मित्रों
बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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तितली आई! तितली आई!!
रंग-बिरंगी तितली आई।।
कितने सुन्दर पंख तुम्हारे।
आँखों को लगते हैं प्यारे।।
फूलों पर खुश हो मँडलाती।
अपनी धुन में हो इठलाती...
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जियो उस प्यार में जो मैंने तुम्हें दिया है
अज्ञेय
जियो उस प्यार में जो मैंने तुम्हें दिया है,
उस दु:ख में नहीं जिसे बेझिझक मैंने पिया है...
मेरी धरोहर पर yashoda Agrawal
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-सोलहवां अध्याय (१६.१-१६.५)
(With English connotation)
श्री अष्टावक्र कहते हैं :
Ashtavakra says :
चाहे कितने ही शास्त्रों का, कथन या वाचन तुम कर सकते|
शान्ति न पाओगे प्रिय तब तक, उनको है न विस्मृत करते||(१६.१)
Son, you may listen or study several scriptures,
but you will not attain peace and establish in
yourself until you forget everything.(16.1)...
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इस पुस्तक की विशेषता यह है कि यह एक तरफ कहानी-संग्रह है, तो दूसरी तरफ समीक्षात्मक पुस्तक | कहानी के पाठकों के लिए इस पुस्तक में रूप देवगुण जी की 14 कहानियाँ हैं और कहानी के विद्यार्थी और शोधार्थी के लिए हर कहानी से पहले डॉ. शील कौशिक जी का सारगर्भित लेखन है | उन्होंने सामाजिक सन्दर्भों को 11 शीर्षकों में विभक्त करते हुए उन पर अपने विचार दिए हैं | यथा पारिवारिक समरसता के बारे में वे लिखती हैं –
“ परिवार समाज की महत्त्वपूर्ण ईकाई है और यदि परिवार में भारतीय संस्कृति के प्रति पूर्ण आस्था, नीति-अनीति का सशक्त सामाजीकरण, उदात्त भावों के प्रति भावनात्मक संवेदना हो तो समाज का स्वरूप सुंदर और स्वस्थ होगा | ” ....
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शायद नए सितम का नया सिलसिला मिले
*मासूमियत के साथ बहुत बेवफा मिले ।
चेहरे तमाम उम्र हकीकत जुदा मिले...
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मुक्तक
वह तेरा ऐसा दीवाना हुआ
बिन तेरे दिल वीराना हुआ
वीराने में बहार आए कैसे
सोचने का एक बहाना हुआ...
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छन्द- स्रग्विणी
छन्द- स्रग्विणी मापनी - 212 212 212 212
लोग जीवन ख़ुशी से बिताते रहे
राज़ सब से सजन हम छिपाते रहे...
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दर्पण
प्रभात
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आप की रक्षा... मेरा अधिकार है
आप मुझे जानते हैं यह आपका बड़प्पन है
आपको मैं जानता हूँ यह मेरा सौभाग्य है...
udaya veer singh
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एक प्यार ऐसा भी...
Sneha Rahul Choudhary
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मुहब्बत का मेरे भी वास्ते पैग़ाम आया है
मिला चौनो क़रारो बेश्तर आराम आया है
सुना है जी चुराने में मेरा भी नाम आया है...
अंदाज़े ग़ाफ़िल पर
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
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