मित्रों!
बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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गीत
"बुखार ही बुखार है"

नशा है चढ़ा हुआ, खुमार ही खुमार है।
तन-बदन में आज तो, बुखार ही बुखार है।।
मुश्किलों में हैं सभी, फिर भी धुन में मस्त है,
ताप के प्रकोप से, आज सभी ग्रस्त हैं,
आन-बान, शान-दान, स्वार्थ में शुमार है...
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हिन्दी एवं साहित्य जगत के लिए
गौरव के अनमोल क्षण ---
प. रघुनन्दन मिश्र मार्ग 'का लोकार्पण ---
डा श्याम गुप्त

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साँझ ढले बिटिया पढ़ती है--
छंद
मापनीयुक्त मात्रिक छंद - 1.हरिगीतिका- गागालगा गागालगा गागालगा गागालगासूरज उगा ज्यों ही गगन में, कालिमा घटने लगी|मन व्योम के विस्तृत पटल पर, लालिमा बढ़ने लगी||कलकल सरित अपनी लहर में, गीतिका कहती रही|पाषाण वाली राह पर भी, प्रेम से बहती रही|...
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चिड़िया: खामोशियाँ गुल खिलाती हैं !
चिड़िया: खामोशियाँ गुल खिलाती हैं !:
रात के पुर-असर सन्नाटे में
जब चुप हो जाती है हवा
फ़िज़ा भी बेखुदी के आलम में हो जाती है
खामोश जब ! ठीक उसी लम्हे,
चटकती हैं अनगिनत कलियाँ...
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हमरी ताउम्र की पतझर भइली.....
डॉ .राकेश श्रीवास्तव

कविता मंच पर yashoda Agrawal
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कंप्यूटर की सीमाएं -
Limitations of Computer in Hindi
YOUR PROPERTY:YOUR DUTY

प्रेम के पाठ

लिखो यहां वहां पर विजय गौड़
शुभ प्रभात...
ReplyDeleteआभार
सादर
सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeletesundar prastuti .meri post ko sthan dene hetu hardik dhanyawad
ReplyDeleteबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
ReplyDeleteबेहद सुंदर लिंक्स का संकलन ! मेरी रचना को चर्चामंच पर पाकर बहुत खुशी हो रही है । सादर,सविनय आभार!
ReplyDeleteभोट ही सुन्दर आर्टिकल. dev uthni ekadshi
ReplyDeleteधन्यवाद शास्त्रीजी ----याहां सदैव ही अच्छे लिंक प्रस्तुत होते हैं---
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