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मंगलवार, अक्टूबर 22, 2013

मंगलवारीय चर्चा---1406- करवाचौथ की बधाई

आज की मंगलवारीय  चर्चा में आप सब का स्वागत है राजेश कुमारी की आप सब को नमस्ते , आप सब का दिन मंगल मय हो करवाचौथ की हार्दिक बधाई ,अब चलते हैं आपके प्यारे ब्लॉग्स पर 

वक्‍़त के पन्‍नों पर !!!

सदा at SADA

राह तयकर इक नदी सी

नीरज गोस्वामी at नीरज 

First glimpse - Primo scorcio - पहली झलक

राजेंद्र कुमार at भूली-बिसरी यादें

धर्म,धर्मनिरपेक्षता और धर्मान्धता !

संतोष त्रिवेदी at बैसवारी baiswari
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राष्ट्र है तो हम हैं...

udaya veer singh at उन्नयन (UNNAYANA)

हाँ! यही कर सकता हूँ मैं

निहार रंजन at बातें अपने दिल की -
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अनंत का अभिनन्दन है

Ashok Vyas at Naya Din Nayee Kavita

राम, राम क्यों हैं .......

सूखी पंखुड़ियाँ

डॉ.सुनीता at समय-सुनीता -

पिंजरे की तीलियों से बाहर आती मैना की कुहुक- 

सुधा अरोड़ा

Shobha Mishra at फरगुदिया 

खनखनाहट की पाजेब

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आज की चर्चा यहीं समाप्त करती हूँ  फिर चर्चामंच पर हाजिर होऊँगी

कुछ नए सूत्रों के साथ तब तक के लिए शुभ विदा बाय बाय ||


"मयंक का कोना"
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वही भीगा सा मौसम है, बरस के चल दिये बादल,
वही ठण्डी हवाओँ से लिपट के सो रहा हूँ मैं,

वही उन्माद का मौसम, वही बेचैनियोँ के पल,
तुम्हारी यादों के सीने से लगा के रो रहा हूँ मैं...
मेरी धरोहर पर yashoda agrawal 
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 एक शब्द रूप हूँ ...... 
प्रतिनिधि हूँ उसका जो अलौकिक है 
परलौकिक है अदृश्य है अस्पर्शनीय है 
किन्तु श्रब्य है चेतन है गतिमान है 
वह उत्पत्ति का ...
मेरे विचार मेरी अनुभूति पर कालीपद प्रसाद
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कुछ लिंक
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फिर एक दिन अपने "मोहन" को भी सोने से तौलेंगे।
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अजब खजाना, गजब खजाना,

अजब खजाना, गजब खजाना, महा खजाना
संतो की महिमा को कब किसने जाना।।
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पहेली (चोका विधा) 

पहेली बूझ !
जगपालक कौन ?
क्यो तू मौन ।
नही सुझता कुछ ?
भूखे हो तुम ??
नही भाई नही तो
बता क्या खाये ?
तुम कहां से पाये ??
--
मेरी समझ में आज तक यह बात नहीं आयी है कि 
यह क्यों कहा जाता है कि झूठ के पैर नहीं होते. 
अब अगर झूठ के पैर नहीं होते, 
तो फिर वह चलता कैसे...
रात के ख़िलाफ़ पर अरविन्द कुमार 
--

हायकु गुलशन..पर sunita agarwal 
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! कौशल ! पर Shalini Kaushik
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ॐ ..प्रीतम साक्षात्कार ..ॐ पर सरिता भाटिया
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तैंतीस करोड़ देवताओं को क्यों गिनने जाता है
तैंतीस करोड़ देवताओं की बात जब भी होती है 
दिमाग घूम जाता है 
बारह पंद्रह देवताओं से घर का मंदिर भर जाता है 
कुछ पूजे जाते हैं कुछ के नाम को भी याद नहीं रखा जाता है 
क्यों....
उल्लूक टाईम्स पर Sushil Kumar Joshi 
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झरोख़ा पर निवेदिता श्रीवास्तव
--
चादर भी है, तकिया भी है,
बिछा हुआ है नर्म बिछौना।
रूठ गयी है निंदिया रानी,
कैसे आये स्वप्न सलोना?
चन्दा झाँक रहा है नभ से,
रात दुल्हनिया बनी हुई है।
मधुर मिलन की अभिलाषा में,
पलकें मेरी तनी हुई हैं।
युगों-युगों से रिक्त पड़ा है,
अब भी मेरे मन का कोना।..
--
"सिमट रही खेती सारी"
काव्य संग्रह 'धरा के रंग' से एक गीत

