मित्रों
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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हवायें भी दवा होंगी...
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...आजीवन अध्यक्ष हों, जिस कुनबे के तात।
उस दल में बेकार है, लोकतन्त्र की बात।।
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कुटुम-कबीले की चले, मनमानी के साथ।
चार-पाँच ही नाथ हैं, बाकी सभी अनाथ।।
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कुर्सी पर बैठी बहन, सब पर हुक्म चलाय।
ठेकेदारी का चलन, मूरख रहा बनाय...
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मेरी चाहत है बचपन की सभी गलियों से मिलने की ...
कभी गोदी में छुपने की
कभी घुटनों पे चलने की
मेरी चाहत है बचपन की
सभी गलियों से मिलने की...
Digamber Naswa
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भविष्यफल का जिज्ञासा लोक
छुट्टी का दिन और तेज बरसता पानी। सुबह-सुबह का समय। ऐसे में तेजस आया तो मैंने अनुमान लगाया, निश्चय ही कोई बहुत ही जरूरी काम होगा। ऐसा, जिसे टाल पाना मुमकिन नहीं रहा होगा। मैंने कुछ नहीं पूछा। ‘बड़ेपन’ के अहम् में...
एकोऽहम् पर विष्णु बैरागी
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सपनों को मरने मत देना
तेज आँधियों को दिये के,
प्राण कभी हरने मत देना।
सपनों को मरने मत देना...
Laxman Bishnoi Lakshya
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अरमान सब सँग तुम्हारे चले गये .
जाने अब कहाँ नज़ारे चले गये
जीने के सभी सहारे चले गये .
ढल गया दिन भी और छुप गया चाँद
जाने कहाँ सब सितारे चले ...
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आखिर कब तक
बंद करो ये खेल मौत का,
पहले तो बस एक मरा था,
क्या उसको जिंदा कर पाओगे?
जाने कितने और मर गये,
खूनी जलसा, आखिर कब तक...
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