मित्रों!
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बेआवाज़ की बातें करो
पहले ही अंज़ाम? उफ़्!!! आग़ाज़ की बातें करो!
कर रहे हो आज तो फिर आज की बातें करो!!
रोज़ तो करते ही हो आवाज़ की बातें तुम
आज, टूटते इस दिल की बेआवाज़ की बातें करो!!
अंदाज़े ग़ाफ़िल पर
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
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मनबावरा .....
मनुष्य को इस संसार में लाना तो कठिन है ही ,पर उसको भला आदमी बना पाना उससे कही बहुत ज्यादा कठिन है ... ... निवेदिता मानव मन अपने मन की बातें छुपाना चाहता है शायद इसके पीछे का मूल कारण ये ही होगा कि शेष व्यक्ति उस बात को अपने मनमाफिक रंग देकर व्याख्या करेंगे
और खामोश होता जाता है ....
झरोख़ा पर निवेदिता श्रीवास्तव
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अगस्त के इस आखिरी हफ्ते के संकेत
बढ़ती हुई रेल दुर्घटनाएं भी इस सरकार की एक और खास उपलब्घि रही है, वह भी इसी महीने में रेल दुर्धटनाओं की श्रृंखला से सबसे प्रगट रूप में जाहिर हुआ है । रेल बजट को केंद्रीय बजट में मिला कर मोदी ने रेलवे पर अपने और जेटली के दोहरे निकम्मेपन को लाद दिया है...
Randhir Singh Suman
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इस धरा - गगन के प्राण वायु
हो रहे क्षण- क्षण कलुषित माँ
भर दो इसे स्नेह अमृत से
मुझमें ही बन ममता रूप
लौट आओ न शिवानी माँ...
हो रहे क्षण- क्षण कलुषित माँ
भर दो इसे स्नेह अमृत से
मुझमें ही बन ममता रूप
लौट आओ न शिवानी माँ...
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संस्मरण
तीन घंटे तीन घटनाएं (संस्मरण)
वैसे तो मै ऐसी बातों को मानती नहीं हूं,
लेकिन हाल ही में मेरे साथ
कुछ अजीब सी घटनाएं हुई,..
Ocean of Bliss पर Rekha Joshi
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जिनके भाग्य में नखलिस्तान नहीं
इस बार दयानंद पांडेय के लेखन पर बात करने का मन हो रहा है। संयोगवश मैं ने उन के दो उपन्यास पढे- 'हारमोनियम के हज़ार टुकडे' और 'वे जो हारे हुए' । ज़िंदगी की सच्चाई को छूने वाला, एक कालखंड का यह इतिहास बहुत ताकत के साथ कलात्मक लेखन का दंभ भरने वालों को अंगूठा दिखाता है। आलोचकों और समीक्षकों को मुंह चिढाता यह लेखन साबित करता है कि अपने समय के समाज के साथ खडा होना ज़्यादा ज़रुरी है बनिस्पत 'साहित्य-साहित्य' की जुगाली करने के। शायद इसी लिए दयानंद पांडेय के पास केवल आज की भयावह दुनिया ही नहीं है बल्कि उस भयावहता को तोडने और काटने के लिए सोच की पैनी कलम भी है...
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"गॉड पार्टिकिल डिस्कवर्ड ?"
"गॉड पार्टिकिल डिस्कवर्ड" हेड लाइंस सुर्ख़ियों में पहली मर्तबा २०१२ में आईं। यद्यपि भौतिकी के माहिरों ने इस हेडलाइन को सस्ती लोकप्रियता बटोरने वाली कहा...
Virendra Kumar Sharma
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
बहुत सुंदर रविवारीय चर्चा.'देहात' से मेरे पोस्ट को शामिल करने के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंपठनीय सूत्र...
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति
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