मित्रों!
आज मंगलवार की फटाफट चर्चा हाजिर है।
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नवरात्रि और दशहरा का पर्व मेरे लिए हमेशा विशेष रहा है ! मेरे मन में माँ के “जागरण” के प्रति प्यार है ! मेरे बाबा हमेशा देवी माँ की पूजा में व्यस्त रहते थे, प्रतिदिन सुबह ३-४ घंटे उनकी पूजा होती है! तब मै अपने गाँव सुमेरपुर में ही रहता था! मै उनके साथ कभी कभी रात्रि जागरण में जाया करता था, बड़े अनंदनीय होते थे वो दिन! अब पूजा पाठ का वो प्रक्रम मेरे पिता जी अपना रहे है, मै बाबा और पिता जी के इस लगन-पूर्वक की जाने वाली पूजा को देखकर ही बड़ा हुआ हूँ...
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इन बनावट के उसूलों में धरा ही क्या है?
प्रीत हर दिल में जगाओ तो कोई बात बने।..
प्रीत हर दिल में जगाओ तो कोई बात बने।..
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छाया : सुनो माया, तुम्हारे पंख कहाँ हैं?
माया :पंख तो जब उतारे तभी से न जाने कहीं खो गए हैं।
छाया : तो अब क्या करोगी?
माया : नए पंख बना रही हूँ।
छाया : कब तक बन जायेंगे?
माया : मालूम नहीं।
छाया : तब तक ?
माया : तब तक धरती पर हूँ यहीं रहूंगी।....
माया :पंख तो जब उतारे तभी से न जाने कहीं खो गए हैं।
छाया : तो अब क्या करोगी?
माया : नए पंख बना रही हूँ।
छाया : कब तक बन जायेंगे?
माया : मालूम नहीं।
छाया : तब तक ?
माया : तब तक धरती पर हूँ यहीं रहूंगी।....
Vyom ke Paar...व्योम के पारपरAlpana Verma
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पता नहीं किधर से आया है वो पर बस्ती में घूमता फ़िरता सभी देखते हैं. कोई कहता है कि बस वाले रास्ते से आया है किसी ने कहा कि उस आदमी की आमद रेल से हुई है. मुद्दा साफ़ है कि बस्ती में अज़नबी आया अनजाना ही था. धीरे धीरे लोगों उसे पागल की उपाधी दे ही दी....
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सहते सहते सच झूठा हो जाता है
परबत कांधे का हलका हो जाता है...
मेरी धरोहर पर yashoda agrawal
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जब गोवा से लौट रहा था तो 15 अगस्त 2013 की सुबह ठीक साढे चार बजे पुणे से बीस किलोमीटर आगे निकलते ही मेरी रेल यात्राओं के एक लाख किलोमीटर पूरे हो गये। उस समय मैं गहरी नींद सो रहा था। अहमदनगर के पास जब आंख खुली तो इस बात की अनुभूति होना स्वाभाविक ही था क्योंकि इस बात की जानकारी मुझे थी जब रात सोया था। बधाई देने वालों में पहला व्यक्ति कमल था।
8 अप्रैल 2005 को पहली बार ट्रेन में बैठा था। एक लाख किलोमीटर यात्रा करने में 8 साल 4 महीने और 7 दिन लगे। वैसे अभी तक 604 बार 327 ट्रेनों में यात्रा की। 322 बार 29544 किलोमीटर पैसेंजर में, 208 बार 36596 किलोमीटर मेल एक्सप्रेस ट्रेनों में और 74 बार 35495 बार सुपरफास्ट ट्रेनों में सफर कर चुका हूं। जहां तक दर्जे की बात है तो 526 बार 50034 किलोमीटर साधारण दर्जे में, 72 बार 49218 किलोमीटर शयनयान में, 3 बार 1327 किलोमीटर सेकण्ड सीटिंग में, 2 बार 752 किलोमीटर थर्ड एसी में और 1 बार 303 किलोमीटर एसी चेयरकार में यात्रा की।
ये हुई आंकडों की बात। आंकडों को यहां क्लिक करके भी देखा जा सकता है।...
