आज के इस चर्चा अंक "समय का महत्व " पर मैं राजेन्द्र कुमार आपका हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। प्रस्तुत है आपके हीं ब्लोगों से कुछ चुने हुए लिंक्स …….
ये कहना अतिशयोक्ति न होगी कि, वक्त और सागर की लहरें किसी की प्रतिक्षा नही करती। हमारा कर्तव्य है कि हम समय का पूरा-पूरा उपयोग करें।जीवन का महल समय की -घंटे -मिनटों की ईंटों से चिना गया है। यदि हमें जीवन से प्रेम है तो यही उचित है कि समय को व्यर्थ नष्ट न करें। मरते समय एक विचारशील व्यक्ति ने अपने जीवन के व्यर्थ ही चले जाने पर अफसोस प्रकट करते हुए कहा था-मैंने समय को नष्ट किया, अब समय मुझे नष्ट कर रहा है।एक विद्वान ने अपने दरवाजे पर लिख रखा था। ‘‘कृपया बेकार मत बैठिये। यहाँ पधारने की कृपा की है तो मेरे काम में कुछ मदद भी कीजिये। साधारण मनुष्य जिस समय को बेकार की बातों में खर्च करते रहते हैं, उसे विवेकशील लोग किसी उपयोगी कार्य में लगाते हैं। यही आदत है जो सामान्य श्रेणी के व्यक्तियों को भी सफलता के उच्च शिखर पर पहुँचा देती है। माजार्ट ने हर घड़ी उपयोगी कार्य में लगे रहना अपने जीवन का आदर्श बना लिया था। वह मृत्यु शैय्या पर पड़ा रहकर भी कुछ करता रहा। रैक्यूम नामक प्रसिद्ध ग्रंथ उसने मौत से लड़ते -लड़ते पूरा किया।
वन्दना गुप्ता
ख्यालों के बिस्तर भी
कभी नर्म तो कभी गर्म हुआ करते हैं
कभी एक टॉफ़ी की फुसलाहट में
परवान चढ़ा जाया करते हैं
तो कभी लाखों की रिश्वत देने पर भी
न दस्तक दिया करते हैं
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योगी सारस्वत
गार्डन ऑफ़ फाइव सेंसस घूमने के लिए मुझे दो बार जाना पड़ा ! पहली बार गया तो पता पड़ा कि शाम छह बजे तक ही खुलता है और मैंने अपनी कलाई घड़ी में देखा तो सवा छह बज रहे थे ! मतलब आना बेकार रहा | लेकिन फिर भी इधर उधर देख कर और टिकेट की कीमत वगैरह पता करके चला आया ! तब टिकट 20 रूपया का था , यानी 18 अप्रैल 2014 को !
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अनिता
जब हम बाहर काम करने के लिए निकलते हैं तो इस बात का अनुभव होता है कि किसी भी संस्था में सभी व्यक्ति काम के लिए नहीं होते, कुछ तो केवल शोभा के लिए होते हैं, काम करने वाले तो कम ही होते हैं, लेकिन वे दो-चार लोग ही पर्याप्त होते हैं. एक भी यदि चलना शुरू कर दे बिना इस बात की चिंता किये की कोई पीछे आ रहा है या नहीं, तो उतना ही पर्याप्त होगा.
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यशोदा अग्रवाल
लोग भी अपने सिमटेपन में बिखरे-बिखरे हैं
राजमार्ग भी,पगडण्डी से ज्यादा संकरे हैं।
हर उपसर्ग हाथ मलता है, प्रत्यय झूठे हैं
पता नहीं औषधियों के दर्द अनूठे हैं
आँखे मलते हुए सबेरे केवल अखरे हैं।
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प्रबोध कुमार गोविल
ये बड़ी चौंकाने वाली बात थी। ऐसा तो कभी नहीं होता था। वह बहुत ज़्यादा देर से तो नहीं आई है, इस से भी ज़्यादा देर तो उसे पहले भी कई बार हुई है। फिर ये आज रोहित को क्या हो गया? ये इस तरह मुँह लटका कर क्यों बैठा है? केवल पलक के थोड़ा देर से आने पर इतनी नाराज़गी? रोहित जानता है न पलक का कॉलेज यहाँ से कितनी दूर है, फिर समय तो लगेगा ही न ?
