मित्रों।
कल कहीं बाहर जाना है दो दिन के लिए।
इसलिए सोमवार की चर्चा में
मेरी पसंद के कुछ पुराने लिंक देखिए।
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दूरियाँ बढ़ जाएँ यदि
मुश्किल पार जाना है
दूरियाँ घट जाने का
अंजाम अजाना है ...
आशा सक्सेना-आकांक्षा
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यह नितांत मेरी ही कविता है। कविता है या नही
पता नही। दिल पर जो गुजरी है, नजरों से जो गुजरा है
उसी से बुनी गुनी.....
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लिखती हुई लड़कियां
बहुत खूबसूरत होती हैं
लिखती हुई लड़कियां
अपने भीतर रचती हैं ढेरों सवाल
अपने अन्दर लिखती हैं
मुस्कुराहटों का कसैलापन...
प्रतिभा वर्मा-प्रतिभा की दुनिया
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कोई सवाल अब तुम तो न पूछो
मेरा यकीन अब तुम तो न छीनो
सवाल-जवाब और हिसाब-किताब की
यूँ ही, इन्तेहा है, मेरी ज़िन्दगी...
लम्हों का सफर पर डॉ.जेन्नी शबनम
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गज़ल दर्दे-दिल की बात बयाँ करने का सबसे माकूल व खुशनुमां अंदाज़ है। इसका शिल्प भी अनूठा है। नज़्म व रुबाइयों से जुदा। इसीलिये विश्व भर में व जन-सामान्य में प्रचलित हुई। हिन्दी काव्य-कला में इस प्रकार के शिल्प की विधा नहीं मिलती। परन्तु हाँ,घनाक्षरी-छंद ( कवित्त ) का शिल्प अवश्य ग़ज़ल की ही पद्धति का शिल्प है जिसमें रदीफ़ व काफिया के ही शब्द-भाव रहते हैं और गैर-रदीफ़ ग़ज़ल के भाव भी, परन्तु मतला नहीं होता। मेरे विचार से शायद कवित्त-छंद, ग़ज़ल का मूल प्रारम्भिक रूप है...
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क्या हमारा प्रारब्ध,कंप्यूटराइज्ड है?
कल अचानक,सोने से पूर्व,मष्तिस्क में एक विचार कोंधा—
एक शक्ति,एक प्रोग्राम है,
हम सब की जीवन-दिशा निश्चित करने के लिये.
आस-पास बहती जीवन-धाराएं किस बहाव की ओर बह रहीं हैं,हर धारा पूर्व-नियोजित कार्यक्रम में बंधी सी लगती है.प्रयत्न किस दिशा में किये गये,परिणाम क्या मिले,किसी यत्रा पर जाते हुए कोई मिल गया और उसने आपकी यात्रा का प्रयोजन ही बदल दिया. जीवन के प्रयोजन भी,लगता है,कोई निश्चित कर रहा है,यही कारण है कि हर कोई बुद्ध नही हो पाया,हर कोई अंगुलिमाल नहीं.
ये,जीवन-यात्राएं,एक गंतव्य से प्रारंभ होते हुए भी पहुंच कहां जाती हैं,यह जीवन का रहस्य है,जीवन का सत्य है,जीवन-दर्शन है.
मैं,इन सभी जीवन-दर्शन को इन शब्दों में बांधती हूं—हमारा प्रारब्ध हमारे पिछले जन्मों का हिसाब-किताब है.
मन के मनके
मन के मनके
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इस इक्कीस क़यामत है, भ्रामक है अति भ्रामक है
सब घबराहट नाहक है, धरती बड़ी नियामक है
इस इक्कीस क़यामत है, भ्रामक है अति भ्रामक है
पावन पुस्तक का आधार, लेकर उल्टा-पुल्टा सार
ऐसे खोजी को धिक्कार, करते भय का कटु-व्यापार,
गर इसपर विश्वास अपार, नहीं पंथ का दुष्प्रचार
करके पक्का सोच-विचार, खुद को ले जल्दी से मार
जो आनी सचमुच शामत है, इस इक्कीस क़यामत है...
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मीठे सुमधुर थे वो क्षण -
अब पल पल द्रवित होता है मन ....!
भूली बिसरी सी याद -
फिर कर गयी भ्रमण -
और भर आये नयन .......!
अब पल पल द्रवित होता है मन ....!
भूली बिसरी सी याद -
फिर कर गयी भ्रमण -
और भर आये नयन .......!
अनुपमा सुकृति
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उसके बग़ैर कितने ज़माने गुज़र गए...
