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मंगलवार, मई 06, 2014

"खो गई मिट्टी की महक" (चर्चा मंच-1604)

मित्रों!
मंगलवार के लिए मेरी पसंद के लिंक देखिए।
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बुझ गये सांझे चूल्हे 

खो गई मिट्टी की महक 

कहाँ खो गया वो मिटटी का घर 
तालाब की पिडोरी मिटटी 
और गोबर सेलीपा हुआ 
अंगना / दलान और द्वार...
Divya Shukla 
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प्रश्न श्रंखला ! 

मन का पंछी पर शिवनाथ कुमार
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एक मजिस्ट्रेट की मौत 

 आज मतदान ख़त्म हो गया, इसी के साथ मास्साब की पीठासीन की कुर्सी भी छिन गयी, एक दिन जो मिली थी वो मजिस्ट्रेटी पॉवर क्या चली गयी, मानो उनके शरीर का सारा रक्त निचोड़ ले गयी, चेहरा सफ़ेद पड़ गया, इतने दिनों से तनी हुई गर्दन और कमर फिर से झुक गयी...
कुमाउँनी चेली पर शेफाली पाण्डे
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मेरे सपनों की दुनिया का अंत 

मेरे सपनों की दुनिया का अंत 
शायद यही है 
बिना व्यक्त किये दफ़न कर दूं 
कुछ आतिशी ख़्वाबों को 
कुछ चाहत के गुलाबों को 
जो मीर की ग़ज़ल से मुझमे 
पला करते थे 
vandana gupta
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तभी कहेंगे देश महान! 

दाने-दाने को मोहताज हैं, जहां बहुत इनसान। 
पीड़ा का पर्याय जिंदगी, हर इक है हलकान।। 
भेदभाव की दीवारों ने, बुना जहर का जाल। 
भाईचारा नहीं रहा अब, द्वैष से सब बेहाल...
कविता मंच पर Rajesh Tripathi
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मधु सिंह : ज़िगर देखते हैं 
चित्र प्रदर्शित नहीं किया गया
इक  नज़र जब  हम  उन्हें  देखते हैं 
सर झुकाकर के अपना ज़िगर देखते हैं....
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दो पाटों के बीच पिसती औरत … 

पति और बच्चे .......  
न बच्चों कि अपेछा कर सकती है , 
न पति की परेशानी तो तब होती है 
जब एक ऐसा फ़ैसला करना पड़े....... जिसमे...
Love पर Rewa tibrewal
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इन दीवारों के पीछे झाँक कर देखो 
औरत मर्द का वो रिश्ता नज़र आयेगा
जहां बिस्तर पर रेंगते हाथ
जेहनी गुलामी के जिस्म पर
लगाते हैं ठहाके  ....
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"सब्जीमण्डी"

Vegetable_market_in_Heraklion
देखो-देखो सब्जी-मण्डी।
बिकते आलू,बैंगन,भिण्डी।
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दो कवितायें 

(एक) 
देखना कोई

देखना कोई गिद्ध पेड़ों पर / ना बैठने पाये
खूंटा कोई सिरहाने / फिर से 
ना गाड़ने पाए।...
(दो)
आओ हिटलर आओ
आओ हिटलर आओ
इस देश की धरती पर
तुम्हारा स्वागत है
आओ देखो कि तुम्हारे आने की खुशी में  
तुम्हारे तमाम भक्तों ने किस तरह से  
बंदनवार सजा दिये हैं...
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धर्म क्‍या है ? 

मनोज कुमार श्रीवास्तव
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जिंदगी संवार जायेगा 

तेरी बेवफाई  से
मन डूब फ़िकर में जायेगा 
झूठ ही सहीं कह दे  
 कोई वो बेवफा नहीं 
बंदगी  संवार जायेगा...
मुकेश गिरि गोस्वामी
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शाश्वत अस्तित्व जीना है ...!! 

Anupama Tripathi
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अमृत रास न आया हमको,
गरल भरा हमने गागर में।
कैसे प्यास बुझेगी मन की,
खारा जल पाया सागर में।।
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लुप्त हुआ है काव्य कानभ में सूरज आज।
बिनाछन्द रचना रचेंज्यादातर कविराज।।
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जिसमें हो कुछ गेयताकाव्य उसी का नाम।। 
रबड़छंद का काव्य में, बोलो क्या है काम।।
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अनुच्छेद में बाँटिए, कैसा भी आलेख।
छंदहीन इस काव्य का, रूप लीजिए देख।।

8 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर सूत्रों से भरपूर मंगलवारीय चर्चा । 'उलूक' आभारी है सूत्र 'चमक से बच चश्मा काला चाहे पड़ौसी से उधार माँग कर पास में रख' को स्थान मिला ।

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  2. बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति .... आभार!

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत बढ़िया चर्चा .... आभार!

    जवाब देंहटाएं
  4. waah,..uttam sanyojan hai sir..ek baar fir se nayi rachnaon ka sangam sthal 'Charch Manch'. Shaifali Pandey Ji or Harkeerat Heer ji ki rachnaye vishesh roop se dil ko chu gayin...bahut badhai un dono ko aap ka abhar.

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  5. sundar links ..........meri rachna ko shamil karne kay liye dhnayavad

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  6. बढ़िया सूत्रीय मंच प्रस्तुति , आ. शास्त्री जी व मंच को धन्यवाद !
    I.A.S.I.H ब्लॉग ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )








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  7. बहुत ही बढीया चर्चा ...... मेरी पोस्ट को स्थान देने के लीये आपका धन्यवाद आदरणीय

    जवाब देंहटाएं

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