रविकर
मित्र खेलते रोज कबड्डी |
किन्तु चटकती मेरी हड्डी ॥
कहते मित्र किताबी-कीड़ा |
ताने मारें देते पीड़ा |
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Virendra Kumar Sharma
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Neeraj Kumar Neer
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रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
प्रातःकालीन वेला में और सायंकाल सूर्यास्त के समय पहाड़ियों की उत्तुंग चोटी पर समीर अपना मस्त राग गा रहा है |
बहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका आभार रविकर जी।
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खटीमा में 18 तारीख को आपसे भेंट होती है।
आपकी प्रतीक्षा है।
वाह ! बहुत सुंदर चर्चा .... तुम हँसती होगी बजते होंगे जलतरंग ' को शामिल करने हेतु आभार ...
जवाब देंहटाएंव्यंग्य विनोद और बच्चों का अकेलापन सभी मुखरित हैं इस अर्थ गर्भित रचना में .
जवाब देंहटाएंरविकर
"कुछ कहना है"
मित्र खेलते रोज कबड्डी |
किन्तु चटकती मेरी हड्डी ॥
कहते मित्र किताबी-कीड़ा |
ताने मारें देते पीड़ा |
अच्छा व्यंग्य विनोद लिए आते हैं जब भी आतें हैं काजल कुमार
जवाब देंहटाएंबढ़िया निबंधात्मक आलेख। कौन करेगा गंगा का उद्धार ?
जवाब देंहटाएंDrZakir Ali Rajnish
Scientific World
जवाब देंहटाएंबढ़िया निबंधात्मक आलेख। बेहतरीन व्यंग्य विनोद से भरपूर पोस्ट। सुरक्षा का प्रतीक है हेलमेट नियम आखिर नियम हैं फिर मौत मर्द औरत देखके नहीं आती है। अलबत्ता हेलमेट में तमाम औरतें यकसां लगेंगी। अनेकता में एकता होगी। मेरा रंग दे हेल्मेट हरा, नीला, पीला, लाल गुलाबी…
Ravishankar Shrivastava
छींटे और बौछारें
कोमल भावनाओं का आलोड़न है आपकी यह रचना प्रतीकतत्व के अलावा भी इसमें कोमल संवेदनाएं हैं प्रेम के शरणागत होना है। तुम हँसती होगी बजते होंगे जलतरंग
जवाब देंहटाएंNeeraj Kumar Neer
KAVYASUDHA ( काव्यसुधा )
बा दो लाख मिटटी में सुलग उठते हैं अंगारे
जवाब देंहटाएंछुपाना है नहीं आसान उल्फत की तरंगों को
ये खुशबू, फूल, तितली, रेत, सागर, आसमां, मिटटी
ज़रा नज़दीक जा कर देखिये जीवन के रंगों को
सुन्दर रचना ये सारी सृष्टि उसी की अभिव्यक्ति है
क्या पोखर क्या ताल तलैया
सबका एक खिवैया।
ज़रा नज़दीक जा कर देखिये जीवन के रंगों को ...
Digamber Naswa
स्वप्न मेरे...........
रोचक एवं उपयोगी पोस्टों का सुंदर संयोजन। बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा ..सभी लिंक्स अच्छे लगे
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा रविकर जी ।
जवाब देंहटाएंअच्छे सूत्र हाथ लगे हैं आज ... सुन्दर चर्चा ...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया मुझे शामिल करने का ...