रविकर का प्रणाम
"दिन आ गये हैं प्यार के" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')![]()
खिल उठा सारा चमन, दिन आ गये हैं प्यार के।
रीझने के खीझने के, प्रीत और मनुहार के।।
रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
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उम्मीद के सूरज को सलाम
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माँ तुझे सलाम ! (७)
माँ के प्रति लगाव और उनकी यादें कभी भी कल की तरह नहीं होती हैं। वो आज साथ हों न भी हों लेकिन हमारे लिए दिल और दिमाग से कब जाती हैं ? उनके दिए मूल्य और संस्कार उनके बाद भी हमारे व्यवहार और व्यक्तित्व में सदैव विद्यमान रहती हैं। ये भाव कभी भी किसी भी संतति में जाती नहीं होगी ये मेरा अपना विचार है। ऐसा ही कुछ अपने संस्मरण में कह रही हैं : विभा रानी श्रीवास्तव
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रविकर जी आपका आभार।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और चहकती महकती चर्चा।
ReplyDeleteआभार आपका-
Deleteसुंदर चर्चा व सूत्र , प्रस्तुति भी बढ़िया , आ० रविकर सर शास्त्री जी व मंच को धन्यवाद !
ReplyDeleteI.A.S.I.H - ब्लॉग ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
nice
ReplyDeleteबढ़िया सूत्र और संयोजन |मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद सर |
ReplyDeleteबेहतरीन रंगमय प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति । आज की बुधवारीय चर्चा में 'उलूक' के सूत्र 'एक आदमी एक भीड़ नहीं होता है ' को स्थान देने के लिये रविकर का आभार ।
ReplyDeleteरविकर जी , आज की चर्चा के कुछ लिंक उपयोगी रहे और मेरी पोस्ट स्थान देने के लिए आभार
ReplyDeleteचर्चा के अच्छे सूत्र !!
ReplyDeleteसादर आभार !!
सुंदर सूत्रों से सजी चर्चा।
ReplyDeletebahut sundar links thanks n aabhar .....
ReplyDeleteसुंदर रचनाओं से सजी चर्चा...
ReplyDeleteसादर।
नयी पोस्ट...
केवल समय गवाया हमने
जंता का है ये आदेश...
सुन्दर लिंक रविकरजी धन्यवाद
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