सच्चाई दम-भर लड़ी, लेकिन *चाँई जीत |
रही हार हरदम बड़ी, क्यों ना हो भयभीत ?
क्यों ना हो भयभीत, बोलबाला दुनिया में |
अब अपनाय अनीत, ध्वजा हाथो में थामे |
दिखा रहे सद्मार्ग, कुटिल कवि रविकर भाई |
जियो मित्र बिंदास, छोड़ कर के सच्चाई ||
*ठग, कपटी, छली
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Anita
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noreply@blogger.com (पुरुषोत्तम पाण्डेय)
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Kunwar Kusumesh
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yashoda agrawal
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Saleem akhter Siddiqui
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noreply@blogger.com (विष्णु बैरागी)
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सुशील कुमार जोशी
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aprna tripathi
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Saleem akhter Siddiqui
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संजय भास्कर
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त्रिवेणी
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Virendra Kumar Sharma
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Bamulahija dot Com
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शुभ प्रभात रविकर भैय्या
जवाब देंहटाएंसच में आपकी पसंद को दाद देती हूँ
अच्छी रचनाएं पढ़वा रहे हैं आप आज
सादर
उम्दा लिंक्स |दोहे बहुत बढ़िया |
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सूत्रों के साथ पेश की है रविकर जी ने आज की चर्चा ।'उलूक' के सूत्र 'बात एक नहीं है अलग है वो इधर से उधर जाता है और ये उधर से इधर आता है' को जगह देने के लिये आभार।
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा।
जवाब देंहटाएंमुझे शामिल किया,आभार आपका।
विविध रंगी चर्चा आभार रविकर जी !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा.मेरे पोस्ट को शामिल करने के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा ………आभार
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति व लिंक्स , मंच परिवार को धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति ...आभार!
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा। बढिया लिंक्स।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर बहुरंगी चर्चा।
जवाब देंहटाएंआपका आभार आदरणीय रविकर जी।