घाटी की माटी बही, प्राणांतक सैलाब |
कुछ भी न बाकी बचा, कश्मीरी बेताब |
कश्मीरी बेताब, जान पर फौजी खेलें |
सतलुज रावी व्यास, सिंधु झेलम को झेलें |
राहत और बचाव, रात बिन सोये काटी |
फौजी सच्चे दोस्त, समझ ना पाये घाटी ||
|
manisha sanjeev
|
expression
|
yashoda agrawal
|
|
Mukesh Kumar Sinha
|
|
रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
उत्तर से दक्षिण को भू पर।
बहती जल की धार निरन्तर।।
संसर्गों में जो भी आता,
तन-मन से पावन हो जाता,
अवगुण हो जाते छूमन्तर।
बहती जल की धार निरन्तर।।
|
देवदत्त प्रसून
|
Anusha Mishra
|
सरिता भाटिया
|
अभिषेक मिश्र
|
सामयिक लिंकों के साथ बहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका आभार आदरणीय रविकर जी।
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंसमसामयिक लिंक्स
उम्दा चर्चा |
मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद और आभार |
सुंदर बुधवारीय चर्चा रविकर जी । 'उलूक' के सूत्र 'जो भी उसे नहीं आता है उसे पढ़ाना ही उसको बहुत अच्छा तरह से आता है' को स्थान देने के लिये आभार ।
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा...
जवाब देंहटाएंसादर।
सुंदर चर्चा रविकर जी
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति...आभार!
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया चर्चा.............
जवाब देंहटाएंमेरी पोस्ट का लिंक शामिल करने का बहुत बहुत शुक्रिया !
सादर
अनु
बहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद और आभार |
धन्यवाद... :)
जवाब देंहटाएं