आज की चर्चा में मैं राजीव उपाध्याय आपका हार्दिक स्वागत करता हूँ।
चलनी में चाँद
करवा चौथ की सभी बहनों को हार्दिक शुभकामनायें एवं बधाई !
भारतीय महिलाएं अपने सारे तीज त्यौहार पारंपरिक तरीके से ही मनाना पसंद करती हैं इसमें कोई दो राय नहीं हैं ! फिर बात अगर सुहाग के व्रत की हो तो उनकी भक्ति भावना, निष्ठा और समर्पण की बानगी ही कुछ और होती है ! परम्पराओं और नियमों के पालन में कोई कमी न रह जाए, हर अनुष्ठान हर विधि विधान पूरी सजगता सतर्कता के साथ संपन्न किया जाए इसका वे विशेष ध्यान रखती हैं ! आखिर अपने प्रियतम की दीर्घायु, सुख व सान्निध्य की कामना जो जुड़ी रहती है इस व्रत के साथ...
करवा चौथ की सभी बहनों को हार्दिक शुभकामनायें एवं बधाई !
भारतीय महिलाएं अपने सारे तीज त्यौहार पारंपरिक तरीके से ही मनाना पसंद करती हैं इसमें कोई दो राय नहीं हैं ! फिर बात अगर सुहाग के व्रत की हो तो उनकी भक्ति भावना, निष्ठा और समर्पण की बानगी ही कुछ और होती है ! परम्पराओं और नियमों के पालन में कोई कमी न रह जाए, हर अनुष्ठान हर विधि विधान पूरी सजगता सतर्कता के साथ संपन्न किया जाए इसका वे विशेष ध्यान रखती हैं ! आखिर अपने प्रियतम की दीर्घायु, सुख व सान्निध्य की कामना जो जुड़ी रहती है इस व्रत के साथ...
पहले क्यूँ नहीं आये ??
आखिर क्यूँ नहीं आया तुम्हेमेरा ख्याल एकबार भीजानते भी हो...कितना सितम सहा है मैंने
इक उम्र तक हर पूर्णिमा का चाँद
मेरे अधूरेपन पर ताना कसता रहा...
यूं ही बीते जिंदगी का सफर -
बेखयाली में अक्सर
एक खयाल आता है कि
हंसी हैं वादियां, घटाएं और चमन
आवारा सी फिजाएं हैं हर तरफ
नदी का किनारा एक खूबसूरत
लेटे हो तुम गोद में मेरी सिर रखकर...
उड़ान
बेखयाली में अक्सर
एक खयाल आता है कि
हंसी हैं वादियां, घटाएं और चमन
आवारा सी फिजाएं हैं हर तरफ
नदी का किनारा एक खूबसूरत
लेटे हो तुम गोद में मेरी सिर रखकर...
उड़ान
"करवाचौथ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
कर रही हूँ प्रभू से यही प्रार्थना।
ज़िन्दगी भर सलामत रहो साजना।।
भागलपुर जिले के नवगछिया से सटे गोपालपुर प्रखंड का एक छोटा सा गाँव है धरहरा. जो पटना से पूर्व में 230 किलोमीटर की दूरी पर है.जब निर्मला देवी ने 1961 में एक बेटी को जन्म दिया तो उनके पति ने 50 आम का पेड़ लगाकर जन्मोत्सव मनाया.उनकी दूसरी पुत्री के जन्म के बाद तथा बाद में पोतियों के जन्म का उत्सव पेड़ लगाकर मनाया.आज निर्मला देवी के पास आम और लीची का 10 एकड़ का बगीचा है.
