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शुक्रवार, मई 02, 2014

"क्यों गाती हो कोयल" (चर्चा मंच-1600)

आज के इस १६०० वें चर्चा मंच पर मैं राजेन्द्र  कुमार आपका हार्दिक अभिनन्दन करता है। तो सीधे चलते हैं आपके कुछ चने हुए लिंको की तरफ ……।

क्यों गाती हो कोयल

नीरज कुमार नीर
क्यों गाती हो कोयल 
होकर इतना विह्वल 
है पिया मिलन की आस
या बीत चुका मधुमास 
वियोग की है वेदना 
या पारगमन है पास 
मत जाओ न रह जाओ 
यह छोड़ अम्बर भूतल
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नवीन मणी त्रिपाठी 
तपती दोपहरी में ,
पसीने से लथ पथ ,
सड़क पर पत्थर बिखेरता एक मासूम |
बार बार कुछ सोचता है ,
मन को कुरेदता है |
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चेतन रामकिशन देव 
शीत में देखो गलन, धूप में तपन सहता!
बिन दवाओ के यहाँ घाव की दुखन सहता!
कोई समझे नहीं मज़दूर के हालातों को,
भूख और प्यास का जीते जी वो क़फ़न सहता!
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सुरेन्द्र शुक्ला 
चौक में लगी भीड़
मै चौंका , कहीं कोई घायल
अधमरा तो नहीं पड़ा
कौतूहल, झाँका अन्दर बढ़ा
वापस मुड़ा कुछ नहीं दिखा
'बाबू' आवाज सुन
पीछे मुड़ा
इधर सुनिये !
प्रभात रंजन 
यूरोप के पश्चिमी तट के एक बंदरगाह पर मैले कुचेले कपडे पहने एक आदमी अपनी मछली पकडने की नाव में लेटा हुआ ऊंघ रहा था. आकर्षक पोशाक पहने एक पर्यटक पिक्चर लेने के लिए अपने कैमरे में रंगीन रील डाल रहा था : नीला आकाश, हरा समुद्र, बर्फ से ढकी सफ़ेद लहरों की शांतिपूर्ण क़तार, काली नौका, मछली पकडने के लिए लाल टोपी .
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गिरिजेश राव
बनाये नहीं जाते 
दिये नहीं जाते
लिये नहीं जाते 
कुछ अधिकार
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राजीव कुमार झा 
आदि काल से ही मानव मन अपने उद्गम के विषय में जानने के लिए आतुर रहा है.मैं कौन हूँ ? मैं कहाँ से आया? आख़िर इस पृथ्वी पर जीवन कहाँ से आया ? ये तरह-तरह के जीव कैसे बने? ये सभी प्रश्न निश्चय ही गूढ़ रहस्य हैं.वैज्ञानिक,काफी समय से इस विषम पहेली का हल ढूंढने का प्रयास करते रहे हैं,जिसके परिणामस्वरूप समय-समय पर विभिन्न मत सामने आये.
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सुरेश स्वप्निल
दहशत में डालते हैं जुनूनी बयां तेरे 
ये: क्या सिखा गए हैं तुझे रहनुमां तेरे

