नमस्कार मित्रों, आज के इस चर्चा मंच पर मैं राजेन्द्र कुमार आपका हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ।
हर सुबह हर शाम तुम को ढूंढा है
हमने, उम्र तमाम तुम को ढूंढा है
हर शहर की ख़ाक छान मारी है
कभी छुप के ,कभी सरे आम तुम को ढूंढा है
हर फूल,हर कली ,को बताया है हुलिया तुम्हारा
चेहरे का हर एक निशाँ ,करके ब्यान ,तुम को ढूंढा है
छुपे हो जरुर तुम किसी और लोक में, वरना तो
ज़मी सारी छानी ,फिर आसमान पे, तुम को ढूंढा है
अनीता जी
जीवन में कोई एक मंत्र हो, एक मित्र हो और एक सूत्र हो जो हमारी रक्षा करे. मंत्र, मित्र तथा सूत्र तीनों एक भी हो सकते हैं, एक ही सद्गुरु में समा सकते हैं जो हमारी रक्षा करता है. आत्मा भी एक मंत्र है, मित्र भी वह है, और सूत्र तो वह है ही. जो आत्मा में वास करता है सदा उसकी रक्षा होती है. ईश्वर भी हमारा मित्र है, उसका नाम मंत्र है, उसका ‘ध्यान’ ही सूत्र है. हमारा नेत्र भी मंत्र, मित्र तथा सूत्र हो सकता है.
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यशोदा अग्रवाल जी
थक गया हर शब्द
अपनी यात्रा में,
आँकड़ों को जोड़ता दिन
दफ़्तरों तक रह गया।
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आशा सक्सेना जी
दो तोते बैठे
वृक्ष के तने पर
आपस में बतियाते
वर्तमान पर चर्चा करते |
उदासी का चोला ओढ़े
यादे अपनी ताजा करते
पहले कितनी हरियाली थी
हमजोलियों की टोलियाँ थीं |
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डॉ मोनिका शर्मा जी
जिस समाज की सोच इतनी असंवेदनशील है कि बेटियों को जन्म ही ना लेने दे वहां उन्हें शिक्षित, सशक्त और सुरक्षित रखनेे के दावे तो दावे भर ही रह जाते हैं। हाल ही में आई एक रिर्पोट ने इस ज़मीनी हकीकत से हमें फिर रूबरू करवा दिया है कि हम लिंग अनुपात के संतुलन को बनाये रखने के लिए कितने चिंतित हैं? महिलाओं को लेकर हमारी सोच और संवेदनशीलता में क्या बदला है ? संम्भवत कुछ भी नहीं ।
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डॉ संध्या तिवारी जी
सांसारिक दुखों द्रवित एक बालक सिध्दार्थ की कठीन जीबन यात्रा , सत्य कि खोज , प्राणि मात्र के प्रति दया एवं करुणा और इस सफर मे मिलने वाली कठिनाइयों तथा मार्ग की बाधाओं आदि कुछ भी तो नहीं रोक पायी। बढ़ते हुए कदम हर उस रस्ते की ओर स्वयं चल पड़ते जो ज्ञान की खोज में सहायक होता। सफलता प्राप्ति हेतु असफलता के कटु स्वाद को चखना और मनन करना भी आवश्यक होता है। सोना पहले तपता है तभी अपना स्वरुप प्राप्त करता है।
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कल्पना रामानी जी
छीन सकता है भला कोई किसी का क्या नसीब?
आज तक वैसा हुआ जैसा कि जिसका था नसीब।
माँ तो होती है सभी की, जो जगत के जीव हैं,
मातृ सुख किसको मिलेगा, ये मगर लिखता नसीब।
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प्रबोध कुमार जी
लोग समझते हैं कि धनदेवी लक्ष्मी उसका साथ देती हैं जो उनके पीछे भागता है। पर ऐसा नहीं है,वे तो उसका साथ ज्यादा देती हैं जो उनसे दूर भागता है।
राजस्थान के भूतपूर्व मुख्यमंत्री अशोक गेहलोत को उनकी सादगी के कारण गाँधीवादी नेता कहा जाता है। कहते हैं, उन्हें धन से ज्यादा लगाव नहीं है।
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उफ़ ! ये बिल्लियाँ
राजीव कुमार झा
आज के इस युग में,विज्ञान के बढ़ते प्रभावों के बाद भी विश्व में मौजूद अंधविश्वास,जिसकी जड़ें काफी गहरी हैं,को खोजकर निकाल नहीं सके हैं.भारत ही नहीं,विश्व के कई विकसित देश बिल्ली को लेकर जन्मे अंधविश्वास को दूर नहीं कर सके हैं.आज बिल्ली विश्व की सर्वाधिक रहस्यमय प्राणी है.आम घरेलू पशुओं की तरह बिल्ली की गतिविधियाँ खुलेआम न होकर गोपनीय और रहस्यमय होती हैं.