सपनों में रिश्ते बुनते देखा
जब आँख खुली तो
कुछ ना था;
आँखों को हाथों से
मलकर देखा
कुछ ना दिखा;
सपनों में रिश्ते बुनते देखा॥
सोचा था कि अब चला गया हवाओं की तरह
गम दूसरे दिन फिर आ गया दीवाना की तरह॥
बाँध पुत्र को पीठ पर, पड़ी शत्रु पर टूट।
एक अकेली क्या करे, हाय आपसी फूट।
जरा नाम तो बोलो भाई।
ग़ज़ल-कैसे आज बचाऊँ
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
अपनी झोली भरते जाते, सत्ता के सौदागर,
मँहगाई की मार पड़ी है, क्या कुछ खाऊँ-खिलाऊँ!
दस्तक अब भी दी जा रही है..
उपासना सियाग
बंद दरवाजे पर
दस्तक दी जाती रही
दरवाजा नहीं खुला ।
मगर
दरवाजे के उस पार
आवाज़ें थी , हलचल थी
फिर दरवाजा क्यों नहीं खुला !
झूठा हो या सच्चा मुद्दा,
हम तो सिर्फ विरोध करेंगे ।
जिम्मेदारी अब उनकी है,
हम तो सिर्फ विरोध करेंगे ।
वामपक्ष हम
उल्टा चलना धर्म हमारा ।
चिनगारी को ज्वाल बनाना
कर्म हमारा ।
समतल राह न होने देंगे ।
राहों में गतिरोध बनेंगे।
झूला बन क्यों झूम रहा हूँ ।
नियत दिशा है, बढ़ते जाना,
ज्ञान-कोष का वृहद खजाना,
किन्तु हृदय की लोलुपता है,
मन में कुछ अनतृप्त व्यथा है ।
भटक रहा मैं, घूम रहा हूँ ।
झूला बनकर झूम रहा हूँ ।।
बहुत सुन्दर चर्चा।
जवाब देंहटाएंआपका आभार आदरणीय राजीव उपाध्याय जी।
--
करवाचौथ की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
धन्यवाद शास्त्री जी। आपको भी करवाचौथ की शुभकामनाएँ।
हटाएंबढ़िया लिंक्स और उनका संयोजन |
जवाब देंहटाएंकरवा चौथ पर हार्दिक शुभ कामनाएं |
bahut sundar links hamen shamil karne hetu bahut bahut dhanyavad
जवाब देंहटाएंbahut sundar sangrah .....dhanyavad nd aabhar ...
जवाब देंहटाएंसार्थक सवाल उठाती सांस्कृतिक पोस्ट लकीर का फ़कीर होना आसान है खुद बाज़ार होना और भी ज्यादा।
जवाब देंहटाएंकरवा चौथ की सभी बहनों को हार्दिक शुभकामनायें एवं बधाई !
भारतीय महिलाएं अपने सारे तीज त्यौहार पारंपरिक तरीके से ही मनाना पसंद करती हैं इसमें कोई दो राय नहीं हैं ! फिर बात अगर सुहाग के व्रत की हो तो उनकी भक्ति भावना, निष्ठा और समर्पण की बानगी ही कुछ और होती है ! परम्पराओं और नियमों के पालन में कोई कमी न रह जाए, हर अनुष्ठान हर विधि विधान पूरी सजगता सतर्कता के साथ संपन्न किया जाए इसका वे विशेष ध्यान रखती हैं ! आखिर अपने प्रियतम की दीर्घायु, सुख व सान्निध्य की कामना जो जुड़ी रहती है इस व्रत के साथ ! इन त्यौहारों का आकर्षण और लोकप्रियता बढ़ाने में फिल्मों और टी वी ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है इससे इनकार नहीं किया जा सकता ! यह इसी बात से सिद्ध होता है कि धार्मिक मान्यताओं को परे सरका कर इन त्यौहारों को मनाने वालों की संख्या हर साल बढ़ती ही जा रही है !