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असुविधा....पर Ashok Kumar Pandey
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बालकृति नन्हें सुमन से
एक बाल कविता
"गांधी टोपी"
गंजापन ढकने मेरीको टोपी,
मेरे सिर पर रहती है।
ठिठुरन से रक्षा करती हूँ ,
बार-बार यह कहती है।।
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मोहनप्रसाद सक्सेना बड़े बातूनी और खुशमिजाज इन्सान हैं. वे खुद को बहुत भाग्यशाली बताते रहे हैं. उनके छ: बेटे हैं: जय, विजय, संजय, अजय, धनञ्जय और सबसे छोटा पराजय. पराजय को बाद में स्कूल दाखिला के समय परंतप कर दिया गया. कोई जब उनसे पराजय नाम रखने की सार्थकता पूछता है तो वे बताते हैं कि ये आख़िरी बेटा उनकी नसबंदी के बाद पैदा हुआ इसलिए वे इसे अपनी और डॉक्टरों की पराजय के रूप में मानते हैं....
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तुम अमर बेल सी लिपटी हो मैं हरा पेड़ फलदार प्रिय/
तुम बिन लगता बैरागी सा तुम लाई स्वर्ण बहार प्रिय/ ...
गुज़ारिश पर सरिता भाटिया
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फूल की बातें सुनाकर वो गया, किस अदा से वक़्त काँटे बो गया ।
गाँव की ताज़ा हवा में था सफ़र, शहर आते ही धुएँ में खो गया ...
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ऐसी ही होती है मुहब्बत
हाथ स्पर्श मांगते हैं
रंग आखों में उतर आते हैं
ज़िन्दगी चुपके -चुपके
नज़्म लिखने लगती है ….
आँखों की बेचैनियाँ
खूबसूरती के सबसे सुंदर शब्द बन
मुस्कुराने लगती हैं...
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शरद में भी आ गया
गरजता बरसता सावन
कैसे जलेगा
और मरेगा दशहरे का रावण ?...
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मधुर गुंजन पर ऋता शेखर मधु
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साल दर साल मैंदानो और सड़को पर
तेरा मजमा हम लगाते हैं
राम के हाथों आज के दिन मारे गये रावण
विजया दशमी के दिन हमें खुद पता नहीं होता है
कि हम क्या जलाते हैं कितनी बार जल चुका है
अभी तक नहीं जल सका है...
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क्या सच्चा है क्या है झूठा अंतर करना नामुमकिन है*
*हमने खुद को पाया है बस खुदगर्जी के घेरे में * *
* *एक जमी वख्शी थी कुदरत ने हमको यारो लेकिन*
*हमने सब कुछ बाट दिया मेरे में और तेरे में ...
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गुरु नानक तीर्थाटन करते हुए मक्का-शरीफ पधारे। रात हो गई थी,
अतः वे समीप ही एक वृक्ष के नीचे सो गए।
सबेरे उठे तो उन्होंने अपने चारों ओर बहुत सारे मुल्लाओं को खड़ा पाया।
सबेरे उठे तो उन्होंने अपने चारों ओर बहुत सारे मुल्लाओं को खड़ा पाया।
उनमें से एक ने नानक देव को उठा देख डांटकर पूछा,
'कौन हो जी तुम, जो खुदा पाक के घर की ओर पांव किए सो रहे हो?'
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पुतले तो जल गए, रावण जिंदा रह गया।
देख कर हाल आदमी का, राम शर्मिंदा रह गया।।
सब कुछ सफेद देख, धोखा मत खाना साथी।
बाहर से चकाचक, अंदर से गंदा रह गया...
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मेरे अनुभव पर Pallavi saxena
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हमारे पूर्वजों के चलाये हजारों पर्व और त्यौहार पूरे नहीं पड़ते उत्सवप्रिय देवों को जभी तो वे नाचते गाते गुनगुनाते शामिल होते हैं लोसार, ओली व खमोरो ही नहीं है...