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चंद्रभूषण ग़ाफ़िल
ये दुनियाबी बातें लिखना
दिन को लिखना रातें लिखना
लिखना अरमानों की डोली
कैसे मुनिया मुनमुन हो ली
धन्धा-पानी ठंढी-गर्मी
चालाकी हँसती बेशर्मी
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अंकुर मिश्रा
हाँ आज दिन तो आपका है,
मगर उनकी वजह से...
जिस "माँ" ने
न जाने...
न जाने... कौन से दर्द सहे है
कौन कौन सी बाते सही...
मगर उसकी एक मुस्कान ने
सब कुछ.
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डॉ जाकिर अली रजनीश
आपने बहुतों के मुंह से यह सुना होगा कि फेसबुक ने ब्लॉग जगत को लील लिया है, और आपने निश्चय ही यह भी सुना होगा कि हिन्दी ब्लॉगिंग से इनकम करना सम्भव नहीं है। पर मैं कहना चाहता हूं कि ये दोनों ही बातें पूरी तरह से सत्य नहीं हैं। यदि आप ब्लॉगिंग के प्रति गम्भीर हैं और पूरी निष्ठा से विषयगत ब्लॉगिंग करने की क्षमता रखते हैं, तो न सिर्फ पाठक आपको सर आंखों पर बिठाएंगे, वरन कमाई के रास्ते भी खुद चलकर आपके दरवाजे तक आएंगे।
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वाणभट्ट
शर्मा जी की उम्र पचास के अल्ले-पल्ले रही होगी। मोहल्ले के इको पार्क वॉकर्स क्लब के संस्थापक सदस्य। बहुत ही नियमित। बहुत ही जिंदादिल। मँहगे हेयर डाई से बालों को रंग के अपनी उम्र के आधे ही जान पड़ते। मुझे मिला कर कुल जमा दस लोगों को अपनी प्रेरणा से जोड़ रक्खा था। ट्रैक पर टहलने के बाद सभी मिल के योग (योगा) करते फिर लाफ्टर सेशन शुरू होता। पूरा एक घंटे का पैकेज है। पार्क में आना उतना ही अनिवार्य है जितना दफ्तर जाना।
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चेतन रामकिशन "देव"
फुर्सत मिली कभी तो, पूछेंगे जिंदगी से!
हमने था क्या बिगाड़ा, जो दुख मिला सभी से!
सिक्के भी और सोना, चाँदी भी है बहुत पर,
कैसे करें गुजारा खुशियों की, मुफ़लिसी से!
