शुभम दोस्तों
मैं
सरिता भाटिया
''पिया से गुज़ारिश''
चर्चामंच 1405 पर ले आई हूँ
चलो भर लें उड़ान
अपनो के लिए
शरद पूर्णिमा
यह सूखी झील सी आँखें
पंछी गीत सुनाएँ
पिंजरे की मैना
खुदा खिलाफ रहे
सब कुछ खोकर घर को बैठे
यादें
भीड़
आँसू का अस्तित्व
बाबू जी
देश का भेष
राजा रामबक्ष का खजाना
सोमनाथ की कथा
हृदय कलश जब छलकेगा
CBI
काजल कुमार
सुनते हुए यह गीत आनंद लीजिए चर्चा का
दीजिए इज़ाज़त
बड़ों को नमस्कार
छोटों को प्यार
--
"मयंक का कोना"
--
आज मैं चुप हूँ
मैं चुप हूँ बाहर से
पर भीतर ना जाने कितने वार्तालाप चलते हैं
और मेरी रूह जख्मो से भरी रिसती हैं ...
Rhythm पर नीलिमा शर्मा
--
सुबह सुबह तोड़-फोड़, माओवादियों से टकराव,
जलते टायरों की बदबू और मौत से सामना
ज़िंदगी के मेले पर बी एस पाबला
--
रात ढले मुझको ये क्या हो जाता है...सौरभ शेखर
ताक़त का जिसको नश्शा हो जाता है
उसका लहजा ज़हर-बुझा हो जाता है
रुकता है इक रहरौ पास तमाशे के
देखते-देखते इक मजमा हो जाता है...
मेरी धरोहर पर yashoda agrawal
--
हमने कितना प्यार किया था
हमने कितना प्यार किया था.
अर्ध्द- रात्रि में तुम थीं मैं था,
मदमाता तेरा यौवन था ,
चिर - भूखे भुजपाशो में बंध,
अधरों का रसपान किया था...
काव्यान्जलि पर धीरेन्द्र सिंह भदौरिया
--
दो छंद ....डा श्याम गुप्त...
सवैया..... छलके
छलके सत-शुचि जो विचार रहें, तिनकी भाषा कर्मनि छलके,छलके शुभ-कर्म की आभा से, आत्मा की शुचिता मन छलके....-- कुंडली छंद .....छंद
गति जाने नहीं छंद की, छंद छंद चिल्लाय,अनुशासन युत कथ्य जो, कविता वही कहाय...
सृजन मंच ऑनलाइन
--
कुण्डलिया : प्रेम पात सब झर गये
पीपल अब सठिया गया,रहा रात भर खाँस
प्रेम पात सब झर गये , चढ़-चढ़ जावै साँस..
सृजन मंच ऑनलाइन पर
अरुण कुमार निगमआदित्य नगर , दुर्ग (छत्तीसगढ़)विजय नगर , जबलपुर (म.प्र.)
--
एक की हो रही पहचान है
एक पी रहा कड़ुआ जाम है !
अगला आदमी भी कितना परेशान है
अपनी एक पहचान बनाने की कोशिश में
हो रहा हलकान है...
उल्लूक टाईम्स पर Sushil Kumar Joshi
--
ज़िन्दगी
1.
लम्हों की लड़ी
एक-एक यूँ जुड़ी
ज़िन्दगी ढली ।
2.
गुज़र गई
जैसे साज़िश कोई
तमाम उम्र ...
लम्हों का सफ़र पर डॉ. जेन्नी शबनम
--
पर बैठा रहा सिरहाने पर....
तू प्यार मुझे तन्हाई कर
बस शाने पर अब रख ...
काव्य मंजूषा पर स्वप्न मञ्जूषा
--
खनखनाहट की पाजेब
तुम्हारी हँसी में सुर है लय है ताल है रिदम है एक संगीत है
मानो मंदिर में घंटियाँ बज उठी हों
और आराधना पूरी हो गयी हो
जब कहा उसने हँसी की खिलखिलाहट में
हँसी के चौबारों पर सैंकडों गुलाब खिल उठे ...
ज़ख्म…जो फूलों ने दिये पर vandana gupta
--
तुम्हारे संग कुछ पल चाहता हूँ
जानता हूँ जगत मुझसे दूर होगा
पर तुम्हारे संग कुछ पल चाहता हूँ।
कठिन होगी यात्रा, राहें कँटीली,
व्यंजनायें मिलेंगी चुभती नुकीली,
कौन समझेगा हमारी वेदना को
नहीं देखेगा जगत ये आँख गीली,
प्यार अपना हम दुलारेंगे अकेले
बस तुम्हारे साथ का बल चाहता हूँ।....
