फ़ॉलोअर



यह ब्लॉग खोजें

शुक्रवार, जून 27, 2014

"प्यार के रूप" (चर्चा मंच 1657)

नमस्कार मित्रों, आज के इस चर्चा मंच पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है।
"एक व्यक्ति किसी वस्तु, या तत्व, या लक्ष्य से प्यार कर सकता है जिन्से वो जुडा हैँ या जिनकी  वो कदर करता हैं। इन्सान  किसी वस्तु, जानवर या कार्य से भी प्यार कर सकता हैं जिसके साथ वो निजी  जुडाव महसूस  करता है और खुद को जुडे रखना चाहता हैं। अवैयक्तिक प्यार सामान्य प्यार जैसा नहीं है, ये इनसान के आत्मा का नज़रिया है जिससे दूसरों के प्रति एक शान्ति-पूर्वक मानसिक रवैया उत्पन होती है जो दया, संयम, माफी और अनुकप आदि भवनाओं से व्यक्त किया जाता हैं। अगर सामान्य वाक्य में कहा जाए तो अवैयक्तिक प्यार एक व्यक्ति के दूसरों के प्रति व्यवहार को कहा जाता हैं। इसिलिए, अवैयक्तिक प्यार एक वस्तु के प्रति इन्सान  के सोच के ऊपर आधारित होता है।दूसरों से प्यार करने से पहले अपने आप से प्यार करना ज़रूरी होता है। ये हमें प्रेम का अनुभव करना सिखाता है। इससे दूसरों को भी अन्दाज़ा हो जायेगा की आप प्यार करने लायक हो और ये आपको एक बेहतर प्रेमि बनाने में मदद करेगा क्योंकि आप आत्म संदेह और अविश्वास से पीडित नही रहेंगे।"
०००००००००००००००००००००००००००००००००
जयश्री वर्मा 
आज उड़ चला दिल मेरा,न जाने किस ओर किस डगर,
मंजिल मिलेगी या नहीं,इक सवाल है पर फिर भी मगर,
चल दिया जो अनजानी राह पर,तो फिर लौटना कैसा ?
मंजिल आखिर मिलेगी ही,कभी न कभी,किसी मोड़ पर।
०००००००००००००००००००००००००००००००००
रेखा जोशी 
निश्छल प्यार
मिला स्नेह आपार
करे दुलार
मानवता पुकारे
बने हम सहारे
०००००००००००००००००००००००००००००००००
महेश्वरी  कनेरी 
कतरा कतरा बन
जि़न्दगी गिरती रही
समेट उन्हें मैं
यादों में सहेजती रही
०००००००००००००००००००००००००००००००००
रिया शर्मा 
ओए !
क्या है ?
तेरा सर है। 
फिर वही बाहियात भाषा। 
बहुत लोग बैठे हैं यहाँ पर। तू ही क्यों बोला ?
०००००००००००००००००००००००००००००००००
डॉ. मोनिका शर्मा
रिश्ते सहज सरल बहते से हों तो जीवन को सुदृढ़ सहारा मिलता है । चेतन- अवचेतन मन में यह विश्वास बना रहता है कि हमारे अपने हैं जो हर परिस्थिति में साथ निभायेंगें । यह विश्वास सुरक्षा भी देता है और सम्बल भी । आमतौर पर महिलाएं रिश्तों की उलझन से ज़्यादा दो चार होती हैं । इसका कारण यह है कि हमारे सामाजिक परिवारिक परिवेश में संबंधों को निभाने का जिम्मा भी अधिकतर महिलाएं ही उठाती हैं।इस दुविधा को आए दिन जीती हैं ।
०००००००००००००००००००००००००००००००००
अमृता तन्मय 
अभी तो और भी है सोपान
जिसपर अपना पाँव रखना है
रोको न मुझे ! मुझे तो अब
चाँद-सूरज को भी चखना है

