मन के मनके जोड़, विहँसती चुपके चुपके -
चुपके से मन पोट ली, ली पोटली तलाश |
यादों के पन्ने पलट, पाती लम्हे ख़ास |
पाती लम्हे ख़ास, प्रेम पाती इक पाती |
कोरा दर्पण-दर्प, और फिर प्रिया अघाती |
शंख सीप जल रत्न, कौड़ियां गिनती छुपके |
मन के मनके जोड़, विहँसती चुपके चुपके ||
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गीत"शब्दों के मौन निमन्त्रण"(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
शब्दों के मौन निमन्त्रण से,
बिन डोर खिचें सब आते हैं।
मुद्दत से टूटे रिश्ते भी,
सम्बन्धों में बंध जाते हैं।।
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