कल करवा चौथ का त्यौहार है ! उत्तर भारत में यह त्यौहार बड़े जोश खरोश के साथ मनाया जाता है ! सुहागन स्त्रियाँ अपने पति की लंबी आयु व मंगलकामना के लिये सूर्योदय से चंद्रोदय तक निर्जल निराहार व्रत रखती है और संध्याकाल में सारे विधि विधान के साथ पूजा अर्चना कर चन्द्रमा के निकलने की आतुरता से प्रतीक्षा करती हैं ! जब आसमान में चाँद निकल आता है तब चाँद को अर्घ्य दे अपने पति के हाथ से पानी पीकर अपना व्रत खोलती है ! पति के लिये इस तरह का अनन्य प्रेम, सद्भावना और भावनात्मक लगाव सभीको प्रभावित करता है ! मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है आप सबसे यह बात साझा करते हुए कि हमारे शहर आगरा में गत वर्ष कई मुस्लिम बहनों ने भी इस व्रत को रखा ! उनका कहना था कि अपने पति की मंगलकामना के लिये तो वे भी यह व्रत रख सकती हैं ! इसमें धर्म को कहीं से आड़े नहीं आना चाहिये !
बात विषय से कुछ हट गयी है ! दरअसल इस पोस्ट को लिखने का मेरा आशय केवल इतना जानना था कि फिल्मों और टी वी को देख कर चलनी में चाँद देखने की यह जो नई परम्परा चल पड़ी है उसका औचित्य क्या है ? करवा चौथ की कहानी के अनुसार सात भाइयों की इकलौती लाड़ली बहन को चलनी में जो चाँद दिखाया गया था वह तो नकली था ! व्रत के कारण भूख प्यास से आकुल व्याकुल बहन की हालत भाइयों से जब देखी ना गयी तो उन्होंने पेड़ पर चढ़ कर मशाल जला कर चलनी के पीछे से नकली चाँद बना कर बहिन को दिखा दिया और उसे कह दिया कि चाँद को अर्घ्य देकर वह अपना व्रत खोल ले ! पेड़ के पत्तों के पीछे चलनी के अंदर गोलाई में मशाल का प्रकाश देख बहन को विश्वास हो गया कि चाँद सच में निकल आया है और उसने उस नकली चाँद को अर्घ्य देकर अपना व्रत खोल लिया ! इस तरह इस कहानी के अनुसार चलनी के माध्यम से जो देखा गया था वह तो नकली चाँद था फिर स्त्रियों का अपनी असली पूजा में चलनी के पीछे से चाँद देखने का क्या औचित्य है ? क्या हम गलत परम्परा को खाद पानी नहीं डाल रहे हैं या फिर हम इस परम्परा को सिर्फ इसलिए मानने मनाने लगे हैं क्योंकि फिल्मों में और धारावाहिकों में बड़े ही भव्य तरीके से इस परम्परा की स्थापित किया जाने लगा है जहाँ सजधज कर और चित्ताकर्षक अदाओं के साथ नायिका आसमान के चाँद के बाद नायक का चेहरा चलनी में देखती है और नायक अत्यंत रूमानी तरीके से पानी पिला कर नायिका का व्रत खुलवाता है ! मुझे याद है अपने मायके ससुराल में किसीको भी मैंने चलनी के माध्यम से चन्द्र देव के दर्शन करते हुए नहीं देखा ! न ही बाज़ार में इस तरह से सजी हुई चलनियाँ मिला करती थीं ! बाज़ारवाद की परम्पराएँ तो केवल हानि लाभ के सिद्धांतों से परिचालित होती हैं लेकिन धार्मिक विश्वास और आस्थाएं जिन रीति रिवाजों से पालित पोषित होते हैं क्या उनका तर्क की कसौटी पर खरा उतरना आवश्यक नहीं ? अधिकाँश महिलायें अब चलनी के माध्यम से चाँद क्यों देखने लगी हैं मैं इसका उत्तर जानना चाहती हूँ ! आशा है मेरी शंका का समाधान कर मेरा ज्ञानवर्धन आप में से कोई न कोई अवश्य करेगा !
