रविकर
खूनी धरती झेलती, युगों युगों का शाप ।
काले झंडे के तले, रही मनुजता काँप ।
रही मनुजता काँप, क़त्ल कर जश्न मनाता।
बग़दादी का वार, गोश्त जिन्दों का खाता ।
वह दारुल इस्लाम, किन्तु क्यूँ लोग जुनूनी ।
गैर धर्म कर साफ़, खेल क्यूँ खेलें खूनी ॥
chandan bhati
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Prakashchand Bishnoi
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प्रतुल वशिष्ठ
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shashi purwar
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Virendra Kumar Sharma
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कालीपद "प्रसाद"
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Shalini Kaushik
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Onkar
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सुप्रभात
ReplyDeleteबारिश क़यामत ढा गयी |इससे निवटने में कितना समय लगेगा यह तो वहां के लोग ही जानते हैं |
हमारी संवेदनाएं उनके साथ हैं |
उम्दा लिंक्स आज चर्चा मंच में |
मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद सर |
सुंदर सूत्र. मेरी रचना को जगह देने के लिए शुक्रिया
ReplyDeleteबहुत सुंदर सूत्र संयोजन सुंदर मंगलवारीय चर्चा रविकर जी ।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति
ReplyDeleteआभार!
bahut achhe links
ReplyDeleteshubhkamnayen