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सोमवार, अक्टूबर 21, 2013

पिया से गुज़ारिश :चर्चामंच 1405

शुभम दोस्तों 
मैं 
सरिता भाटिया 
चर्चामंच 1405 पर ले आई हूँ 

चलो भर लें उड़ान

अपनो के लिए

शरद पूर्णिमा

यह सूखी झील सी आँखें

पंछी गीत सुनाएँ

पिंजरे की मैना 

खुदा खिलाफ रहे 

सब कुछ खोकर घर को बैठे

यादें

भीड़

आँसू का अस्तित्व

बाबू जी 

देश का भेष 

राजा रामबक्ष का खजाना
MR & PR

सोमनाथ की कथा 

हृदय कलश जब छलकेगा 

CBI
काजल कुमार 

सुनते हुए यह गीत आनंद लीजिए चर्चा का 

दीजिए इज़ाज़त 
बड़ों को नमस्कार 
छोटों को प्यार
--
"मयंक का कोना"
--
आज मैं चुप हूँ

मैं चुप हूँ बाहर से 
पर भीतर ना जाने कितने वार्तालाप चलते हैं 
और मेरी रूह जख्मो से भरी रिसती हैं ...
Rhythm पर नीलिमा शर्मा
--
सुबह सुबह तोड़-फोड़, माओवादियों से टकराव, 
जलते टायरों की बदबू और मौत से सामना
bspabla-nepal
ज़िंदगी के मेले पर बी एस पाबला 

--
रात ढले मुझको ये क्या हो जाता है...सौरभ शेखर

ताक़त का जिसको नश्शा हो जाता है 
उसका लहजा ज़हर-बुझा हो जाता है 
रुकता है इक रहरौ पास तमाशे के 
देखते-देखते इक मजमा हो जाता है...
मेरी धरोहर पर yashoda agrawal
--
हमने कितना प्यार किया था

हमने कितना प्यार किया था. 
अर्ध्द- रात्रि में तुम थीं मैं था, 
मदमाता तेरा यौवन था , 
चिर - भूखे भुजपाशो में बंध, 
अधरों का रसपान किया था...
काव्यान्जलि पर धीरेन्द्र सिंह भदौरिया 
--
दो छंद ....डा श्याम गुप्त...
सृजन मंच ऑनलाइन
सवैया..... छलके
छलके सत-शुचि जो विचार रहें, तिनकी भाषा कर्मनि छलके,छलके शुभ-कर्म की आभा से, आत्मा की शुचिता मन छलके....-- कुंडली छंद .....छंद
गति जाने नहीं छंद की, छंद छंद चिल्लाय,अनुशासन युत कथ्य जो, कविता वही कहाय...

सृजन मंच ऑनलाइन
--
कुण्डलिया : प्रेम पात सब झर गये
पीपल अब सठिया गया
,रहा रात भर खाँस
प्रेम पात सब झर गये , चढ़-चढ़ जावै साँस..
सृजन मंच ऑनलाइन पर 
अरुण कुमार निगमआदित्य नगर , दुर्ग (छत्तीसगढ़)विजय नगर , जबलपुर (म.प्र.)
--
एक की हो रही पहचान है 
एक पी रहा कड़ुआ जाम है !
अगला आदमी भी कितना परेशान है 
अपनी एक पहचान बनाने की कोशिश में 
हो रहा हलकान है...
उल्लूक टाईम्स पर Sushil Kumar Joshi

--
ज़िन्दगी
1. 
लम्हों की लड़ी 
एक-एक यूँ जुड़ी 
ज़िन्दगी ढली । 
2. 
गुज़र गई 
जैसे साज़िश कोई 
तमाम उम्र ...
लम्हों का सफ़र पर डॉ. जेन्नी शबनम 

--
पर बैठा रहा सिरहाने पर....
तू प्यार मुझे तन्हाई कर 
बस शाने पर अब रख ...
काव्य मंजूषा पर स्वप्न मञ्जूषा 

--
खनखनाहट की पाजेब
तुम्हारी हँसी में सुर है लय है ताल है रिदम है एक संगीत है 
मानो मंदिर में घंटियाँ बज उठी हों 
और आराधना पूरी हो गयी हो 
जब कहा उसने हँसी की खिलखिलाहट में 
हँसी के चौबारों पर सैंकडों गुलाब खिल उठे ...
ज़ख्म…जो फूलों ने दिये पर vandana gupta 

--
तुम्हारे संग कुछ पल चाहता हूँ
जानता हूँ जगत मुझसे दूर होगा
पर तुम्हारे संग कुछ पल चाहता हूँ।

कठिन होगी यात्रा, राहें कँटीली,
व्यंजनायें मिलेंगी चुभती नुकीली,
कौन समझेगा हमारी वेदना को
नहीं देखेगा जगत ये आँख गीली,

प्यार अपना हम दुलारेंगे अकेले
बस तुम्हारे साथ का बल चाहता हूँ।....
मानसी पर मानोशी

--
"उनके आने से"
काव्य संग्रह "सुख का सूरज" से
मन में शहनाई सी बजती, उनके आने से
आगलों पर अरुणाई सजती, उनके आने से...
सुख का सूरज

25 टिप्‍पणियां:

