मित्रों
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
दोहे
श्रावण शुक्ला पञ्चमी, बहुत खास त्यौहार।
नागपञ्चमी आज भी, श्रद्धा का आधार।१।
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महादेव ने गले में, धारण करके नाग।
विषधर कण्ठ लगाय कर, प्रकट किया अनुराग।२।
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दुनिया को अमृत दिया, किया गरल का पान।
जो करते कल्याण को, उनका होता मान।३...
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नेह दीप
एक नेह दीप जिसे उर अंतर के उज्ज्वल प्रेम की बाती और अनन्य विश्वास के घृत से निश्छल निष्ठा और सम्पूर्ण समर्पण के साथ वर्षों पहले बड़े प्यार से हम दोनों ने बाला था और जिसे तुम वक्त की चुनौतियों से हार कर यूँ ही छोड़ आये थे एक नितांत निर्जन वीराने में बुझ जाने के लिये ! उसी दीप को अनेकों आँधियों तूफानों से हाथों की ओट दे मैंने अपने मन मंदिर में अभी तक प्रज्वलित रखा है ...
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गीत
"महिलाएँ आँगन उपवन में झूल रहीं होकर मतवाली"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
चाँद दिखाई दिया दूज का,
फिर से रात हुई उजियाली।
हरी घास का बिछा गलीचा,
तीज आ गई है हरियाली।।
भर सोलह सिंगार धरा ने,
फिर से अपना रूप निखारा।
सजनी ने साजन की खातिर,
सावन में तन-बदन सँवारा।
आँगन-कानन में बरसी है,
बारिश बनकर आज मवाली।
हरी घास का बिछा गलीचा,
तीज आ गई है हरियाली...
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कोई कशिश तो शुरू से ही तुम्हारी ज़ानिब खींचती थी...
*अदबी ख़ुतूत :
दसवीं कड़ी *
*सफ़िया का पत्र
जाँ निसार अख़्तर के नाम *
Pratibha Katiyar
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चीन यात्रा - ३
यदि बौद्धधर्म को कर्मकाण्डों और प्रतीकों के परे देखें तो निष्कर्ष रूप में टाओ और जेन विशुद्ध दर्शन हैं। कोई भी शासन व्यवस्था हो, टाओ और जेन को व्यवहार में लाया जा सकता है। परिवेश की स्थिरता में दर्शन पनपता है। कौन सी स्थिर शासन व्यवस्था अधिक अनुकूल हो सकती है, पूँजीवाद या साम्यवाद, यह बड़ा ही रोचक विषय है। एक ओर जापान, दूसरी ओर चीन है। बौद्धधर्म चीन के रास्ते ही जापान पहुँचा है...
Praveen Pandey
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वायरल होने की चाहत
(व्यंग्य)
इन दिनों वायरल होने का ज़माना है। कोई सी चीज कब और कैसे वायरल होकर चर्चित हो जाए कि पता ही नहीं चलता। कुछ खुशकिस्मत लोग होते हैं जो स्वयं ही वायरल होकर दुनिया में छा जाते हैं, वहीं कुछ लोग अपने तिकड़मी दिमाग का इस्तेमाल कर खुद को वायरल कर डालते हैं। ये वायरलपना नए युग के मीडिया अर्थात सोशल मीडिया की विशेष उपलब्धि है। वायरल नामक हथियार या तो किसी को रातों-रात चर्चित करके उसकी किस्मत खोल देता है या फिर उसका डिब्बा गोल कर डालता है...
SUMIT PRATAP SINGH
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सुनो साथी चलो चलते हैं नदी के किनारे
ठंडी रेत पर पाँव को ज़रा ताज़गी दे
वहीं ज़रा सुस्ताएँगे अपने-अपने हिस्से का
अबोला दर्द रेत से बाँटेंगे
न तुम कुछ कहना न हम कुछ पूछेंगे...