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महेश बारमाटे जी
दिल करता है आज जरा रो लूँ
पर किसके लिए ?
ज़िंदगी भर के पाप
आज अश्कों की बारिश में धो लूँ
पर किसके लिए ?
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अभिलेख द्धिवेदी जी
सिकंदर अपनी आदतानुसार आज फिर Sunday को भी सुबह उठकर सबसे पहले Twitter check किया। हलकी धुन पर Bryan Adams का एक song play किये हुए था "let's make a night, to remember", सोचा आज कुछ ऐसा ही रूमानी status डाला जाए। बगल में लेटी समा को उसने एक प्यार भरी नज़र से देखा और status चिपका दिया "आज हुस्न लेटा है मेरे सिरहाने, मैंने इश्क की चादर उसपर डाल दी....कहीं सुबह की नज़र न लग जाये"।
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अभिमन्यु भारद्धाज जी
Google The world's largest search engine तो क्या अभी भी Google search का प्रयोग केवल search करने के लिये ही करते हैं, अब Google केवल search तक ही सीमित नहीं हैं, यह उससे कहीं ज्यादा है। आईये जानते हैं कि Google से search के अलावा और क्या-क्या कर सकते हैं और यह हमारी Daily Life में किस प्रकार Use Full है
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हरकीरत हीर जी
औरत ने जब भी
मुहब्बत के गीत लिखे
काले गुलाब खिल उठे हैं उसकी देह पर
रात ज़िस्म के सफ़हों पर लिख देती है
उसके कदमों की दहलीज़
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सरिता भाटिया जी
माँ में तेरी प्रार्थना ,माँ में समझ अजान
माँ में तेरा है खुदा माँ में है भगवान ||
माँ में गीता है बसी ,माँ में बसी कुरान
माँ में सारे धर्म हैं माँ में सब भगवान
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बलबीर सिंह जी
जटिल बिडमबनाओं की सय्या सोते,
मनुष्यों को क्या कोई जगायेगा?
आभा जिसकी कुत्सित पतंगों को जलाये,
कोई ऐसा दीपक बन पायेगा?
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डॉ अनवर जमाल जी
हसते हुए माँ-बाप की गाली नहीं खाते
बच्चे है तो क्यो शौक से मिट्ठी नहीं खाते
तुझ से नहीं मिलने का इरादा तो है लेकिन
तुझसे न मिलेंगे ये कसम भीं नही खाते
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मनोज जी
सच्चा प्रेम नहीं है ये तो ,परिभाषाओं का जंगल है
मेरा मन अपनी परिभाषा तुम्हे सुनाने को व्याकुल है ||
जीवन गोकुल जैसा पावन मन वृन्दावन वट हो जाए
अभिलाषा के गंगा तट पर धैर्य स्वयं केवट हो जाए
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श्याम कोरी उदय जी
कल …
ढंकी ढंकी सी शाम थी,
और आज …
है खुली खुली सुबह … ?
उफ़ ! वो कैसे ज्योतिषी हैं, कैसे पंडित हैं 'उदय'
जिन्हें, अच्छे-औ-बुरे दिनों की समझ नहीं है ?
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सुशील कुमार जोशी जी
सारे हैं शायद
चोर ही हैं
चोर जैसे
दिख तो
नहीं रहे हैं
पर लग रहा है
कि चोर हैं
इसलिये क्योंकि
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(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मखमली लिबास आज तार-तार हो गया!
मनुजता को दनुजता से आज प्यार हो गया!!
