मित्रों।
जब तक चर्चा मंच के विश्वासपात्र चर्चाकार हैं।
तब तक इसका काफिला रुकेगा नहीं।
देखिए सोमवार की चर्चा में
मेरी पसंद के कुछ लिंक।
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रिश्तों को घर दिखलाओ
- कुँअर बेचैन
माँ की साँस
पिता की खाँसी
सुनते थे जो पहले, अब वे कान नहीं।
छोड़ चेतना को
जड़ता तक
आना जीवन का
पत्थर में परिवर्तित पानी
मन के आँगन का-
यात्रा तो है; किंतु सही अभियान नहीं।
सुनते थे जो पहले, अब वे कान नहीं....
राज चौहान
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जिंदगी के हर मोड़ पर ऐ दोस्त
मिलती है हर किसी से
वफ़ा का ख्वाब लेकर ,
ये मालूम है जफ़ा करेगी ,
मोहब्बत फिर भी है तुमसे जिंदगी-
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हम अग्रवाल है!
(1) कुल इन्कम टैक्स में 24 % हिस्सा अग्रवालों का है।
(2) कुल दान में 62 % हिस्सा अग्रवालों का है।
(3) कुल 16000 गौशाला में
12000 अग्रवाल समुदाय द्वारा संचालित है।
(4) भारत में कुल 50000 मंदिर अग्रवालों के है।
(5) 46 % शेयर दलाल अग्रवाल है।
(6) सभी प्रमुख न्यूज पेपर के मालिक अग्रवाल है।
(7) भारत के विकास में 25 % योगदान अग्रवालों का है।...
आपकी सहेली पर jyoti dehliwa
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मरू -मान
पील ,मीठी पीमस्यां
खोखा, सांगर, बेर |
मरु धरा सु जूझता
खींप झोझरू कैर ||
जूझ जूझ इण माटी में
बन ग्या कई झुंझार ।
सिर निचे दे सोवता
बिन खोल्यां तरवार ॥
खोखा, सांगर, बेर |
मरु धरा सु जूझता
खींप झोझरू कैर ||
जूझ जूझ इण माटी में
बन ग्या कई झुंझार ।
सिर निचे दे सोवता
बिन खोल्यां तरवार ॥
ज्ञान दर्पण पर
Ratan singh shekhawat
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कोड़े खाते तुर्क वो, जो इराक में रॉक-
कोड़े खाते तुर्क वो, जो इराक में रॉक ।
गरबा पूजा के लिए, फिर रगड़ो क्यों नाक ।
फिर रगड़ो क्यों नाक, समझ लो मित्र कायदा ।
मंसूबे नापाक, उठाते रहे फायदा ।
रविकर लव-जेहाद, राह में डाले रोड़े ।
जागा हिन्दु समाज, नाक-भौं तभी सिकोड़े ।
"लिंक-लिक्खाड़" पर रविकर
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नारी संवेदना
एक नारी का जीवन भी अभिशाप है ।
जन्म लेना बना क्यों महापाप है ।।
भेडियों के लिए ,जिन्दगी क्यों बनी ।
हे विधाता तेरा ,कैसा संताप है...
तीखी कलम से पर
Naveen Mani Tripathi
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प्रेम -- एक प्रश्नचिन्ह --
आखिर क्यों ?
जाने कितने युग गुजर गये व्यक्त करते करते मगर क्या कभी हुआ व्यक्त ?पूरी तरह क्या कर पाया कोई परिभाषित ? नहीं , प्रेम- विशुद्ध प्रेम परिभाषाओं का मोहताज नहीं होता तो कैसे उसे उल्लखित किया जा सकता है ? कैसे उसके बारे में दूसरे को समझाया जा सकता है ...
एक प्रयास पर vandana gupta
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मेरा वजूद एक दशमलव सा
मेरी उपस्थिति से
तुम बहुत छोटे से हो जाते हो
अपने आकार को सहेजते
अपने ही अस्तित्व के संकट से जूझते...
तुम बहुत छोटे से हो जाते हो
अपने आकार को सहेजते
अपने ही अस्तित्व के संकट से जूझते...
Shabd Setu पर
RAJIV CHATURVEDI
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खाना पीना और सोना ही
बस जरूरी होता है
‘उलूक’ तू जाने
तेरी सोच जाने
पता नहीं किस
डाक्टर ने कह दिया
है तुझसे कि
ऊल-जलूल भी हो
तेरी सोच जाने
पता नहीं किस
डाक्टर ने कह दिया
है तुझसे कि
ऊल-जलूल भी हो
सोच में कुछ भी
तब भी लिखना
जरूरी होता है...
तब भी लिखना
जरूरी होता है...
उलूक टाइम्स पर सुशील कुमार जोशी
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कश्मीर- महफ़ूज़,
शब्द कितना महफूज़ बचा है अब?
