आज की चर्चा में आपका स्वागत है
चुनाव अपने अंतिम दौर में हैं , आठवें दौर की चुनाव प्रक्रिया समाप्त हो चुकी है , बस एक चरण बाकि है | चुनाव की समाप्ति के बाद देश के आलातों में सुधार होगा या नहीं यह तो समय बताएगा लेकिन इसके बाद व्यक्तिगत दोषारोपण की गंदी राजनीति जरूर थम जाएगी | साहित्यिक लोगों के फिर से साहित्य की तरफ लौटने की भी आशा है |
चलते हैं चर्चा की ओर
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आभार
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"अद्यतन लिंक"
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"अद्यतन लिंक"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
--A little knowledge about the drug
you are using can ensure
that you don't fall prey to
medication errors.
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आपका ब्लॉग पर
Virendra Kumar Sharma
--2014 चुनाव में क्या-क्या पहली बार?
रसबतिया पर -सर्जना शर्मा
--लौटना, दरअसल सिर्फ उसका प्रेम था.....
मुहब्बत का लफ़्ज ……
कभी -कभी सोचती हूँ
रिश्तों के फूल काटें क्योँ बन जाते हैं
औरत को दान देते वक़्त
रब्ब क्यों क़त्ल कर देता है उसके ख़्वाब
--रिश्तों के फूल काटें क्योँ बन जाते हैं
औरत को दान देते वक़्त
रब्ब क्यों क़त्ल कर देता है उसके ख़्वाब
कार्टून :-
CBI की क्लीन चिटें और 16 की तारीख.
सच्चाई लिखने का ही
बस कोई कायदा कानून नहीं होता है
गधों में से एक गधा
तब से अब तक
गधों की बात ही
सोच रहा होता है...
--तब से अब तक
गधों की बात ही
सोच रहा होता है...
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच पर अपनी कविता देखी |यह मेरी आठसौ पचास वी रचना है |यहाँ भूलवश १५० छप गया है
बहुत सुन्दर और सधी हुई चर्चा।
जवाब देंहटाएं--
आपका आभार भाई दिलबाग विर्क जी।
सुन्दर लिंक्स लिए चर्चा ......
जवाब देंहटाएंआशा जी बधायी हो ८५०वीं पोस्ट की।
जवाब देंहटाएंअब अंक ठीक कर दिया है।
सुधार हेतु बहुत बहुत धन्यवाद सर |
हटाएंदिलबाग भाई....आपका आभार .
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा है ...दिलबाग जी ...पढ़ने के लिए अच्छा खासा वक्त चाहिए ....शीर्षक ही बड़े रोचक हैं ....
जवाब देंहटाएंसुंदर सूत्र सुंदर संयोजन दिलबाग । 'उलूक' का आभार सूत्र 'सच्चाई लिखने का ही बस कोई कायदा कानून नहीं होता है' को जगह देने के लिये ।
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिंक्स व प्रस्तुति , विर्क साहब व मंच को धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंI.A.S.I.H - ब्लॉग ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
आपकि बहुत अच्छी सोच है, और बहुत हि अच्छी जानकारी।
जवाब देंहटाएंजरुर पधारे HCT- पर नई प्रस्तुती- प्राइवेट ब्राउजिँग
सुन्दर चर्चा
जवाब देंहटाएंसाभार !
देखो कैसी है यह लड़ाई
जवाब देंहटाएंदेवताओं ने शुरू की इन्सानों ने निभाई
फिर भी नहीं हो पाती उनकी भरपाई
नेताओं ने कैसी रीति चलाई
सुन्दर लिंक्स आभार .
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत अर्थ और भाषिक सौंदर्य पिरोया है मयंक ने सतसइया के दोहरों की तरह।
जवाब देंहटाएंबहुत सशक्त तंज किया है ग़ज़ल में।
जवाब देंहटाएं"गीत-क्या हो गया है"
"धरा के रंग"
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