निरामिष पर Anurag Sharma
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अंतर्मंथनपरtarif dara
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उड़ उड़ कर चलने वाली
व्योम धरा रस भरने वाली
कहाँ कहाँ तू घूम के आई
कभी नर्मदा के तट से तुम
कभी ताप्ती से लड़ भिड़ आई...
मधु "मुस्कान "
वाह, बड़े ही रोचक व पठनीय सूत्र। छूट गये सूत्र पढ़ते हैं अभी।
जवाब देंहटाएंरोचक कड़ियाँ
जवाब देंहटाएंआभार आपका
आदरणीय शास्त्री जी मेरी अनुपस्थिति के कारण मंगल वार की चर्चा लगाने के लिए आपको हार्दिक धन्यवाद ,चर्चा मंच में सुन्दर सूत्रों का समावेश और आपका श्रम परिलक्षित हो रहा है बहुत- बहुत बधाई आपको
जवाब देंहटाएंविविधतापूर्ण कड़ियाँ। दशहरे की बधाई!
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक कड़ियाँ| धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा
जवाब देंहटाएंउल्लूक का आभार
राम का नहीं पता रावण को जिंदा रखना चाहते
को आज की चर्चा में जगह देनेके लिये !
Thanks Shastri ji
जवाब देंहटाएंJAI HO !
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिंक्स संयोजन !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रोचक सूत्र !
जवाब देंहटाएंRECENT POST : - एक जबाब माँगा था.
bahut badhiya rochak charcha hai . badhiya link mile... abhaar
जवाब देंहटाएंबहुत मेहनत से तैयार की गई चर्चा के लिये आभार.
जवाब देंहटाएंपठनीय सूत्रों के साथ सुंदर प्रस्तुति...आभार !!
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति...आभार !!
जवाब देंहटाएंऐसा शासन किस काम का.....
जवाब देंहटाएंमधु सिंह : हे बदली अब तू बतला दे
हटाएंउड़ उड़ कर चलने वाली
व्योम धरा रस भरने वाली
कहाँ कहाँ तू घूम के आई
कभी नर्मदा के तट से तुम
कभी ताप्ती से लड़ भिड़ आई...
मधु "मुस्कान "
कल ही तुमने चेनाब को लूटा
जवाब देंहटाएंपानी सब गागर भर लाई
बदली हो न तब कुछ बतलाये ये निपट गर्जन मेघ है क्लाउड ब्रस्ट (cloud burst )है। बढिया प्रस्तुति
मधु सिंह : हे बदली अब तू बतला दे
उड़ उड़ कर चलने वाली
व्योम धरा रस भरने वाली
कहाँ कहाँ तू घूम के आई
कभी नर्मदा के तट से तुम
कभी ताप्ती से लड़ भिड़ आई...
