मित्रों
बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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कवि बेचारा
लिखने के लिए
अब रहा क्या शेष
सभी कब्जा जमाए बैठे हैं
रहा ना कुछ बाक़ी है
हम तो यूँ ही दखल देते हैं...
अब रहा क्या शेष
सभी कब्जा जमाए बैठे हैं
रहा ना कुछ बाक़ी है
हम तो यूँ ही दखल देते हैं...
Akanksha पर Asha Saxena
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"एक गीत-एक मुक्तक"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।
अनुबन्ध आज सारे, मनुहार हो गये हैं।।
न वो प्यार चाहता है, न दुलार चाहता है,
जीवित पिता से पुत्र, अब अधिकार चाहता है,
सब टूटते बिखरते, परिवार हो गये हैं।
सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।।
घूँघट की आड़ में से, दुल्हन का झाँक जाना,
भोजन परस के सबको, मनुहार से खिलाना,
ये दृश्य देखने अब, दुश्वार हो गये हैं।
सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं...
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कश्मीर से तो बात करें हम
कश्मीर हमारे लिए आज हमारे लिए ‘असमाप्त प्रकरण’ सा बना हुआ है। राजनीतिक रूप से यह यदि सम्भवतः सर्वाधिक प्रिय विषय है तो उतना ही कष्टदायक भी। ‘समस्या’ से आगे बढ़कर लगभग ‘नासूर’ बन चुके, धरती के इस स्वर्ग में व्याप्त अशान्ति की बात तो हर कोई करता है किन्तु जब भी निदान की बात आती है तो यह ‘रीछ के हाथ’ बन जाता है जिसे पकड़ने को कोई तैयार नहीं। इसी कश्मीर समस्या के निदान की दिशा में गाँधीवादी चिन्तक *श्री कुमार प्रशान्त* के अपने विचार हैं जो द्विमासिक पत्रिका *‘गाँधी मार्ग’* के जुलाई-अगस्त 2016 के अंक में प्रकाशित हुए हैं...
एकोऽहम् पर विष्णु बैरागी
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कौन कहता है
आंदोलन सफल नहीं होते ?
बात तो बचपन की ही है पर बचपन की उस दीवानगी की भी जिस की याद आते ही मुस्कान आ जाती है। ये तो याद नहीं उस ज़माने में फिल्मों का शौक कैसे और कब लगा जबकि उस समय टीवी नहीं हुआ करते थे। उस पर भी अमिताभ बच्चन के लिए दीवानगी। मुझे लगता है इसके लिए वह टेप रिकॉर्डर जिम्मेदार है। थोड़ा अजीब है अमिताभ बच्चन और फिल्मो की दीवानगी के लिए टेप रिकॉर्डर जिम्मेदार पर है तो है। बात है सन 79 की है तलवार तीर कमान ले कर कोई क्रांति नहीं हुई थी पर क्रांति तो हुई थी...
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पूर्ण राज्य से बेहतर होगा
दिल्ली का फिर से पूर्ण शहर बनना
ऐसा हुआ तो निश्चित तौर पर इसका पूरा श्रेय अरविंद केजरीवाल को जाएगा।
दिल्ली में चुने हुए प्रतिनिधियों के अधिकारों को लेकर स्पष्टता की बड़ी सख्त जरूरत है। अरविंद केजरीवाल चाहते हैं कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा मिल जाए और वो भी इसलिए कि दिल्ली की पुलिस से वो केंद्रीय मंत्रियों और यहां तक कि देश के प्रधानमंत्री के खिलाफ भी सीधी कार्रवाई करा सकें। महत्वाकांक्षाओं के साथ इस तरह की राजनीति की मिसाल अरविंद केजरीवाल ही पेश कर रहे हैं। न भूतो न भविष्यति जैसा उदाहरण दिखता है। दिल्ली उच्च न्यायालय के ताजा फैसले के बाद ये बहस और तेज हो गई है कि दिल्ली में चुने प्रतिनिधियों के अधिकार क्या हैं..
HARSHVARDHAN TRIPATHI
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दर्द
*मेरे दर्द की खबर भी नहीं हुई जमाने को *
*दर्द मुझको और मैं दर्द को यूँ जीता रहा !!*
अर्पित ‘सुमन’ पर सु-मन
(Suman Kapoor)
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साहित्यभूषण डा रंगनाथ मिश्र सत्य का
एक नवगीत
बरस रहे मचल मचल यादों के घन |
कंपती है भादों की रात, बतियाँ उर में शूल गयीं |
टेर उठी कान्हा की वंशी सखियाँ सुध बुध भूल गयीं...
डॉ. श्याम गुप्त ....
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कोई क्या सोचेगा !
भोजन समापन पर है - मेरा बेटा कटोरी से दही चाट-चाट कर खारहा है .उसकी पुरानी आदत है कटोरी में लगा दही चम्मच से न निकले तो उँगली घुमाकर चाटता रहता है . वैसे जीभ से चाटने से भी उसे कोई परहेज़ नहीं . बाद में तो तो यह पता लगाना मुश्किल हो जाता है कि इस कटोरी में कुछ था भी....
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उसने फ़रमाया है
ज़िल्लत का ज़हर कुछ यूँ वक़्त ने पिलाया है
जिस्म की सरहदों में ज़िन्दगी दफ़नाया है !
सेज पर बिछी कभी भी जब लाल सुर्ख कलियाँ
सुहागरात की चाहत में मन भरमाया है...
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'अति सर्वत्र वर्जयेत'
मैं कविता का पक्ष हूँ और मैं विपक्ष
मैं कवयित्री का पक्ष हूँ और मैं विपक्ष
और खिंच गयी तलवारें
दोनों ही ओर से...
vandana gupta
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भागम-भाग में बीते दो महीने
इतनी व्यस्तता, उठा-पटक, भाग-दौड़ से शरीर का थोड़ा नासाज होना भी बनता है, हुआ भी है। पर उसे प्यार से समझाना पड़ा है कि अगले हफ्ते पड़ने वाले तीन अवकाशों में हमें सालासर के बालाजी महाराज के दर्शनों का संकल्प भी पूरा करना है, सो भाई हमारा साथ ना छोडना, ज़रा ठीक ही रहना...
कुछ अलग सा पर गगन शर्मा
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