आज फिर संकट में है धरती का स्वर्ग
फ़ोन पर आती है एक घबराई हुई आवाज
सब बह गया, सब बह गया
अल्लाह का शुक्र है
मेरा परिवार महफूज है
अल्लाह का शुक्र है.…
फ़ोन पर आती है एक घबराई हुई आवाज
सब बह गया, सब बह गया
अल्लाह का शुक्र है
मेरा परिवार महफूज है
अल्लाह का शुक्र है.…
Pratibha Katiyar
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दोहे
माथे सोहे बिंदिया ,पायल छमके पाँव
घर आये सांवरिया, हुई धूप में छाँव...
Ocean of Bliss पर Rekha Joshi
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सागर तीरे (30 हाइकु)
1.
दम तोड़ती
भटकती लहरें
सागर तीरे ।
2.
सफ़ेद रथ
बढ़ता बिना पथ
रेत में गुम ।
3.
उमंग भरी
लहरें मचलती
कहर ढाती...
डॉ. जेन्नी शबनम
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ऊंचे पानी न टिके ,नीचे ही ठहराय ,
नीचा होय सो भरि पिये ,ऊंचा प्यासा जाय।
आपका ब्लॉग पर
Virendra Kumar Sharma
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सुश्री देवी नागरानी जी
आदरणीया देवी नागरानी जी मेरी बड़ी बहन हैं। वे एक बेहतरीन रचनाकार , ग़ज़लगो , कहानीकार , अनुवादक और एक सजग समर्पित साहित्यकार एवं भारतीय भी हैं यह उनकी बहुमुखी प्रतिभा का मिलाजुला स्वरूप है। बड़ी हैं और साहित्य मर्मज्ञ भी इस कारण वे मेरे लिए सदैव प्रेरणा का स्त्रोत रहीं हैं। यह उनके स्नेह से आगे चलकर और अधिक सिंचित व पल्ल्वित हुआ। अब बीते दिनों को याद करूँ तो, उनसे मेरी सर्व प्रथम मुलाक़ात, विश्व प्रसिद्ध संस्था यूनाइटेड नेशनसँ के मुख्य सभागार, न्यू यॉर्क शहर में आयोजित अष्ठम हिन्दी अधिवेशन के दौरान हुई थी...
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प्रयास
जीत हार तो है, एक मामूली सी बात
मूल्यवान तो है, तेरा ये प्रयास रे
मुश्किलों का क्या, ये तो मिलती है हर कही
जीत जायेगा तु, मुश्किलों को सभी
खुद पर तो कर विश्वास रे
कर प्रयास रे, कर प्रयास रे...
मूल्यवान तो है, तेरा ये प्रयास रे
मुश्किलों का क्या, ये तो मिलती है हर कही
जीत जायेगा तु, मुश्किलों को सभी
खुद पर तो कर विश्वास रे
कर प्रयास रे, कर प्रयास रे...
हिंदी कविता पर Bhoopendra Jaysawal
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"ग़ज़ल-नंगा आदमी भूखा विकास"
दिल्ली उन्हीं के वास्ते, दिल जिनके पास है
खाली है अगर जेब तो, दिल्ली उदास है
रोजी के लिए नौनिहाल माँजता बरतन
हाथों में उसके आज भी झूठा गिलास है
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंसुन्दर सूत्र और संयोजन |
सुंदर संयोजन सुंदर चर्चा । 'उलूक' के सूत्र 'खाना पीना और सोना ही बस जरूरी होता है' को जगह देने के लिये आभार ।
जवाब देंहटाएंयात्रा तो है; किंतु सही अभियान नहीं।
जवाब देंहटाएंसुनते थे जो पहले, अब वे कान नहीं।
चलता तो है जीव पथिक पर -
मंजिल का अब भान नहीं है
सुन्दर रचना है कुसुमेश जी की।
सुन्दर मनभावन जैसे पीया(पिया) घर आये ,दोहे बहुत भाये
जवाब देंहटाएंबहुत सशक्त सार्थक लेखन .
जवाब देंहटाएंरविकर लव-जेहाद, राह में डाले रोड़े ।
जागा हिन्दु समाज, नाक-भौं तभी सिकोड़े ।
जवाब देंहटाएंबहुत सशक्त सामयिक यथार्थ।
लघुकथा
कितनी द्रोपदियाँ
बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति ...आभार!
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी आपका बहुत बहुत आभार जो इस मंच पर मुझे स्थान दिया॰
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा--
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार--
बहुत बढ़िया चर्चा, मुझे जगह देने के लिये आभार
जवाब देंहटाएंएक बहुत बढिया आयोजन जो साहित्य एवं साहित्यकार के विकास के निहायत आवश्यक है। आपको बहुत-बहुत धन्यवाद इस सुन्दर प्रयास के लिए जो निश्चित रूप से बहुत लोगों के विकास में सहायक होगी। और मेरी कविता को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार्।
जवाब देंहटाएंसच कहूँ तो इन बेहतरीन लिंक्स के बीच अपनी साधारण सी रचना को देख जितना गर्व महसूस करती हूँ उससे कहीं ज्यादा खुदको असहज़ महसूस करती हूँ...शुक्रिया मेरी रचना को पसंद कर यहाँ स्थान देने के लिए...!!!
जवाब देंहटाएंअच्छे लिंक्स !
जवाब देंहटाएंआभार !