टूटे, थके-थके
पंखों से, ख़ुद अपना आकाश रचो तुम
भीगे नयन, झुलसते
सपनों से ही इक इतिहास रचो तुम
जब बाजी भी टूट गए हों, पंखों
के बिन मन पाखी हो
उम्मीदों के हाथों में जब घुन खाई सी बैसाखी
हो
सपनों की दुल्हन जब अपने बैरागी तन पर इतराए
जब ख्वाबों की नर्म हथेली, मायूसी
की लट सुलझाए
मन की नाज़ुक छैनी से तब पत्थर का विश्वास रचो
तुम
भीगे नयन, झुलसते
सपनों से ही इक इतिहास रचो तुम
जब ऑंसू की रोशन बस्ती में हर रात दीवाली-सी
हो
और मुस्कानों के गाँवों की हर सुबह जब काली-सी
हो
जब देहरी से लौट गई हों, झिलमिल
ख्वाबों की बारातें
करवट-करवट सिसक रही हों, अनब्याहे
सपनों की रातें
उस पीड़ा के होठों पर भी नाज़ुक सा परिहास रचो
तुम
भीगे नयन, झुलसते
सपनों से ही इक इतिहास रचो तुम
)साभार – कुमार पंकज)
नमस्कार !
मैं, राजीव कुमार झा, चर्चामंच : चर्चा अंक :1410 में, प्रथम प्रस्तुति में,कुछ चुनिंदा लिंक्स के साथ,आप सबों का स्वागत करता हूँ.
एक
नजर डालें इन चुनिंदा लिंकों पर............................
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
क्षणिकाएं ..
सरिता भाटिया
धन्यवाद !!
--
"मयंक का कोना"
--
आइ-यस आइ पाक का, राहुल क्या उपचार-
रोवे बुक्का फाड़ के, कहीं हंसी बेजोड़ |
टांग खिंचाई हो कहीं, बाहें कहीं मरोड़ |...
"लिंक-लिक्खाड़" पर रविकर
--
कसंग्रेस भी आज, करें दंगों का धंधा
मत दे मत-तलवार, बनेगा बन्दर अन्धा
रविकर की कुण्डलियाँ
--
ग़ज़ल :
हमेशा के लिए गायब लबों से मुस्कुराहट है
मुहब्बत में न जाने क्यों अजब सी झुन्झुलाहट है,
निगाहों से अचानक गर बहें आंसू समझ लेना,
सितम ढाने ह्रदय पर हो चुकी यादों की आहट है...
दास्ताँने - दिल (ये दुनिया है दिलवालों की)
--
एक ब्राउजर में दो जीमेल एकाउन्ट
एक ही समय में कैसे प्रयोग करें
MyBigGuide पर Abhimanyu Bhardwaj
--
"ढूँढने निकला हूँ"
--
क्या फेसबुक से
ब्लॉग पर सक्रियता कम हो रही है ?
मेरा सरोकार पर रेखा श्रीवास्तव
--
ब्रज बांसुरी" की रचनाएँ ....
भाव अरपन ..दस -द्रौपदी की पतियाँ ..
मेरे शीघ्र प्रकाश्य *ब्रजभाषा काव्य संग्रह
....डा श्याम गुप्त....
सृजन मंच ऑनलाइन
--
फ्लावर वेस (flower vase)
जिंदगी की राहें पर Mukesh Kumar Sinha
--
भीगा एक चाँद
मन का पंछी पर शिवनाथ कुमार
--
प्रियतमे !
प्रियतमे ! . . . . .
इतना कह कर सोच में पड़ा हूँ
अब तुम्हें और क्या संबोधन दूं
अब तुमसे और क्या कहूं....
ज़ख्म…जो फूलों ने दिये पर vandana gupta
--
गत चार दशकों में तमाम संतृप्त वसाओं
(क्रीम ,मख्खन ,लैस लीन मीट से प्राप्त वसाओं ) में
कटौती करके हमने दिल के लिए खतरे ही न्योतें हैं
--
गहो रे मन श्याम चरण शरणाई,
अंत समय कोई काम न अइहैं ,
मात पिता सुत भाई।
प्रस्तुतकर्ता Virendra Kumar Sharma
--
हर खाली कुर्सी में बैठा नहीं जाता है
आँख में बहुत मोटा चश्मा लगाता है
ज्यादा दूर तक देख नहीं पाता है
लोगों से ही सुनाई देता है चाँद
देखने के लिये ही आता जाता है...
उल्लूक टाईम्स पर Sushil Kumar Joshi
--
"भिखारी व्यस्त हैं कुर्सी बचाने में"
मुखौटे राम के पहने हुए, रावण जमाने में।
--
"मयंक का कोना"
--
आइ-यस आइ पाक का, राहुल क्या उपचार-
रोवे बुक्का फाड़ के, कहीं हंसी बेजोड़ |
टांग खिंचाई हो कहीं, बाहें कहीं मरोड़ |...