मानसी पर मानोशी
--
"उनके आने से"
सुख का सूरज
--
"मयंक का कोना"
--
आज मैं चुप हूँ
मैं चुप हूँ बाहर से
पर भीतर ना जाने कितने वार्तालाप चलते हैं
और मेरी रूह जख्मो से भरी रिसती हैं ...
Rhythm पर नीलिमा शर्मा
--
सुबह सुबह तोड़-फोड़, माओवादियों से टकराव,
जलते टायरों की बदबू और मौत से सामना
ज़िंदगी के मेले पर बी एस पाबला
--
रात ढले मुझको ये क्या हो जाता है...सौरभ शेखर
ताक़त का जिसको नश्शा हो जाता है
उसका लहजा ज़हर-बुझा हो जाता है
रुकता है इक रहरौ पास तमाशे के
देखते-देखते इक मजमा हो जाता है...
मेरी धरोहर पर yashoda agrawal
--
हमने कितना प्यार किया था
हमने कितना प्यार किया था.
अर्ध्द- रात्रि में तुम थीं मैं था,
मदमाता तेरा यौवन था ,
चिर - भूखे भुजपाशो में बंध,
अधरों का रसपान किया था...
काव्यान्जलि पर धीरेन्द्र सिंह भदौरिया
--
दो छंद ....डा श्याम गुप्त...
सवैया..... छलके
छलके सत-शुचि जो विचार रहें, तिनकी भाषा कर्मनि छलके,छलके शुभ-कर्म की आभा से, आत्मा की शुचिता मन छलके....-- कुंडली छंद .....छंद
गति जाने नहीं छंद की, छंद छंद चिल्लाय,अनुशासन युत कथ्य जो, कविता वही कहाय...
सृजन मंच ऑनलाइन
--
कुण्डलिया : प्रेम पात सब झर गये
पीपल अब सठिया गया,रहा रात भर खाँस
प्रेम पात सब झर गये , चढ़-चढ़ जावै साँस..
सृजन मंच ऑनलाइन पर
अरुण कुमार निगमआदित्य नगर , दुर्ग (छत्तीसगढ़)विजय नगर , जबलपुर (म.प्र.)
--
एक की हो रही पहचान है
एक पी रहा कड़ुआ जाम है !
अगला आदमी भी कितना परेशान है
अपनी एक पहचान बनाने की कोशिश में
हो रहा हलकान है...
उल्लूक टाईम्स पर Sushil Kumar Joshi
--
ज़िन्दगी
1.
लम्हों की लड़ी
एक-एक यूँ जुड़ी
ज़िन्दगी ढली ।
2.
गुज़र गई
जैसे साज़िश कोई
तमाम उम्र ...
लम्हों का सफ़र पर डॉ. जेन्नी शबनम
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पर बैठा रहा सिरहाने पर....
तू प्यार मुझे तन्हाई कर
बस शाने पर अब रख ...
काव्य मंजूषा पर स्वप्न मञ्जूषा
--
खनखनाहट की पाजेब
तुम्हारी हँसी में सुर है लय है ताल है रिदम है एक संगीत है
मानो मंदिर में घंटियाँ बज उठी हों
और आराधना पूरी हो गयी हो
जब कहा उसने हँसी की खिलखिलाहट में
हँसी के चौबारों पर सैंकडों गुलाब खिल उठे ...
ज़ख्म…जो फूलों ने दिये पर vandana gupta
--
तुम्हारे संग कुछ पल चाहता हूँ
जानता हूँ जगत मुझसे दूर होगा
पर तुम्हारे संग कुछ पल चाहता हूँ।
कठिन होगी यात्रा, राहें कँटीली,
व्यंजनायें मिलेंगी चुभती नुकीली,
कौन समझेगा हमारी वेदना को
नहीं देखेगा जगत ये आँख गीली,
प्यार अपना हम दुलारेंगे अकेले
बस तुम्हारे साथ का बल चाहता हूँ।....
मानसी पर मानोशी
--
"उनके आने से"
मन में शहनाई सी बजती, उनके आने से
आगलों पर अरुणाई सजती, उनके आने से...
चलो भरलें उड़ान सोमनाथ तक |
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिंक्स |
खूबसूरत.पठनीय लिंक संग्रह
जवाब देंहटाएंहुई क्या भूल हमका , ,
जवाब देंहटाएंबलमवा आ बता जाना।
''पिया से गुज़ारिश''
तुम्हारी आरजू बाकी ,
नहीं कुछ और अब पाना।
बढ़िया अशार लिख मारे ,
आपकी देखा देखी हम औरन ने दो चार,
बालम तुम आके पढ़ जाना।
सजन दो छोड़ तरसाना।
sarita jee,
जवाब देंहटाएंmeri rachna ko charcha manch par laane ke liye bahut bahut dhaanyavad !
