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बुधवार, सितंबर 10, 2014

फौजी सच्चे दोस्त, समझ ना पाये घाटी; चर्चा मंच 1732

रविकर की कुण्डलियाँ


घाटी की माटी बही, प्राणांतक सैलाब |
कुछ भी न बाकी बचा, कश्मीरी बेताब |

कश्मीरी बेताब, जान पर फौजी खेलें |
सतलुज रावी व्यास, सिंधु झेलम को झेलें |

राहत और बचाव, रात बिन सोये काटी |
फौजी सच्चे दोस्त, समझ ना पाये घाटी ||

Indian army soldiers load onto a helicopter relief material for flood victims at an air force base in Srinagar. (AP Photo)
manisha sanjeev
expression
yashoda agrawal 

Mukesh Kumar Sinha 


रूपचन्द्र शास्त्री मयंक 


उत्तर से दक्षिण को भू पर।
बहती जल की धार निरन्तर।।

संसर्गों में जो भी आता,
तन-मन से पावन हो जाता,
अवगुण हो जाते छूमन्तर।
बहती जल की धार निरन्तर।।
देवदत्त प्रसून
Anusha Mishra
सरिता भाटिया
अभिषेक मिश्र 

9 टिप्‍पणियां:

  1. सामयिक लिंकों के साथ बहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
    आपका आभार आदरणीय रविकर जी।

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात
    समसामयिक लिंक्स
    उम्दा चर्चा |
    मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद और आभार |

    जवाब देंहटाएं
  3. सुंदर बुधवारीय चर्चा रविकर जी । 'उलूक' के सूत्र 'जो भी उसे नहीं आता है उसे पढ़ाना ही उसको बहुत अच्छा तरह से आता है' को स्थान देने के लिये आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति...आभार!

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत ही बढ़िया चर्चा.............
    मेरी पोस्ट का लिंक शामिल करने का बहुत बहुत शुक्रिया !

    सादर
    अनु

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
    मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद और आभार |

    जवाब देंहटाएं

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