मधु "मुस्कान "
अरे तो बच्चे झूठ लिखें क्या ?आशाराम लिखें क्या ?चाहते तो वह भी लिख सकते थे ,आप तो सर्व गुण संपन्न हैं नेता जी।
जवाब देंहटाएं--
कार्टून :- दीवार फ़िल्म में यही बुराई है
काजल कुमार के कार्टून
डॉ साहब हेलमेट न पहनना भी लोग शान समझते हैं। चेन्नई में तो हमने देखा पूरा खानदान एक ही मोटरसाइकिल पे सेट हो चलता है। हेलमेट पहनना बेमानी है यहाँ। मुंबई का भी तकरीबन यही हाल रहता है। और तो और लोग गाड़ी की अगली सीट पर बैठ बेल्ट न बाँधना भी शान समझते हैं और मोबाइल तो कार स्टार्ट करते ही कान पे आ जाता है जैसे दोनों का जन्म जन्म का साथ रहा हो। कई तो बच्चा ड्राइव करते समय गोद में बिठा लेती हैं मैं फलाने की बीवी हूँ ट्रेफिक पुलिस या कोई भी पुलिस मेरा क्या कर लेगी। मेरा दर्जा तो मेरे पति से भी एक दर्जा ऊपर है वह कमांडर है मैं कैप्टेन हूँ। क्या कीजिएगा इन महान हस्तियों का।
जवाब देंहटाएंमोटरसाइकल चलाते समय सर के बालों से ज्यादा
सर की सुरक्षा आवश्यक है --
अंतर्मंथनपरtarif dara
अनुराग जी इस लिस्ट से आप क्रिसमस को बाहर रख सकते थे क्योंकि वह निर्विवाद सारी दुनिया में
जवाब देंहटाएंमनाया जाता है।
अलबत्ता त्योहारों का स्वरूप अब आलमी (अंतर -राष्ट्रीय )ही होता जा रहा है। हैलोवीन पर्व है मृत आत्माओं के आवाहन का पर्व है। लोग अपने घरों के बाहर उनके लिए खाना रख देते हैं। रोशनिया रखते हैं घर खुला रखते हैं ,जन विश्वास है पूर्वजों की आत्मा जीमने आतीं हैं अपने सम्बन्धियों के पास योरोप ही नहीं अमरीका में भी यह पर्व दीवानगी की हद तक मनाया जाता है। कई तो बा -कायदा खाने की मेज पे उनकी प्लेट लगाते हैं।
३१ अक्टूबर को मनाया जाता है यह पर्व। इन दिनों अमरीका में हेलोवीन फीवर तेज़ी पर है। हर घर की बाहर पम्पकिन रखा मिलेगा यकदम से गहरे पीले रंग का। इसकी लालटेन भी बनाई जाती है।
भूत -प्रेत -आत्माओं के मुखौटे यहाँ खूब बिकते हैं। हेलोवीन मांगने बच्चे घर घर जाते हैं -
होली मांगे उपला दिवाली मांगे तेल , .... वाला अंदाज़ है यहाँ भी।
अमृतपान - एक कविता
हमारे पूर्वजों के चलाये हजारों पर्व और त्यौहार पूरे नहीं पड़ते उत्सवप्रिय देवों को जभी तो वे नाचते गाते गुनगुनाते शामिल होते हैं लोसार, ओली व खमोरो ही नहीं है...
निरामिष पर Anurag Sharma
जवाब देंहटाएंबंदिश तो शायद आयद न हो पाए लेकिन जन शिक्षण ज़रूरी है। क्या गंगा में नहाने से पाप कटते हैं। ये सवाल जगद्गुरुकृपालु महराज जी से काशी की विद्वत परिषद् ने पूछा था -उनका उत्तर इस प्रकार था -
एक बोतल में पेशाब (मूत्र )भरके ,ढक्कन लगाके उसे गंगा में एक माह पड़ा रहने दो। क्या अब यह पवित्र हो जायेगी। भाव यहाँ यह है जब तक अन्दर की गंदगी (विकार )दूर नहीं होंगें बाहर के कर्म काण्ड से शरीर की यात्रा से कुछ होने वाला नहीं है। फिर चाहे वह कुम्भ स्नान हो या कांवड़ियों का रेला।
ऐसी आस्था किस काम की
! कौशल ! पर Shalini Kaushik -
भारत की सीताओं के दुखड़े होंगे जब तक दूर नहीं ,
जवाब देंहटाएंहे राम तुम्हारी रामायण होगी तब तक संपूर्ण नहीं।
भारत की संसद से होंगे जब तक रावण दूर नहीं ,
राधा का दुखड़ा तब तक होगा दूर नहीं।
प्रासंगिक सवाल उठाए हैं इस पोस्ट ने भारत एक गलीज़ सामाज बना हुआ है यहाँ का नागर बोध ,Civility महिलाओं को कोई सम्मान नहीं देती। भले अष्टमी पर उन्हें जिमाती हैं कन्या पूजती है भारतमाता लेकिन। .... सच वाही है जो आपने कहा है।
MOTHER'S WOMB CHILD'S TOMB .