सब लोग परेशां हैं तेरे तौरे-कार से
किसकी हिफ़ाज़तों में बचेंगे मकां तेरे
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हितेश राठी 
आज की इस पोस्ट में, में आपको एक ऐसे app के बारे में बताऊंगा जिसे डाउनलोड और इनस्टॉल करने पर आपको 15 रूपये मिलेंगे और एक व्यक्ति को जोड़ने पर २० रूपये का ……। 
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प्रतिभा सक्सेना 
नहीं, मीता से मेरा विवाह संभव नहीं हुआ इस दुनिया के रास्ते कभी सीधे नहीं चलते ,एक बात के साथ दूसरी लगी चली आती है .हर कथा के साथ कुछ अवान्तर कथायें आ जुड...
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ऋता शेखर 'मधु'
सिर पर गारा हाथ में छेनी
धूप भी तो स्वीकार है
पेट है खाली तन पर चिथड़े
ना कोई प्रतिकार है
मौन मुख बाजू फौलादी
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प्रवीण मलिक  
हर कोई अपने स्तर पर श्रमिक है और पसीना बहाना श्रमिक की पहचान है पर हर स्तर पर श्रमिक को सम्मान नहीं मिलता यदि आप अपने उच्च अधिकारी से सम्मान की अपेक्षा रखते हैं तो आपका भी फर्ज है अपने निम्न स्तर के श्रमिकों को उचित सम्मान देना .... आखिर खून पसीना बहाते हैं भले ही अपने पेट के लिए पर उनका सहयोग हर स्तर पर मायने रखता है और विकास का महत्वपूर्ण हिस्सा है !
कर्कश वाणी
सहना मजबूरी
सब हैं जाणी
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रेवा टिबरेवाल 

शाम को घोंसलों कि तरफ़ उड़ान 

भरने वाले पछियों के जीवन मे
 नयी सुबह की चहचाहट
जरूर आती है ,
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रेखा श्रीवास्तव 
हर साल की तरह फिर १ मई आई और मजदूर दिवस के लिए अखबारों में कुछ देख छपे . सरकारी कार्यालयों में छुट्टी हो गयी और वे मजदूर जो वास्तव में मजदूर हैं - उन्हें तो इसका अर्थ भी नहीं मालूम है .
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सुशील कुमार जोशी
कूँऐ के अंदर से 
चिल्लाने वाले 
मेढक की आवाज से 
परेशान क्यों होता है 
उसको आदत होती है 
शोर मचाने की 
उसकी तरह का
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चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
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श्याम कोरी उदय 
उफ़ ! लो 'उदय', अब 'फ़ायदा' भी,.... 'आम' और 'ख़ास' हो गया है 
उनका कहना है कि, उन्ने, उनका, कोई खास फ़ायदा नहीं उठाया ?
… 
फर्जी प्रचार औ फर्जी दुष्प्रचार 
सिर्फ, दो ही एजेंडे हैं उनके ??
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शालिनी कौशिक 
उड़ता है मन 
कल्पनाओं के 
रोज़ नए लोक में ,
पाता है नित नयी 
ऊंचाइयां 
तैरकर के सोचता 
पाउँगा इच्छित सभी,
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अरुन शर्मा अनन्त
उठो हे स्त्री !
पोंछ लो अपने अश्रु 
कमजोर नही तुम 
जननी हो श्रृष्टि की 
प्रकृति और दुर्गा भी 
काली बन हुंकार भरो,
नाश करो!
उन महिसासुरों का 
गर्भ में मिटाते हैं
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शारदा अरोड़ा 
हम तो तुम्हारी पलकों के ख़्वाबों में भी रह लेते 
तुम जो आँखों को तरेरोगे तो अपना क्या होगा 

ख़्वाब तो आसमाँ में उड़ाते हैं 
तुम जो ज़मीं पर ही उतारोगे तो अपना क्या होगा
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(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
सच्चाई में बल होता है,
झूठ पकड़ में है आ जाता।
नाज़ुक शाखों पर जो चढ़ता,
वो जीवनभर है पछताता।
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विकेश कुमार बडोला
हां रहता हूं वहां रहते हुए आगामी जुलाई में पूरे पांच वर्ष हो जाएंगे। देश, दुनिया, राज, धर्म,मानवीय सम्‍बन्‍धों आदि विषयों के जो भी समाचार मिल रहे हैं, उन्‍हें जानकर व्‍यक्तित्‍व को केवल कुण्‍ठा ही मिल रही है। जीवन का ताना-बाना बड़ा विचित्र हो गया है। जीवन के मूल स्‍वभाव के बारे में केन्द्रित होने की सोचो तो मन-मस्तिष्‍क पर आडम्‍बरपूर्ण शासकों द्वारा चलाई जा रही दुनिया के कंटीले हस्‍तक्षेप होने शुरू हो जाते हैं। चारों ओर जो मनुष्‍य दिखते हैं वे सभी मुझे प्रथम दृष्टि में मनुष्‍य प्रतीत ही नहीं होते। उनकी गतिविधियों पर गहरी निगरानी रखता हूं।
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"अद्यतन लिंक"
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मई दिवस/ अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस 