"सिमट रही खेती सारी"
सब्जी, चावल और गेँहू की, सिमट रही खेती सारी। 
शस्यश्यामला धरती पर, उग रहे भवन भारी-भारी।। 
"धरा के रंग"
--
"मेरे प्रियतम"
कर रही हूँ प्रभू से यही प्रार्थना।
जिन्दगी भर सलामत रहो साजना।।
उच्चारण

15 टिप्‍पणियां:

  1. रोचक व पठनीय सूत्र..सबको त्योहार की शुभकामनायें।

    जवाब देंहटाएं
  2. बेहतरीन लिंकों के चयन के साथ बहुत ही सुंदर चर्चा, आपका आभार आदरेया।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर गुलदस्ते की भाति सजी है आज आपकी ये चर्चा रसीली भी है..काजल कुमार का चुटीला व्यंग भी समयोचित है. करवा चौथ पर विशेष रचनाएँ मनमोहक हैं. बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  4. मेरे ब्लॉग को भी शामिल कीजिए
    धन्यवाद.
    http://iwillrocknow.blogspot.in/

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदर है आज की चर्चा उल्लूक का "तैंतीस करोड़ देवताओं को क्यों गिनने जाता है" को शामिल करने पर आभार !

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत ही सुंदर चर्चा, आपका आभार .

    जवाब देंहटाएं
  7. उम्दा लिंक्स। जीवन के विविध रूप रंग के साथ साथ करवा चौथ की महिमा उससे जुड़े भावों को साकार करती रचनायो के मध्य मेरी रचना को शामिल करने के लिए हार्दिक आभार आदरणीय ।सादर नमन :)

    जवाब देंहटाएं
  8. सुन्दर लिक्स
    मेरी रचना को शामिल करने के लिए हार्दिक आभार

    जवाब देंहटाएं
  9. शुक्रिया शुक्रिया शुक्रिया !हमारे सेतु पिरोने का सुन्दर सेतु शानदार चर्चा।

    जवाब देंहटाएं
  10. जन्म-ज़िन्दग़ी भर रहे, सबका अटल सुहाग।
    बेटों-बहुओं में रहे, प्रीत और अनुराग।४।

    अति सुन्दर सार्थक सन्देश। सौभाग्य माँ बाप के साथ रहने का। उनका आशीष लेते रहने का।

    जवाब देंहटाएं

  11. कर रही हूँ प्रभू से यही प्रार्थना।
    जिन्दगी भर सलामत रहो साजना।।

    चन्द्रमा की कला की तरह तुम बढ़ो,
    उन्नति की सदा सीढ़ियाँ तुम चढ़ो,
    आपकी सहचरी की यही कामना।
    जिन्दगी भर सलामत रहो साजना।।

    आभा-शोभा तुम्हारी दमकती रहे,
    मेरे माथे पे बिन्दिया चमकती रहे,
    मुझपे रखना पिया प्यार की भावना।
    जिन्दगी भर सलामत रहो साजना।।

    तीर्थ और व्रत सभी हैं तुम्हारे लिए,
    चाँद-करवा का पूजन तुम्हारे लिए,
    मेरे प्रियतम तुम्ही मेरी आराधना।
    जिन्दगी भर सलामत रहो साजना।।

    सुन्दर राग जीवन का साज सजना का साथ। बढ़िया प्रासंगिक प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
  12. पर्यावरण सचेत आधुनिक जीवन की झर्बेरियाँ लिए है यह रचना अपने सीने में प्यार लिए है।

    काव्य संग्रह 'धरा के रंग' से एक गीत

    "सिमट रही खेती सारी"
    सब्जी, चावल और गेँहू की, सिमट रही खेती सारी।
    शस्यश्यामला धरती पर, उग रहे भवन भारी-भारी।।
    "धरा के रंग"
    पर्यावरण सचेत आधुनिक जीवन की झर्बेरियाँ लिए है यह रचना अपने सीने में प्यार लिए है।

    जवाब देंहटाएं
  13. बेहतरीन लिंक्‍स संयोजन एवं प्रस्‍तुति

    जवाब देंहटाएं

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