रविकर
भला भयातुर भी कहीं, कर सकता अपराध ।
इसीलिए तो चाहिए, भय-कारक इक-आध ।
भय-कारक इक-आध, शिकारी खा ना पाये ।
चलता रहे अबाध, शांतिप्रिय जगत बनाये ।
धर्म-भीरु इस हेतु, डरे प्रभु से यह पगला ।
सँभला जीवन-वेग, आचरण सँभला सँभला ।
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अलक़ायदा का दीवाला?!Bamulahija dot Com
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सुप्रभात
जवाब देंहटाएंउम्दा सूत्र संयोजन |दोहे बढ़िया हैं |
मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार सर |
बहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआ. रविकर जी आपका आभार।
सुंदर चर्चा... काफी दिनों बाद चर्चा पढ़ सका...
जवाब देंहटाएंमेरी नयी रचना...
ये पृष्ठभूमि हैं, इस रण की
जय एकलिंगनाथ जी की
जवाब देंहटाएंबहुत ही शानदार ! शुभकामनाएं .!
सुंदर सूत्र संयोजन सुंदर रविकर रविवारीय चर्चा ।
जवाब देंहटाएंधर्म-भीरु इस हेतु, डरे प्रभु से यह पगला-
जवाब देंहटाएंरविकर
रविकर की कुण्डलियाँ
भला भयातुर भी कहीं, कर सकता अपराध ।
इसीलिए तो चाहिए, भय-कारक इक-आध ।
भय-कारक इक-आध, शिकारी खा ना पाये ।
चलता रहे अबाध, शांतिप्रिय जगत बनाये ।
धर्म-भीरु इस हेतु, डरे प्रभु से यह पगला ।
सँभला जीवन-वेग, आचरण सँभला सँभला ।
बहुत सुन्दर है रविकारजी। प्रासंगिक भी है वजनी भी।
बेताला आदमी
जवाब देंहटाएंअपने जापान दौरे के दौरान एक संगीत कार्यक्रम में भारत के प्रधानमन्त्री
नरेंद्र मोदी ने कलात्मक रीति से ड्रम बजाकर वहां उपस्थित लोगों और
सामान्य जापानियों को सम्मोहित सा कर लिया। इससे भारत के प्रति
वहां के लोगों में और अधिक अनुराग बढ़ गया ,किन्तु भारत की सेकुलर
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जमात के शहज़ादा राहुल बोले कि यहां तो बिजली की दिक्क्त है
और मोदी -
जापान में ढोल बजा रहे हैं। लोग अपनी मूर्खता पर लज्जित होते हैं पर ये
सेकुलर गर्वित होते हैं। जो अपना छोटा सा वक्तव्य भी लिखकर देते हों
जो
बोलने की कला तक न सीख पाया हो ऐसे बेताला आदमी से कैसे उम्मीद
की जा सकती है कि वह कला की प्रशंसा करेगा।
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Posted 2 days ago by Virendra Kumar Sharma
3 View comments
रविकर September 6, 2014 at 4:25 PM
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति रविवार के - चर्चा मंच पर ।।
Reply
रूपचन्द्र शास्त्री मयंकSeptember 6, 2014 at 9:39 PM
आप तो कांग्रेस के पीछे ही पड़े हो...
अब तो तसल्ली करो शर्मा जी।
Reply
Virendra Kumar SharmaSeptember 7, 2014 at 9:42 AM
कांग्रेस एक रक्त बीज है देश की सलामती के लिए इसका नेस्तनाबूद होना ज़रूरी है।
Virendra Kumar Sharma9/07/2014 10:12 am
जवाब देंहटाएंScience is based upon objectification .Spirituality is based upon loving devotion and belief towards the almighty wherein the creator ,the created and the material are the same .Bliss is the name of God .Even an atheist wants bliss .so he believes in God .We can not know the God who controls material energy (Maya ),Marginal energy or Jeev shakti and divine energy or Yogmaya ,simultaneously .All the three energies are conserved and are eternal .All the souls the deities included are manifestations of the Marginal energy of the personality of God ,The Supreme personality ,The God Head .The God is one with them and also within them and without ..Just as fire is different from the heat and light it produces and also one with them .The material energy (all our physical instruments)can not prove or disprove the presence and or absence of God .We the souls are equipped with limited energy god is the everlasting source of energy .