थाती है यह जानकारी सांस्कृतिक आध्यात्मिक प्रसंगों की कृष्ण विलास की।
जवाब देंहटाएंशरद पूर्णिमा
सरिता भाटिया
जिन्हें भगवान् दुःख देते हैं पहला काम यह करते हैं उनकी सुध (मति )हर लेते हैं।इसीलिए ये बावले चुनिन्दा व्यवसाइयों पर छापे मर रहे हैं।
जवाब देंहटाएंबढ़िया चित्र व्यंग्य
CBI
काजल कुमार
CBI
काजल कुमार
सुन्दर एहसासात की पोस्ट सशक्त सन्देश देती हुई जीवन के संघर्षों के प्रति।
जवाब देंहटाएंआँसू का अस्तित्व
डॉ रूप शास्त्री जी
बढ़िया प्रस्तुति। जानकारी इतिहासिक और सामाजिक महत्व की मुहैया करवाई है आपने। आदमी दिमाग का अंधा नहीं होना चाहिए क्योंकि देखता दिमाग है आँख नहीं आँख तो एक उपकरण हैं दिमाग के मातहत काम करने वाला अलबत्ता उसकी सलामती जरूरी है। एक आँख हजार नियामत।
जवाब देंहटाएंयह सूखी झील सी आँखें
पुरुषोत्तम पांडेय
बहुत सुन्दर है डॉ साहब भाषा में प्रवाह है शैली में माधुर्य विषय अनुरूप प्रांजल भाषा।
जवाब देंहटाएंसवैया..... छलके
छलके सत-शुचि जो विचार रहें, तिनकी भाषा कर्मनि छलके,छलके शुभ-कर्म की आभा से, आत्मा की शुचिता मन छलके....-- कुंडली छंद .....छंद
गति जाने नहीं छंद की, छंद छंद चिल्लाय,अनुशासन युत कथ्य जो, कविता वही कहाय...
सृजन मंच ऑनलाइन
सशक्त अभिव्यंजना पीपल के मिस मेरी तेरी उसकी बात पीपल का मानवीकरण।
जवाब देंहटाएंकुण्डलिया : प्रेम पात सब झर गये
पीपल अब सठिया गया,रहा रात भर खाँस
प्रेम पात सब झर गये , चढ़-चढ़ जावै साँस..
बहुत उम्दा लिंक्स संयोजन ...! मेरी पोस्ट को स्थान देने के लिए आभार,शास्त्री जी,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST -: हमने कितना प्यार किया था.
बहुत बढ़िया लिंक्स संयोजन, बढ़िया प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसुंदर सूत्र संकलन सुंदर चर्चा
जवाब देंहटाएं"एक की हो रही पहचान है
एक पी रहा कड़ुआ जाम है"
को स्थान देने के लिये उल्लूक का आभार !
मेरे लेख को स्थान देने के लिए आप का आभार अगर आप ने मेरा पूरा नाम "अंकित कुमार हिन्दू " लिखा होता तो आप की कृपा होती ; एक बार पुनः धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सार्थक चर्चा ,बधाई सरिता जी
जवाब देंहटाएंबहुत मनभावन लिंक्स दिए हैं सरिता जी ! मेरी रचना को भी आज के मंच पर स्थान दिया ! आभार आपका !
जवाब देंहटाएंatyant sundar links sammilit kiye hain aapne....bahut-bahut dhanyawad, meri ghazal ko sthan dene hetu, sarita bahan. sabhi sathi rachnakaron ko badhai.
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएं---अच्छे अच्छे सूत्र हैं....
सच कहा सागर हैं आंसू ,
कष्ट करते उजागर हैं आंसू |
भाव की उमडन है आंसू ,
प्रीति की गागर हैं आंसू |
bahut badhiya charcha ... achchhe link mile ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर और पठनीय सूत्र..
जवाब देंहटाएंBahut acchi lagi aapki charcha.
जवाब देंहटाएंAabhar !
सुन्दर लिनक्स मेरा रचना को सम्मान देने के लिय शुक्रिया ..कल नेट नही था सो आज ही आ पाई हूँ यहाँ :)
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर चर्चा, आपका आभार
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआज नेटवर्क की सुविधा उपलब्ध होने पर उपस्थित हो सका | इस चर्चामंच पर मेरी मनोव्यथा को प्रकाशित करने हेतु बहिन सरिता भाटिया को धन्यवाद ! आगे, कथा का अगला भाग आज प्रस्तुत है !
जवाब देंहटाएं