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शनिवार, अक्तूबर 25, 2014

"चलता रहा हूँ मैं - भइयादूज की शुभकामनाएँ" (चर्चा अंक-1777)

आज के शनिवासरीय चर्चा में राजीव उपाध्याय आपका हार्दिक स्वागत करता है।


थालियाँ रोली चन्दन की सजती रहें,
सुख की शहनाइयाँ रोज बजती रहें,  
हों सफल भाइयों की सभी साधना। 
दूज के इस तिलक में यही भावना... 
उच्चारण
-- 
सुशील कुमार जोशी 
एक किनारे में 
खड़ा एक भीड़ के 
देखता हुआ 
अपनी ही जैसे 
एक नहीं कई 
प्रतिलिपियाँ
--
राजेंद्र कुमार 
ॐ श्रीं हीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद। 
प्रसीद श्रीं हीं श्रीं ॐ महालाक्ष्मै नमः।।
हिमकर श्याम 
मानव-मानव का भेद मिटाएँ
दिल से दिल के दीप जलाएँ 
मन का मंथन। पर kuldeep thakur
पिट्सबर्ग में एक भारतीय  पर 

--
!! शुभ-दीपावली !!

तम अमावस का मिटाने को दिवाली आ गयी है। 
दीपकों की रौशनी सबके दिलों को भा गयी है।।
भाई दूज 


सरिता भाटिया
इंतजार कायम रहे 
(कविता) 
नाउम्‍मीदी में खुशियों की ईद है 
जो कल गई है वापिस वो दीवाली है 
मन में मिलने की हरियाली है 
सबसे प्‍यारे हैं इंतजार के क्षण 
जल्‍दी भंग नहीं होतेभंगर नहीं होते 
इंतजार में होता है सुकून... 
अविनाश वाचस्पति पर नुक्‍कड़
"दोहे-गोवर्धन पूजा" 
अन्नकूट पूजा करो, गोवर्धन है आज। 
गोरक्षा से सबल हो, पूरा देश समाज।१। 
 
श्रीकृष्ण ने कर दिया, माँ का ऊँचा भाल। 
सेवा करके गाय की, कहलाये गोपाल।२।... 
--

हवा हूँ मैं या झोका कोई
चल रहीं हैं या ठहर गयीं
ये अंज़ान सांसें हैं रोज़ पुछ्तीं
ज़बाव कोई आजकल मिलता नहीं
 
बड़ी मुश्किल है बोलो क्या बताएं।
न पूछो कैसे हम जीवन बिताएं।    
निष्ठुर तम हम दूर भगाएँ 
--
किशोरों के नाम 
प्यारे बच्चों, कहते हैं कि मुग़ल काल के उर्दू-फारसी के महान शायर मिर्जा ग़ालिब बड़े मनमौजी किस्म के आदमी थे. एक बार उनको एक बार किसी शाही दावत का निमंत्रण मिला तो वे, यों ही, अपने साधारण लिबास में पहुँच गए, लेकिन द्वारपाल ने उनको ठीक से पहचाना नहीं तथा उनके पुराने, मैले से कपड़ों पर टिप्पणी करते हुए अन्दर घुसने की इजाजत नहीं दी. घर आकर मिर्जा ने अपनी सबसे अच्छी पोशाक पहनी और बड़े ठाठ से फिर पहुँच गए....
जाले पर पुरुषोत्तम पाण्डेय 
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खाँ फ़िनॉमिनन - कहानी 


Smart Indian
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मधु सिंह : हे मौन तपस्वी ! हे यतिवर ! 
हे मौन  तपस्वी   !  हे यतिवर  ! हे दिग्दिगंत  !  
हे  कन्त  मेरे 
तड़प  तड़प  हम  कहो  करें  क्या ? 
हे   अंतर्मन   के  संत  मेरे    
जीवन  की  मधुरिम बेला में   
विरह सेज कंटक बन चुभते  
 यौवन की सुरभित घाटी में  
प्रणय दीप जल जल बुझते  
बोलो  बोलो  कुछ  तो बोलो 

हे   मौन  तपस्वी  हे   यतिवर ! हे दिग्दिगंत !  

हे  कन्त मेरे तड़प तड़प हम कहो करें क्या  ? 
हे  अंतर्मन   के   संत    मेरे ...
बेनकाब


9 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर चर्चा।
    सभी पाठकों को भइयादूज की शुभकामनाएँ।
    आपका आभार राजीव उपाध्याय जी।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुंदर सूत्र संकलन । 'उलूक' का आभार उसके सूत्रों को जगह देने के लिये ।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर चर्चा की है सर आपने...
    चर्चा मंच के सभी सभी पाठकों को मेरी ओर से भइयादूज की शुभकामनाएँ।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति ...आभार!
    भैयादूज की शुभकामनाएँ।

    जवाब देंहटाएं
  5. उम्दा लिंक्स, सुंदर चर्चा... मेरी रचना को स्थान दिया, हृदय से आपका धन्यवाद आदरणीय शास्त्री जी एवं आभार राजीव जी....मंगलकामनाएँ!!

    जवाब देंहटाएं
  6. आपका पोस्ट सराहनीय है.....

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