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रविवार, अक्तूबर 15, 2017

"मिट्टी के ही दिये जलाना" (चर्चा अंक 2758)

मित्रों!
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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चर्चा मंच पर प्रतिदिन अद्यतन लिंकों की चर्चा होती है।
आश्चर्य तो तब होता है जब वो लोग भी चर्चा मंच पर 
अपनी उपस्थिति का आभास नहीं कराते है, 
जिनके लिंक हम लोग परिश्रम के साथ मंच पर लगाते हैं।
अतः आज के बाद ऐसे धुरन्धर लोगों के ब्लॉग का लिंक 
चर्चा मंच पर नहीं लगाया जायेगा।
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गीत  

"मिट्टी के ही दिये जलाना"  

मित्रों!
पिछले वर्ष 16 अक्तूबर, 2016 को
निम्न गीत लिखा था,
परन्तु इस गीत की कुछ पंक्तियों में
थोड़ा बदलाव करके
बहुत से लोगों ने इस गीत को
अपने नाम से यू-ट्यूब पर
लगा दिया है।
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खूँटा 

तुमने ही तो कहा था 

कि मुझे खुद को तलाशना होगा 

अपने अन्दर छिपी तमाम अनछुई 
अनगढ़ संभावनाओं को सँवार कर 
स्वयं ही तराशना होगा... 
Sudhinama पर sadhana vaid  
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दहशत में जीभ 

मेरी जीभ आजकल गुमसुम रहती है,कुछ नहीं बोलती,चुपचाप पड़ी रहती है मेरे मुंह में.
सो गया है उसका अल्हड़पन,फूल नहीं झरते अब उससे,.. 

कविताएँ पर Onkar 
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काश मिलती तुम हमें जिंदगी 

काश मिलती तुम हमें ज़िन्दगी 
प्यार तेरे संग करते ज़िन्दगी ...  
Ocean of Bliss पर Rekha Joshi - 
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श्याम मधुशाला ---  

डा श्याम गुप्त 

शराव पीने से बड़ी मस्ती सी छाती है , 
सारी दुनिया रंगीन नज़र आती ... 
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4 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात शास्त्री जी ! संग्रहणीय सार्थक सूत्रों से सुसज्जित आज का चर्चामंच ! मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से धन्यवाद एवं आभार !

    जवाब देंहटाएं

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