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आकांक्षाओं के बोझ तले सिमटता बचपन
वैश्विक बदलाव और तकनीकी उन्नति ने जहाँ एक तरफ जीवन को सरल और सुविधापूर्ण बनाया है वहीं समाज में कुछ ऐसे भी बदलाव हुए हैं जिसके कारण जीवन की सहजता खो गई है। जैसे-जैसे समय बीत रहा है दुनिया एक-एक कदम आगे नहीं बढ़ रही बल्कि लम्बी-लम्बी छलाँग लगा रही है।यह परिवर्तन बेहद गहरा और ज़बरदस्त है जिसके कारण जीवन मूल्य तो खो ही रहा है मानवीय मूल्यों में भी गिरावट आ रही है। हर तरफ नज़र आ रहे सांस्कृतिक और सामाजिक क्षय के मूल में भी यही कारण है...
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ऐसा नहीं कि हम कुछ समझते नहीं
ऐसा नहीं कि हम कुछ समझते नहीं
समझते तो बहुत हैं मगर कहते नहीं।
कहने से क्या इन्सां बुरा मान जाता है
बुरा मान जाये कोई हमें नहीं भाता है।
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उदयपुर का सौन्दर्य –
उभयेश्वरजी के पर्वत
इस प्रकृति की अनुपम देन को जितना देखो उतना ही अपनी ओर आकर्षित करती है लेकिन दिन तेजी से ढल रहा था और अब जंगल कह रहे थे कि हमें एकांत चाहिये। किसी शहंशाह की तरह जंगल ने भी कहा एकान्त! और हम वापस चले आये, उस खूबसूरती को आँखों में संजोये, फिर आने की उम्मीद के साथ। पोस्ट को पढ़ने के लिये इस लिंक पर क्लिक करें -
smt. Ajit Gupta
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अक्ल के पीछे लट्ठ -
यह दुनिया विरोधों का तालमेल है,जिसमें संतुलन बनाये रखना बहुत ज़रूरी है - जहाँ यह बिगड़ा वहाँ गड़बड़ शुरू. एक निश्चित मात्रा में जो वस्तु लाभदायक है ,अनुपात बिगड़ते ही वह अनर्थ करने पर उतारू हो जाती है .और यह अक्ल नाम की बला जो इन्सान के साथ जुड़ी है बड़ी दुनियाबी चीज़ है.बाबा आदम के उन जन्नतवाले दिनों में इसका कहीं नामोनिशान नहीं था. मुसम्मात हव्वा की प्रेरणा से अक्ल का संचार हुआ परिणामस्वरूप हाथ आई ख़ुदा से रुस्वाई . अब भी उस परंपरा के लोग बरकरार हैं ,जो अक्ल से दुश्मनी ठाने उस के पीछे लट्ठ लिये घूम रहे हैं . जिसने ज़रा सा भी उपयोग किया उसके लिये जहन्नुम रिज़र्व है...
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जीवन मंजिल जोहता है
जब तारे न थमते नभ में न लौ सूरज की फीकी हो
तू थक कर क्यों बैठ गया ज्यूँ मंजिल तेरी रीती हो
यहाँ पथ पर चलने वाला, हर कोई मुसाफिर होता है
तू निराला मत बन यहाँ, ये जीवन मंजिल जोहता है...
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देश नहीं कहता तुमसे
देश नहीं कहता तुमसे तुम राष्ट्रवाद के प्रेत बनो
सम्प्रभुता के बागी बनकर उग्रवाद की भेंट चढ़ो...
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लीडरी कारगर करते हैं,
मजबूर और मगरूर नहीं
03 अगस्त को मेरे कस्बे में बँटे एक अखबार के मुख पृष्ठ पर छपी खबर के मुताबिक आईएएस अफसर प्रकाश जाँगड़े के जरिए मुख्यमन्त्री ने नाराज स्वरों में तमाम अफसरों को, खासकर कलेक्टरों को सन्देश दिया है - ‘कलेक्टर लीडर न बनें। विधायक ही लीडर हैं।’ मुझे बहुत अच्छा लगा...
एकोऽहम् पर विष्णु बैरागी
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एक देशगान -
यह भारत बहुत महान है
यह भारत बहुत महान है
लाल किले पर लगा तिरंगा
भारत का अभिमान है...
जयकृष्ण राय तुषार
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