जो हमसे टकराएगा चूर चूर हो जाएगा। 
जो हमसे टकराएगा मिट्टी में मिल जाएगा। 
मजदूर एकता जिन्दाबाद। 
बचपन में जब ये नारे सुनती थी 
तो बालमन सिहर जाता था... 
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शासक... 

इतनी क्रूरता
कैसे उपजती है तुममें ?
कैसे रच देते हो 
इतनी आसानी से चक्रव्यूह 
जहाँ तिलमिलाती हैं 
विवशताएँ...
लम्हों का सफ़र पर डॉ. जेन्नी शबनम
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उत्तरजीवाणुरोधी दवाओं के 

इस दवा -प्रति -रोधी दौर में .... 

सूक्ष्म जीवों के खिलाफ बिना 
सोचे समझे ,गैरवाजिब तरीक़े से ,एंटीमाईक्रोबिक एजेंट्स 
(एंटीमाइक्रोबियल ,एंटीबायोटिक्स )का अंधाधुंध इस्तेमाल 
आज भारत को एक ऐसे कगार पर ले आया है जहां 
संक्रमणकारी रोग एक बड़ी परेशानी का सबब बन बैठे हैं..
--
Virendra Kumar Sharma
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तुम .... तुम .... बस तुम ..... 

झरोख़ा पर निवेदिता श्रीवास्तव
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स्त्री-पुरुष विभेद की मानसिकता 

शब्द-शिखर पर Akanksha Yadav 
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♥ ♥ मन ख़ुशियों से फूला ♥ ♥ 

उमस-भरा गरमी का मौसम,
तन से बहे पसीना!
कड़ी धूप में कैसे खेलूँ,
इसने सुख है छीना!!
--

मजदूर दिवस ! 

मेरा सरोकार पर रेखा श्रीवास्तव
--

"ग़ज़ल-मन का कोई विमान नहीं" (

14 टिप्‍पणियां:

  1. वाह बहुत खूबसूरत निखरी हुई चर्चा राजेंद्र जी । 'उलूक' का आभार हमेशा की तरह सूत्र 'क्या किया जाये अगर कभी मेंढक बरसात से पहले याद आ जाते हैं' को स्थान प्रदान करने के लिये ।

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति। सुप्रभात।
    प्रकृति ने आपको सब कुछ दिया है,
    आपने प्रकृति को क्या दिया है ।
    आप प्रकृति के स्वच्छता पर कितना ध्यान देते है ।
    आपके जीवन का प्रकृति पर क्या मतलब है !
    अक्षय तृतीया की हार्दिक शुभकामनाएँ। नमस्ते जी।
    --सुन्दर चर्चा।
    आपका आभार भाई राजेन्द्र कुमार जी।

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  3. बहुत ही सुन्दर एवं पठनीय सूत्रों से सजी आज की चर्चा .. सादर आभार ..

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  4. विविधरंगी सूत्रों की चुनी हुई सुन्दर चर्चा - आपका आभार, कथांश को शामिल करने के लिए भी.

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  5. अच्छे पठनीय सूत्र सहेजे हैं आपने ...... आभार !

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  6. बहुत बढ़िया सामयिक चर्चा प्रस्तुति ..आभार

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  7. सुंदर चर्चा ! राजेंद्र जी.
    मेरे पोस्ट को शामिल करने के लिए आभार.

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  8. बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति ..आभार

    जवाब देंहटाएं
  9. बेहतरीन लिंक्‍स संयोजन एवं प्रस्‍तुति

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  10. सुन्दर सार्थक लिंक्स से सजा चर्चामंच...मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार !!

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  11. sarthak links......meri rachna shamil karne kay liye shukriya

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