  1. चलो भरलें उड़ान सोमनाथ तक |
    बढ़िया लिंक्स |

    जवाब देंहटाएं
  2. खूबसूरत.पठनीय लिंक संग्रह

    जवाब देंहटाएं
  3. हुई क्या भूल हमका , ,

    बलमवा आ बता जाना।

    ''पिया से गुज़ारिश''

    तुम्हारी आरजू बाकी ,

    नहीं कुछ और अब पाना।

    बढ़िया अशार लिख मारे ,

    आपकी देखा देखी हम औरन ने दो चार,

    बालम तुम आके पढ़ जाना।

    सजन दो छोड़ तरसाना।

    जवाब देंहटाएं
  4. थाती है यह जानकारी सांस्कृतिक आध्यात्मिक प्रसंगों की कृष्ण विलास की।

    शरद पूर्णिमा
    सरिता भाटिया

    जवाब देंहटाएं
  5. जिन्हें भगवान् दुःख देते हैं पहला काम यह करते हैं उनकी सुध (मति )हर लेते हैं।इसीलिए ये बावले चुनिन्दा व्यवसाइयों पर छापे मर रहे हैं।

    बढ़िया चित्र व्यंग्य

    CBI
    काजल कुमार



    CBI
    काजल कुमार

    जवाब देंहटाएं
  6. सुन्दर एहसासात की पोस्ट सशक्त सन्देश देती हुई जीवन के संघर्षों के प्रति।

    आँसू का अस्तित्व
    डॉ रूप शास्त्री जी

    जवाब देंहटाएं
  7. बढ़िया प्रस्तुति। जानकारी इतिहासिक और सामाजिक महत्व की मुहैया करवाई है आपने। आदमी दिमाग का अंधा नहीं होना चाहिए क्योंकि देखता दिमाग है आँख नहीं आँख तो एक उपकरण हैं दिमाग के मातहत काम करने वाला अलबत्ता उसकी सलामती जरूरी है। एक आँख हजार नियामत।

    यह सूखी झील सी आँखें
    पुरुषोत्तम पांडेय

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत सुन्दर है डॉ साहब भाषा में प्रवाह है शैली में माधुर्य विषय अनुरूप प्रांजल भाषा।

    सवैया..... छलके
    छलके सत-शुचि जो विचार रहें, तिनकी भाषा कर्मनि छलके,छलके शुभ-कर्म की आभा से, आत्मा की शुचिता मन छलके....-- कुंडली छंद .....छंद
    गति जाने नहीं छंद की, छंद छंद चिल्लाय,अनुशासन युत कथ्य जो, कविता वही कहाय...
    सृजन मंच ऑनलाइन

    जवाब देंहटाएं
  9. सशक्त अभिव्यंजना पीपल के मिस मेरी तेरी उसकी बात पीपल का मानवीकरण।

    कुण्डलिया : प्रेम पात सब झर गये
    पीपल अब सठिया गया,रहा रात भर खाँस
    प्रेम पात सब झर गये , चढ़-चढ़ जावै साँस..

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत उम्दा लिंक्स संयोजन ...! मेरी पोस्ट को स्थान देने के लिए आभार,शास्त्री जी,,,

    RECENT POST -: हमने कितना प्यार किया था.

    जवाब देंहटाएं
  11. बहुत बढ़िया लिंक्स संयोजन, बढ़िया प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
  12. सुंदर सूत्र संकलन सुंदर चर्चा
    "एक की हो रही पहचान है
    एक पी रहा कड़ुआ जाम है"
    को स्थान देने के लिये उल्लूक का आभार !

    जवाब देंहटाएं
  13. मेरे लेख को स्थान देने के लिए आप का आभार अगर आप ने मेरा पूरा नाम "अंकित कुमार हिन्दू " लिखा होता तो आप की कृपा होती ; एक बार पुनः धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  14. बहुत सुन्दर सार्थक चर्चा ,बधाई सरिता जी

    जवाब देंहटाएं
  15. बहुत मनभावन लिंक्स दिए हैं सरिता जी ! मेरी रचना को भी आज के मंच पर स्थान दिया ! आभार आपका !

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  16. atyant sundar links sammilit kiye hain aapne....bahut-bahut dhanyawad, meri ghazal ko sthan dene hetu, sarita bahan. sabhi sathi rachnakaron ko badhai.

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  17. ---अच्छे अच्छे सूत्र हैं....
    सच कहा सागर हैं आंसू ,
    कष्ट करते उजागर हैं आंसू |
    भाव की उमडन है आंसू ,
    प्रीति की गागर हैं आंसू |

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  18. सुन्दर लिनक्स मेरा रचना को सम्मान देने के लिय शुक्रिया ..कल नेट नही था सो आज ही आ पाई हूँ यहाँ :)

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  19. बहुत ही सुंदर चर्चा, आपका आभार

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  20. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  21. आज नेटवर्क की सुविधा उपलब्ध होने पर उपस्थित हो सका | इस चर्चामंच पर मेरी मनोव्यथा को प्रकाशित करने हेतु बहिन सरिता भाटिया को धन्यवाद ! आगे, कथा का अगला भाग आज प्रस्तुत है !

    जवाब देंहटाएं

"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

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