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बसंत खिलेरी
इस ट्रिक के दो part है, यह पहला part है जिसमे स्टेप1 से स्टेप8 तक दिए गए है।, और दूसरे part मेँ स्टेप9 से स्टेप15 तक दिए गए है। Part-2 पढने का लिँक इस पोस्ट के अंत मेँ दिया गया है। नमस्कार दोस्तो! आज मैँ अपनी इस पोस्ट मेँ आपको विण्डोज 8 इन्स्टॉल करना बताउँगा। इस पोस्ट मेँ विण्डोज इन्स्टॉलेशन के कुल 15 स्टेप 11 चित्रो के साथ दिए गए है। चित्रो कि सहायता से प्रक्रिया बहुत हि जल्दि समझ मेँ आ जाएगी, स्टेप1, 3, 14, के चित्र नही दिए है और बाकी स्टेप के प्रत्येक स्टेप के निचे उससे सम्बन्धित चित्र है। नोट:- इस पोस्ट का प्रयोग वही करे जिसने पहले कभी xp या windows 7 का इन्स्टॉलेशन किया हो।
आशीष भाई
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अनामिका सिंह
बचपन में गर्मी की दोपहरिया कुछ और ही होती थी। मां दोपहर में हमें अपने साथ लेकर सोती थी। मां के सोते ही हम धीरे से पैर दबाए निकल आते औऱ घर के बाहर खेलने लगते। शोरगुल की आवाज सुनकर मां गुस्से में आतीं और हमें पीटते हुए ठिठिराकर सोने के लिए ले जाती ।
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काजल कुमार
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आनन्द मूर्थी
देखते ही देखते कुछ लोग ग़ज़ल हो रहे थे
किसी से गुफ़्तगू के दरमियां वो फ़जल हो रहे थे
हमे तो शौक था उनको झांक कर देखने का
तजुर्बे की सुधा से होंठ उनके सजल हो रहे थे
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पी.सी.गोदियाल "परचेत"
ख्याल है भी या नहीं उनको, इस बढ़ती ऊर्जा खपत पर हमारे,
आता है अब गुस्सा हमको तो,मुई अपनी ही हसरत पर हमारे।
तबीयत से फेंका था हमने भी दिल को, उन्हीं के घर की तरफ,
हमको लगा, जाहिर कर दी है, मर्जी उन्होंने भी खत पर हमारे।
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वीरेन्द्र कुमार शर्मा
शब्द की ब्रह्ममयता को हमने साक्षात देखा है। बिना तीर और तलवार के दस साला दम्भी शासन को शब्द की शक्ति ने -जड़मूल से उखाड़ फेंका। हाँ हमने अपने कानों से वह नाद बारहा सुना था। वो कहते हैं न रस्सी जल गई बल नहीं गए ……. अभी भी कांग्रेस का अहंकार कभी अजय माकन के रूप में मुखरित हो रहा है कभी मणिशंकर अइयर
बनके।
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तरुण ठाकुर
भूमिका : प्रत्येक मन बुद्धि वाले प्राणी के जीवन में प्रत्येक क्षण कोई न कोई द्वंद्व चलता है , विषाद भी होता / होते है , अर्जुन को भी हुवा । ऐसा नहीं की प्रथम बार हुवा , ऐसा भी नहीं की श्री कृष्ण के समक्ष प्रथम बार हुवा । फिर यह योग कैसे बना , युगांतकारी और शिक्षा का माध्यम कैसे बना , इसी क्षण और रणस्थल जैसे अत्यंत व्यावहारिक व अमानवीय / क्रूर परिवेश में गीता का प्राकट्य , निश्चय ही इसे अनोखा और महान बनाते है ।
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ज्योति खरे
दीवारों में घर की जब से
होने लगी है कहासुनी
चाहतों ने डर के मारे
लगा रखी है सटकनी----
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"अद्यतन लिंक"
"अद्यतन लिंक"
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
--हस्ताक्षर मौन है(कविता)
हस्ताक्षर मौन हैं, पहचान बनकर।
हूं उपस्थित आज, मैं अनजान बनकर...
मीडिया व्यूहपर neeshoo tiwari
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दिल रोया है
उन अजीब लम्हों को याद करके ....
जब दिल के दरवाजे पर
तेरी दस्तक से
सोयी ख्वाहिशे ...
Vandana Singh
--कितने तरह के लोग
कितनी तरह की यादें
कब लौट आयें
कोई कैसे बता दे
उलूक टाइम्सपर सुशील कुमार जोशी
--पढे लिखे अशिक्षित
(संदर्भ स्मृति ईरानी विवाद)
200 वीं पोस्ट
झा जी कहिन पर अजय कुमार झा
--
स्मृति -
कहीं शीर्ष पर स्थिर जो है,
संकल्पों की प्रखर ज्योत्सना ।
बिना ध्येय का दीप जलाये,
अंधकूप में उतर न जाये ...
--वाह !! मोदी जी !! क्या तीर चलाया है ?