बेठौर बादलों को फुसलाकर
कांच का सुंदर-सा एक घर दूँ
ख़रमस्ती में खर-भर करके
बिजलियों को मुट्ठी में भर लूँ
०००००००००००००००००००००००००००००००००
आशा सक्सेना 
किया कैसा क्रूर मजाक 
प्रकृति ने मानव के संग 
दिखाई झलक बादलों की 
फिर उन्हें बापिस बुला लिया 
एक बूँद भी जल की न टपकी
०००००००००००००००००००००००००००००००००
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
ढाई आखर में छिपा, दुनियाभर का मर्म।
प्यार हमारा कर्म है, प्यार हमारा धर्म।१।

जो नैसर्गिकरूप से, उमड़े वो है प्यार।
प्यार नहीं है वासना, ये तो है उपहार।२।
०००००००००००००००००००००००००००००००००
हितेश राठी 
-नमस्ते दोस्तों! आज में आपको फेसबुक की कुछ ट्रिक्स के बारे में बताऊंगा जो आपके काम आएगी ! यह ट्रिक्स आपकी प्राइवेसी से रिलेटेड हे !
०००००००००००००००००००००००००००००००००
 वर्षा 
पिछले सप्ताह खुशबू की कवर स्टोरी गायत्री मांगे इंसाफ पर पाठको की खूब प्रतिक्रियाएं मिलीं। ज्यादातर गायत्री के हालात पर दुखी थे तो कुछ का यह भी मानना था कि ये सांसी जाति तो यूं भी आजीविका के लिए शराब और देह व्यापार के अपराध में लिप्त होती है। ये तो पुलिस रिकॉर्ड में भी ‘जरायम पेशा ’ के नाम से दर्ज होते हैं।
०००००००००००००००००००००००००००००००००
अनीता 
जीवन में यदि योग हो, ईश्वर की लगन हो, सद्गुरु का अनुग्रह हो और मन में समता हो तो परमात्मा को प्रकट होने में देर नहीं लगती, वह तत्क्ष्ण प्रकट हो जाता है. प्रभु का स्मरण यदि स्वतः ही होता हो, मन उसके बिना स्वयं को असहाय अनुभव करता हो, वैराग्य सहज हो जाये तो हमारी पत्रता के अनुसार ईश्वर प्रकट हो जाता है.
०००००००००००००००००००००००००००००००००
सांसें कर रही हैं आज मुझसे बेईमानी.....सीने में अटका सा है कुछ....गर्म हवाएं थमी-थमी सी हैं...दि‍न से सांझ...सांझ से रात का सफ़र बदस्‍तूर जारी है...
०००००००००००००००००००००००००००००००००
सतपाल ख़याल 
दुश्मन मिरी शिकस्त पे मुँह खोल कर हँसा
और दोस्त अपने जिस्म के अन्दर उछल पड़े

गहराइयाँ सिमट के बिखरने लगीं तमाम 
इक चाँद क्या दिखा कि समन्दर उछल पड़े
०००००००००००००००००००००००००००००००००
कुलदीप ठाकुर 
क्यों खामोश हैं यहां सब, हम से पूछिये,
जानकर भी अंजान हैं सब, हम से पूछिये।
महफिलों में चर्चा तो करते हैं सब,
यहां न बोलेगा कोई, हम से पूछिये...
०००००००००००००००००००००००००००००००००
विजयलक्ष्मी 
तुमने कहा था एक नदी हो तुम ,
और मैं एक सभ्यता ..जो जन्मी नदी के किनारे 
नदी के दूर जाने से बिखरने लगी ..
टुकड़े टुकड़े होती दिखाई देने लगी 
जिन्दगी बिखरती हुयी मिली चारो तरफ 
विश्वास नहीं हुआ न ..
०००००००००००००००००००००००००००००००००
शिवम मिश्रा 
नायब सूबेदार बाना सिंह (अंग्रेज़ी: Naib Subedar Bana Singh, जन्म: 3 जनवरी, 1949 काद्‌याल गाँव, जम्मू और कश्मीर) परमवीर चक्र से सम्मानित भारतीय सैन्य अधिकारी है। इन्हें यह सम्मान सन 1987 में मिला। पाकिस्तान के साथ भारत की चार मुलाकातें युद्धभूमि में तो हुई हीं, कुछ और भी मोर्चे हैं, जहाँ हिन्दुस्तान के बहादुरों ने पाकिस्तान के नापाक मंसूबों पर पानी फेर कर रख दिया। सियाचिन का मोर्चा भी इसी तरह का एक मोर्चा है, जिस ने 8 जम्मू एंड कश्मीर लाइट इंफेंटरी के नायब सूबेदार बाना सिंह को उन की चतुराई, पराक्रम और साहस के लिए परमवीर चक्र दिलवाया।
जय हिन्द !!!
जय हिन्द की सेना !!!
०००००००००००००००००००००००००००००००००