सभी बहनों को करवाचौथ की हार्दिक शुभकामनायें एवं बधाई !
साधना वैद
जवाब देंहटाएंकैसे भूल सकेंगे ,जब थी
हाथ हमारे सत्ता।
अपनी ही थी हर बाजी
हर चाल तुरुप का पत्ता ।
फिर से कैसे वह सब पाएं,
जैसे भी हो शोध करेंगे ।
सशक्त व्यंग्य विपक्ष के स्वरूप पर। हम विपक्ष हैं हमारा काम विरोध करना है जैसे भी हो तुम्हारा और देश का काम तमाम करना है।
विपक्ष-धर्म
गिरजा कुलश्रेष्ठ
झूठा हो या सच्चा मुद्दा,
हम तो सिर्फ विरोध करेंगे ।
जिम्मेदारी अब उनकी है,
हम तो सिर्फ विरोध करेंगे ।
वामपक्ष हम
उल्टा चलना धर्म हमारा ।
चिनगारी को ज्वाल बनाना
कर्म हमारा ।
समतल राह न होने देंगे ।
राहों में गतिरोध बनेंगे।
जवाब देंहटाएंमहफिल में काले कौओं को, “रूप” परोसा जाता,
इन भोली-भाली चिड़ियों को, कैसे आज बचाऊँ!
बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंबाँध पुत्र को पीठ पर, पड़ी शत्रु पर टूट ।
एक अकेली क्या करे, हाय आपसी फूट ।
जरा नाम तो बोलो भाई ।
महारानी लक्ष्मीबाई -
लक्ष्मी थी वो दुर्गा थी ,वो स्वयं वीरता की अवतार
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार .
बहुत सुंदर चर्चा राजीव । 'उलूक' के सूत्र 'दस अक्टूबर है आज पागलों का दिन है पागलों को पता है
जवाब देंहटाएंपता नहीं' और 'क्या किया जाये ऐसे में अगर कोई कहीं और भी मिल जाये' को आज की चर्चा में साथ साथ जगह देने के लिये आभारी हूँ ।
बढ़िया चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार!
Badhiya Links Hain.... CHaitanyaa Ko shamil Karne ka aabhar
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा.
जवाब देंहटाएंब्लॉगिंग के शुरूआती दिनों के पोस्ट 'बेटियों का पेड़' को शामिल करने के लिए आभार.
उन दिनों न तो अन्य हिंदी ब्लॉगर के बारे में जानकारी थी और न ही हिंदी ब्लॉग संकलक के बारे में पता था.फिर भी मोनिका जी की नजर इस पोस्ट पर पड़ी और अपने पहले कमेंट द्वारा प्रोत्साहित करने के लिए उनका भी आभार.
बढ़िया लिंक्स और सुंदर चर्चा संयोजन |
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति लिंक्स की, बहुत बहुत आभार |
जवाब देंहटाएंस्वागत है इत आपका, रविकर चर्चाकार ||
आप सभी मित्रो को यहाँ पधारकर अपनी राय बताने लिए हार्दिक धन्यवाद। साथ ही विरेन्द्र कुमार शर्मा जी को विशेष धन्यवाद कि उन्होंने कई रचनाओं पर अपनी राय इस मंच पर भी प्रस्तुत किया जो कि सराहनीय है। साथ ही शास्त्री जी को मार्गदर्शन हेतु विशेष आभार।
जवाब देंहटाएंसभी मित्र परिवारों को आज संकष्टी पर्व की वधाई ! सुन्दर प्रस्तुतीकरण ! सुन्दर संयोजन !
जवाब देंहटाएंSunder links ..... Accha lga sabhi rachna...aalekh vaa paheliyo ko padh kar ...karwachauth ki shubhkamnaayein !!!
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंRajeev ji meri rachna ko sthaan dene ke liye aapka hardik aabhaar !!!
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