ऐसी शिक्षा व्यवस्था चलाने हेतु
ऐसा ही शिक्षा मंत्री चाहिए देश को ?
कितने बढ़िया तरीके से पूछा है आपने ??
वाह !!
PITAMBER DUTT SHARMA
--
आजकल बहुत व्यस्त हूँ मित्रों।
जवाब देंहटाएं--
इतनी सुन्दर चर्चा करने के लिए आदरणीय राजेन्द्र कुमार जी आपका आभार।
सुन्दर सूत्र सर |
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय-
खूबसूरत चर्चा...पुरवा बयार शामिल करने के लिए धन्यवाद...
जवाब देंहटाएंसमस्त लिंक्स बढ़िया व बढ़िया प्रस्तुति , मेरे पोस्ट को स्थान देने हेतु आदरणीय राजेंद्र भाई व मंच को धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंI.A.S.I.H - ब्लॉग ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
आभार, राजेन्द्र जी !
जवाब देंहटाएंcharcha manch main shamil rachnao ko padh kar gyaan main badhotri hui dhanywaad aapka rajinder ji !! hamari rachna ko sthan dene hetu bhi dhanywaad !!
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंक्स से सजी खूबसूरत चर्चा………आभार
जवाब देंहटाएंविविधरंगी समसामायिक विषयों से सजी चर्चा के लिए बधाई, आभार !
जवाब देंहटाएंअत्यंत रूचिकर एवं उपयोगी लिंक्स उपलब्ध कराए हैं आपने,आभार।
जवाब देंहटाएं...............................
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सुंदर सूत्र सुंदर चर्चा। बहुत देखे थोडे बाकी हैं।
जवाब देंहटाएंआदरणीय
जवाब देंहटाएंआपके व चर्चामंच के निरंतर प्रोत्साहन से यह सम्भव हुवा है , साधुवाद एवं अभिनन्दन !
जय श्री कृष्ण !
अजयजी मौज़ू मुद्दा उठाया है आपने। निश्चय ही पढ़े से गुना (गुणी ,गुणवान व्यक्ति )अच्छा होता है। भारतीय परम्परा स्वाध्याय है। परीक्षा पास करके महज़ डिग्रीशुदा होने की नहीं रही है। कबीर -तुलसी किस स्कूल में पढ़े। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल एवं आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी स्वाध्याय से अर्जित ज्ञान के बल पर ही बनारस एवं पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ में क्रमश :प्रोफ़ेसर नियुक्त किये गए। विरोध तब भी हुआ था।
जवाब देंहटाएंकबीर को तो फिर साहित्यिक कूड़ेदान में ही फैंक देना होगा।
वैसे शहज़ादे भी कोई कम नहीं हैं बीएससी आनर्ज़ (फस्ट ईयर )सैंट स्टीवंस से किया था। कब कहाँ से ग्रेजुएशन किया इसका कहीं कोई उल्लेख नहीं है एमफिल का ज़िक्र है।
अजयमाकन जी ने हंस राज कालिज से इतनी लचर परम्परा तो अर्जित नहीं ही की होगी जिसका वह परिचय दे रहे हैं।
रविन्द्रनाथ टैगोर स्कूल ड्राप आउट थे बिल गेट्स भी उसी परम्परा की कड़ी रहे हैं डिज़्नी भी। अब्राहम लिंकन भी।थॉमस अल्वा एडिसन भी। अनेक नामचीन लोग हैं जिनपे मंद बुद्धि होने का ठप्पा लग चुका है इनमें जेकृष्णा मूर्ती और आइंस्टाइन भी शामिल हैं।
अब काम देखो चाय वाले का मकडानल्ड में पौछा लगाने वाली स्मृति दीदी का ,भारतीय मूल की शुद्ध बहु का।
पढे लिखे अशिक्षित
(संदर्भ स्मृति ईरानी विवाद)
200 वीं पोस्ट
झा जी कहिन पर अजय कुमार झा
इस स्तरीय चर्चा में हमें बिठाया आभार।
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