परवीन मलिक 
ये चंचल मन 
बिन पंखों के 
ख्वाबों की दुनिया में 
विचरता रहता है 
हकीकत से दूर 
ख्वाहिशों की 
ट्रेन पकड़कर
जाने कहाँ-कहाँ
०००००००००००००००००००००००००००००००००
राम किशोर उपाध्याय
वो एक दरिया के मानिंद 
बहती रही ...
कभी किनारे-किनारे 
कभी मझधारे
कभी पत्थरों से टकराती
तो पिघलते ग्लेशियर से गले लगकर मिलती
कश्ती को रास्ता देती
०००००००००००००००००००००००००००००००००
किसलिये मायूस 
और किसलिये 
दुखी होता है 
सब ही को बहुत 
अच्छी तरह से 
पता होता है
०००००००००००००००००००००००००००००००००
अब आज्ञा चाहूँगा, धन्यबाद 

14 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात
    उम्दा सूत्र चर्चा मंच पर |मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार सर |

    जवाब देंहटाएं
  2. परिश्रम के साथ की गयी सुन्दर चर्चा।
    आपका आभार आदरणीय राजेन्द्र कुमार जी।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर पोस्ट्स का संग्रह.. हार्दिक आभार.

    जवाब देंहटाएं
  4. सुन्दर चर्चा-
    आभार आदरणीय-

    जवाब देंहटाएं
  5. मेरी यह रचना " देखा जाएगा आखिर " आपने "प्यार के रूप " (चर्चा मंच 1656) में शामिल की , इस सम्मान के लिए आपका बहुत - बहुत धन्यवाद राजेंद्र कुमार जी !

    जवाब देंहटाएं
  6. सुप्रभात !

    बेहतर ब्लॉग्स तक पहुंचाने के लिए और मुझे पढ़ने के लिए।

    आभार और शुक्रिया राजेंद्र जी

    जवाब देंहटाएं
  7. सुंदर सूत्र संयोजन सुंदर शुक्रवारीय चर्चा । 'उलूक' के सूत्र 'एक बहुत बड़े परिवार में एक का मरना खबर नहीं होता है' को स्थान देने के लिये आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  8. राजेन्द्र जी, आज की चर्चा बहुत अच्छी रही है, आभार मुझे भी इसका भाग बनाने के लिए..

    जवाब देंहटाएं
  9. बढ़िया प्रस्तुति व लिंक्स , आ. राजेंद्र भाई , शास्त्री जी व मंच को धन्यवाद !
    I.A.S.I.H - ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )

    जवाब देंहटाएं
  10. राजेन्द्र जी ,बढ़िया लिंक्स ,मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार

    जवाब देंहटाएं
  11. बढ़िया लिंक्स ,मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार राजेन्द्र जी

    जवाब देंहटाएं
  12. बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति........ आभार

    जवाब देंहटाएं
  13. बहुत बढ़ि‍या चर्चा..मेरी रचना शामि‍ल करने के लि‍ए बहुत बहुत धन्‍यवाद...

    जवाब देंहटाएं
  14. बेठौर बादलों को फुसलाकर
    कांच का सुंदर-सा एक घर दूँ
    ख़रमस्ती में खर-भर करके
    बिजलियों को मुट्ठी में भर लूँ

    सब दिशाओं को समेट कर
    एक छोर से मैं ऐसे टाँक दूँ
    क्षितिज को भी खींच-खींचकर
    मैं आकाश को जैसे ढाँक दूँ

    बहुत सुन्दर अंदाज़ हैं ज़िंदगी के एक साथ सब साज़ हैं।

    जवाब देंहटाएं

"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथा सम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।