलते कह गयी एक महिला ...
Rhythm पर Neelima 
(3)

AAWAZ पर SACCHAI

(4)
कुचली गयी है कितनी 
जो जीवन का सरमाया है ......

उन्नयन (UNNAYANA)पर udaya veer singh

(5)
कहते हैं कि सुबह का भूला शाम को घर लौट ही आता है ..... लौट के जब घर आना ही है तो फिर ? वो ....घर से बाहर जाता ही क्यों है ? बार -बार ये सवाल मेरे.... दिमाग से टकराता है .....

My Expression पर  Dr.NISHA MAHARANA 

(6)
मेरी बेटी दीप्ती, जिसका विवाह 18/5/1913/संपन्न हुआ ओ प्यारी लली, 
बड़े नेहों से सींचा फूलों सी पली छोड़ बाबुल का घर ससुराल चली...

काव्यान्जलि पर धीरेन्द्र सिंह भदौरिया 

(7)

ताऊ डाट इन पर ताऊ रामपुरिया

(8)
नाते -रिश्ते जैसे खड़ी दीवारें , तपती धूप में खड़ी भीगती बारिश में , सर्द हवाओं के थपेड़े झेलती ... नारी ही बांधती बन कर छत की तरह सभी रिश्ते -नाते ...

नयी उड़ान पर उपासना सियाग 

(9)
इस आयोजन में हिन्दोस्तां के नामचीह्न शायर और वयोवृद्ध गीतकार गोपालदास नीरज भी उपस्थित थे इस अवसर पर मैं (डॉ,रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') ने श्री राज्यपाल को अपनी चार पुस्तकें "सुख का सूरज", "धरा के रंग", हँसता-गाता बचपन" और "नन्हे सुमन" भी भेंट करते हुए अपना काव्यपाठ भी किया...