"लिंक-लिक्खाड़" पर रविकर
--
कसंग्रेस भी आज, करें दंगों का धंधा
मत दे मत-तलवार, बनेगा बन्दर अन्धा
रविकर की कुण्डलियाँ
--
ग़ज़ल :
हमेशा के लिए गायब लबों से मुस्कुराहट है
मुहब्बत में न जाने क्यों अजब सी झुन्झुलाहट है,
निगाहों से अचानक गर बहें आंसू समझ लेना,
सितम ढाने ह्रदय पर हो चुकी यादों की आहट है...
दास्ताँने - दिल (ये दुनिया है दिलवालों की)
--
एक ब्राउजर में दो जीमेल एकाउन्ट
एक ही समय में कैसे प्रयोग करें
MyBigGuide पर Abhimanyu Bhardwaj
--
"ढूँढने निकला हूँ"
ईमान ढूँढने निकला हूँ, मैं मक्कारों की झोली में।
बलवान ढूँढने निकला हूँ, मैं मुर्दारों की टोली में।
"धरा के रंग"बलवान ढूँढने निकला हूँ, मैं मुर्दारों की टोली में।
--
क्या फेसबुक से
ब्लॉग पर सक्रियता कम हो रही है ?
मेरा सरोकार पर रेखा श्रीवास्तव
--
ब्रज बांसुरी" की रचनाएँ ....
भाव अरपन ..दस -द्रौपदी की पतियाँ ..
मेरे शीघ्र प्रकाश्य *ब्रजभाषा काव्य संग्रह
....डा श्याम गुप्त....
सृजन मंच ऑनलाइन
--
फ्लावर वेस (flower vase)
जिंदगी की राहें पर Mukesh Kumar Sinha
--
भीगा एक चाँद
मन का पंछी पर शिवनाथ कुमार
--
प्रियतमे !
प्रियतमे ! . . . . .
इतना कह कर सोच में पड़ा हूँ
अब तुम्हें और क्या संबोधन दूं
अब तुमसे और क्या कहूं....
ज़ख्म…जो फूलों ने दिये पर vandana gupta
--
गत चार दशकों में तमाम संतृप्त वसाओं
(क्रीम ,मख्खन ,लैस लीन मीट से प्राप्त वसाओं ) में
कटौती करके हमने दिल के लिए खतरे ही न्योतें हैं
--
गहो रे मन श्याम चरण शरणाई,
अंत समय कोई काम न अइहैं ,
मात पिता सुत भाई।
प्रस्तुतकर्ता Virendra Kumar Sharma
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हर खाली कुर्सी में बैठा नहीं जाता है
आँख में बहुत मोटा चश्मा लगाता है
ज्यादा दूर तक देख नहीं पाता है
लोगों से ही सुनाई देता है चाँद
देखने के लिये ही आता जाता है...
उल्लूक टाईम्स पर Sushil Kumar Joshi
--
"भिखारी व्यस्त हैं कुर्सी बचाने में"
मुखौटे राम के पहने हुए, रावण जमाने में।
लुटेरे ओढ़ पीताम्बर, लगे खाने-कमाने में।।
दया के द्वार पर, बैठे हुए हैं लोभ के पहरे,
मिटी सम्वेदना सारी, मनुज के स्रोत है बहरे,
सियासत के भिखारी व्यस्त हैं कुर्सी बचाने में।
लुटेरे ओढ़ पीताम्बर लगे खाने-कमाने में।।
उच्चारण
गागर में भरती सागर ,ये दिल से ''शालिनी'' है .
जवाब देंहटाएंशालिनी कौशिक
शब्द कोष में इजाफा करवाती सुन्दर रचना।
युवक मजबूर होकर खींचते हैं रात-दिन रिक्शा,
जवाब देंहटाएंमगर कुत्ते और बिल्ले कर रहें हैं दूध की रक्षा,
श्रमिक का हो रहा शोषण, धनिक के कारखाने में।
लुटेरे ओढ़ पीताम्बर लगे खाने-कमाने में।।
मगर कुत्ते 'औ' बिल्ले कर रहें हैं दुग्ध की रक्षा,
सुन्दर प्रस्तुति।
सफर करते हैं लेकर नाम दादी और पापा का ,
वो मजमा रोज़ करते हैं खुद अपने आजमाने का।
"भिखारी व्यस्त हैं कुर्सी बचाने में"
मुखौटे राम के पहने हुए, रावण जमाने में।
लुटेरे ओढ़ पीताम्बर, लगे खाने-कमाने में।।
दया के द्वार पर, बैठे हुए हैं लोभ के पहरे,
मिटी सम्वेदना सारी, मनुज के स्रोत है बहरे,
सियासत के भिखारी व्यस्त हैं कुर्सी बचाने में।
लुटेरे ओढ़ पीताम्बर लगे खाने-कमाने में।।
उच्चारण
सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसफर करते हैं लेकर नाम दादी और पापा का ,
वो मजमा रोज़ यूं करते हैं खुद को आजमाने का।
सुन्दर व्यंग्य विड्म्बन से भरपूर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंईमान ढूँढने निकला हूँ, मैं मक्कारों की झोली में।
बलवान ढूँढने निकला हूँ, मैं मुर्दारों की टोली में।
"धरा के रंग"
*कसंग्रेस भी आज, करें दंगों का धंधा
जवाब देंहटाएंअन्धा बन्दर बोलता, आंके बन्दर मूक |
गूंगा बन्दर पकड़ ले, हर भाषण की चूक |
हर भाषण की चूक, हूक गांधी के दिल में |
मार राख पर फूंक, लगाते लौ मंजिल में |
*कसंग्रेस भी आज, करें दंगों का धंधा |
मत दे मत-तलवार, बनेगा बन्दर अन्धा ||
* जैसा राहुल के इंदौर के कार्यक्रम के पोडियम पर लिखा था-
अरे वाह कंस और "ग्रेस ",ग्रेस तो कृष्ण के पास होती है कंस तो देश भक्षी सर्व -भक्षी (ओम्निवोरस )प्रवृत्ति का नाम है .