ईश्वर की अवधारणा, विज्ञान की कसौटी !
DrZakir Ali Rajnish
Scientific World
एक नहीं ऐसे (गोचर सृष्टि ,दृश्य जगत )अनंत कोटि ब्रह्माण्ड हैं। जिसे हम सृष्टि कहते हैं वह पदार्थ -ऊर्जा (मटेरियल एनर्जी और मॉस -एनर्जी )का प्रगट रूप है.अध्यात्म की भाषा में इसे ही माया कहा जाता है। यह ईश्वरीय ऊर्जा का मात्र एक चौथाई है। शेष तीन चौथाई ऊर्जा में भगवान (Supreme personality of God head )का वैकुण्ठ लोक /गोलोक /कृष्ण लोक /साकेत …… हैं। यह कृष्ण लोक और ऐसे अनंत कृष्ण लोक हैं जो योगमाया यानी डिवाइन एनर्जी से निर्मित हैं। इसे सुपीरियर एनर्जी या परा शक्ति भी कहा जाता है। जबकि माया यानी मैटीरीअल एनर्जी को अपरा शक्ति या जीव शक्ति भी कहा जाता है। कृष्ण दी पर्सनेलिटी आफ गॉड हेड एक साथ इन सब लोकों में अपने पूरे मंत्रिमंडल (देवताओं संगी साथियों )के साथ हो सकते हैं। तमाम देवियाँ इसी योग माया का विस्तार हैं। भगवान का दिव्य शरीर जेण्डर से परे है। नर रूप में वह नारायण है नारी रूप में नव -देवियाँ हैं।
जवाब देंहटाएंभगवान भौतिक ऊर्जा (material energy ),जीवऊर्जा/परा शक्ति (marginal energy )तथा दिव्य ऊर्जा का स्वामी एवं नियंता है। ये गोचर -अगोचर जगत (दृश्य जगत तथा डार्क एनर्जी डार्क मेटर से बना परिकल्पित जगत जो अभी विज्ञान की पहुँच से बाहर है केवल अवधारणा के स्तर पर है )भगवान की कुल ऊर्जा का मात्र एक चौथाई अंश है। शेष तीन चौथाई में दिव्य ऊर्जा (भगवान की योगमाया शक्ति/परा शक्ति )से निर्मित अनंत वैकुण्ठ लोक हैं। भगवान की कुल शक्तियों को तो भगवान भी नहीं जानता फिर माया यानी मैटीरीअल एनर्जी से बना हमारा शरीर और तमाम वैज्ञानिक साधन ,उपकरण भला उसकी टोह कैसे ले सकते हैं।
अनुमान मात्र है की गोचर सृष्टि में टैन टू दी पावर ८२ प्रोटोन हैं इतने ही न्यूट्रॉन हैं तथा दस की घात ७९ न्यूट्रिनो हैं। लेकिनक्या इनमे से किसी भी कण को किसी भी विज्ञानी या यंत्र से देखा जा सका है। लेकिन ऐसा समझा जाता है और बाकायदा समझा जाता है।
समझा यह भी जाता है की गोचर जगत में दस की घात ५३ किलोग्राम पदार्थ है। लेकिन क्या किसी ने देखा है ऐसे ही ईश्वर को अगर किसी ने नहीं देखा है तो इसका मतलब यह नहीं है वह नहीं है। और उसे देखा गया है बाकायदा देखा गया है संतों द्वारा। सूर, तुलसी और उनसे पहले वेदव्यास (कृष्ण द्वै -पायन व्यास /बादरायण ),नारद आदि मुनियों द्वारा।
विज्ञान भी उसे लविंग डिवोशन की मार्फ़त देख सकता है भौतिक उपकरण (मैटीरीअल एनर्जी )उसकी टोह नहीं ले सकती क्योंकि वह असीमित एनर्जी का अक्षय स्रोत है दिव्य है।
बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार!
bahut sundae charcha...
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