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मंगलवार, अक्टूबर 01, 2013

मंगलवारीय चर्चा 1385 --एक सुखद यादगार

आज की मंगलवारीय  चर्चा में आप सब का स्वागत है राजेश कुमारी की आप सब को नमस्ते , आप सब का दिन मंगल मय हो अब चलते हैं आपके प्यारे ब्लॉग्स पर 

एक सुखद यादगार

Maheshwari kaneri at अभिव्यंजना

सरकारी बिल्डिंग का एक कमरा


नव ब्रह्मांड

Rajesh Kumari at HINDI KAVITAYEN ,AAPKE VICHAAR - 
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ग़ज़ल : हमारा प्रेम होता जो कन्हैया और राधा सा


एक साल माँ के बिना ...

noreply@blogger.com (दिगम्बर नासवा) at स्वप्न मेरे
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लूटि लियो मेरो दिल को गल्ला

ग़ाफ़िल! मैं तो सेठानी थी
कियो भिखारिन छिन में लल्ला

सौंपि दीन्हि तोहे सिगरौ पूँजी
मान बढ़ायो केकर भल्ला...
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ at ग़ाफ़िल की अमानत
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प्रभु दे मारक शक्ति,, नारि क्यूँ सदा कराहे -

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कहा चाँद ने रजनी से ,,,,,,

Dr.NISHA MAHARANA at Tere bin

सुनो कि इस देश में कैसे मरता है किसान! - उमेश चौहान

Ashok Kumar Pandey at असुविधा.

चुहुल - ६०

noreply@blogger.com (पुरुषोत्तम पाण्डेय) at जाले
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"अमर भारती जिन्दाबाद" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

रूपचन्द्र शास्त्री मयंक at उच्चारण - 


मुड़ मुड़ के देखना एक उम्र तक बुरा नहीं समझा जाता है

Sushil Kumar Joshi at उल्लूक टाईम्स
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कुछ खस्ता सेर हमारे भी - सतीश सक्सेना

सतीश सक्सेना at मेरे गीत 

desh bhar men Gandhi parivar

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उदास मौसमों के विदा की बेला...



पानी वाला घर :

धीरेन्द्र अस्थाना at अन्तर्गगन - 
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http://anunaad.blogspot.in/2013/09/blog-post_17.html

डॉ नूतन गैरोला जी की दो कवितायेँ 
आज की चर्चा यहीं समाप्त करती हूँ  फिर चर्चामंच पर हाजिर होऊँगी  कुछ नए सूत्रों के साथ तब तक के लिए शुभ विदा बाय बाय ||

"मयंक का कोना"
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आपका ब्लॉग
वारे न्यारे कब किये, कब का चारा साफ़ |
पर कोई चारा नहीं, कोर्ट करे ना माफ़ |
आपका ब्लॉग पर Virendra Kumar Sharma
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कभी ऐसा लगता है,

धुंधली यादें पर Nitish Srivastava 

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मिलता तुझको वही सदा जो तू बोता है...ग़ज़ल 
सकल सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी होता है |
बीज नित्य नव आशाओं के मानव बोता है |

जाने कितनी नयी नयी सुख -सुविधा भोगीं ,
कष्ट पड़े फिर भला आज तू क्यों रोता है |..
..डा श्याम गुप्त ...
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क्या ये आत्मा की बीमारी है ?
आत्मा बीमार है हमारी या मन ?
जिसे हम आत्म प्रताड़ना समझ रहे हैं 

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ग़ज़ल (बोल)
उसे हम बोल क्या बोलें जो दिल को दर्द दे जाये
सुकूं दे चैन दे दिल को , उसी को बोल बोलेंगें ..


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क्या बिगड़ जाएगा...

गहराती शाम के साथ मन में धुक-धुकी समा जाती है 
सब ठीक तो होगा न कोई मुसीबत तो न आई होगी 
कहीं कुछ गलत-सलत न हो जाए इतनी देर...
लम्हों का सफ़र पर डॉ. जेन्नी शबनम 
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तेरा क्या जाता है -

*खेत हमारा अपना है* 
*हम बोयें आलू या अफीम -* 
*तेरा क्या जाता है...
उन्नयन (UNNAYANA)
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"उन्हें पढ़ना नहीं आता" 
अपने काव्य संकलन सुख का सूरज से
एक गीत
मिलन के गीत मन ही मन,
हमेशा गुन-गुनाता था।
हृदय का शब्द होठों पर,
कभी बिल्कुल न आता था।
मुझे कहना नही आया।
उन्हें सुनना नही भाया।।
सुख का सूरज
--
बछिया के ताऊ खफा, छोड़ बैठते अन्न
लहजा रहा मजाकिया, वैसे बड़ा शरीफ |
मजा किया इत आय के, पाई पाक रिलीफ |...
"लिंक-लिक्खाड़" पर रविकर 
--
जीने वालों तुम्हें हुआ क्या है..."अख्तर"शीरानी

किसको देखा है ये हुआ क्या है, 
दिल धड़कता है माज़रा क्या है...
मेरी धरोहरपरyashoda agrawal
--
"जन्मदिन की बधाई"
पहले भी थी सहज सरल सी,
अब भी स्नेहिल, शान्त-तरल सी,
तुम आँगन में खुशियाँ लाई।
जन्मदिवस पर तुम्हें बधाई।।
उच्चारण

18 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छे लिंको के साथ सुन्दर चर्चा के लिए
    आभार बहन राजेश कुमारी जी।

    जवाब देंहटाएं
  2. सुंदर चर्चा सुंदर सूत्रों से सजी हुई
    उल्लूक की रचना
    मुड़ मुड़ के देखना एक उम्र तक बुरा नहीं समझा जाता है
    को स्थान दिया आभार !

    मुझे क्यों लग रहा है
    चर्चा कुछ जंप कर रही है आज की चर्चा का अंक 1385 होना चाहिये था !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आभार
      संशोधन कर दिया है-
      पिछली चर्चा में भी क्रमांक गलत हो गया था-
      यह चर्चा १३८५ है -
      सादर

      हटाएं
    2. पिछली चर्चा में भी मैंने बता दिया था :)

      हटाएं
  3. बहुत ख़ूबसूरत लिंक्स...रोचक चर्चा...आभार

    जवाब देंहटाएं
  4. सीमित सूत्रों का सुंदर प्रसारण !

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत ही लाजवाब लिंक्स ... आभार मुझे भी शामिल करने का ...

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत ही लाजवाब लिंक्स ..मेरी भावनाओ को शामिल करने के लिए बहुत बहुत आभार..राजेश जी..

    जवाब देंहटाएं
  7. देर के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ ....इतनी अच्छी चर्चा के बीच अपना लिंक देखना प्रसन्न कर जाता है मन ....आभार राजेश जी ....

    जवाब देंहटाएं

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