मित्रों
शुक्रवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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गीत
"भारत माँ आजाद हो गयी...!"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
अंग्रेजों के चंगुल से तो,
भारत माँ आजाद हो गयी!
लेकिन काले अंग्रेजों के,
जुल्मों से नाशाद हो गयी।।
आज वाटिका के माली के,
कपड़े उजले, दिल हैं काले,
मसल रहे भोले सुमनों को,
बनकर ये हाथी मतवाले,
आजादी की उत्कण्ठा अब,
कुण्ठा-पश्चाताप हो गयी।
भारत माँ आजाद हो गयी...
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नव गीत
आपसी झगडा भूलकर बोलो,
भारत एक परिवार है
एक स्वर में बोलो सभी,
कश्मीर पूरा हमारा है...
कालीपद "प्रसाद"
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दर्द
झुंझला देता झुलसा देता गला
देता जला देता और कभी यही अंतर्मन को
धीमे - धीमे थपकी डे सहला देता बहला देता
सैर न जाने कहाँ - कहाँ की
पल भर में ही ये करा देता ..
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वही पन्ने पलटे है....
वक़्त ने आज फिर वही पन्ने पलटे है,
वही तुम्हारे नाम पर, फड़फड़ा कर रुक गये है..
फिर वही कहानी...
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सूरज/ चाँद का
तुमसे कोई रिश्ता है क्या !
कसमें ली जाती हैं हर रोज़
तुम्हें न देखने की न मिलने की
और तुम्हें ना सोचने की भी....
रोज़ की ली हुई कसमें टूट जाती है
या तोड़ दी जाती हैं.....
सुबह सूरज के उगने पर,
रात को चाँद के आ जाने पर......
सूरज/ चाँद का तुमसे कोई रिश्ता है क्या !
कि कसम ही टूट जाती है...
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स्वरचित अन्तरा /
फिल्म हमराज़ /
तुम अगर साथ देने का वादा करो
तुम रहो प्यार से हम रहें प्यार से
प्यार से हम बचें वक्त की मार से
प्यार में तुम मुझे यूँ डुबोती रहो
प्यार में मैं तुम्हें यूँ डूबाता रहूँ...
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रहम करो बाबा रहम!
हे बाबा! रहम करो रहम।
वइ सहीं बाबा लोगन पर
भरोसा उठ सा गया है...
HARSHVARDHAN TRIPATHI
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जो अपने थे कभी मुझको तो वैसे याद रहते हैं
तुझे भी क्या मेरी उल्फ़त के किस्से याद रहते हैं
मुझे तो बारहा वो तेरे शिक़्वे याद रहते हैं...
अंदाज़े ग़ाफ़िल पर
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
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कितना मुश्किल है
बीते लम्हों को जी लेना मुश्किल है
पलकों से आँसू पी लेना मुश्किल है !
मीलों लंबे रेत के जलते सहरा में
नंगे पैरों चलते रहना मुश्किल है...
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चाँद से भेजी है ...
चाँद से भेजी है
थोड़ी सी चाँदनी तुम्हारे लिए
अगर वक़्त मिले तो
खिड़की का पर्दा उठा के देख लेना
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