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बुधवार, मई 21, 2014

"रविकर का प्रणाम" (चर्चा मंच 1619)

रविकर का प्रणाम  



"दिन आ गये हैं प्यार के" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

खिल उठा सारा चमन, दिन आ गये हैं प्यार के।
रीझने के खीझने के, प्रीत और मनुहार के।।
 
रूपचन्द्र शास्त्री मयंक 




ग़ज़ल को जो समझ ले 

हालात-ए-बयाँ / अभिषेक कुमार अभी 










माँ तुझे सलाम ! (७) 

माँ के प्रति लगाव और उनकी यादें कभी भी कल की तरह नहीं होती हैं।  वो आज साथ हों  न भी हों लेकिन हमारे लिए दिल और दिमाग से कब जाती हैं ? उनके दिए मूल्य और संस्कार उनके बाद भी हमारे व्यवहार और व्यक्तित्व में सदैव विद्यमान रहती हैं।  ये भाव कभी भी किसी भी संतति में जाती नहीं होगी ये मेरा अपना विचार है।  ऐसा ही कुछ अपने संस्मरण में कह रही हैं : विभा रानी श्रीवास्तव 
मेरा सरोकार पर रेखा श्रीवास्तव 
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14 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर चर्चा व सूत्र , प्रस्तुति भी बढ़िया , आ० रविकर सर शास्त्री जी व मंच को धन्यवाद !
    I.A.S.I.H - ब्लॉग ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )





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  2. बढ़िया सूत्र और संयोजन |मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद सर |

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  3. बेहतरीन रंगमय प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुंदर प्रस्तुति । आज की बुधवारीय चर्चा में 'उलूक' के सूत्र 'एक आदमी एक भीड़ नहीं होता है ' को स्थान देने के लिये रविकर का आभार ।

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  5. रविकर जी , आज की चर्चा के कुछ लिंक उपयोगी रहे और मेरी पोस्ट स्थान देने के लिए आभार

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  6. चर्चा के अच्छे सूत्र !!
    सादर आभार !!

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  7. सुंदर सूत्रों से सजी चर्चा।

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  8. सुन्दर लिंक रविकरजी धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं

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