क्या किसी दिन एक दशहरा ऐसा भी होगा ??
मेरे अनुभव पर Pallavi saxena
रावण के भण्डार भरे हैं राम भूखा रह गया।
जवाब देंहटाएंफैशन के दौर में गारंटी की इच्छा ना कर साथी।
अब तो भंरूये भी दुआ मांगते, धंधा मंदा रह गया।
(भड़वे.भड़ूवे ,दलाल वैश्या के)
रावण जिंदा रह गया!
पुतले तो जल गए, रावण जिंदा रह गया।
देख कर हाल आदमी का, राम शर्मिंदा रह गया।।
सब कुछ सफेद देख, धोखा मत खाना साथी।
बाहर से चकाचक, अंदर से गंदा रह गया...
चौथाखंभा पर ARUN SATHI
पा गया ख़ुदगर्ज़ियों का राजपथ,
जवाब देंहटाएंरास्ता जो भी सियासत को गया ।
बे -बाक कहा है जो भी कहा है इस गजल में। खूबसूरत काबिले दाद हर शैर गजल का। शुक्रिया राजेन्द्र जी पढ़वाने का।
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लौटकर आया नहीं
फूल की बातें सुनाकर वो गया, किस अदा से वक़्त काँटे बो गया ।
गाँव की ताज़ा हवा में था सफ़र, शहर आते ही धुएँ में खो गया ...
भूली-बिसरी यादें पर राजेंद्र कुमार
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तुम चूल्हा चक्की गैस प्रिय ,
जवाब देंहटाएंमैं राशन कार्ड कुंवारा सूं।
तुम जीवन का आधार प्रिय
तुम अमर बेल सी लिपटी हो मैं हरा पेड़ फलदार प्रिय/
तुम बिन लगता बैरागी सा तुम लाई स्वर्ण बहार प्रिय/ ...
तुम ही जीवन का सार प्रिय ,
कुल जीवन का अभिप्राय प्रिय।
गुज़ारिश पर सरिता भाटिया
परन्तप गीता में अर्जुन को कहा गया है। परंतप का अर्थ है शत्रु को तपाने वाला।
जवाब देंहटाएंकायस्थ कुल में जन्म लिया मेरे पुरखों ने इतना ढाला ,
मेरे लोहू के अन्दर है पचहत्तर प्रतिशत हाला।
क्लेप्टोमेनिया एक मानसिक बीमारी होती है, जिसमें रोगी बिना कोई आर्थिक लाभ सोचते हुए भी उठाईगिरी कर लेता है.
IT IS AN OBSESSION .
बहुत दिलचस्प जानकारी परक रोचक अभिलेख। बधाई।
क्लेप्टोमेनिया
मोहनप्रसाद सक्सेना बड़े बातूनी और खुशमिजाज इन्सान हैं. वे खुद को बहुत भाग्यशाली बताते रहे हैं. उनके छ: बेटे हैं: जय, विजय, संजय, अजय, धनञ्जय और सबसे छोटा पराजय. पराजय को बाद में स्कूल दाखिला के समय परंतप कर दिया गया. कोई जब उनसे पराजय नाम रखने की सार्थकता पूछता है तो वे बताते हैं कि ये आख़िरी बेटा उनकी नसबंदी के बाद पैदा हुआ इसलिए वे इसे अपनी और डॉक्टरों की पराजय के रूप में मानते हैं....