कुछ ख़्वाब इस तरह से जहां में बिखर गए
अहसास जिस क़द्र थे वो सारे ही मर गए
जीना मुहाल था जिसे देखे बिना कभी
उसके बग़ैर कितने ज़माने गुज़र गए...
कविता मंच
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उसके बग़ैर कितने ज़माने गुज़र गए...
कुछ ख़्वाब इस तरह से जहां में बिखर गए
अहसास जिस क़द्र थे वो सारे ही मर गए
जीना मुहाल था जिसे देखे बिना कभी
उसके बग़ैर कितने ज़माने गुज़र गए...
कविता मंच
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न जाने कहाँ खो गए हम
बहुत ढूँढा पर कहीं न मिले हम
न जाने कौन से मुकाम पर है ज़िंदगी
हर मोड़ पर एक इम्तिहान होता है
चाहतों के मायने बदल जाते हैं...
ज़िन्दग़ी ...एक खामोश सफर
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न कहीं दिल को सुकूँ मिलता और न दिखता आराम
पता नहीं कब हो जाती सुबह कब ढल जाती शाम
वक्त बदलेगा जरुर हर शख्स मुझसे यही कहता है
पर वह वक्त आएगा कब यह सपना सा दिखता है ...
पता नहीं कब हो जाती सुबह कब ढल जाती शाम
वक्त बदलेगा जरुर हर शख्स मुझसे यही कहता है
पर वह वक्त आएगा कब यह सपना सा दिखता है ...
कविता रावत
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मेड इन चायना
हमारे दैनिक जीवन में उपयोग होने वाली जिन वस्तुओं,उत्पादों से हमारा साबका पड़ता है ,वे अधिकतर चायनीज हैं,अर्थात मेड इन चायना.चायनीज उत्पादों ने हमारे जीवन में इस तरह घुसपैठ कर लिया है कि इनके बिना तो जीवन अधूरा ही लगता है.मोबाईल हैंडसेट से लेकर मोबाइल की नामचीन कंपनियों कीबैट्रियां,चार्जर,लेड टौर्च,लैपटॉप,एल.सी.डी टीवी,कम्पूटर के मोनिटर,हार्ड डिस्क और अधिकतर पार्ट्स,सी.एफ.एल बल्ब,पेन ड्राइव,मेमोरी कार्ड्स,यू.एस.बी मौडम अदि अनेक उत्पादों ने कब हमारे जीवन में प्रवेश कर लिया पता ही नहीं चल...
देहात पर राजीव कुमार झा
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नकलची बन्दर (काव्य - कथा)
एक टोपियों का व्यापारी,लौट रहा था घर गर्मी में.सिर पर थी टोपी की गठरी,कपड़े चिपक रहे थे तन में.
एक टोपियों का व्यापारी,लौट रहा था घर गर्मी में.सिर पर थी टोपी की गठरी,कपड़े चिपक रहे थे तन में.
बच्चों का कोना पर कैलाश शर्मा
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अब क्या है जीवन के पार
जाना है क्षितिज के पार
आ मुझको पर देदे उधार
सुदूर गगन में मै भी जाऊं
बकुल मेखला में जुड़ जाऊं .
करूँ वहां अठ्खेलियन
जहाँ स्वछंदता अपरम्पार
हिन्दी कविताएँ आपके विचार पर
राजेश कुमारी
जाना है क्षितिज के पार
आ मुझको पर देदे उधार
सुदूर गगन में मै भी जाऊं
बकुल मेखला में जुड़ जाऊं .
करूँ वहां अठ्खेलियन
जहाँ स्वछंदता अपरम्पार
हिन्दी कविताएँ आपके विचार पर
राजेश कुमारी
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खुशियों की तलाश में निकले थे हम
लेकिन नसीब में लिखे थे सिर्फ गम
सोचा न था कि वक्त हमें ये दिन दिखाएगा
जिसकी हंसी के लिए मांगते हैं हम...
लेकिन नसीब में लिखे थे सिर्फ गम
सोचा न था कि वक्त हमें ये दिन दिखाएगा
जिसकी हंसी के लिए मांगते हैं हम...
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ज़िन्दग़ी
जिंदगी क्या है,
शायद ये कोई रस्सी है,
जो हमें संसार से बांधती है.
नहीं यह कच्चे धागे के समान है,
जो एक ही झटके से टूटकर
हमें विश्व से अलग कर देती है...
कौशल - शिखा कौशिक
जिंदगी क्या है,
शायद ये कोई रस्सी है,
जो हमें संसार से बांधती है.
नहीं यह कच्चे धागे के समान है,
जो एक ही झटके से टूटकर
हमें विश्व से अलग कर देती है...
