मित्रों
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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"दम घुटता है आज वतन में"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
सज्जनता बेहोश हो गई,
दुर्जनता पसरी आँगन में।
कोयलिया खामोश हो गई,
मैना चीख रही उपवन में।।
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गहने तारे, कपड़े फाड़े,
लाज घूमती बदन उघाड़े,
यौवन के बाजार लगे हैं,
नग्न-नग्न शृंगार सजे हैं,
काँटें बिखरे हैं कानन में।
मैना चीख रही उपवन में...
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स्वतंत्रता खोने वाले के पास
कुछ नहीं बचता है
जो अपना स्वामी स्वयं नहीं,
उसे स्वतंत्र नहीं कहा जा सकता है ।
जिसे अत्यधिक स्वतंत्रता मिल जाय,
वह सबकुछ चौपट करने लगता है...
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एंटी चुगलखोरी ड्राप
...कैसे पिलाएँ चुगली की दो बूंदे-''सबसे पहले लक्ष्य को पहचानें, उसे कांफिडेन्स में लें``और उसका मुँह खुलवाएँ । बेहतर ढंग से सुने । जिसकी चुगली की जा रही है-उसे उसके सामने ले आएँ । फिर हौले से चुगलखोर की कही बातों में से एक दो बातें बूँदों की तरह सार्वजनिक करने की शुरूआत करें।``
इससे चुगलखोर के वस्त्र स्वयम् ही ढीले पड़ने लगेंगें। हाथ पाँव का फूलना, सर झुका लेना, माथा पकड़ना या हड़बड़ाकर ''हाँ...हाँ...हाँ....नहीं...नहीं..`` की रट लगाना बीमारी की समाप्ति के सहज लक्षण होते हैं...
गिरीश बिल्लोरे मुकुल
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चीन यात्रा - ५
पिछले वर्ष सिंगापुर और मलेशिया जाने का अवसर मिला था, रेलवे द्वारा आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रम में। उस समय भी मन में एक उद्विग्नता थी, उस यात्रा के बारे में लिखने की। हमारी तुलना में, हमसे बाद स्वतन्त्र हुये छोटे छोटे देश कितने व्यवस्थित और कितने विकसित हो सकते हैं, इस तथ्य की लज्जा के कारण कुछ नहीं लिख सका। हमारे देश में गम्भीर बातों को हवा में उड़ा देने वालों का एक सम्प्रदाय है। उन्हें किसी के विकास में, किसी के परिश्रम में, किसी के उद्भव में कोई तत्व नहीं दिखता है। वे अपने कुतर्कों से किसी को भी तुच्छ सिद्ध कर सकने की क्षमता रखते हैं। छोटे देशों की प्रगति के बारे में...
Praveen Pandey
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बेबसी
तुम मैं और मेरी
आराम कुर्सी
आँखे बंद करते ही
उतर जाती हूँ
सोचों की वादियों में
तुम्हारे साथ
हर लम्हा
हर पल
जो तुम्हारे साथ बीता
आँखों में तैर उठता है
जी उठती हूँ मैं...
आराम कुर्सी
आँखे बंद करते ही
उतर जाती हूँ
सोचों की वादियों में
तुम्हारे साथ
हर लम्हा
हर पल
जो तुम्हारे साथ बीता
आँखों में तैर उठता है
जी उठती हूँ मैं...
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गुजारा हो नहीं सकता
एक गीत वहां भी है जब
“गाड़ियों के हॉर्न” सुनते हुए
बच्चा रो रहा होता है.
जब गुजरा था एक बार उस फूटपाथ से
तो लगा कि अजीब दुनिया में मैं आ गया हूँ...
प्रभात
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वास्तुशास्त्र से धन संबंधी
समस्याओं को सुलझायें!
Vastu and Money
धन वो धुरी है जिसके चारों ओर सारा संसार गति करता है, बिना धन के जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। अर्थशास्त्र ने जीवन की तीन मूलभूत आवश्यकताऐं रोटी-कपड़ा और मकान बतायी हैं, इनकी प्राप्ति भी बिना धन के संभव नहीं है, हम कह सकते हैं अर्थ किसी भी व्यक्ति या देश का अर्थशास्त्र थोड़े ही समय में बना या बिगाड़ सकता है...
Sanjay Kumar Garg
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कुछ बिखरी पंखुड़ियां....
भाग-27
हमारे प्यार के गवाही देंगे,
ये पल, लम्हे,
शाम-ओ-सहर...
गवाह बनेगें..
वो ख्वाब की रात,
वो मुस्कराती सुबह,
वो दिन के पहर....
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अब ब्राह्मणों के भरोसे नहीं हैं बहनजी
एक क्षत्राणी ने बहन मायावती को पूरी चुनावी रणनीति बदलने पर मजबूर कर दिया है। हालांकि, अकेली स्वाति सिंह नहीं हैं, जिनकी वजह से मायावती को अपनी चुनावी रणनीति बदलनी पड़ी हो। लेकिन, सबसे बड़ी वजह स्वाति सिंह ही हैं। उत्तर प्रदेश में 2017 में फिर से सत्ता में आने का रास्ता ब्राह्मणों या कह लीजिए कि सवर्णों के जरिये खोज रही मायावती को स्वाति सिंह ने ऐसा झटका दिया है कि ब्राह्मणों की बहन जी अब मुसलमानों की माया मैडम ही बनने की कोशिश में लग गई हैं...
HARSHVARDHAN TRIPATHI
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स्वर्ग-नर्क
मुझे तुम्हारी आंतरिक सत्ता के विकास पर कार्य करना होता है। दोनों एक ही प्रक्रिया के अंग हैं: कैसे तुम्हें एक समग्र व्यक्ति बनाया जाए, उस सारी निस्सारता को, जो तुम्हें समग्र बनने से रोक रही है, कैसे नष्ट किया जाए। यह तो नकारात्मक पहलू है और सकारात्मक पहलू है कि कैसे तुम्हें प्रज्ज्वलित किया जाए ध्यान से, मौन से, प्रेम से, आनंद से, शांति से...
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