सभ्यताएँ मर गईं हैं, आदमी के देश में,
क्रूरताएँ बढ़ गईं हैं, आदमी के वेश में,
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"अद्यतन लिंक"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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"अद्यतन लिंक"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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UPA : दस साल दस गल्तियां !

आधा सच...पर महेन्द्र श्रीवास्तव
अलविदा चुनाव २०१४ ....
बहुत भारी मन से अलविदा ।
कुमाउँनी चेलीपर शेफाली पाण्डे
--लोकसभा चुनाव के लाइव नतीजे देखें
MyBigGuide पर Krishna Bharadwaj
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अंतर्नाद की थाप पर Kaushal Lal
--मर कर जीना सीख लिया
अब दुःख दर्द में भी मैने मुस्कुराना सीख लिया
जब से अज़ाब को छिपाने के सलीका सीख लिया...
तेतालापर Mithilesh dubey
--प्रवासी भारतीय अमरीका में

पुरुष रुपी बल्ले पर नारी गेंद बन पड़ी ,
! कौशल ! पर Shalini Kaushik
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सोलह की महिमा में सोलह पंक्तियाँ ....
सोलह -सोलह लिये गोटियाँ,खेल चुके शतरंजी चाल
सोलह - मई बताने वाली ,किसने कैसा किया कमाल...

ज़ायके के ज़रिए अमन का पैग़ाम
मुझे कुछ कहना है ....पर अरुणा
--"दूरी की मजबूरी"

पागल हो तुम मेरी प्रेयसी,
मैं तुमको समझाऊँ कैसे?
सुलग-सुलगकर मैं जलता हूँ,
यह तुमको बतलाऊँ कैसे?
शुभ प्रभात
ReplyDeleteचर्चामंच विविधता लिए |
मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद
बहुत सुन्दर और श्रम से लगाई गयी चर्चा।
ReplyDelete--
आपका आभार भाई राजेन्द्र कुमार जी।
बढ़िया लिंक्स .... शामिल करने का आभार
ReplyDeleteबढिया चर्चा , मुझे स्थान देने के लिए आभार
ReplyDeleteसुंदर चर्चा ! राजेंद्र जी. मेरे पोस्ट को शामिल करने के लिए आभार.
ReplyDeleteसुंदर सूत्र संयोजन सुंदर चर्चा राजेंद्र जी । आभार 'उलूक' के सूत्र 'बहुत जोर की हँसी आती है जब चारों तरफ से चोर चोर की आवाज आती है' को स्थान देने के लिये ।
ReplyDeleteसोलह मई के अनुरूप सुंदर लिंक्स..आभार राजेन्द्र जी !
ReplyDeleteसुंदर सूत्र संयोजन सुंदर चर्चा राजेंद्र जी । "मजदूर कभी नींद की गोली नही खाते" को स्थान देने के लिये आभार।
ReplyDeleteबढ़िया लिंक्स व बेहतरीन प्रस्तुति , आ. राजेन्द्र भाई व मंच को धन्यवाद !
ReplyDeleteI.A.S.I.H - ब्लॉग ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति.... आभार
ReplyDeleteविविधतापूर्ण संयोजन, अच्छा लगा यहाँ आकर!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया चर्चा
ReplyDeleteबढ़िया लिंक्स .... शामिल करने का आभार
ReplyDeletebehatarin links.................mai bhi shamil hokar aabhari hu..............
ReplyDeleteअच्छे लिंक्स और उम्दा प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteनयी पोस्ट@आप की जब थी जरुरत आपने धोखा दिया (नई ऑडियो रिकार्डिंग)
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ReplyDeleteमयंक जी, आप के आदेशानुसार मैंने अपने ब्लॉग से लॉक हटा लिया है, अब आप लिंक दे सकते हैं | ब्लॉग पर पधारने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद....
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ReplyDelete' प्रवासी भारतीय अमरीका में ' यह आलेख ' लावण्यम - अंतर्मन '
ReplyDeleteपर आप सभी ने पढ़ा उसकी मुझे खुशी है।
मेरे आलेख को ब्लॉग बुलेटिन पर स्थान देने के लिए आप का बहुत आभार !
- लावण्या