कौशल - शिखा कौशिक
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मंजिलें पास खुद, चलके आती नही
अब जला लो मशालें, गली-गाँव में,
रोशनी पास खुद, चलके आती नही।
राह कितनी भले ही सरल हो मगर,
मंजिलें पास खुद, चलके आती नही...
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रचना बाँच सुवासित मन हो!
पागलपन में भोलापन हो!
ऐसा पागलपन अच्छा है!!
घर जैसा ही बना भवन हो!
महका-चहका हुआ वतन हो!
ऐसा अपनापन अच्छा है!!
पागलपन में भोलापन हो!
ऐसा पागलपन अच्छा है!!
घर जैसा ही बना भवन हो!
महका-चहका हुआ वतन हो!
ऐसा अपनापन अच्छा है!!
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"कुण्डलियाँ छन्द"
दिल मिल जाएँ परस्पर, समझो तभी बसन्त।
पल-प्रतिपल मधुमास है, समझो आदि न अन्त।।
समझो आदि न अन्त, खिलेंगे सुमन मनोहर।
रखना इसे सँभाल, प्यार अनमोल धरोहर।।
कह ‘मयंक’ कविराय, हृदय में चाह जगाएँ।
ऐसे करें उपाय, जगत में दिल मिल जाएँ।।
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जो बहती गंगा में अपने हाथ नही धो पाया,
जीवनरूपी भवसागर को, कैसे पार करेगा?
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जो मानव-चोला पाकर इन्सान नही हो पाया,
वो कुदरत की संरचना को, कैसे प्यार करेगा?
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हवा चलती है बस्ती में
तो सारा जिस्म जलता है
हम अपनी कैफ़ियत किसको बताएं,
हम अपनी कैफ़ियत किसको बताएं,
दिल दहलता है
हमें तोहमत न दें ,
हमें तोहमत न दें ,
हमने वफ़ा हर हाल में की है
ये: उनकी बात है जिनकी
ये: उनकी बात है जिनकी
अदा पे वक़्त चलता है...
साझा आसमान-सुरेश स्वप्निल
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जहाँ अरमान पलते हैं
वहाँ ही दीप जलते हैं
जहाँ बरसात होती है
वहीं पत्थर फिसलते हैं...
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काजल कुमार के कार्टून
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रूह के फना होने पर
मनुष्य के सुपुर्दे ख़ाक होने पर
जन्नत के मज़े कौन लूटेगा?
विचारणीय प्रश्न!
आपका ब्लॉग पर
Virendra Kumar Sharma
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कुछ बिखरी पंखुड़ियां.....!!!
तुम्हारे चंद लब्ज़....
मेरी जिंदगी भर के जख्मो का
मेरी जिंदगी भर के जख्मो का
मरहम बन गए.....
एक झूठ ही सही.....
कुछ सच्चे ख्वाब
एक झूठ ही सही.....
कुछ सच्चे ख्वाब
आखों में सज गए......
'आहुति' पर sushma 'आहुति'
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सुन्दर सेतु चयन एवं संयोजन शुक्रिया हमारे सेतु को जगह देने के लिए।
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा...
जवाब देंहटाएंसादर
पधारें...
मेरे ब्लौग पर...
सुंदर चर्चा । 'उलुक' के बहुत पुराने 'भ्रम' और 'किसी एक दिन की बात.....' को जगह देने के लिये आभार।
जवाब देंहटाएंअपनी सामर्थ्य से मेहनत सभी करते हैं लेकिन उसका फल किसको कितना मिले, यह सब भाग्य पर निर्भर करता है. कर्म के साथ यदि भाग्य जुड जाता है तो मन मुताबिक फल मिल ही जाता है लेकिन यदि भाग्य विमुख हो तो आशातीत सफलता नहीं मिल पाती. कई लोगों की किस्मत में खूब मेहनत करना ही लिखा रहता है और वे मेहनत करते रहते हैं इसी आशा में कि कभी न कभी तो उनका भी वक्त आएगा, उनकी भी अपनी सुबह होगी ..... अपना भी कुछ ऐसा ही चलता रहता है यही सोच लिखा थी मैंने "वक्त बदलेगा जरुर" जिसे आज चर्चामंच में हैं ....मेरी इस पोस्ट को चर्चामंच में शामिल करने हेतु आदरणीय शास्त्री जी का बहुत आभार!
जवाब देंहटाएंसुन्दर सूत्र चयन |अनंत चतुर्दशी पर शुभ कामनाएं |
जवाब देंहटाएंमेरी पुरानी रचना यहाँ देख कर सुखद आश्चर्य हुआ |
क्या बात वाह!
जवाब देंहटाएं