इ माइक बाले भैय्या भी न सब जानते हैं.....
हटाएंआदरणीय राजीव कुमार झा जी।
जवाब देंहटाएंचर्चामंच परिवार में आपका स्वागत है।
--
आपकी पहली ही चर्चा बहुत अच्छे ढंग से की है।
आपका आभार।
--
सभी पाठकों को सुप्रभात। शनिदेव आपकी रक्षा करें। आपका सप्ताहान्त मंगलमय हो। अहोई-अष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ। अहोई माता आपके बाल-गोपाल की रक्षा करें।
जवाब देंहटाएंअम्मा दादी लो बचा, नाना पापा मोय |
दुष्ट छेड़ते हैं मुझे, बात बात पर धोय |
बात बात पर धोय, बयानों पे उलझाए |
आइ यस आइ बोय, देश में घुस घुस आये |
पी एम् रहते मौन, किन्तु मैं नहीं निकम्मा |
किचन कैबिनट गौण, हमें पुचकारे अम्मा ||
छा जातें पुरजोर हैं ,चित्र व्यंग्य पुरजोर ,क्या बात है कुमार काजल की। बोल श्री मंदमति सरकार की जय बोल !
बोल श्री शोभन सरकार की जय बोल
रोवे बुक्का फाड़ के, कहीं हंसी बेजोड़ |
टांग खिंचाई हो कहीं, बाहें कहीं मरोड़ |...
"लिंक-लिक्खाड़" पर रविकर
कभी अपना था अब किसी और का ,यह बता गया कोई ,
जवाब देंहटाएंउम्र बीती हमारी गफलत में पूरी ,जता गया कोई।
क्षणिकाएं ..
सरिता भाटिया
सुन्दर भाव-कणिकाएं
उत्सव धर्मी समाज को पुराने का परित्याग कर नया शुद्ध परिवेश बनाए रखने की प्रेरणा का भी पर्व है दीपमाला। घ आँगन को बुहारने दिलद्दर बुहारने का पर्व भी है दिवाली। अलबत्ता द्युत क्रीडा इसमें क्यों और कैसे चली आई यह विचारणीय है।
जवाब देंहटाएंउत्सवधर्मिता और हमारा समाज
राजीव कुमार झा
बरसों से नींद न आई ,जग की चिंता में
जवाब देंहटाएंतुम माँ बन मुझे सुलाओ, तो सो सकता हूँ -
सतीश सक्सेना
सुन्दरम मनोहरं
सारे लिंक्स बेहतरीन सजे हैं......
जवाब देंहटाएंमेरे पोस्ट 'चांद के इंतजार में' को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद !!
राजीव कुमार झा, की चर्चामंच : चर्चा अंक :1410 में, प्रथम प्रस्तुति पर हार्दिक स्वागत !
जवाब देंहटाएंउल्लूक की रचना "कुछ नहीं होगा अगर एक दिन उधर का इधर नहीं कह पायेगा" को आज की चर्चा में स्थान देने के लिये आभार ! मयंक जी का पुन: आभार "हर खाली कुर्सी में बैठा नहीं जाता है" को मयंक के कोने में स्थान दिया !
सुन्दर प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय-
बहुत ही उत्तम प्रस्तुति , सारे एक से बढ़ कर एक लिंक्स , संयोजन के लिए आभार, साथ ही मेरी रचना को स्थान देने के लिए विशेष धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंसुन्दर रोचक व पठनीय सूत्र..
जवाब देंहटाएंराजीव जी बहुत सुंदर चर्चा...
जवाब देंहटाएंयहाँ भी चर्चा कर रहे है, सर जी। चलिए बढ़िया प्रस्तुति पेश की है आपने।
जवाब देंहटाएंsundar links se susajjit charcha
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा...
जवाब देंहटाएंप्रथम प्रस्तुति पर हार्दिक स्वागत !सुन्दर रोचक व पठनीय सूत्र,आपका बहुत बहुत धन्यवाद !!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लिंक्स ...
जवाब देंहटाएंमुझे शामिल करने के लिए शुक्रिया !!
बहुत ही सुंदर रचना वाले लिंक्स |लाजबाब |
जवाब देंहटाएं“अजेय-असीम{Unlimited Potential}”
राजीव कुमार झा जी पहली शानदार ,सुव्यवस्थित चर्चा के लिए हार्दिक बधाई आपको
जवाब देंहटाएं