टोपी पुराण सुन्दर रोचक।
जवाब देंहटाएंटोपी पहिन सुभाषचन्द्र,
लाखों में पहचाना जाता।
टोपी वाले नेता का कद,
ऊँचा है माना जाता।।
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जवाब देंहटाएं"गांधी टोपी"
बालकृति नन्हें सुमन से
एक बाल कविता
"गांधी टोपी"
गंजापन ढकने मेरीको टोपी,
मेरे सिर पर रहती है।
ठिठुरन से रक्षा करती हूँ ,
बार-बार यह कहती है।।
नन्हे सुमन
टोपी पुराण सुन्दर रोचक।
टोपी पहिन सुभाषचन्द्र,
लाखों में पहचाना जाता।
टोपी वाले नेता का कद,
ऊँचा है माना जाता।।
टोपी पुराण सुन्दर रोचक।
जवाब देंहटाएंटोपी पहिन सुभाषचन्द्र,
लाखों में पहचाना जाता।
टोपी वाले नेता का कद,
ऊँचा है माना जाता।।
सब बीते कल की बातें हैं ,
कुछ ऐसा अब न कहा जाता।
सहते सहते सच झूठा हो जाता है
जवाब देंहटाएंपरबत कांधे का हलका हो जाता है
डरते डरते कहना चाहा है जब भी
कहते कहते क्या से क्या हो जाता है
हल्की फुल्की बारिश में ढहते देखा
पुल जब रिश्तों का कच्चा हो जाता है
धीरे धीरे दुनिया रंग बदलती है
कल का मज़हब अब फ़ितना हो जाता है
ईश्वर को भी बहुतेरे दुःख हैं यारो
वो भी भक्तों से रुसवा हो जाता है
भीतर बहते दरिया मरते जाते हैं
धीरे-धीरे सब सहरा हो जाता है
पत्ता पत्ता “राज ” बग़ावत कर बैठे
जंगल का जंगल नंगा हो जाता है
-राजमोहन चौहान 8085809050
बहुत खूब ,बहुत खूब ,बहुत खूब।
पत्ता पत्ता “राज ” बग़ावत कर बैठे...राजमोहन चौहान
सहते सहते सच झूठा हो जाता है
परबत कांधे का हलका हो जाता है...
नहीं साथ देगा कुटुम और कबीला
जवाब देंहटाएंकठिन सी लगेगी डगर धीरे-धीरे
यही फलसफा जिन्दगी का है यारों
कटेगी अकेले उमर धीरे-धीरे
नहीं “रूप” की धूप हरदम खिलेगी
अँधेरे में होगा सफर धीरे-धीरे
बहुत खूब कहा है।
बहुत खूब ,बहुत खूब ,बहुत खूब।
सिर्फ पुतलों के जलाने से फायदा क्या है?
दिल के रावण को जलाओ तो कोई बात बने।
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जवाब देंहटाएं"रावण को जलाओ"
इन बनावट के उसूलों में धरा ही क्या है?
प्रीत हर दिल में जगाओ तो कोई बात बने।..
उच्चारण
बहुत खूब ,बहुत खूब ,बहुत खूब।
सिर्फ पुतलों के जलाने से फायदा क्या है?
दिल के रावण को जलाओ तो कोई बात बने।
जवाब देंहटाएंछाया : जब तक ये पूरे होंगे, तुम उड़ना भूल जाओगी माया तब तक।
माया : पता नहीं, लेकिन आखिरी सांस तक प्रयास रहेगा कि पंखों को पा सकूँ, चाहे उड़ना संभव हो या नहीं।
छाया : ये कैसी चाहत है माया?
माया : बिलकुल वैसी ही जैसी चातक को बरखा की पहली बूंदों की होती है।
बेहद के आशा वादी स्वर अरी बावली !ये पंख ही तो मेरी ज़िन्दगी हैं तू इतना भी नहीं जानती पूछे जा रही है सवाल दर सवाल।
मुक्त - उन्मुक्त
छाया : सुनो माया, तुम्हारे पंख कहाँ हैं?
माया :पंख तो जब उतारे तभी से न जाने कहीं खो गए हैं।
छाया : तो अब क्या करोगी?
माया : नए पंख बना रही हूँ।
छाया : कब तक बन जायेंगे?
माया : मालूम नहीं।
छाया : तब तक ?
माया : तब तक धरती पर हूँ यहीं रहूंगी।....
Vyom ke Paar...व्योम के पारपरAlpana Verma